परती जमीन
रौशन पाठक
नमन
सर्वप्रथम मैं नमन करता हूँ बाबा (दादाजी) और दाई (दादी) को फिर नमन करता हूँ पापा (पिता) और मां (माता) को| जिनके संघर्ष से मेरा अस्तित्व रहा है और आशीष से जीवन|
मैं नमन करता हूँ स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद जी को जिनकी रचनाये प्रेरणा भी रहीं और मार्गदर्शक भी|धन्यवाद
मैं धन्यवाद करता हूँ आनंद पाठक (भाई) का जिसने मुझे उत्साहित किया इस कहानी को लिखने के लिए और उससे कहीं अधिक इसलिए की उसने मुझे प्रोत्साहित किया हिंदी में लिखने के लिए|
मैं धन्यवाद करता हूँ राव्या पाठक (बेटी) का जिसकी खिलखिलाती हंसी ने मुझे व्यस्तता के बावजूद तनाव मुक्त रखा और मैं यह कहानी लिख पाया|
मैं धन्यवाद करता हूँ और राखी पाठक (बहन) का जिसने इस किताब के आवरण पृष्ठ को अंकित किया|
मैं धन्यवाद करता हूँ रूपा पाठक (पत्नी), रूबी पाठक (बहन) और मेरे समस्त परिवार का उनके प्रेम और स्नेह के लिए|
प्रेरणा स्त्रोत
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्|
- गीता
अथार्त,
जीवात्मा का विनाश करने वाले "काम, क्रोध और लोभ" यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को नरक में ले जाने वाले हैं|
संतोषं परम सुखं
इंसान के समस्त दुखों का कारण उसकी अपनी इच्छाएँ है|
लालच बुरी बला है|
लालच इंसान का चरित्र बदल देती है|
भाग
स्थानांतरण
लोभ
शपथ
निर्वासन
साझेदारी
अनावरण ***
(६)
अनावरण
आग लगने वाली रात के बाद फिर कोई बर्बरता भी नहीं हुई और कोई अप्रिय घटना भी नहीं घटी| छह महीने से गाँव अब पहले की तरह खुशहाल और शांत था, अंतर सिर्फ ये था की अब रामचरण के घर की जगह राख का ढेर था, मनहर अब भी लंगड़ा कर चलता था, और उसके घर के आगे की जमीन अब दूसरों के अधिकृत थी| रामचरण के खेत गाँव के कुछ लोगो ने बाँट लिए थे| शनिया ने बिंदी से इस शर्त पर विवाह कर लिया था की उसके माँ का पालन पोषण शनिया करेगा, गाँव का पहला विवाह बड़े धूमधाम से हुआ लोगो को कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद एक हर्षो-उल्लास देखने का मौका मिला|
दोपहर अभी थोड़ी दूर था, शीत ऋतू थी धूप घनी छायी हुई थी, मनहर अपने घर के आगे बैठे धुप सेक रहा था| उसके घर की जमीन का तीन हिस्सों में बंटवारा हो चुका था और सबसे छोटा हिस्से पर गणेशिया धान झाँट (पतथर पर धान के पौधों को पटकना) रहा था| कैलाशी अपने नए ख़रीदे हुए बैलो को शानि (भूसा और पानी का मिश्रण) दे रहा था|
दूर से घोड़ों के टापों की आवाज़े सुनाई देने लगी, गाँव से दूर उड़ती हुई धुल दिखने लगी, कैलाशी, मनहर, गणेशिया और खेतों में काम कर रहे गाँव के लोग कौतूहलवश उस तरफ देखने लगे| थोड़ी देर में सभी हक्के-बक्के रह गए, सेना की एक टुकरी गाँव की तरफ बढ़ी चली आ रही थी|
सेना की टुकरी आकर मनहर के घर के आगे वाली जमीन के सामने रुकी, घोड़ों के टापों से पूरा वातावरण धुल से भर आया, जब तक ये धूल छट नहीं गए सब सिर्फ घोड़े की हिनहिनाहट सुनाई देती रही| लोग संशय में घिरे हुए थे और धीरे -धीरे सेना की टुकरी के करीब आ रहे थे|
सबसे आगे वाले घोड़े से एक सैनिक नीचे उतरा निःसंदेह वह उस टुकरी का मुख्य सैनिक था, उसने शांत भाव से अपने आस पास देखा, लोग उसकी ओर कौतूहलवश देखने लगे| उस सैनिक ने अपने चेहरे से मुखौटा उतारा, और इधर उधर बड़े ध्यान से देखने लगा| गणेशिया ने जैसे ही उसे देखा, उसे जैसे झटका लगा और उसके मुँह से निकल पड़ा - रामबाबू!
