प्यार का जन्म
दिल को छू लेने वाली प्रेम कथा
आकिल अहमद सैफ़ी
(2)
मेरा दाखिला अब गाँव से लगभग 5 किलोमीटर दूर शहर में करा दिया गया | अगली ही सुबह मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई और .....!
'' माँ मैं स्कूल जा रही हूँ .....! "
' स्कूल ध्यान से जाना बेटा धीमे स्वर में माँ ने कहा ....!"
" ठीक है माँ , मैंने स्कूल के लिए चलना शुरू किया...…
उस धूल भरे रास्ते से जो हमेशा शांत रहता था | मैं अकेली ही स्कूल जाया करती थी |
'मै घर आ गई माँ थके हुए स्वर में मैंने कहा !"
नए स्कूल का पहला दिन कैसा रहा ? माँ ने पूछा ......
'' ठीक - ठाक ही था मैने कहा ......!'
' क्या हुआ स्कूल में ?
नए दोस्त बने या नहीं ?
माँ ने पूछा !
'' मैने कुछ नहीं कहा, चुपचाप बैठी रही !"
" कुछ तो बताओ.......
' कुछ नहीं बस मै बहुत थक गई हूँ ....
कुछ देर आराम कर लो , मैं खाना ले कर खेत पर जा रही हूँ तुम्हारे पिता जी इंतजार कर रहे होंगे....... खाना खाने के बाद याद से गाय को पानी पिला देना और खाने के लिए घास डाल देना | तुम्हारा खाना अन्दर ही रखा है याद से खा लेना !"
'' ठीक है माँ .........!"
कुछ दिनों तक मैं अकेली ही स्कुल जाती रही, लेकिन ......
कुछ दिनों बाद , जब मैं उस शांत और धूल भरे रास्ते से स्कूल जा रही थी, तभी अचानक बहुत तेज़ हवा का एक झोंका आया , धूल उड़ने लगी , सारा रास्ता धूल से भर गया | हवा इतनी तेज़ थी कि मेरी आखों में भी धूल आ गिरी ! हवा थमने के बाद मलते हुए मैंने अपनी आँखें खोली तो देखा की मैं उस रास्ते पर अकेली नहीं थी | कोई ओर भी था, जो उस रास्ते से स्कूल जा रहा था | एक अजनबी लड़का ......
कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि वो लड़का दूसरे गाँव में रहता है ! मेरे गाँव के पहले वाले गाँव में | वो मेरी बराबर वाली कक्षा में ही पढ़ता है........|"
कुछ समय तक ऐसा ही चलता रहा, हालाँकि हमने कभी बात नहीं की थी बस उस धूल भरे रास्ते से, चिल-चिलाती तेज़ धूप में ,थकान और प्यास के बावजूद ,बस तेज़ी से घर की ओर चलते रहते थे, कभी वो आगे तो कभी मैं पीछे , वो लड़का रास्ते के दूसरे छोर पर और मैं रास्ते के इस छोर पर चलते रहते ,बिना कुछ बोले ,बिल्कुल शांत .....
कुछ समय बाद ........
एक दिन सुबह जब मैं अपने खाली पीरियड में क्लास रूम से निकल कर बाहर खेल के मैदान में, नीले खुले आकाश के नीचे, ठंडी हवा के आते हुए झोकों के बीच, बगीचे के फूलों की आती हुई तेज़ खुशबु में बैठ कर पानी पी रही थी तभी वो लड़का अपना स्कूल बैग अपने कंधो पर डाले, बाल लहराता हुआ, शर्माता हुआ, अचानक मेरे पास आया और कहा.....
क्या मैं आपका पानी पी सकता हूँ ?
