Nikita in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | निकिता

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निकिता

निकिता

पलक झपकते ही न जाने कहाँ से वह युवक गाड़ी के सामने आ गया, टक्कर इतनी जोरदार थी कि वह सड़क पर गाड़ी के सामने कई फीट दूर जाकर गिरा, निकिता ने किसी तरह गाड़ी को संभाला और अपनी पूरी ताकत लगाकर गाड़ी को ब्रेक मारा, चीईईईईई करती हुई गाड़ी बिलकुल युवक के नजदीक जाकर रुकी, अगर गाड़ी नहीं रुकती तो सीधे उस युवक के ऊपर चढ़ जाती और फिर ना जाने क्या होता।

जल्दी से निकिता ने कार का हैंड ब्रेक लगाकर दरवाजा खोला और उस युवक के पास जाकर देखा। युवक बेहोश हो चुका था, लोगों की सहायता से उस युवक को अपनी कार की पिछली सीट पर लिटाया, एक भला आदमी भी उस युवक का सिर अपनी गोद में रखकर पिछली सीट पर ही बैठ गया।

पटपड़ गंज से मैक्स हॉस्पिटल ज्यादा दूर नहीं लेकिन भीड़ का समय होने से काफी देर लग गयी। आपातकाल के दरवाजे पर पहुँचते ही वार्ड बॉय स्ट्रेचर ले आए, चिकित्सकों की पूरी टीम निरीक्षण करने लगी। एक हाथ व एक पैर में फ्रेक्चर था जिसका इलाज़ करने के लिए उस युवक को वहीं भर्ती कर लिया लेकिन अभी भी उसको होश नहीं आया था।

निकिता यही प्रतीक्षा कर रही थी कि युवक को होश आ जाए, वह कुछ अपने व अपनों के बारे में बताए तो उनको सूचित करके अस्पताल बुला लिया जाए। क्योंकि उसके पास से ऐसा कोई भी सामान नहीं मिला जो उसकी जानकारी दे पाता, जेब में कुछ रुपए और एक मोबाइल फोन जो बुरी तरह टूट चुका था।

घर से भी बार बार फोन आ रहा था, मोबाइल की बैटरी भी जवाब दे रही थी, चार्ज करने का भी कोई साधन नहीं था, वहीं अस्पताल के फोन से ही घर पर फोन करके बताया तो घर वाले भी परेशान हो गए।

कुछ देर बाद युवक होश में आ गया। उसने अपना नाम विवान शर्मा बताया, बुलंद शहर से सी ए कि प्रवेश परीक्षण कि तैयारी के लिए पढ़ाई करने दिल्ली आया था, पांडव नगर में ही एक छोटा सा कमरा लेकर रह रहा था, गाँव में बूढ़े माँ-बाप थे।

निकिता ने कहा, “मैं आपके घर पर सूचना दे देती हूँ।” लेकिन विवान ने मना कर दिया, “नहीं, रहने दो, उनको पता चलेगा तो परेशान हो जाएंगे। बस आप मुझे यहाँ से निकाल कर किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दो, यहाँ की फीस भरने के लिए मेरे पास तो पैसे भी नहीं हैं।”

तब तक निकिता के भाई-भाभी वहाँ आ गए थे, भाई ने निकिता से कहा, “निकिता! अब तुम अपनी भाभी के साथ घर जाओ, मैं देख लूँगा सब, और भाई ने विवान की तरफ घूमते हुए कहा, “आप चिंता न करें, यहाँ का सारा भुगतान हम करेंगे।”

निकिता सरकारी नौकरी करती थी, सुबह कार्यालय जाने से पूर्व व कार्यालय से वापस आकर अस्पताल में विवान से मिलने जाती, उसकी देखभाल करती एवं जरूरत का समान लेकर आती, दो दिन बाद अस्पताल से विवान की छुट्टी हो गयी तो निकिता उसको अपने घर पर ही ले आई, एक कमरा खाली कराकर विवान को दे दिया जिससे उसकी देखभाल अच्छी तरह हो सके।

