Azad Katha - 1 - 45 in Hindi Fiction Stories by Munshi Premchand books and stories PDF | आजाद-कथा - खंड 1 - 45

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आजाद-कथा - खंड 1 - 45

आजाद-कथा

(खंड - 1)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 45

एक दिन हुस्नआरा को सूझी कि आओ, अब की अपनी बहनों को जमा करके एक लेक्चर दूँ। बहारबेगम बोलीं - क्या? क्या दोगी?

हुस्नआरा - लेक्चर-लेक्चर। लेक्चर नहीं सुना कभी?

बहारबेगम - लेक्चर क्या बला है?

हुस्नआरा - वही, जो दूल्हा भाई जलसों में आए दिन पढ़ा करते हैं।

बहारबेगम - तो हम क्या तुम्हारे दूल्हा भाई के साथ-साथ घूमा करते हैं? जाने कहाँ-कहाँ जाते हैं, क्या पढ़-पढ़के सुनाते हैं। इतना हमको मालूम है कि शेर बहुत कहते हैं। एक दिन हमसे कहने लगे - चलो, तुमको सैर करा लाएँ। फिटन पर बैठ लो। रात का वक्त है, तुम दुशाले से खूब मुँह और जिस्म चुरा लेना। मैंने कानों पर हाथ धरे कि न साहब, बंदी ऐसी सैर से दरगुजरी। वहाँ जाने कौन-कौन हो, हम नहीं जाने के।

सिपहआरा - अब की आवें तो उनके साथ हम जरूर जाएँ!

बहारबेगम - चलो, बैठो, लड़कियाँ बहनोइयों के साथ यों नहीं जाया करतीं।

रूहअफजा - मगर सुनेगा कौन? दस-पाँच लड़कियाँ और भी तो हों कि हमी-तुम टुटरूँ टूँ?

सिपहआरा - देखिए, मैं बुलवाती हूँ। अभी मामा को भेजे देती हूँ।

हुस्नआरा - मगर नजीर को न बुलवाओ। उनके साथ जानीबेगम भी आएँगी यह बात बात में शाखें निकालती हैं। उन्हें खब्त है कि हमसे बढ़ कर कोई हसीन ही नहीं। 'शक्ल चुड़ैलों की, नाज परियों का'; दिन-रात बनाव-सँवार ही में लगी रहती हैं।

सिपहआरा - फिर अच्छा तो हैं। बहारबेगम से भिड़ा देना।

थोड़ी देर में डोलियों पर डोलियाँ और बग्घियों पर बग्घियाँ आने लगीं। दरबान बार-बार आवाज देता था कि सवारियाँ आई हैं। लौंडियाँ जा-जा कर मेहमानों को सवारियों पर से उतरवाती थीं और वे चमक-चमक कर अंदर आती थीं। आखिर में जानीबेगम और नजीरबेगम भी आईं। जानीबेगम की बोटी-बोटी फड़कती थी; आँखें नाचती रहती थीं। नजीर बेगम भोली-भाली शरमीली लड़की थी। शरम से आँखें झुकी पड़ती थीं। जब सब आ चुकीं, तो हुस्नआरा ने अपना लेक्चर सुनाना शुरू किया -

मेरी प्यारी बहनो, सास-बहुओं के झगड़े, ननद-भावजों के बखेड़े, बात-बात पर तकरार, मियाँ-बीवी की जूती-पैजार से खुदा की पनाह। इन बुरी बातों से खुदा बचाए। भलेमानसों की बहू-बेटियों में ऐसी बात न आने पाए। इस फूट की हमारे ही देश में इतनी गर्मबाजारी है कि सास की जबान पर कोसना जारी है, बहू मसरूफ गिरिया व जारी है और मियाँ की अक्ल मारी है। ननद भावज से मुँह फुलाए हुए, भावज ननदसे त्योरियाँ चढ़ाए हुए। बहू हिचकियाँ ले-ले कर रोती है, सास जहर खा कर सोती है। और, जो सास गुस्सेवर हुई और बहू जबान की तेज, तो मार-पीट की नौबत पहुँचती है। मियाँ अगर बीवी की सी कहें तो अम्माँ की घुड़कियाँ सहें; अम्मा की सी कहें, तो बीवी की बातें सुनें। माँ उधर, बीवी इधर कान भरती है, वह इनके और यह उनके नाम से कानों पर हाथ धरती हैं।