उसके इस तरह अचानक ही मेरे इतना करीब आ जाने से मैं घबरा गई थी, लेकिन जब मैने बिना कुछ बोले पानी की बोतल देनी चाही तो वो लड़का चला गया लेकिन मैने देखा कि उसके बैग में भी पानी की बोतल रखी थी |''
'कुछ दिनों तक वह लड़का स्कूल नहीं आया |"
कई दिनों तक मेरी आँखें उसका इंतज़ार करती रहीं, लेकिन वोह लड़का कहीं दिखाई नहीं दिया |
आज मैं स्कूल के लिए लेट हो गई थी मौसम भी थोड़ा खराब हो रहा था, आसमान में हल्के काले बादल छाए हुए थे और धीरे-धीरे ठंडी-ठंडी हवा भी बह रही थी | मुझे छाता मिल नहीं रहा था, इसलिए मैं स्कूल बिना छाता लिए ही आ गई |"
स्कूल में मुझे कुछ काम था जिसकी वजह से मुझे स्कूल से निकलने में देर हो गई थी, मैं जल्दी से घर के लिए निकली | स्कूल के दरवाजे पर पहुंची तो देखा, मौसम बहुत खराब था | तेज बारिश हो रही थी, आसमान में घने काले बादल छाए हुए थे, तेज़ ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थीं औरे आसमान में बिजली कड़क रही थी |
बारिश कब रुकेगी ?'' कहना मुश्किल था |
सुबह मां कह भी रही थी लेकिन मैंने अनसुना कर दिया | सुबह तो मौसम हल्का ही खराब था लेकिन मुझे क्या मालूम था कि मौसम इतना खराब हो जाएगा | और वैसे भी मां की बात सुनता कौन है |"
मेरी क्लास के सभी बच्चे भी जा चुके थे, कुछ बच्चे तो छाता लेकर आए थे, मैं उन्हीं में से किसी के साथ चली जाती | लेकिन अब तो कोई भी नहीं था वहां !"
"मौसम पल-पल बिगड़ता जा रहा था, मां भी छाता देने नहीं आई ! शायद पिता जी के पास चली गई होगी !"
मैं स्कूल के गेट पर मायूस खड़ी बारिश के थमने का इंतज़ार कर रही थी कि पीछे से एक लड़का आता हुआ दिखाई दिया | ये तो वही लड़का है, जो मुझसे पानी लेने के लिए आया था | उसके पास छाता था, आज वो लेट हो गया था | वो लड़का मेरे पास आया और कहा - "क्या आप मेरे साथ चलेंगी ?"
मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था इसलिए मैंने "हां" कर दिया | और हम दोनों घर के लिए चल दिए | एक ही छाते के नीचे, जहां तो हम दोनों 'उस रास्ते पर अलग-अलग जाया करते थे, वो रास्ते के उस कोने पर होता, तो मैं इस कोने पर |"
रास्ता फिसलन भरा था और बारिश हो रही थी, दोनों निरंतर चले जा रहे थे एक दूसरे से बातें किये बगैर | कुछ दूरी तय करने के बाद मेरा पैर फिसल गया, उसने मुझे संभालते हुए फ़िल्मी अंदाज़ में अपनी बाँहों में भर लिया |
तुम ठीक हो...उसने बड़े प्यार से कहा,
शुक्रिया, मैं बिल्कुल ठीक हूँ....मैंने लजाते हुए कहा,
नाम क्या है तुम्हारा.....? उसने धीमे स्वर में कहा |
मुझे मरियम कहते हैं......मरियम |
तुम क्रिस्चियन हो.......? हाँ क्यूँ क्या हुआ |
नहीं बस यूँ ही पूछ लिया, उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया |
और फिर हमारे बीच बातें शुरू हुई | तुमने नाम नहीं बताया अपना.....ओह सॉरी...रेहान, लोग मुझे प्यार से रेहान बुलाते हैं |
असली नाम क्या है तुम्हारा ? रेहान, उसने हँसते हुए जवाब दिया |
जैसी उसकी शक्ल और बातें वैसा ही नाम, बिल्कुल मासूमों वाला, उसके नाम से ही मासूमियत झलकती थी |
रेहान का मतलब "ईश्वर की कृपा" होता है और वो उसके पास बहुत थी, आज कुछ खास बात नहीं की हमने, क्योंकि आज हमने पहली बार बात की थी, उसका घर भी नजदीक आ गया था लेकिन बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी |
'जल्दी ही रेहान का घर आ गया ''
आज आप मेरा छाता ले जाओ, वरना भीग जाओगे, कल स्कूल आते वक्त ले आना....
''कल साथ में चलें”
"हां" क्यों नहीं !"
कल सुबह तुम मेरे घर पर आ जाना, वही से साथ में चलेंगे |"
मैंने कहा......
और मैं वहां से घर के लिए चल दी, उसका छाता लेकर और सोचती जा रही थी, यह सब कैसे हो गया, "अचानक" ही वो मेरे इतने करीब आ गया और फिर बातें शुरू हुई, इतनी जल्दी इतना कुछ हो गया, मैं थोड़ी परेशान थी |"
"खैर छोड़ो" मैं सही - सलामत घर पहुंच चुकी थी और अब बस कल के बारे में सोचना था......|
***
अगली सुबह मैं स्कूल के लिए घर से थोड़ा पहले निकल आई थी, मैं छाता लेकर उसके घर पहुंची, लेकिन वो तो मेरे आने का पहले से ही इंतजार कर रहा था वो घर के बाहर ही खड़ा था मैंने कहा -
"चलें (छाता आगे बढ़ाते हुए) !"
