Ghasiyarin in Marathi Short Stories by Dr. sadhana Srivastava books and stories PDF | घासियारिन

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घासियारिन

घासियारिन

नैना को गाँव बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, जब उसने गाँव देखा तो उसे सब कुछ अजीब लगा। एक तो भरी गर्मी का मौसम उसके पापा का गाँव में टं्रसफर हर चीज उसे बहुत उदास कर रही थी। उसके पापा श्क्षिा अधिकारी थे, जिनकी तबादला हाल ही में गाँव में हुआ था। कुछ समय वे अकेले माँ के साथ शहर में ही रही, फिर पापा का अकेलापन, खाने—पीने दिक्कते देखते हुए उसकी माँ ने भी पापा के साथ ही रहने का फैसला कर लिया। अगर देखा जाये तो वो गाँव इतना बुरा भी नहीं था, सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था अच्छी हो गयी थी, व गाँव वाले को मिल रही सरकारी विकास की सुविधा के लाभ से गाँव में बिजली, पानी जैसी सभी आधार भूत सुविधा मौजूद थी। शैवालिका के पापा को भी गाँव की सबसे बड़ी व सुन्दर कोठी रहने को मिली थी, जिसके चारों ओर हरियाली—हरियालह व खूब सारे फूलों के पेड़ व घास थी। शैवालिका की माँ एक डाक्टर थी, उन्हें भी गाँव के माहौल में कोई बुराई नजर नहीं आरती थी बल्कि वहाँ का शान्त वातावरण उन्हें शन्ति देता था। एक ओर जहाँ पापा को गाँव में श्क्षिा व सुधार का काम मिला, वही दूसरी ओर माँ भी बहुत खुश थी कि चलो अच्छा काम भी होगा, शान्ति व गाँव वालो का प्यार मिलेगा वो बोली मैं घर के एक कमरे में मुफ्त दवाखाना खेल लूंगी और गरीबों का मुफ्त इलाज कर पुण्य भी कमा लूंगी। शैवालिका का ये सुनना था कि उसके होश उड़ गये, उसे मम्मी—पापा पर बहुत गुस्सा आ रहा था।जिन गाँव वालो पर इतना प्यार लुटा रहे थे, उनको शैवालिका बिलकुल पंसद नहीं कर रही थी, वो सब उसे गंदे व गरीब नजर आ रहें थे। उसे तो वहाँ की हर चीज गंदी नजर आ रही थी। टूटी—फूटी सड़क, मिट्‌टी के घर, जगह—जगह गांबर पड़ा हुआ था, हर घर के आगे गाय, बैल, भैंस या कुछ नहीं तो बकरी ही बंधी थी। मन तो किया भाग जाये पर बेचारी क्या करती, मजबूर थी, मम्मी—पापा को जो ये गाँव व गाँववाले भा गये थे। फिर उसने तरह—तरह के तर्क दिये कि गाँव का स्कूल अच्छा नहीं, गन्दगी से बिमार हो जायेगी, पर मम्मी—पापा ने उसके सारे बहाने बिफल कर दिये। गाँव का सबसे अच्छा, पक्का घर, गाँववालों का प्यार भी श।वालिका को खुश न रख सका। उसके घर के पास ही सटा घर धन्नो का था, धन्नो शैवालिका से दो वर्ष छोटी थी, उसे ‘दीदी जी' कहती थी, बहुत सम्मान देती, पर शैवालिका उसे बिलकुल पसंद नहीं करती वो तो उसे एक गरीब, अनपढ़ लड़की समझाती थी। एक घसियारिन मानती थी। घसियारिन कुछ अजीब नाम है पर यही धन्नों को उपनाम जो शैवालिका का दिया हुआ था। हुआ यू कि जब पहली बार धन्नों से उसकी मुलाकात हुयी तब, गर्मी से तेज दोपहर थी। सूरज जैसे आग उगल रहा था। ऐसे में शैवालिका धूप और गर्मी से बेखबर अपने कतरे में बैठी थी। पंखे को ठंडी—ठंडी हवा में कॉमिक्स पढ़ने में मगन थी। तभी बाहर दरवाजे पर आहट हुयी। खट—खट ........ उसने सुनकर भी उस आवाज को अनसुना करना चाहा, क्योंकि गर्मी में बाहर निकलने का उसका मन नहीं कर रहा था। लेकिन बार—बार के आहट से उसे हारकर बाहर जाना पड़ा। बाहर ध्न्नों व उसकी माँ खड़ी थी। उसकी माँ ने कहा— ‘‘बिटिया हमारी गाय भूखी है, तुम्हारे बगीचे की घास कट लूॅ। दरअसल पहले मैं यही से घास काट कर उन्हें खिलाती थी, पर अब आप सब आ गये, समझ नहीं आता इतनी घूप और कहाँ इन भूखी गायो के लिए खाना (घास) खोजू! घास काटूँ''। शैवालिका ने ऊपर से नीचे देखा माँ घसियारिन नीले रंग की गन्दी फटी फ्रांक पहने थी। दोनों के