मगर ताली एक हाथ से नहीं बजती। सास भली हो, तो बहू को मना ले; और बहू आदमी हो, तो सास को आदमी बना ले। एक शरीफजादी ने अपनी मामा से कहा कि हमारी सास तो हमारी सौत हैं। खुदा जाने, उनकी जबान से यह बात कैसे निकली! इस पर भी उन्हें दावा है कि हम शरीफजादी हैं। अगर वह हमारी राय पर चलें, तो उनकी सास उन्हें अपने सिर पर बिठाएँ। वह सीधी जा कर सास के कदमों पर गिर पड़ें और आज से उनकी किसी बात का जवाब न दें। क्या उनकी सास का सिर फिर गया है, या उन्हें बावले कुत्ते ने काटा है? बहू अगर सास की खिदमत करे, तो दुनिया भर की सासों में कोई ऐसी न मिले, जो छेड़ कर बहू से लड़े।

अब सोचो तो जरा दिल में, इस तकरार और जूती-पैजार का अंजाम क्या है? घर में फूट, एक दूसरे की सूरत से बेजार, लौंडियों-बाँदियों में जलील, सारी दुनिया में बदनाम, घर तबाह। एक चुप हजार बला को टालती है, फसाद को जहन्नुम में डालती है। हाँ, जो यह खयाल हो कि सास एक कहें, तो दस सुनाएँ, वह दो बातें कहें, तो बीस मरतबे उनको उल्लू बनाएँ, तो बस, मेल हो चुका। सास न हुई, भुनी मूंग हुई। आखिर उसका भी कोई दरजा है या नहीं? या बस, बहू ससुराल में जाते ही मालकिन बन बैठे, सास को ताक पर रख दे और मियाँ पर हुकूमत चलाने लगे? अब मैं आप लोगों से इतना चाहती हूँ कि सच-सच अपनी-अपनी सासों का हाल बयान कीजिए।'

एक - अल्लाह करे, हमारी सास को आज रात ही को हैजा हो।

दूसरी - अल्लाह करे, हमारी सास को हैजा हो गया हो।

तीसरी - अल्लाह करे, हमारी सास ऐसी जगह मरे; जहाँ एक बूँद पानी न मिले।

बहारबेगम - या खुदा, मेरी सास के पाँव में बावला कुत्ता काटे और वह भूँक-भूँक कर मरे।

चौथी - हम तो अपनी सास को पहले ही चट कर गए। जहन्नुम चली गईं।

पाँचवीं - सास तो सास, हमारी ननद के नाम में दम कर दिया।

जानीबेगम - मेरी सास तो मेरे आगे चूँ नहीं कर सकतीं। बोलीं, और मैंने गला घोंटा।

इस लेक्चर का और किसी पर तो ज्यादा नहीं, मगर नजीरबेगम पर बहुत असर हुआ। हुस्नआरा से बोलीं - बहन, हम कल से आया करेंगे, हमें कुछ पढ़ाओगी?

हुस्नआरा - हाँ, हाँ, जरूर आओ।

जानीबेगम - ऐ वाह, यह क्या पढ़ाएँगे भला! हमारे पास आओ, तो हम रोज पढ़ा दिया करें।

नजीर बेगम - आपके तो पड़ोस ही में रहते हैं हम, मगर बहन, तुम तो हुड़दंगा सिखाती हो। दिन भर कोठे पर घोड़े की तरह दौड़ा करती हो, कभी नीचे कभी ऊपर।

जानीबेगम - (नजीरबेगम का हाथ पकड़ कर) मरोड़ डालूँ हाथ!

नजीर - देखा, देखा; बस, कभी हाथ मरोड़ा, कभी ढकेल दिया।

जानीबेगम - (नजीर का गाल काट कर) अब खुश हुई।

सिपहआरा - ऐ वाह, लेके गाल काट लिया।

जानीबेगम - फिर औरत हैं, या मर्द हैं कोई!

नजीरबेगम - अब आप अपनी मुहब्बत रहने दें।

जब सब मेहमान विदा हुए, तो चारों बहनें मिलकर गईं और बड़ी बेगम के साथ एक ही दस्तरख्वान पर खाना खाया। खाते वक्त यों गुफ्तगू हुई -

बहारबेगम - हुस्नआरा की शादी कहीं तजवीजी?

बड़ी बेगम - हाँ, फिक्र में तो हूँ।

बहारबेगम - फिक्र नहीं अम्माँजान, अब दिन-दिन चढ़ता है।

बड़ी बेगम - अपने जान तो जल्दी ही कर रही हूँ।

बहारबेगम - जल्दी क्या दो-चार बरस में?

रूहअफजा - बहन, अल्लाह-अल्लाह करो।

बहारबेगम - बेचारी सिपहआरा भी ताक रही है कि हम इनका भी जिक्र करें।

सिपहआरा - देखिए, यह छेड़खानी अच्छी नहीं, हाँ!