"उसने छाता लिया और कहा - चलो"
हम दोनों बातें करते हुए स्कूल की ओर चल दिए और स्कूल पहुंच कर अपनी - अपनी कक्षा में चले गए |
छुट्टी के बाद रेहान मुझसे मिला | चलें.......उसने मुस्कुराते हुआ कहा |
हाँ बिल्कुल.....क्यूँ नहीं,
उसने मुझसे बातें करना शुरू किया, वोह मुझसे एक के बाद एक सवाल पूछता जा रहा था,
और....
मैं बस उसकी हां में हां मिलाती जा रही थी | मैं उसे सब कुछ बता भी तो नहीं सकती थी, आख़िर मैं एक लड़की जो थी |"
अब मेरे स्कूल अकेले जाने के दिन खत्म हो गए थे | अब मुझे उस धूल भरे "सुनसान" रास्ते से अकेले नहीं जाना पड़ेगा |"
अब हम दोनों स्कूल साथ में जाया करते और साथ में स्कूल से घर आया करते | अब अगर कभी मौसम खराब होता, तो वो ही छाता लाया करता था इसके लिए हमारे बीच पहले ही समझौता हो गया था अगर कभी छाते की जरूरत पड़ती है तो छाता सिर्फ और सिर्फ एक ही आएगा, और वो भी तुम ही लेकर आओगे, इसलिए मैं कभी छाता लेकर नहीं जाती थी |"
"हे सुनो हम कहीं घूमने चले !"
"कहां???? "
''जहां तुम कहो !"
"तो ठीक है, फिर रविवार की सुबह तुम्हारे घर पर मिलते हैं | ठीक है !"
'ठीक है, ओके बाय"
मैंने बिना सोचे समझे हाँ तो कह दिया "कहां" जाना है नहीं पता....
बस कह दिया - सोच कर बताऊंगी !"
अब मुझे कल के बारे में सोचना था और थोड़ी तैयारी करनी थी| मेरे पास ज्यादा समय नहीं था |
रात भर यही सोचती रही कहाँ जाना है, क्या लेकर जाना है रेहान मुझे कही ऐसी जगह ना ले जाये जहाँ.....
नहीं,
नहीं.....रेहान ऐसा लड़का नहीं है, उसे फिक्र है मेरी यही सोचती रही और ना जाने कब नींद आ गई ईश्वर ही जाने |
अगली सुबह मैं उसके घर पहुंची, और हम दोनों वहां से समुद्र की ओर घूमने निकले | समुद्र की ओर जाने के लिए रास्ता जंगल से होकर गुजरता था | हम बातें करते जा रहे थे, आधे रास्ते पहुंच कर हमने खाना खाया और फिर चल दिए | कुछ देर बाद अचानक मौसम ख़राब होने लगा और देखते ही देखते तेज़ बारिश शुरू हो गई | हम दोनों जल्दी से एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए, क्योंकि हम आज छाता लेकर नहीं आए थे, और वैसे भी सुबह धूप बहुत तेज थी और आसमान भी साफ था, जिसकी वजह से हम छाता नहीं लाए |"
रेहान और मैं पेड़ के नीचे होने के बावजूद भी भीग रहे थे, पेड़ों की पत्तियों से पानी टपक रहा था | मेरी नज़र एक गुफा पर पड़ी |"
"वो देखो एक गुफा !"
'कहां हैं ?"
"वहां सामने !!"
चलो, चलते हैं......!"
दोनों तेज़ी से दौड़ते हुए गुफा तक पहुंचे, दोनों काफी भीग चुके थे |
बारिश और तेज हो गई थी, घने - काले बादलों में से चमकती हुई बिजली की कड़ - कड़ाने की आवाज आ रही थी, और ठंडी - ठंडी हवाए बहने लगी थी| अब मुझे ठंड लगने लगी थी| बारिश के रूकने का इंतजार करने के अलावा हमारे पास ओर कोई रास्ता भी तो नहीं था |"
कुछ देर बाद बारिश थम गई, आसमान साफ हो गया और आसमान में एक सुंदर इंद्रधनुष बन गया | हम दोनों वापस समुद्र की ओर चल दिए | कपड़े भीगे हुए थे, थोड़ी ठंड भी लग रही थी, लेकिन अच्छा भी लग रहा था| समुद्र के किनारे पहुंचते पहुंचते कपड़े भी सूख गए थे |"
हम दोनों समुन्द्र के किनारे पहुंच कर रेत पर ही बैठ गए| और दृश्य भी दिल को छू लेने वाला था – तेज़ पानी की लहरों की आती आवाज़, उस बंजर इलाके की वीरान खूबसूरती, उड़ते हुए पक्षी, ठंडी - ठंडी रेत, डूबता सूरज और बादलों में बना एक सुन्दर इन्द्रधनुष, जो कुछ देर पहले हुई बारिश से बना था, दूर दूर तक लाल और नीला विशाल समुद्र, जो कि डूबते सूरज की लाल किरणों से नीला समुद्र आधा लाल दिखाई दे रहा था |"
घंटों समुन्द्र के किनारे पर बिताने के बाद रेहान ने मुझसे कहा,
घर चलें.....?