कपड़ों पर दूसरे रंग की पैबंड भी लगे थे और बाल बिखरे और उलझे थे। गर्मी से परेशान और दोनों से पीछा छुड़ाने के लिए शैवालिका ने कहा हाँ—हाँ काट लो। और इसके बाद भुनभुनाती, बड़बड़ा चली गयी अन्दर न जाने कहाँ—कहाँ से आ जाते हैं। गर्मी में सिर में चाटने। इसके बाद तो वो दोनों रोज ही आने लगी घास काटने। लेकिन बस उसी दिन से शैवालिका से उन दोनों का नाम घसियारिन रख दिया। धन्नो के पापा का पिघले वर्ष निर्धन हो गया था। वैसे तो धन्नो की माँ दिन भर मेहनत करती दूसरो के घर चौका—बरतन करतहीी और रात में दूसरों के कपड़े सिलती पर घर का खर्च पूरा नहीं पड़ता था, इसलिए धन्नों को भी काम करना पड़ता था। माँ को उस पर तरस आता, तो उसे दवाखाने में काम दे दिया। धन्नो अपना काम बड़ी मेहनत से करती। धीरे—धीरे समय बीतने लगा, परन्तु शैवालिका का मन तो हमेशा शहर में ही लगा रहता, यहाँ उसकी कोई सहेली नहीं थी। और धन्नो तो बात करने की कोशिश करती तो चुप घसियारिन कहकर डॉट देती। एक बार शैवालिका की सहेली सरिका का पत्र शहर से आया। पत्र पढ़कर उसे शहर याद आने लगा और वो दुःखी हो गयी। उदास मन से पढ़ने बैठी तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। पढ़ाई करते समय उसे साधारण शब्द की अंग्रेजी नहीं आ रही थी। वो जब माँ से पूछने गयी तो धन्नो व उसकी माँ भी वही पर बैठी थी। धन्नो ने कहा —‘‘दीदी आपको इतना सिम्पल शब्द भी नहीं आता।'' और जोर—जोर से हँसने लगी। उसकी बेवक्त की हँसी से शैवालिका को बहुत गुस्सा आया। लेकिन माँ ने आश्चर्य से खुश होकर कहा ‘‘धन्नो तुझे कैसे पता कि साधारण शब्द की अंग्रेजी सिप्पल होती है।'' इस पर धन्नो की माँ बोली — बीबी जी हम गरीब जरूर हैं, पर बिटिया को पढ़—लिखा कर उक सफल इंसान बनाना चाहते है! सरकार ने जो सर्व शिक्षा अभियान छेड़ा , तो हम गरीबन को भी उसका साथ देना चाहिए, ताकि भारत का बच्चा—बच्चा पढ़ लिख कर आगे बड़ सकें, हमारी बिटिया भी पाठशाला जाती है। माँ ने कहा— ये तो बड़ी अच्छी बात है, पर शैवालिका को धन्नो की तारीफ अच्छी न लगी, उसने सोचा जाती होगी किसी गंदी सी पाठशाला में एक दो अक्षर पढ़ लिया तो कौन—सा तीर मार लिया, एसे अपनी बराबरी करता देख शैवालिका को बिलकुल अच्छा न लगा। धीरे—धीरे समय बीता और शैवालिका का रिजल्ट आ गया। पूरा साल तो उसने पढ़ाई की जगह दिमांग गाँव की गंदगी खोजने में लगाया, तो अच्छे नम्बर कहा से लाती, जैसे—तैसे पास हो गयी, तब तक घसियारिन की माँ शाम को मिठाई का डब्बा ले आयी। शैवालिका की माँ से बोली —बीबी जी मेरी बेटी पुरे स्कूल में प्रथम आयी है। शैवालिका ने सोचा ये घसियारिन पढ़ती होगी कही यहाँ वहाँ। परन्तु दो माह बाद जब उसके स्कूल खुले तो देखा घसियारिन उसके स्कूल में घूम रही थी, सुन्दर—सी सजी—धजी, बालों को भी करीने में बाँधा था। शैवालिका को समझते देर न लगी कि घसियारिन उसी के स्कूल की छात्रा है। स्कूल की प्रिसिपल सबके आगे धन्नो के परिश्रम, ईमानदारी और गुणों की, श्क्षिा की तारीफ कर रहें थे। उस एक पल ने शैवालिका के घंमड को चूर—चूर कर दिया। उसं एहसास हो गया कि शिक्षा अमीर—गरीब नहीं मेहनत व लगन से मिलती है। पहली बार वो घसियारिन को अपने से महान समझ रही थी, इतनी छोटी सी उम्र में माँ की मद्‌द, पढ़ई, मेहनत सब करती थी। उसने फैसला किया कि अब वो भी गाँव में बुराई नहीं खोजेगी बल्कि मेहनत से पढ़ई कर अपने मम्मी—पापा का सपना पूरा करेंगी। साथ ही उसे सरकार की सर्वशिक्षा अभियान का महत्व भी समझ आ गया। जिस योजना के तहत एक घसियारिन मिस धन्नों कुमारी बन गयी, व इस लायक हो गयी कि पढ़—लिख कर अपना व अपनी माँ का अपनी माँ का सपना पूरा कर सकें।

डॉ0 साधना श्रीवास्तव