पूरी तरह स्वस्थ होने के पश्चात विवान अपने कमरे पर चला गया, निकिता को रह रह कर विवान की कमी सता रही थी अतः वह उससे मिलने उसके कमरे पर चली गयी। निकिता को आए हुए देखकर विवान बहुत खुश हुआ और कहने लगा, “मैं तो तुम्हें याद ही कर रहा था निकिता, अच्छा हुआ तुम आ गईं।”

विवान ने अपनी तैयारियों के बीच यू पी एस सी की परीक्षा दी तो वह सेक्शन ऑफिसर के पद के लिए चुन लिया गया। सी ए की प्रवेश परीक्षा की तैयारी छोड़ कर विवान ने नौकरी कर ली, सरकारी मकान भी ले लिया और गाँव से अपने माता पिता को भी ले आया।

निकिता और विवान प्रतिदिन कार्यालय से छुट्टी के बाद मिलते और घंटो एक दूसरे के हाथों में हाथ व आँखों में आंखे डाल कर बैठे रहते।

विवान ने कहा, “निकिता कल मैं अपने माता पिता को आपके यहाँ लेकर आ रहा हूँ, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए, मैं तो तुम्हारे बिना जी नहीं सकता।” निकिता ने कहा, “हाँ विवान! मेरा भी यही हाल है, मैं तो एक पल भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, जल्दी से जल्दी तुम्हारी बन कर तुम्हारे पास आना चाहती हूँ।”

इधर निकिता और विवान शादी के सपने सँजो रहे थे और उधर नियति कुछ और ही खेल खेल रही थी। उसी रात निकिता के भाई और भाभी की एक दुर्घटना में दर्दनाक मौत हो गयी, जो अपने पीछे दो छोटे बच्चे मुन्नू और गुड़िया को छोड़ गए। माँ-बाप दोनों ही काफी बूढ़े हो चुके थे, बेटे और बहू की असमय मृत्यु ने उनको झकझोर दिया था लेकिन निकिता ने स्वयं को संभाला जिससे वह उन दोनों बच्चों और माँ बाप का सहारा बन सके।

निकिता ने निर्णय लिया कि अब वह शादी नहीं करेगी, अपने प्यार को और विवान को भूल जाएगी। उसने दोनों बच्चों को कानूनी तौर पर अपने संरक्षण में ले लिया और उनकी पूरी ज़िम्मेदारी निभाने लगी। लेकिन उनके माँ बाप की जगह अपने भाई भाभी का ही नाम दिया क्योंकि वे बच्चे ही उनकी आखिरी निशानी थे।

कुछ दिन बाद विवान ने निकिता के सामने फिर से विवाह का प्रस्ताव रखा और समझाया, “निकिता तुम अकेले ही इस ज़िम्मेदारी को कैसे निभाओगी? क्यों न हम दोनों मिलकर इन बच्चों और बूढ़े माँ बाप की ज़िम्मेदारी उठाएँ, क्यों न हम शादी के बंधन में बंध जाएँ?”

“नहीं विवान, मैं दोहरा जीवन नहीं जी सकती, अब मैं अपना पूरा समय इन बच्चों और बूढ़े माँ बाप को देना चाहती हूँ, अगर मैं शादी कर लूँगी तो मुझे अपने समय में से एक हिस्सा तुम्हें भी देना पड़ेगा जो मैं नहीं कर सकूँगी।” निकिता इतना कहकर वहाँ से उठकर चली गयी।

विवान के काफी साझाने पर भी निकिता नहीं मानी तो विवान बस यह कह पाया, “निकिता! अगर तुम शादी नहीं करोगी तो मैं भी शादी नहीं करूंगा, बस इस जीवन में मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा, कभी भी, उम्र के किसी भी मोड पर जब भी मेरी जरूरत महसूस करो तो बेझिझक चली आना या बस एक बार मुझे पुकार लेना मैं स्वयं चल कर तुम्हें लेने आ जाऊंगा।”

समय बीतता गया, बच्चे बड़े होते गए, माँ बाप बूढ़े होते गए और एक दिन पिताजी साथ छोड़ कर चले गए। पिताजी के गम में माँ भी दो महीने में ही स्वर्ग सिधार गयी। बच्चे पढ़ लिख गए और नौकरी करने लगे। माँ बाप की मृत्यु के पश्चात निकिता ने मकान मुन्नू के नाम करवा दिया, गुड़िया की शादी हो गयी और वह ससुराल चली गयी।

