Ek aur Prem Kahani in Hindi Love Stories by Renu Gupta books and stories PDF | एक और प्रेम कहानी

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एक और प्रेम कहानी

एक और प्रेम कहानी

रेणु गुप्ता

दूर्वा अपने घर में बागीचे में अपने सबसे पसंदीदा कोने, बेहद सुंदर सफेद और नारंगी रंग के अनगिनत नन्हे फूलों से लदे फदे हरसिंगार के वृक्ष की सुकूनभरी छांव में बैठी हुई थी और आज का दिन मानो चलचित्र की रील की भांति उसके मानस चक्षुओं के सामने एक बार फिर से गुजर रहा था । आज शाम को मृगांक ने उसे शहर के एक प्रतिष्ठित पांच सितारा होटल में साथ साथ शाम गुजारने के लिए बुलाया था, और फिर वहां जो कुछ हुआ, उस पर उसे अभी तक यकीन नहीं हो रहा था।

होटल में कदम रखते ही मृगांक उसके हाथ में हाथ डालकर उसे एक सुगंधित मोमबत्तियों, दिलनुमा गुब्बारों, दीवारों पर लगे उसके बड़े बड़े पोस्टरों और असंख्य लाल गुलाबों से गमकते महकते एक हॉल में ले गया था। जहां उसके घुसते ही एक बेहद भावपूर्ण, दिल को छू लेने वाला मधुर और रोमांटिक गाना बजने लगा था

हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते

तेरे बिना क्या वजूद मेरा?

तुझसे जुदा गर हो जाएंगे

तो खुद से हो जाएंगे खफ़ा.....

और अचानक ही मृगांक ने अपने घुटने पर बैठकर उसका हाथ थाम उस पर एक स्नेहचिन्ह अंकित कर उसे विवाह का प्रस्ताव दिया था।

‘‘विल यू मैरी मी? जिंदगी के सफर में मेरी हमसफर बनोगी?’’

यह सब देख सुन दूर्वा इतनी अचंभित हो गई थी कि वह बुत सी बन गई थी। सब कुछ इतनी जल्दी हो गया था वह कुछ सोच ही नहीं पाई थी कि मृगांक के विवाह के प्रस्ताव का वह क्या जवाब दे।

और तनिक अटकते हुए वह मृगांक से बस यह कह पाई थी, .....‘‘ अरे मृगांक, यह क्या बचपना है? हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं। अपने इस रिश्ते को मैने कभी और किसी दृष्टिकोण से देखा ही नहीं। फिर तुम मुझसे तीन वर्ष छोटे हो। मैं तुमसे विवाह कैसे कर सकती हूं?’’

यह सुनते ही मृगांक का चेहरा सफेद पड़ गया था। शायद उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके प्रस्ताव करने पर दूर्वा उसे विवाह के लिए इंकार कर देगी और अपने आपको संभालते हुए मृगांक ने उसे कहा था,” यह तुम अपने मन से पूछो, क्या हम महज दोस्त हैं, उसके आगे कुछ नहीं?

अगले सप्ताह मैं अमेरिका जा रहा हूं। जाने से पहले मैं तुम्हें अपने नाम की अंगूठी पहनाना चाहता हूं। यह तुम उम्र में अंतर की बात क्यों कर रही हो? यह महत्वपूर्ण है या तुम्हारे लिए मेरी चाहत? जहां तक मैंने अनुभव किया है, तुम भी मुझे चाहती हो। फिर यह हिचकिचाहट क्यों। हां कहो दूर्वा,’’ तनिक चिल्लाते हुए अत्यंत आवेश में मृगांक ने दूर्वा से कहा था। लेकिन इस पर भी दूर्वा ने मृगांक को कोई जवाब नहीं दिया था। और फिर इतना कहने पर भी दूर्वा से कोई जवाब नहीं मिलने पर मृगांक का चेहरा क्रोध के अतिरेक से लाल हो आया था और वह वहां से बिना कुछ और बोले, लंबे डग भरते हुए बाहर चला गया था।