बड़ी बेगम - (मुस्करा कर) तुम जानो, यह जानें।

बहारबेगम - अभी कल शाम ही को तो तुमने कहा था कि अम्माँजान से हमारे ब्याह की सिफारिश करो। आज मुकरती हो? भला खाओ तो कसम कि तुमने नहीं कहा?

सिपहआरा - वाह, जरा-जरा सी बात पर कोई कसम खाया करता है।

रूहअफजा - पानी मरता है कुछ?

सिपहआरा - जी हाँ, आप भी बोलीं?

रूहअफजा - अच्छा, कसम खा जाओ न!

सिपहआरा - काहे को खायँ?

बड़ी बेगम - ऐ, तो चिढ़ती क्यों हो बेटी!

सिपहआरा - अम्माँजान, झूठ-मूठ लगाती हैं। चिढ़ें नहीं?

रूहअफजा - क्या! झूठ-मूठ?

सिपहआरा - और नहीं तो क्या?

रूहअफजा - अच्छा, हमारे सिर की कसम खाओ।

सिपहआरा - अल्लाह करे, मैं मर जाऊँ।

रूहअफजा - चलो बस, रो दीं। अब कुछ न कहो।

बहारबेगम - अम्माँजान, एक रईस हैं। उनका लड़का कोई उन्नीस-बीस बरस का होगा! खुदा जानता है, बड़ा हसीन है। आजकल सिकंदरनामा पढ़ता है।

बड़ी बेगम - खाने पीने से खुश हैं?

रूहअफजा - खुश? आठ तो घोड़े हैं उनके यहाँ।

बहारबेगम - अम्माँजान, वह लड़का हुस्नआरा के ही लायक है। दो लड़के हैं। दोनों लायक, होशियार, नेकचलन। हमारे यहाँ दूसरे-तीसरे आया करते हैं।

रूहअफजा - जरूर मंजूर कीजिए।

बड़ी बेगम - अच्छा,अच्छा, सोच लूँ।

हुस्नआरा ने यह बातचीत सुनी तो होश उड़ गए। खुदा ही खैर करे। ये दोनों बहनें अम्माँजान को पक्का कर रही हैं। कहीं मंजूर कर लें, तो गजब ही हो जाय। बेचारे आजाद वहाँ मुसीबतें झेल रहे हैं, और यहाँ जश्न हो। इस फिक्र में उससे अच्छी तरह खाना भी न खाया गया। अपने कमरे में आ कर लेट रही और मुँह ढाँप कर खूब रोई। खाना खाने के बाद वे तीनों भी आईं और हुस्नआरा को लेटे देख कर झल्लाईं।

बहारबेगम - मकर करती होंगी। सोएँगी क्या अभी।

सिपहआरा - नहीं बहन, यह तकिए पर सिर रखते ही सो जाती हैं।

बहारबेगम - जी हाँ, सुन चुकी हूँ। एक तुमको तकिए पर सिर रखते ही नींद आ जाती हैं, दूसरे इनको।

रूहअफजा - (गुदगुदा कर) उठो बहन, हमारा ही खून पिए, जो न उठे। मेरी बहन न, उठ बैठो। शाबाश?

सिपहआरा - सोने दीजिए। आँखें मारे नींद के मतवाली हो रही है।

बहारबेगम - रसीली मतवालियों ने जादू डाला। हमारे यहाँ पड़ोस में रोज तालीम होती है। मगर हमारे मियाँ को इसकी बड़ी चिढ़ है कि औरतें नाच देखें या गाना सुनें। मर्दों की भी क्या हालत है! घर की जोरू से बातें न करें, बाहर शेर। अल्लाह जानता है, हम तो उन सब मुई बेसयाओं की एड़ी-चोटी पर कुरबान कर दें। एक ने मिस्सी की धड़ी जमाई थी, जैसे बत्तख ने कीचड़ खाई हो।

रूहअफजा - (हुस्नआरा को चूम कर) उठो बहन!

हुस्नआरा - (आँखें खोल कर) सिर में दर्द है।

बहारबेगम - सँदली-रंगों से माना दिल मिला;

दर्द सर की किसके माथे जायगी।

हुस्नआरा - यहाँ इन झगड़ों में नहीं पड़ते।

बहारबेगम - दुरुस्त।

रूहअफजा - जरूर किसी से आँख लड़ायी हैं, इसी से नींद आई है। अच्छा अब सच-सच कह दो, किससे दिल मिला है? - दिल दीजिए तो यार तरहदार देख कर।

सिपहआरा - और क्या!