मरियम, मेरी आँखों के सामने चुटकी बजाते हुए |
मरियम कहाँ गुम हो, घर चलें | उसने मुझसे दोबारा पूछा |
मैं हैरान थी, क्योंकि मैं उस सपने में खो चुकी थी जो सपना नहीं बल्कि हकीकत था |
हाँ क्या हुआ रेहान.. अरे होना क्या है घर नहीं चलना अँधेरा होने वाला है
हाँ क्यूँ नहीं....चलो |
मैंने अपना हाथ आगे बढाते हुए कहा) !"
दोनों एक दूसरे का हाथ थामे वापस घर लौट आए, जैसे कभी कुछ हुआ ही ना हो |"
***
सर्दियों का मौसम शुरु हो चुका था, खाली पीरियड में, हम दोनों बगीचे में आकर बैठ जाते और बाते करते |"
"मरियम कुछ अपने बारे में बताओ ?"
कुछ खास नहीं है! मैंने बात टालने के लिए कहा |"
"बताओ ना !!" रेहान ने ज़ोर देते हुए कहा.......!
ठीक है! तो सुनो, मैं अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी हूँ | मेरे पिताजी किसानी करते है,
वोह लोगों के लिए अन्न उगाते है |
माँ घर की देखभाल करती है, मेरा छोटा सा घर गांव के उस पार अंतिम छोर पर है मां -पिताजी के अलावा एक सुंदर सफेद गाय हैं और उसका एक काला - सफेद नटखट बछड़ा | घर के आगे एक छोटा - सा सुंदर बगीचा भी है, जिसमें सुंदर - सुंदर फूल खिले रहते हैं |"
बस करो मरियम, मैंने तुम्हारी जन्म कुंडली नहीं पूछी.......बस तुम्हारे बारे में जानना चाहता था |
जैसे तुम्हें पढ़ाई के बाद और क्या पसंद है
कुछ और भी करती हो.....वगैरह वगैरह उसने कहा |
हाँ करती हूँ ना शेर-ओ-शायरी..… और लिखती भी हूँ, मैंने कहा |
तुम.....और शेर-ओ-शायरी..... मुझे नहीं लगता, रेहान ने हँसते हुए कहा |
अच्छा छोड़ो...., तो कब दिखा रही हो अपनी लिखी हुई शायरी.....?
"कल दिखाऊंगी......!!""
""ठीक है |""
आज मेरा मन ठीक नहीं था, मैं क्लास के बीच में से ही उठकर, बाहर बगीचे में एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गई | क्लास खत्म होने के बाद रेहान आकर, मेरे पास में ही बैठ गया |"
"क्या हुआ ????"
आज आधी क्लास से ही उठकर चली आई!!"
"कुछ नहीं, मेरा मन ठीक नहीं है |"
मेरी एक किताब, मेरे पास में ही पड़ी थी, रेहान ने किताब उठाई, उस किताब के नीचे मेरी डायरी थी, उसने किताब आगे बढ़ाते हुए कहा -
तो ये है तुम्हारी शायरी वाली डायरी |
जी हाँ यही है वोह........|
अगर तुम्हारी इजाज़त हो तो पढ़ लूं.......?
पढ़ लो मैंने धीमी आवाज में कहा |
इसीलिए तो लायी हूँ, कल तुम कह रहे थे ना |
दिखाओ, मुझे दो डायरी "शायरी" निकाल कर देती हूं | ये लो यहाँ से पढ़ो | मैंने डायरी रेहान को देते हुए कहा |
" उसने एक शायरी मुझे पढ़कर सुनाई -
आरज़ू होनी चाहिए, किसी को याद करने की,
"लम्हें" तो अपने आप ही मिल जाते है......