दूर्वा का दिल यूं तेजी से धडक़ रहा था मानो बाहर आ जाएगा। मृगांक के वहां से चले जाने पर ही उसकी धडक़नें सामान्य हो पाईं थीं। आज वह जीवन के उस दुविधापूर्ण मुकाम पर आ खड़ी हुर्ई थी, जहां उसका ह्रदय उससे कह रहा था, कि मृगांक का विवाह का प्रस्ताव ठुकरा कर उसने अच्छा नहीं किया। वहां उसका दिमाग उससे कह रहा था कि महज हंसी ठिठोली के रिश्ते को जन्म जन्मातर के बंधन में बदलना अक्लमंदी नहीं होगी।

विवाह को लेकर उसने मनोमस्तिष्क में एक स्पष्ट रूपरेखा बनी हुई थी। किसी से भी विवाह करने से पूर्व वह उस इंसान के स्वभाव, व्यवहार, चरित्र को पहले अच्छी तरह से समझेगी, बूझेगी और फिर उससे रिश्ता जोड़ेगी। वह पारंपरिक ढग़ से बिना किसी को अच्छी तरह से जाने समझे हर्गिज विवाह नहीं करेगी। ओर अपने बनाए गए मापदंडों पर उसका और मृगांक का रिश्ता कहीं से भी तो खरा नहीं उतरता। यह सोचकर मृगांक को न कहने से उपजी अपराध भावना कुछ कम हुई थी और वह उठकर भीतर घर में चली गई थी। लेकिन मृगांक के आज के प्रस्ताव को लेकर उसके मस्तिष्क में भयंकर झंझावात आया हुआ था। और उसका मन पंछी बीते दिनों की पुरवैय्या के साथ उड़ चला था।

पिछले पांच वर्षों से वे फोन फ्रेंड थे, अभी तक मुश्किल से ५-७ बार मिले थे। हां फोन पर उन दोनों की बातचीत लगभग रोज ही हो जाया करती थी। लेकिन इसके बावजूद वह उसे जानती ही कितना थी? महज फोन पर हुई बातचीत के आधार पर हुई अपनी दोस्ती के दम पर क्या वह मृगांक से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लेती? फिर मृगांक उससे तीन वर्ष छोटा भी तो है। नहीं नहीं उसके साथ हंसी मजाक कर लेने भर से तो वह विवाह जैसे गंभीर, जीवन भरके रिश्ते के लिए तो हां नहीं कर सकती थी। अब उसे लग रहा था कि उसने मृगांक के विवाह के प्रस्ताव को ठुकराकर अच्छा ही किया।

यही सब सोचते सोचते वह अपने पलंग पर लेट गई थी और एक बार फिर से उसका मन मयूर विगत दिनों के वन उपवन में कुलांचें मारने लगा था।

उन दोनों का परिचय एक मित्र के घर पर पार्टी में हुआ था जहां वह मात्र एक घंटे में मृगांक के विनोदी और खुशमिजाज व्यक्तित्व का परिचय पा चुकी थी। दूर्वा को उससे बातें कर लगा था कि कोई तो उसकी टक्कर का मिला। दूर्वा स्वयं बेहद शोख, जिंदादिल और मजाकिया थी। बात बात पर हास्य की फुलझडिय़ां छोडऩा, हर बात को परिहास के रंग में रंगना उसकी विशेषता थी। जहां भी बैठती, अपने हंसमुख, बिंदास, बेपरवाह स्वभाव से समां बांध देती। और जब वह मृगांक से मिली तो उसके हंसोड़, अलमस्त स्वभाव की कायल हो गई। पहले ही दिन मृगांक ने अपनी खुशमिजाजी से उसके ह्रदय के तारों को तरंगित कर दिया था। शायद यही अनुभूति दूर्वा से मिलकर मृगांक को हुई थी। इसलिए पहली ही मुलाकात में वे एक दूसरे के मुरीद हो गए थे और फोन पर एक दूसरे से बातें करने का वायदा कर दोनों ने एक दूसरे से विदा ली थी।