'माशूक कीजिए तो परीजाद कीजिए'

हुस्नआरा - किसी से मिलने का अब हौसला नहीं है जाँ;

बहुत उठाए मजे उनसे आशना हो कर।

रूहअफजा - बस, बहुत बातें न बनाइए। हम सब सुन चुकी है। भला किसी पर दिल नहीं आया, तो आँखों से आँसू क्यों कर निकले? जरी, आईने में सूरत देखिए।

सिपहआरा - ऐ बहन, यह धान-पान आदमी, जरी सिर में दर्द हुआ, और लेट रहीं।

बहारबेगम - लड़की बातें बनाती हैं। हमको चुटकियों पर उड़ाती हैं।

हुस्नआरा - अब आप जो चाहे कहे। यहाँ न कोई आशिक है, न कोई माशूक।

रूहअफजा - उड़ो न। कह चलूँ सब?

हुस्नआरा - हाँ, हाँ, कहिए। सौ काम छोड़के। आपको खुदा की कसम।

रूहअफजा - अच्छा, इस वक्त दिल क्यों भर आया?

हुस्नआरा -

दिल ही तो है न संग व खिश्त, दर्द से भर न आए क्यों,

रोएँगे हम हजार बार, कोई हमें रुलाए क्यों?

बहारबेगम - (तालियाँ बजा कर) खुल गई न बात?

रूहअफजा - जादू वह, जो सिर पर चढ़के बोले।

हुस्नआरा - मुँह मे जबान है, जो चाहो, बको।

बहारबेगम - अच्छा, बड़ी सच्ची हो, तो एक बात करो। हम एक हाथ में कोई चीज लें और दूसरा हाथ खाली रखें। फिर मुट्ठी बाँध के आएँ, और तुम एक हाथ पर हाथ मारो। जो खाली हाथ पर पड़े, तो तुम झूठी। दूसरे हाथ पर पड़े, तो हम झूठे।

हुस्नआरा - ऐ वाह, छोकरियों का खेल।

रूहअफजा - अक्खाह, और आप है क्या?

सिपहआरा - अच्छा, आप आइए। मगर हम दोनों हाथ देख लेंगे।

बहारबेगम - हाँ-हाँ, देख लेना।

बहारबेगम ने दूसरे कमरे में जा कर एक छोटी-सी शीशे की गोली दाहिने हाथ में रखी और बायाँ हाथ खाली। दोनों मुट्ठियाँ खूब जोर से बंद कर लीं और आ कर बोलीं -अच्छा, मारो हाथ पर हाथ।

हुस्नआरा - ये वाहियात बातें हैं।

रूहअफजा - तो काँपी क्यों जाती हो?

सिपहआरा - बाजी, बोलो, किस हाथ में है?

हुस्नआरा - उधरवाले में।

सिपहआरा - नहीं बाजी, धोखा खाती हो। हम तो बाएँ हाथ पर मारते हैं।

बहारबेगम - (बायाँ हाथ खोल कर) सलाम।

सिपहआरा - अरे, वह हाथ तो दिखाओ।

बहारबेगम - देखो। है शीशे की गोली कि नहीं?

हुस्नआरा - देखा! कहा था कि उस हाथ में है। कहा न माना।

रूहअफजा - कहिए, अब तो सच है?

हुस्नआरा - ये सब ढकोसले हैं।

बहारबेगम - अच्छा बहन, अब इतना बता दो कि मियाँ आजाद कौन हैं?

हुस्नआरा - क्या जानें, क्या वाही-तबाही बकती हो।

बहारबेगम - अब छिपाने से क्या होता है भला! सुन तो चुके ही है हम।

हुस्नआरा - बताएँ क्या, जब कुछ बात भी हो।

सिपहआरा - इन दोनों बहनों ने ख्वाब देखा था कल मालूम होता है।

हुस्नआरा - हाँ, सच कहा। ख्वाब देखा होगा।

रूहअफजा - ख्वाब तो नहीं देखा; मगर सुना है कि सूरत-शक्ल में करोड़ों में एक हैं।

बहारबेगम - हुस्नआरा ने तो अपना जोड़ छाँट लिया, अब सिपहआरा का निकाह हुमायूँ फर के साथ हो जाय, तो हम समझें कि यह बड़ी खुशनसीब हैं।

सिपहआरा - मेरे तो तलवों को भी न पहुँचें।

हुस्नआरा - तूती का कौए से जोड़ लगाती हो?

बहारबेगम - वाह, चेहरे से नूर बरसता है। जी चाहता है कि घंटों देखा करें। अम्माँ से आज ही तो कहूँगी मैं।

हुस्नआरा - कह दीजिएगा, धमकाती क्या हो!

सिपहआरा - आपके कहने से होता क्या है? यहाँ कोई पसंद भी करे!

रूहअफजा - इनकार करोगी, तो पछताओगी।

***