हालांकि मुन्नू बड़ा था लेकिन मुन्नू की शादी गुड़िया के बाद यह सोच कर की कि घर से लक्ष्मी विदा करके घर में लक्ष्मी लानी चाहिए, ना कि लक्ष्मी को लाकर घर से लक्ष्मी को विदा कर दें और उसी वर्ष मुन्नू की भी शादी कर दी।

मुन्नू ने अपने साथ पढ़ने वाली लड़की से ही शादी की, दोनों साथ साथ ही नौकरी करते, ज़्यादातर वे दोनों बाहर ही खाना खाकर आते, निकिता देर रात तक दोनों का खाने पर इंतज़ार करती और कभी कभी तो भूखी ही सो जाती।

बच्चों की पढ़ाई और शादी में निकिता ने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी यहाँ तक कि बैंक से कर्ज भी लिया, सेवानिवृति पर जो पैसा मिला उससे बैंक का कर्ज उतारा एवं घर को फिर से बनवाया। निकिता पूरा समय घर पर ही रहती, उम्र बढ्ने के साथ साथ स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा, एक दो बार तो मुन्नू निकिता को अस्पताल ले गया, लेकिन बाद में समय न होने का बहाना बनाने लगा और निकिता को बीमार हालत में ही छोड़ कर दोनों ऑफिस चले जाते, निकिता पूरे दिन अकेले ही घर में भूखी प्यासी पड़ी रहती।

एक दिन बहू ने निकिता को सलाह दी, “बुआजी! आप वृदधा आश्रम क्यों नहीं चली जाती, वहाँ पर आपकी देखभाल भी अच्छी होगी और आपका अकेलापन भी दूर हो जाएगा। यहाँ पर आपका तो कुछ है नहीं, न ही आपका कोई बच्चा जो आपकी देखभाल कर सके।” उस दिन बहू की बात सुनकर निकिता को अपने फैसले पर अफसोस हो रहा था और सोच रही थी कि जिनको मैंने अपने बच्चों से ज्यादा प्यार दे कर पाला आज वे मेरे बच्चे नहीं हैं।

निकिता को रह रह कर विवान की याद आ रही थी लेकिन उसको तो यह भी नहीं पता था कि विवान है कहाँ, दिल्ली में या कहीं और उसका स्थानांतरण हो गया। विवान के बारे में सोचते हुए ही निकिता को नींद आ गयी और वह सपना देख रही थी कि विवान उसको लेने आया है लेकिन दरवाजे की घंटी की आवाज से निकिता का सपना टूट गया और नींद खुल गयी। मुश्किल से वह पलंग से उठी और दरवाजा खोला, दरवाजे पर विवान खड़ा था, निकिता विवान को देखकर आश्चर्यचकित रह गयी और उसको विवान की वह बात याद आई कि जब भी मेरी जरूरत पड़े बस याद कर लेना, मैं लेने आ जाऊंगा, विवान ने अपने प्यार का वादा निभाया।

उस दिन विवान से लिपट कर निकिता बहुत रोई, विवान ने भी उसको अपने अंक में भर कर इतना प्यार किया जैसे आज ही जन्मों की प्यास बुझा लेंगे। दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे, अपने सुख दुख के सभी क्षण एक दूसरे से साझा करते रहे तब तक बच्चे भी घर आ गए।

निकिता ने बच्चों से विवान का परिचय कराया, थोड़ी देर सब बैठ कर बातें करते रहे तभी विवान ने बच्चों से कहा, “मैं कल मंदिर में ले जाकर तुम्हारी बुआ निकिता से शादी कर रहा हूँ, अगर आप लोग साथ आएंगे तो हमें अच्छा लगेगा” लेकिन बच्चों ने इसमे भी अपनी असमर्थता दिखाई, काम से छुट्टी ना मिलने की बात कहकर साथ आने से मना कर दिया।

विवान अकेले ही निकिता को एक मंदिर में ले गया, पूरे विधि विधान के साथ शादी की। उसके कार्यालय के कुछ साथी उसके सहयोगी बने और वहीं से विदा करके अपने घर ले गया जो उसने पहले से ही निकिता सदन के नाम से बनवाया था।