Hadsa in Hindi Classic Stories by Vrishali Gotkhindikar books and stories PDF | हादसा

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हादसा

हादसा …

आरोही घरसे ऑफिस के लीये निकली तो नौ बजने ही वाले थे उसे लगा शायद आज नौ बीस की लोकल मिस.. हो जायेगी |

जल्दीसे पावमे चप्पल डालकर घरसे निकली और उसने रीक्षा बुलायी |

बम्बई की भाग दौड में एक एक सेकंद किमती होता है| लेकीन बात वो नही थी, बात थी किसीसे मिलने की | इसी लोकल पर उसकी और निषाद की रोज की मुलाकात फिक्स थी |

निषाद जो अभी तो सिर्फ उसका बेस्ट फ्रेंड था .....आगे चलकर प्रेमी भी होनेवाला था |दोनोके ऑफिस एक ही बिल्डींग मे अलग अलग माले पर थे | इसलिये रोज उनका एक लोकल से आना..और जाना भी शामको एकही लोकल से तय था |

जैसे ही वो स्टेशन पर आ गयी निषाद सामने ही था ,उसका हाथ पकड कर वो बोला, “जल्दी चल पगली ऑफिस को देर करेगी क्या ?

वो हसकर जल्दीसे आनेवाली लोकल की तरफ बढ गयी ..

इस लोकल मे बैठने को जगह तो होती नही, थी क्योकी ऑफिस का टाईम होने के कारण बहोत भीड रहती थी |

ज्यादा से ज्यादा समय निषाद की कंपनी मिले इसलिये लोकल के इस जेन्ट्स डीब्बेमे आरोही चढती थी|,वरना इतने भिड्मे एक महिला जेन्ट्स डीब्बेमे चढनेका साहस कैसे करती ?

जैसे ही लोकल मे वो दोनो चढ जाते थे निषाद उसको एकदम सुरक्षित रखता था | किसी भी आदमी को उसे हाथ लगाने की हिम्मत नही होती थी ..|

वैसे सफर तो खाली बीस मिनट का था मगर आरोही को ये सफर बहोत पसंद था ..| क्योकी वो उस समय निषाद की बाहोके “दायरे” में रहती थी |

उसके सेंट की वो खुशबू ..बाते करते समय आखो से आखोका मिलना ,जब कोई खास बात करता था तो उसके होठ आरोही के गालो को स्पर्श करते थे,बहोत मदहोश समा रहता था |

दोनो बहोत पसंद करते थे एक दुसरेको इसलिये जितना हो सके उतना वक्त साथ रहते थे |

आज शाम को जब वो दोनो ऑफिस से निकल कर रस्ते पर बाते करते हुये चल रहे थे तो अचानक एक जगह रुक कर निषाद बोला “आरोही मुझे थोडा काम है, आज अकेली चली जाओ तुम “

ठीक है कहकर आरोहीने उसे बाय बोल दिया |

दुसरे दिन सुबह निषाद का फोन आया वो किसी कारण वश दो तीन दिन ऑफिस नही जा रहा इसलिये वो दोनो नही मिलेंगे |

उसके बाद दो दिन छुट्टी थी |ऐसे करके चार पाच दिन हुये उसकी और निषाद की कोई मुलाकात नही हो पायी | वो बहोत बेचैन थी |उसे निषाद की याद सता रही थी |

वैसे उसने कॉल तो कीया था निषाद को मगर पेहेले व्यस्त लगा ...बादमे नो नेट वर्क..|

..शायद कही बाहर गाव तो नही गया ?

अब तो बस सोमवार का इंतजार करती रही आरोही .

सोमवार को सुबह उसका फोन आया की वो रोज वाली ट्रेन से नही आ रहा |

आरोही गुस्सा हो गयी ..”निषाद क्या चल रहा है ये ?चार दिन हो गये फोन भी नही उठाया मेरा ?”आरोही प्लीज गुस्सा मत करो ...आज शाम को मिलते है ना ..”

“ठीक है आज मिलना शामको मै इंतजार करूंगी |

शाम को ऑफिस के बाद जब निषाद मिल गया तो आरोही को न जाने क्यो ऐसा लगा की वो कुछखोयासा लग रहा है..उसने ये बात निषाद को बोली भी मगर उसने साफ टाल दिया |

“अगर ऐसी कोई बात होती तो मै तुम्हे क्यो नही बताता ?..”निषाद बोला

चार पांच दिनके बाद मिलकर भी उस दिन उनकी मुलाकात “रंग “नही लायी ऐसा आरोही को लगा |

बादमे दो दिन ऐसेही निकल गये ..

और तिसरे दिन शामको जब आरोही और निषाद ऑफिस बाहर निकले तो अगले ही रस्ते पर आकर निषाद बोला ,”आरोही मुझे थोडा काम है तुम चली जाओ”

“क्या काम है ऐसा जो मुझे नही बता सकते ?”

“ऐसी कोई बात नही है...बस है थोडा काम “

“आज मुझे बताना ही पडेगा “..आरोही ने जिद दिखायी |

“सामने के अस्पताल मे मेरा एक दोस्त भरती हुआ है उसे देखने जाना है”

“चलो मै भी चलती हु साथ तुम्हारे “

“नही तुम मत आओ ..तुम उसे नही जानती, उसे अच्छा नही लगेगा “|

इसपर आरोही क्या बोलती ...वो चुप चाप अकेली घर चली गयी |

दुसरे दिन उसने पुछां , कैसा है तुम्हारा दोस्त ?