अगले ही दिन शाम को मृगांक का फोन उसके पास आया था और मृगांक से लच्छेदार चुहल भरी बातें कर दूर्वा पूरे वक्त खिलखिलाकर हंसी से लोटपोट होती रही थी। इस तरह मृगांक का दूर्वा के जीवन में प्रवेश हुआ था। और फिर तो मृगांक रोज शाम को सात बजते ही घड़ी की सुइयों के साथ दूर्वा को फोन करता और इधर उधर की बातें करता। अफसोस था तो सिर्फ इस बात का कि वे दोनों एक दूसरे से मिल नहीं पाते थे क्योंकि दोनों के घर और कॉलेज दोनों ही शहर के दो विपरीत छोरों पर स्थित थे। इसलिए दोनों फोन पर बातें करके ही संतुष्ट रहते।

यूं देखते देखते दोनों की मेडिकल की पढ़ाई पूरी हो गई थी। इंटर्नशिप खत्म होने के बाद मृगांक पोस्ट ग्रेजुएशन करने अमेरिका चला गया था। दूर्वा की नौकरी अपने शहर जयपुर में ही एक प्रतिष्ठित अस्पताल में लग गई थी। और यूं ही वक्त अपनी ही चाल से गुजरता गया था।

दूर्वा की विवाह योग्य उम्र हो गई थी। उसके घर उसके विवाह की चर्चा चलने लगी थी। आए दिन दूर्वा की मां उसे हर तरह से योग्य सुशिक्षित लडक़ों की फोटो और बायोडाटा दिखाती रहतीं। दूर्वा ने अपने माता पिता से कह दिया था कि किसी भी लडक़े से मिलने से पहले वह उसको अच्छी तरह से समझने बूझने के लिए पहले नेट पर उसके साथ चैटिंग करेगी। ओर फिर स्वभाव मिलने पर ही उससे मिलेगी। और फिर उसे अच्छी तरह से परखने के लिए कम से कम पांच छह महीने उसके सम्पर्क में रहेगी, उसके साथ घूमेगी फिरेगी।

उसकी मां ने पांच छह योग्य उच्च शिक्षित लडक़ों से उसकी चैटिंग करवाई थी। लेकिन दूर्वा दो तीन दिन से अधिक किसी भी लडक़े से चैटिंग नहीं कर पाती। उसका किसी भी लडक़े से बात आगे बढ़ाने का मन नहीं करता। दो तीन दिन चैटिंग कर वह लडक़े में कोई न कोई कमी निकालकर उससे चैटिंग करना बंद कर देती। कोई लडक़ा उसे निहायत बोर और उबाऊ लगता तो कोई अपरिपक्व । किसी की अंग्रेजी उसे रास न आती तो कोई उसे बेहद रौबीला लगता। सभी लडक़े सुशिक्षित, स्मार्ट और अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि के थे। लेकिन उसे विवाह के लिए कोई भी उपयुक्त नहीं लगता जिसके साथ वह अपनी सारी उम्र बिताने की सोच पाती।

उसे लगता कि उन उच्च शिक्षित पढ़ाकू टाइप नीरस लडक़ों में से किसी एक के साथ उसका विवाह हो गया तो वह घुटकर रह जाएगी, हंसने भर को तरस जाएगी। जब भी वह किसी भी लडक़े से चैटिंग करती, अनायास ही मृगांक उसके ख्यालों में आ जाता और वह मन में सोचती, मृगांक होता तो ऐसे बोलता, मृगांक होता तो वैसे बोलता। और फिर मृगांक की तुलना में उसे कोई भी लडक़ा पसन्द नहीं आता। एक ओर तो उसने स्वयं मृगांक से विवाह करने के लिए मना किया था क्योंकि उस वक्त तक मृगांक को लेकर उसके मन में कोई वैसे भाव पैदा नहीं हुए थे। लेकिन अब इतने लडक़ों से विवाह के दृष्टिकोण से चैटिंग कर व न जाने क्यों हर लडक़े की तुलना मृगांक से कर बैठती और हर लडक़े की तुलना में मृगांक का पलड़ा भारी बैठता। एक ओर माता पिता का विवाह करने के लिए दबाव, दूसरी ओर मृगांक का बिछोह और उसकी तुलना में सभी लडक़ों का कमतर रहना, उनके धीर, गंभीर, शुष्क स्वभाव से वह उद्वेलित हेा जाती। उन्हीं दिनों न जाने क्या सोचकर उसने अमेरिका के कुछ कॉलेजों में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए प्रतियोगी परीक्षा दी थी। कि एक दिन उसे अमेरिका के ही एक अत्यंत प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रवेश मिल गया था। इससे सम्बन्धित ईमेल देखकर वह प्रसन्नता के अतिरेक से झूम उठी थी। वह कॉलेज मृगांक के शहर से मात्र एक डेढ घंटे की दूरी पर था।

