शेर और बछड़ा
बाल कथाएं
सुदर्शन वशिष्ठ
एक गांव में गरीब ब्राह्मण दम्पत्ति रहते थे। ब्राह्मण भिक्षा मांग कर कठिनाई से गुजारा करता था। एक बार ब्राह्मणी ने उसे तरड़ी (एक जंगली कंदमूल) लाने के लिए कहा जो ज़मीन में बहुत गहरे में होती है। तरड़ी की जड़ एक चट्टान के नीचे चली गई थी। ब्राह्मण खोदता गया तो उसे चट्टान के नीचे एक गाय और बछड़ा मिले जिन्हें ले कर वह घर आ गया।
गाय ख़ूब दूध देती थी अतः दोनों के दिन अब मजे से कटने लगे।
ब्राह्मणी ने घर के पास धनिया बो रखा था। एक दिन गाय छूट गई और उसने हरा धनिया चर लिया। यह देख ब्राह्मणी गुस्सा हो गई और उसने गाय को मार मार कर घर से भगा दिया।
जब ब्राह्मण शाम को घर आया तो बहुत दुखी हुआ। उसने जंगल में गाय को बहुत ढूंढा और अंततः जंगल में कुटिया बना कर रहने लगा।
उधर गाय और बछड़ा जंगल में बहुत बहतु दूर निकल गए। गाय इतना दूध देती थी कि उसके दूध से जोहड़ तालाब तक भर जाते। इसी जंगल में शेरनी रहती थी जिसका बच्चा तालाबों में भरे गाय के दूध को पीने लगा। शेरनी के बच्चे और बछड़े की जल्दी ही दोस्ती भी हो और वह बछड़े को अपना धर्म भाई मानने लगा। उसने बछड़े के गले में घूंघरू बांन्ध दिया कि जब तुम पर मुसीबत आए जोर जोर से उछल कर घूंघरू बजाना।
एक बार शेरनी ने जंगल में मोटी ताज़ी गाय चरती देखी तो उसके मन में पाप आ गया और उसे मार डाला। कुछ देर बाद जब बछड़े ने अपन मां को मरा हुआ देखा तो वह दुखी हो कर उछल उछल कर घूंघरू बजाने लगा। इस शोर से जंगली जानवर वहां आ गए और उन्होंने बछड़े को भी मार डाला।
घूंघरू की अरवारज सुन कर शेरनी का बच्चा दौडा़ दौडा़ आया। जब उसने देखा कि गाय और बछड़ा मर गए हैं तो उसने भी वहीं प्राण त्याग दिए।
जिस स्थान पर दोनों दोस्त मरे थे ,कुछ समय बाद वहां दो नन्हें पौधे उगे जो जल्दी ही पेड़ बन गए। उन में मीठे मीठे फल लगने लगे।
एक बार एक राजा उस जंगल में शिकार खेलने आया तो थक कर उन दो पेड़ाें के नीेचे बैठ गया। उसी समय राजा के ऊपर सुगन्धित फल गिरे जिन्हें राजा ने महलों में जा कर अपनी दो रानियों को दे दिया। दोनों रानियों एक एक फल खाया और कुछ समय बाद उन्हें गर्भ रह गया। समय आने पर दोनों को दो सुंदर बालक जन्मे जो देखने में एक जैसे लगते थे।
एक बार दोनों भाईयों में बहस हो गई। एक कहता था कि शेर अच्छा होता है तो दूसरा कहता था कि बैल। आखिर एक भाई इस बात का पता करने के लिए जंगल चला गया। जाने से पहले उसने अपनी अंगूठी खोल कर भाई को दे दी कि जब यह अंगूठी काली पड़ जाए तो कि मैं मुसीबत में हूं।
राजकुमार जंगल में गया तो उसे एक बुढ़िया मिली जो पशु चरा रही थी। उससे आगे एक अघोरी साधु मिला जिसे मार कर राजकुमार एक नगर में जा पहुंचा।