कौन पूछता है, पिंजरे में बंद पंछियों को......
याद वही आते हैं, जो उड़ जाते है...... |""
" काफी अच्छा लिख लेती हो |" उसने कह कर आगे पढ़ा -
हल्की-हल्की सी सर्द हवा,
ज़रा - ज़रा सा दर्द - ए - दिल.....!!!
अंदाज़ अच्छा है, ए नवंबर,
तेरे आने का,.......!!!!!""
सुनो, "ये अलफ़ाज़ तो मेरे नहीं ?" मैंने बड़ी हैरानी से पूछा.......
उसने हाँ में सिर हिला दिया
उसने ऐसे कहा - जैसे कि कुछ जानता नहीं
"तुम शायरी कर सकते हो??!""
'"' क्यों????""
"बड़ा ताज्जुब हो रहा है!!!! ""
"नहीं, बस ऐसे ही, मुझे पता नहीं था कि........
और तुमने कभी बताया भी नहीं! "
" तुमने कभी पूछा ही नहीं?? ""
क्या हुआ
चुप क्यों हो गई
कुछ नहीं बस ऐसे ही
अच्छा है मुझे तुमसे काफी मदद मिलेगी काफी कुछ सीखने को मिलेगा मैंने बात को घुमाते हुए कहा
समय बीत गया और मेरी कहानी ऐसे ही चलती रही गर्मियों की छुट्टियों का समय नज़दीक आ गया |
आज सत्र का आखिरी दिन था लेकिन रेहान तो आज आया ही नहीं था ना जाने क्या परेशानी थी उसे, जिसकी वजह से आज स्कूल नहीं आया |
आज अंतिम पीरियड के बाद स्कूल का सत्र खत्म हो गया था इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टियां भी शुरू हो गई |
***
कभी मुझे पढ़ने का कितना शौक था लेकिन रेहान के साथ रहकर मैं सब कुछ भूल चुकी थी |
मेरा धीरे-धीरे पढ़ाई से ध्यान हटने लगा |
मेरे सपने मुझसे बहुत दूर होने लगे थे क्योंकि मैं चाहती थी कि मुझे सारा जहां मेरे नाम से जाने, लोग मुझे एक अभिनेत्री की तरह पसंद करें, लेकिन अब तो मुझे पढ़ाई लिखाई बिल्कुल न भाति थी मैं हमेशा दुआ करती रहती थी कि ये छुट्टियाँ जल्दी से जल्दी बीत जाएं ताकि मैं स्कूल जा सकूँ |
ना जाने क्यूँ मुझे अब छुट्टियाँ बेकार लगने लगीं थी |
कुछ तो हुआ था मुझे......|
रेहान के साथ बिताए वो सुहाने पल धीरे-धीरे मेरी जिंदगी के सबसे सुनहरे पल लगने लगे
“मौसमे इश्क कि आहट से ही
हर एक चीज बदल जाती है
रातें पागल कर देती हैं
दिन दीवाने हो जाते हैं” ||
पता नहीं दिनों-दिन मुझे क्या होता जा रहा था ना कही मन लगता था और न ही कुछ करने को मन करता है अब तो रातों को नींद भी नहीं आती थी एक अजीब सी बेचैनी होती थी मेरी हंसी ना जाने कहां गुम होती जा रही थी अब तो बस मैं चुपचाप शांत घर के कोने में पड़ी रहती थी ना हँसना न रोना और ना ही किसी से बात करना मेरी खुशियां धीरे-धीरे मुझसे दूर होती जा रही थीं |
अब तो रातें लंबी और दिन दोगुने हो गए थे रातें जाग कर गुजरती और दिन इंतज़ार में | एक अजीब सी बेचैनी सी रहने लगी, अनसुनी आवाजें आने लगी....
ये क्या था.....?
क्यों था…?
यह था एक बहुत ही प्यारा सा, बहुत ही मीठा सा अहसास
एक ऐसा एहसास जो दर्द भरा था लेकिन फिर भी प्यारा था |
क्यूँ था ये तो मैं नहीं जानती
बस था एक प्यारा सा अहसास
कब हुआ.....?
कैसे हुआ.....?
कहां हुआ.....?
क्यूँ हुआ.....?
मैं नहीं जानती !
ये एक दिल को छू लेने वाला एहसास था मीठा, प्यारा बहुत प्यारा |
मैं नहीं जानती थी कि ऐसा भी हो जाएगा इन रातों में इन अहसासों में मेरी जिंदगी में यहीं से हुआ....
प्यार का जन्म |
***