और अनायास वह यह सोचकर मन ही मन मुस्करा उठी थी कि अब एक बार फिर उसे मृगांक का सुखद सानिध्य मिलेगा। जब से उसे अपने कॉलेज और मृगांक के शहर के मध्य निकटता का पता चला, एक प्रश्न उसके जेहन में कौंध उठा, क्या नियति भी चाहती है कि वे दोनों किसी रिश्ते में बंधें और मन ही मन उसने एक निर्णय लिया था। अमेरिका जाकर वह मृगांक को एक जीवन साथी के पैमाने पर परखेगी और तौलेगी। और यदि वह उसकी कसौटी पर खरा उतरा तो वह उससे विवाह कर लेगी।

नियत वक्त पर दूर्वा अमेरिका चली गई थी। वहां पहुंचकर उसने स्वयं मृगांक को फोन किया था और अमेरिका से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बारे में बताया था। लेकिन उसे बहुत आश्चर्य हुआ था जब मृगांक ने हां हूं करके उसका फोन रख दिया था और उससे अच्छी तरह बात तक नहीं की थी।

मृगांक से बात किए उसे तीन वर्ष होने आए थे। उसने फिर दो तीन बार उसे फोन किया था, लेकिन हर बार मृगांक उसकी लाइन काट देता। और यह देखकर एक अनजानी आशंका से उसका दिल धडक़ उठा था। कहीं मृगांक की दोस्ती किसी और लडक़ी से तो नहीं हो गई। इसलिए उसने सोचा कि अब मृगांक के पास उसे जाना ही होगा। और उसकी ओर दोबारा दोस्ती का हाथ बढाना होगा। विवाह के दृष्टिकोण से इसे अच्छी तरह समझना बूझना होगा।

अगले शनिवार दूर्वा के कॉलेज का अवकाश था। उसने फोन पर मृगांक से कहा था, ‘‘मृगांक, मैं आज शाम को तुमसे मिलने आ रही हूं, बोलो कहां मिलना है?’’

‘‘नहीं नहीं, आज तो मेरी एक फ्रेंड मेरे घर आ रही है, आज मैं तुमसे नहीं मिल पाऊंगा। फिर कभी मिलते हैं।’’ यह सुनकर दूर्वा का दिल आशंका से बैठने लगा था और डूबते हृदय से उसने मृगांक से कहा था, ‘‘कोई बात नहीं, मृगांक, मैं भी तुम्हारी फ्रेंड से मिल लूंगी। कॉलेज में अभी मेरे कोई फ्रेंड्स नहीं बने हैं। दो दिन की छृट्टियों में मैं बहुत बोर हो जाऊंगी। मैं अभी दोपहर करीब एक बजे तुम्हारे घर पहुंच रही हूं।’’

मृगांक से उसके घर का पता लेकर दूर्वा उसके घर के लिए चल पड़ी थी। सारे रास्ते वह एक अबूझ उद्विग्नता से ग्रस्त रही थी। उसे डर सता रहा था कि कहीं वह उसकी गर्ल फ्रेंड न हो। नही तो उसे लेकर उसने जो सपने संजो रखे हैं, उनका क्या होगा?

मृगांक के घर पहुंचने पर वहां उसका परिचय भाग्यश्री से हुआ था। पहली ही मुलाकात में भाग्यश्री उसे बहुत अच्छी लगी थी। देखने में अति आकर्षक, अपने आपमें सिमटी सकुचाई बेहद सरल स्वभाव की प्रतीत होती भाग्यश्री से पहली बार मिलकर उसे ऐसा लगा था मानो वह उसे कितने समय से जानती है। लेकिन न जाने क्यों भाग्यश्री का मृगांक के प्रति दोस्ताने से अधिक नजदीकी का रिश्ता देखकर उसके कलेजे में एक हूक सी उठी थी।