वह सैनिक रामबाबू था, उसने राख में परिणत अपने घर को देखा और जमीन पर काम करते गणेशिया को देखा और जैसे उसके लहू में उबाल आ गया हो, उसने दौड़ कर गणेशिया को एक जोरदार धक्का मारा, गणेशिया दूर जाकर गिरा| अतिशीघ्र सैनिक अपने घोड़ो उतरे और अपने हत्यार खींच कर एक कतार में खड़े हो गए| गाँव के लोग आपस में काना-फूसी करने लगे, सभी रामबाबू के इस तरह के पुनरागमन से आश्चर्यचकित थे|
रामबाबू ने गणेशिया को बाल पकड़कर उठाया, और क्रोध भरे स्वर में पूछा - जिसे तुम मेरे पीछे सम्हाल कर रखने वाले थे, मेरा वह परिवार कहाँ है, काका ?| उसके काका कहने में एक तंज था, उसने गणेशिया को पुराने रिश्ते का आभास कराया|
गणेशिया का चेहरा भय से सफ़ेद हो गया, उसने गिरगिराहट भरे स्वर में कहा मैंने कुछ नहीं किया रामबाबू, और तुम्हारा परिवार सुरक्षित है, मैंने खुद देखा था उन्हें नदी के उस पार भाग कर जाते हुए, मेरा यकीन करो रामबाबू|
रामबाबू को ये सुनकर ऐसे राहत का एहसास हुआ जैसे बहुत प्यासे को किसी ने एक बून्द पानी दे दिया हो, लेकिन अगले ही क्षण उसकी प्यास और तीव्र हो गयी हो|
उसने फिर गणेशिया के केशो को और मजबूती से पकड़ते हुए सवाल किया - मुझे सब कुछ साफ़ साफ़ बताओ|
गणेशिया भय से सहमा हुआ बोला - मैंने कुछ नहीं किया राम बाबू, धरमु ने कहा था अगर मैं बलराम को मारने में उसकी मदद करूँ तो वो मुझे जमीन में हिस्सा देगा और नहीं तो मुझे भी खून के इल्जाम में फंसा कर पंचायत में गाँव से निकलवा देगा| मैंने तुम्हारे परिवार का कुछ अहित नहीं किया, इससे अधिक मुझे कुछ ज्ञात नहीं, गणेशिया कहते कहते रोने लगा|
रामबाबू ने अपने कमर में बंधे चाकू को निकाला, और गणेशिया को जमीन पर पटक कर उसपे वार करने ही वाला था, की गणेशिया ने उसके पाँव पकड़ लिया, वो गिरगिराने लगा - मैं तुम्हारे पिता का दोस्त हूँ, मैंने तुम लोगो की कितनी सेवा की है, तुम्हारे परिवार पर मैं कोई ज़ुल्म नहीं होने देता, अगर रात में किसी ने घर में आग ना लगायी होती, जब तक मैंने देखा वो नदी पार कर चुके थे और रात में उनके पीछे जाना असंभव था| मुझे मत मारो रामबाबू, सब धरमु का किया धरा है, मेरी कोई गलती नहीं, उसने तुम्हारी बाकी जमीन भी दखल कर ली है|
रामबाबू को गणेशिया पर दया आ गयी, उसे यह भी याद आया की उसके पिता के चले जाने पर उसने उन लोगो का देखभाल भी किया था| उसने चाकू वापस अपने कमर में खोंसा और उठ खड़ा हुआ, गणेशिया जमीन पर लोटा हुआ रोता रहा|
रामबाबू ने मनहर के घर की तरफ देखा, मनहर और उसकी घरवाली एकटक उस घटना को देखे जा रहे थे, रामबाबू मनहर के करीब पहुंचा, मनहर निडर खड़ा था, जैसे उसे अब उसे मौत से भी भय ना लगता हो| रामबाबू ने मनहर के कंधे पर हाथ रखकर कहा - मैंने तुम्हारे लड़के को नहीं मारा था, और उसे किसने मारा इस बात का पता आज लग जायेगा, तुम्हारा बेटा शम्भू मुझ से रास्ते में उलझ पड़ा था, उसे काफी चोट आयी थी लेकिन मैंने उसे वैद्य के पास पहुंचा दिया था, और मेरे ख्याल से वह ठीक ही होगा|
मनहर और उसकी स्त्री बातें सुन रहे थे, हर खबर के साथ उनके भाव बदलते जाते थे, लेकिन दोनों अभी तक चुप थे|
रामबाबू थोड़ी देर के लिए चुप हुआ और अपने घर की तरफ देखने लगा, तभी मनहर ने साहस जुटा कर कहा - मैंने या शंभु ने भी तुम्हारे पिता की हत्या नहीं की, शम्भू जरा उतावला है लेकिन उसमे इतना साहस नहीं होगा की वह तुम्हारे पिता को मार सके|
रामबाबू ने पुनः मनहर की तरफ सर घूमाकर कहा - मुझे पता है|
लेकिन क्या तुम बता सकते हो की ये सब किसने किया होगा|
मनहर की स्त्री ने कहा - वो कैलाशी से क्यों नहीं पूछते जिसके भाग्य का सितारा बहुत चमका हुआ है, धरमु ने तो उसे नए बैल भी दिलाये है|
रामबाबू ने कैलाशी के घर की तरफ देखा - कैलाशी का घर मनहर के घर से थोड़ी ही दूर था बस बीच में गाँव का रास्ता और थोड़ी सी परती जमीन|
रामबाबू को आता देख कैलाशी झट अपने झोपड़े के अंदर भाग गया|
रामबाबू ने कैलाशी को आवाज़ लगायी - कई बार आवाज़ लगाने पर भी कैलाशी बाहर नहीं आया, तब रामबाबू ने आक्रोश में कहा - मुर्ख तू ये मत सोच की तूँ बाहर नहीं आएगा तो मैं तेरे घर में नहीं घुसूंगा, और अगर मैं अंदर गया तो मैं तुझे मारने में एक क्षण भी विलम्ब नहीं करूँगा |
कैलाशी भागते हुए आकर रामबाबू के पैरो के सामने आकर गिर पड़ा| रामबाबू एक कदम पीछे हटा और बोला - दूर रह मुझसे अछूत|
कैलाशी घुटनों के बल बैठ गया उसने दोनों हाथ जोर रखे थे - और सदैव की तरह मधुर और चतुराई भरे आवाज़ में बोला - मालिक अच्छा हुआ आप आ गए और अब तो आप सेनाापती हो गए है। ..