“ठीक है मगर उसे अभी थोडे दिन अस्पताल मे ही रुकना पडेगा “

“क्यो ? ऐसी कौनसी सिरीयस बिमारी हुई है उसे “आरोही बोली “अब ये हमे क्या पता डॉक्टर ही जाने..निषाद ने बात को टाल दिया |

अब हर दो दिन बाद निषाद उसको टाल कर अस्पताल मे दोस्त को मिलने जा रहा था और आरोही को उसके साथ आनेको मना करता रहा था |

मगर एक दिन उसने जिद पकड ली ,”कौनसे नंबर के बेड पर है तुम्हारा दोस्त ? क्या हुआ है उसे ?मै भी आती हु आज उससे मिलने..” न जाने क्यो निषाद भडक गया,

“है वो admit सात नंबर बेड पर सोया, हुआ तुम्हे क्या करना है उसे मिलकर ?तुम तो जानती भी नही उसे फिर क्या उसकी बिमारी का मजाक उडाना है तुमको?”

उसका गुस्सा देखकर आरोही चौक गयी | पेहेले कभी उसने निषाद का ऐसा रूप नही देखा था | आजतक उसने कभी आरोही के साथ ऐसी बात नही की थी ,और आज क्या हुआ है इसे ?

“मै तो सिर्फ तुम्हारे साथ आकर उसे देखनां चाहती हु “...आरोही बोल पडी “कोई जरुरत नही है इसकी ,उसके साथ जो “हादसा “ हुआ है वो तो उसेही भुगतना पडेगा तुम्हारे मिलनेसे थोडे कोई फर्क होगा ?....अब जाओ तुम बहस मत बनाओ”

ये सुनकर आरोहीके आखोसे आंसु झरने लगे ..|

मगर उसकी तरफ बिना देखे ही झट से निषाद अस्पताल की ओर चला गया |

आरोही रुमाल से आसु पोछ्ती हुई घरकी तरफ निकल गयी |

दुसरे दिन आरोही भी गुस्सा थी तो उसने निषाद को कुछ फोन वगैरे नही किया|

अब आने दो निषाद को मेरी माफी जबतक नही मांगेगा उसके साथ बात नही करूंगी |

ऐसे सोचा था आरोही ने ..

मगर ये नौबत नही आयी, क्योंकी चार पाच दिन हो गये मगर निषाद का ना फोन आया न वो खुद उसे मिलने आया | उसका फोन भी बंद आ रहा था |

आरोही उसके ऑफिस मे भी जाकर आयी मगर किसीको कुछ भी पता नही था ,वो कामपर नही आया था बस यही पता चला |

अब तो पंधरा बीस दिन हो गये ..उसका पता ही नही चल रहा था | आरोही आचरज मे पड गयी निषाद मानो कही ”गायब” सा हो गया | क्या करे और कैसे पता लगाये निषाद का .? आरोही का सर चकरा गया था | और दो तीन दिन बाद अचानक उसे याद आयी उस अस्पताल की जहां वो जाया करता था |

ऑफिस छुटने के बाद वो जल्दी निकल पडी | वो एक बडा अस्पताल दिख रहा था चार पाच मंझील वाला ..

दुसरे माले पर रीसेप्शन कौंटर था, आरोही को देखते हि उधर की लडकी ने पुछा,

“कीस पेशंट से मिलना है आपको ?”

क्या बोले आरोही ? सोच रही की अचानक उसको याद आया निषाद ने उसे कुछ बेड नंबर बताया था |“म्याडम सात नंबर बेड किधर है ?” उस पेशंट से मुझे मिलना है “

अंदर से वहा एक नर्स आ गयी और बोली ..

“अभी तो सात नंबर बेड खाली है, कल से वहा कोई नही है | कल ही उस पेशंट की मौत हो गयी |”

ये सुनकर अब आरोही एकदम चुप हो गयी मनमे सोचने लगी अब निषाद के दोस्त की मौत हो गयी क्या निषाद को ये पता होगा ....?

आरोही ने उस नर्स से पुछां “क्या बिमारी थी उसको ?

“उसको HIV AIDS हुआ था, जब यहा दाखील हुआ था लास्ट स्टेज थी “|

आपको पता नही था क्या ?” उस नर्स ने आरोही को पुछां ,

अब क्यां बोले आरोही ..जिसे वो आदमी कौन था ये भी मालूम नही था ..

फिर भी कमसे कम उसका नाम तो मालूम करे इसलिये आरोही ने पुछां

“कहां का रहने वाला था वो पेशंट ? और नाम क्या था ?

शायद मै जिसे देखने आयी हु वो ये नही होंगे ऐसा मुझे लग रहा है |

नर्स ने रजिस्टर निकाला और पन्ना पलट दिया ..” निषाद केळकर नाम था उसका यही बंबई का था “आरोही को अचानक चक्कर सा आ गया और वो वही बैठ गयी |

“क्या हुआ म्याडम तबियत ठीक है ना ?

किसीने उसके हाथ मे पानी का ग्लास थमा दिया |

अब जाके आरोही को पता चला निषाद किसी दोस्त देखने इस अस्पताल मे नही जाता था बल्की वो खुद एक बिमारी का शिकार था जिसके टेस्ट करवाने के लिये वो यहा आया करता था |

“हादसा “उसके खुद की जिंदगी मे हुआ था ..

अपना सर पकड कर “बुत ..सी हो गयी आरोही ....!

***