मृगांक और भाग्यश्री को साथ साथ देखकर उसे उन दोनेां के बीच की गहरी दोस्ती का आभास हो गया था। और उसे स्वयं अपने ऊपर आश्चर्य हुआ था कि भाग्यश्री की मृगांक से निकटता को देखकर उसे थोड़ी जलन हुई थी। मृगांक को बार बार भाग्यश्री से अधिकार वश बातें करते देख उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा और वह पूरे वक्त अनमयस्क, अनमनी सी दोनों की चहकभरी बातचीत सुनती रही थी। और शाम होते ही घर वापिस लौट आई थी।

घर लौटकर वह सारे वक्त मृगांक और भाग्यश्री के विषय में ही सोचती रही थी। उसे उन दोनों को साथ साथ देख एक अबूझ से खालीपन का अहसास हुआ था जैसे उसकी कोई प्रिय चीज खो गई हो। एक अजीब सी रिक्तता का अहसास हो रहा था उसे। उस दिन सारी रात वह बेहद बेचैन रही थी। लेकिन फिर उसने यह कहकर अपने मन को दिलासा दिया था कि उसके मृगांक के विवाह के प्रस्ताव केा ठुकराने के बाद यह तो होना ही था। दूर्वा ने यह तर्क कर अपने मन को समझाया था कि विवाह का रिश्ता तो ऊपर से तय होकर आता है। यदि मृगांक उसकी किस्मत में होगा तो वह लाख अड़चनों के बाद भी उसका होकर रहेगा। फिर अभी तो उसे उसके स्वभाव को भी परखना है।

इस सोच ने उसकी विकलता पर अंकुश लगाया था और वह क्लांत मन नींद के आंचल में डूब गर्ई थी।

भाग्यश्री से मिलने के बाद के कुछ दिन बेहद दर्द में बीते थे। वक्त गुजरने के साथ अपनी भावनाओं का विश्लेषण करने पर उसे अहसास हुआ था कि वह मृगांक से अपनी सोच से कहीं बहुत अधिक गहराई से जुड़ी हुई है। जब जब वह मृगांक और भाग्यश्री से मिलती, मृगांक को हमेशा के लिए खो देने का अहसास उसे शिद्दत से कचोटता।

कि शायद नियति ने उसके ह्रदय की आवाज सुन ली थी। उस दिन शनिवार का अवकाश था। अलसायी सी दूर्वा सुबह सवेरे काफ़ी के घूंट ले रही थी कि मृगांक का फोन आया था। उसने दूर्वा से तनिक घबराई हुई आवाज में कहा था, ‘‘ दूर्वा आज तो तुम्हारी छुट्टी होगी, क्या तुम यहां आ सकती हो?’’

‘‘आज, हां, छुट्टी तो है लेकिन बात तो बताओ, तुम इतने घबराए हुए से क्यों लग रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां हां, तबियत को कुछ नहीं हुआ है। बस तुम जल्दी से जल्दी यहां आ जाओ। फोन पर मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।’’

‘‘ठीक है, मैं अभी नहा धोकर निकलती हूं और वहां पहुंचती हूं। ’’

मृगांक के घर पहुंचते ही उसने उससे कहा था, ‘‘दूर्वा, ये भाग्यश्री को देखो, मुझे छोडक़र शादी करने इंडिया जा रही है।’’

‘‘शादी करने इंडिया जा रही है, फिर तुमसे रिश्ता क्यों जोड़ा था?’’

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं, कि अगर मुझसे रिश्ता नहीं रखना था तो मेरे साथ इतना आगे, क्यों बढ़ी यह? समझाओ इसे,” तनिक आवेश में आते हुए मृगांक ने दूर्वा से कहा था।’’

