11 अक्टूबर पर विशेषः—
परिवर्तन के लोकनायक जयप्रकाश नारायण
मृत्युंजय दीक्षित
भारतीय लाकतंत्र के महापननायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902को बिहार के सारन जिले के सिताबदियारा गांव मेंं हुआ था। उनका जन्म एक ऐसे समय में हुआ था जब विदेशी सत्ता के आधीन था और स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहा था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सारन और पटना जिले में हुई थी । वे विद्यार्थी जीवन से ही स्वतंत्रता के पे्रमी थे जब पटना में उन्होनें ने बिहार विद्यापीठ में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया तभी से वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लग गये थे। तत्कालीन बिहार विद्यापीठ की स्थापना डा़ राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गयी थी। वे 1922 में उच्चशिक्षा के लिए अमेरिका चले गये। जहां उन्होनें 1922 से 1929 तक कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय व विसकांसन विवि में अध्ययन किया। वहां पर अपने खर्चे को पूरा व नियंत्रित करने के लिए खेतों व रेस्टोरेंट में काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होनें एम ए की डिग्री हासिल की। इसी बीच उनकी माताजी का स्वास्थ काफी बिगड़ने लग गया था जिसके कारण अपनी पढ़ाई को छोड़कर स्वदेश वापस आ गये। भारत वापस आने पर उनका विवाह प्रसिद्ध गांधीवादी बृजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ संपन्न हुआ। लेकिन उनका विवाह सफन ही माना जा कसता क्योकि उनकी पत्नी विवाह के बाद कस्तूरबा गांधी के साथ उनके आश्रम में ही रहीं।
जब वे अमेरिका से वापस लौटे तब भारत में स्वतंत्रता संग्राम आंंदोलन चरम सीमा पर था। स्वदेश वापसी के बाद उनका संपर्क नेहरूजी से हुआ।वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने। 1932 में गांधी,नेहरू सहित अन्य नेताओं के जेल जाने के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। अंततः उन्हें भी 1932 में जेल में डाल दिया गया। नासिक जेल में उनकी मुलाकात मीनू मसानी ,अच्युत पटवर्धन ,सी के नारायणस्वामी सरीखे कांग्रेसी नेताओं के साथ हुई। जेल में चर्चाओं के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। यह पार्टी समाजवाद में विश्वास रखती थी।
1939 में उन्होनें अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। सबसे बड़ी बात यह है कि जेपी स्वतंत्रता संगा्रम के आंदोलन में हथियार उठाने के पक्षधर थे। उन्होनें सरकार को किराया और राजस्व को रोकने का अभियान चलाया।टाटा स्टील कंपनी में हडताल करवाकर यह प्रयास किया कि अंग्रेजों को स्टील, इस्पात आदि न पहुंच सके। जिसके कारण उन्हें फिर हिारासत मंें ले लिया गया। उन्हें नौ माह तक जेल की सजा सुनायी गयी।
आजादी के बाद जयप्रकाश नारायाण ने 19 अप्रैल 1954 को बिहार के गया में विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित कर दिया। 1959 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष में राजनीति करने का ऐलान किया। 1974 में उन्होनें बिहार में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया और तत्कालीन बिहार सरकार के इस्तीफे की मांग की। जेनी प्रारम्भ से ही कांग्रेसी शासन विशेषकर इंंदिरा गांधी की राजनैतिक शैली के प्रखर विरोधी थे। 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता कोे बचाकर रखने के लिए आपातकाल लगा दिया। आपातकाल के दौरान देशके विपक्षी दलों के नेताओं को जेलों में डाल दियागया । लगभग 600 से अधिक नेताओं को जेल में डाला गया तथा उनपर जेलों में अमानवीय अत्याचार किया गया जनता पर प्रतिबंध लगाये गये। आपातकाल में अत्याचारों से परेशान जनता कांग्रेेस पार्टी से बदला लेने के लिए उतावली हो रही थी।
जनता व नेताओं को अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए जेपी ने अथक प्रयासोंं से विपक्ष को एक किया और 1977 के चुनावों में देश को पहली बार कांग्रेस से मुक्ति मिली।लेकिन भारत के दुर्भाग्यवश जेपी का यह अथक प्रयास बीच में ही टूट गया और उनके प्रयासाें से बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार बीच में ही बिखर गयी। जिससे उनको मानसिक दुख पहुंचा।
लोकनायाक जयप्रकाश नारायाण सम्पूर्ण क्रांति में विश्वास रखते थे। उन्होनें बिहार से ही सम्पूर्ण क्रांति की शुरूआत की थी। वे घर— घर क्रांति का दियाजलाना चाह रहे थे। जेनी का जीवन बहुत ही संयमित व नियंत्रित रहता था । वे राजनैतिक जीवन में उच्च आदर्शो का पालन करना चाह रहे थे लेकिन उनके आदर्श व नये विचार देश के कई राजनैतिक दलां को कतई पसंद नहीं आ रहे थे। आज बिहार के अधिकांश नेता लालू प्रसाद यादव, नीतिश कुमार, रामविलास पासवान आदि कभी जेपी आंदोलन के युवा नेता हुआ करते थे। लेकिन अब परिस्थितियां काफी तेजी से बदल गयी हैं आज यही सब नेता जातिवाद की घेर विकृत राजनीति कर रहे हैं तथा अपने राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतू लालू— नीतिश कांग्रेस की गोद में जाकर बैठ गये हैं। बिहार का यह नया महागठबंधन वाकई में महास्वार्थी गठबंधन है। जिसकी राजनैतिक पृष्ठभूमि अपने मूल चरित्र से बिलकुल अलग हो गयी है। सत्ता केे लिए कुछ भी करने को तैयार है। ऐसे लोकनाकयक जयप्रकाश नारायण को आज पूरा देश याद कर रहा है केवल कांग्रेस और सेकुलर दलोें को छोड़कर। देश को काग्रेस मुक्त करने का पहला सपना जेनी ने ही देखा था ।15 जून 1975 को पटना में ऐतिहासिक रैली में जेपी ने सम्पूर्ण क्रांति का आहावन किया था।
जब 8 अक्टूबर 1979 को जेनी का निधन हुआ थ तब तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया था।
प्रेषकः— मृत्युंजय दीक्षित
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