इस नगर की राजकुमार ने घोषणा कर रखी थी कि जो उसे शतरंज में हरा देगी, उससे ही वह विवाह करेगी। इस शर्त में हारने पर कई राजकुमार उसने कैद कर रखे थे। राजकुमार ने शतरंज में सब राजकुमारों को हराने का राज़ महल में जाने वाली एक बुढ़िया को सोने की मेाहरें दे कर जान लिया। बुढ़िया ने बता दिया कि यह एक जादूगरनी है और उसके जादूई कमरे में एक चितकबरी बिल्ली रहती है। राजकुमार जादूई कमरे से न जाकर दूसरे कमरे से अंदर गया और राजकुमारी को अपनी जगह बदलने को कहा। ऐसा करने से राजकुमारी का जादू न चला और वह हार गई। गुस्से में आ कर उसने राजकुमार को बान्ध कर नदी में फिंकवा दिया।
अब दूसरे राजकुमार की अंगूठी काली पड़ गई। उसने जान लिया कि मेरा भाई मुसीबत में है। वह सेना ले कर भाई को खोजने निकल पड़ा।
नदी में गिरने के बाद राजकुमार बेहोश हो कर किनारे आ लगा। वहां एक साहुकार उसे अपने घर ले गया। इतने में दूसरा राजकुमार भी उसे ढूंढता हुआ आ पहुंचा। साहुकार और दोनों भाईयों ने उस जादूगरनी पर हमला कर उसे हरा दिया और कैद किए कई राजकुमारों को छुड़ाया।
दोनों भाई अपने राज्य में लौट गए ओैर आराम से रहने लगे।
094180—85595 ‘‘अभिनंदन'' कृष्ण निवास लोअर पंथा घाटी शिमला—171009
सुदर्शन वशिष्ठ
24 सितम्बर 1949 को पालमुपर (हिमाचल) में जन्म। 125 से अधिक पुस्तकों का संपादन/लेखन।
वरिष्ठ कथाकार। नौ कहानी संग्रह, दो उपन्यास, दो नाटक, चार काव्य संकलन, एक व्यग्ंय संग्रह। चुनींदा कहानियों के चार संकलन। हिमाचल की संस्कृति पर विशेष लेखन में ‘‘हिमालय गाथा'' नाम से छः खण्डों में पुस्तक श्रृंखला के अतिरिक्त संस्कृति व यात्रा पर बीस पुस्तकें। पांच कहानी संग्रह और दो काव्य संकलनों के अलावा सरकारी सेवा के दौरान सत्तर पुस्तकों का सपांदन।
जम्मू अकादमी, हिमाचल अकादमी, साहित्य कला परिषद् (दिल्ली प्रशासन) तथा व्यंग्य यात्रा दिल्ली सहित कई स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा साहित्य सेवा के लिए पुरस्कृत।हाल ही में हिमाचल अकादमी से ‘‘जो देख रहा हूं'' काव्य संकलन पुरस्कृत।
कई रचनाओं का भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद। कथा साहित्य तथा समग्र लेखन पर हिमाचल तथा बाहर के विश्वविद्यालयों से दस एम0फिल0 व पीएच0डी0।
पूर्व उपाध्यक्ष/सचिव हिमाचल अकादमी तथा उप निदेशक संस्कृति विभाग। पूर्व सदस्य साहित्य अकादेमी, दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय भोपाल।
वर्तमान सदस्यः राज्य संग्रहालय सोसाइटी शिमला, आकाशवाणी सलाहकार समिति, विद्याश्री न्यास भोपाल।
पूर्व फैलो : राष्ट्रीय इतिहास अनुसंधान परिषद्।
सीनियर फैलो : संस्कृति मन्त्रालय भारत सरकार।
सम्प्रति : ‘‘अभिनंदन'' कृष्ण निवास लोअर पंथा घाटी शिमला—171009. (094180—85595, 0177— 2620858)
ई—मेल : vashishthasudarshan@yahoo,com