‘‘दूर्वा, मैने तो कभी मृगांक से विवाह का वायदा नहीं किया था। बस बहुत अच्छे दोस्त रहे हैं हम दोनों। हां, इधर पिछले कुछ महीनों से मृगांक मुझसे विवाह की बातें जरूर करने लगा था, लेकिन मैने कभी उससे नहीं कहा कि मैं उससे विवाह करूंगी। मैं एक छोटे से कस्बे की एक बेहद परम्परावादी और कट्टर परिवार की लडक़ी हूं। हमारे परिवार में आज तक जाति के बाहर कोई विवाह नहीं हुआ हैं। मैं मृगांक से विवाह के विषय में सोच भी नहीं सकती। मेरे माता पिता दादाजी मुझे कभी जाति से बाहर विवाह करने की इजाजत नहीं देंगे। उन्होंने मुझे हायर स्टडीज के लिए विदेश भी इसी शर्त पर भेजा था कि पढाई खत्म होने पर मैं हर हालत में इंडिया लौट कर उनकी पसंद के लडक़े से ही शादी करूंगी। और अभी कुछ महीनों पहले मैने यह बात मृगांक को बताई भी थी। मेरे घर वाले जीते जी मर जाएंगे अगर उन्हें मेरे और मृगांक की दोस्ती तक के विषय में भनक पड़ी तो, और दूर्वा मैं सच कहती हूं, मैने कभी भी मृगांक को इस भुलावे में नहीं रखा कि मैं उससे विवाह करूंगी।

कि तभी मृगांक बोल पड़ा था, ‘‘भाग्यश्री, मैं तुमसे दूर होने की कल्पना तक नहीं कर सकता। इधर तुमसे बिछुडक़र मैं जो जीते जी मर जाऊंगा, तुम्हें इसका अहसास भी है?’’

‘‘मृगांक मैं एक बेहद डरपोक लडक़ी हूं। माता पिता, घर परिवार की मर्जी के विरुद्ध जाकर तुमसे अन्तरजातीय विवाह करने की न तो मुझमें हिम्मत है, न ही इच्छा। तुम मेरे एक बहुत अच्छे दोस्त हो। तुम्हारी दोस्ती मेरे लिए बहुत मायने रखती हे। बेहतर होगा तुम मुझे विवाह के लिए विवश न करो।’’

मृगांक को यूं व्यथित देखकर दूर्वा को एक ओर अच्छा तो नहीं लगा था। लेकिन दूसरी ओर उसे अत्यंत अचरज हो रहा था, यूं भाग्यश्री को मृगांक की जिन्दगी से दूर जाते हुए देखकर उसे अपने अन्तर्मन की गहराइयों में एक अबूझ राहत का अनुभव हुआ था मानो कलेजे पर से मनो भारी बोझ उतर गया हो। ऊपर ही ऊपर मृगांक के सामने उसने भाग्यश्री को समझाने का प्रयास किया था कि वह मृगांक से विवाह करने के लिए राजी हो जाए। लेकिन कायर भाग्यश्री में माता पिता के विरुद्ध जाकर इतना बड़ा कदम उठाने की हिम्मत न थी। और वह ताजिंदगी मृगांक से बहुत अच्छे दोस्त बने रहने का वायदा कर इंडिया वापस चली गई थी। यूं ही दिन गुजरते गए थे। दूर्वा ने भाग्यश्री के इंडिया जाने के बाद उसे उस नाजुक दौर में अपने स्नेहिल सानिघ्य द्वारा भरपूर भावनात्मक संबल दिया था। भाग्यश्री को भूलने में मदद करने में प्रत्येक अवकाश के दिन वह या तो स्वयं मृगांक के पास चली जाती या उसे अपने पास बुला लेती।

मृगांक के सम्पर्क में आकर उसे अनुभव हुआ था कि मृगांक बेहद सरल स्वभाव का दूसरों पर बहुत सरलता से भरोसा करने वाला इंसान था। स्वयं अपने और उसके दोस्तों की उसके प्रति धारणाओं का विश्लेषण करने पर उसने पाया था कि मृगांक जैसा सरल, निष्कपट और उसे टूटकर चाहने वाला और कोई लडक़ा नहीं मिलेगा। फिर उसके स्वभाव का विनोदप्रिय और हंसमुख पक्ष उसकी जिंदगी को अपार खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से सजा देगा। बस अब इसके आगे वह और कुछ नहीं सोचेगी। और उसने अपना निर्णय ले लिया था कि मृगांक ही उसका पति बनेगा। जो उसके जीवन में पूर्णता लाएगा। बस अब उसे मृगांक को समय देना होगा जिससे कि वह भाग्यश्री को पूरी तरह से भूलकर जिंदगी में उसके साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ सके।

भाग्यश्री को इंडिया वापिस गए हुए तीन वर्ष से अधिक होने आए हैं। वक्त के साथ मृगांक धीमे धीमे भाग्यश्री को भूलने लगा था। इस बार उसे दूर्वा का अपने प्रति व्यवहार अत्यंत रहस्यमय प्रतीत हो रहा था। उसका आवश्यकता से अधिक दोस्ताने और प्यार से भरा व्यवहार देखकर मृगांक कभी कभी आश्चर्य में पड़ जाता और सोचता कि क्या यह वही दूर्वा है जिसने एक दिन उसके विवाह के प्रस्ताव को बड़ी ही बेरहमी से नकार दिया था। लेकन भोला मृगांक सपने में भी नहीं सोच सकता कि जल्दी ही उसके वीरान जीवन में दूर्वा का प्रवेश होने वाला है जो उसके बेरंग जीवन को अपने बेइन्तिहा प्यार और समर्पण के सतरंगे रंगों से सजा देगी। दूर्वा मृगांक का पहला प्यार थी। उसके लिए अभी तक मृगांक के अन्तर्मन की भीतरी तहों में कोमलतम भावनाएं विद्यमान थीं। जो बरसों पहले उसकी ना सुनकर मुर्झा गईं थीं। लेकिन अब वे भावनाएं दूर्वा के के प्रीत भरे केयरिंग एटीट्यूड से एक बार फिर से लहलहाने को लालायित हो उठीं थीं। लेकिन इस बार मृगांक दूर्वा के प्रति अपने प्रेम का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। दुविधा में था कि दूर्वा के मन में उसके लिए प्यार था या कुछ और। और दोनों एक मर्यादित दोस्ती की लक्ष्मणरेखा में बंधे एक दूसरे के सुखद सानिध्य में दिन गुजार रहे थे।

कि एक दिन दूर्वा ने मृगांक को उसकी जिंदगी का सबसे हंसी सरप्राइज देने की योजना बना डाली। मृगांक की पहले की तरह बिन्दास खुश मन:स्थिति देखकर वह इस निश्कर्ष पर पहुंची थी कि अब मृगांक पूरी तरह से भाग्यश्री के बिछोह के दर्द से उबर चुका है और समय आ गया था कि वह उसके सामने उसके प्रति अपनी वास्तविक भावनाओं का खुलासा कर दे।

अगली सुबह उसने शाम को मृगांक को अनोखे ढंग से विवाह का प्रस्ताव देने का मानस बनाया था। योजना के अनूरूप दूर्वा ने अपने और मृगांक के कुछ घनिष्ठ दोस्तों को घर के पास वाले एक निजी सी बीच पर आमंत्रित किया था। उसने सी बीच पर ही एक शानदार बार्बेक्यू पार्टी का इंतजाम किया था।

सिंदूरी सूरज के अस्त होते वक्त उसकी सुनहरी किरणों की मद्धम रोशनी में दूर्वा और मृगांक सागर की अठखेलियां करती उठती गिरती लहरों के मध्य खड़े थे कि अचानक ही आसमान में रंगीन आतिशबाजी चमकी थी और सभी ने देखा था आकाश में आतिशबाजी से ‘‘विल यू मैरी मी’’ शब्द कौंध रहे थे और उसके साथ साथ आतिशबाजी से बने असंख्य लाल दिल चारों ओर हवा में एकसाथ चमक उठे थे। और दूर्वा ने अपने एक घुटने पर बैठकर मृगांक की हथेली पर एक स्नेहचिन्ह अंकित करते हुए भावविव्हल स्वरों में पूछा था ‘‘ विल यू मैरी मी?’’

अचानक मिली इस बेइंतिहा अनपेक्षित खुशी से मृगांक हक्का बक्का रह गया था। क्षण भर बाद अपने आपको संयत करते हुए उसने मुदित मन मुस्कुरा कर ‘‘यस माइ लव’’ कहते हुए दूर्वा को उठाते हुए भरे ह्रदय से उसे बाहों में भर लिया था। और सारी कायनात इन दो प्रेमियों के इस मधुर मिलन पर झूम उठी थी। उनके इर्द गिर्द खड़े उनके दोस्तों ने ताली बजाकर खुशी का इजहार किया था।

एक और प्रेम कहानी अपने सही मुकाम तक पहुंच गई थी।

***