बीच में ही रामबाबू क्रोध में चीख कर बोला - अपनी लोमड़ी वाली जुबान बंद रख और वो बता जो मैं जानना चाहता हूँ|
क्या धरमु ने मेरे पिता का खून किया है ? या किसी और ने ?
कैलाशी बड़ी मासूमियत से बोला - मुझे ये सब नहीं पता मालिक, मैं तो सदा आप लोगो का भला चाहता था| आप तो जानते हैं अगर मुझे पता होता तो मैं आपको पहले बता चुका होता|
रामबाबू ने अपने एक सैनिक को बुलाया, उसने उस सैनिक से भाला लिया और उसने कैलाशी की तरफ भाला दिखाया - कैलाशी घुटनो के बल पीछे भगा और जाकर अपने झोपड़े की दीवाल से चिपक गया|
रामबाबू ने भाला उसके छाती पर लगाया और कहा - अब बताओ कैलाशी, की ये बैल तुम्हें धरमु ने किस ख़ुशी में दिए, कैलाशी हकलाते हुए बोला - मालिक मैंने उनका बहुत सा काम किया है, उसके एवज़ में उन्होंने मुझे ये बैल दिया है|
रामबाबू ने भाले को कसकर पकड़ते हुए बोला - सच बोल कैलाशी, नहीं कोशी कसम ये भाला तेरे छाती के पार कर दूँगा|
कैलाशी अब बेहद भयभीत हो गया था - मालिक मुझे मत मारो, मेरे बच्चे अनाथ हो जायेंगे, धरमु मालिक ने जब मुझे जो कहा, मैंने वही किया - मैंने किसी का खून नहीं किया, उन्होने मुझे जो समाचार जिसे दे आने को कहा, मैं उसे वह समाचार दे आया| उन्होंने ही मुझे आप लोगो को ये बताने के लिए कहा था की मनहर और उसका लड़का खेत जोतना चाहता है ये खबर मैं आपके घर दे आऊं जबकि ऐसा मैंने कुछ सुना नहीं था|
लोग धीरे - धीरे कैलाशी के घर के सामने पहुंच चुके थे और सेना की टुकरी के पीछे से पूरी घटना देख रहे थे|
रामबाबू क्रोध से तिलमिला उठा, उसने भाला जोर से पकड़ रखा था, एक बार तो उसने ये ठान लिया था की वो भाला कैलाशी के गर्दन के आर-पार कर दे लेकिन उसने देखा की कैलाशी के तीनों छोटे बच्चे वही दरवाज़े से लगे रो रहे थे| रामबाबू ने उन्हें रोते देखा उसे दया आ गयी उसने भला हटाते हुए कैलाशी की और देखा|
कैलाशी ने फिर कहना शुरू किया - उन्होंने मुझे आपके खिलाफ झूठी गवाही देने को कहा था, उन्होंने ही मुझे गणेशिया को ये धमकी देने को कहा था की अगर वह धरमु का साथ नहीं देंगे तो मैं उनके खिलाफ गवाही देकर उन्हें पंचायत में फंसा दूंगा, उन्होंने ही बलराम को झूठी खबर देने को कहा था|
रामबाबू बीच में बोल पड़ा - तूने ऐसा क्यों किया कैलाशी इस गाँव में तुझे आश्रय मिला और तूने इस गाँव की खुशहाली छीनने वालो का साथ दिया|
उसके बच्चे और तेज रोने लगे, कैलाशी हंसने लगा और बोला - आश्रय ?
मालिक इस गाँव ने मेरा सब कुछ छीन लिया, सिर्फ एक घर बनाने देने के लिए|
उसने पीड़ा भरी आवाज़ में कहा - साल भर पहले जब मैं महीनों पैदल चलकर अपने घरवाली और अपने बच्चों को लेकर यहाँ आया था, सबके घर नए नए बने थे, और सब ख़ुशी से झूम रहे थे, गाँव में पहली बुआई की तैयारी चल रही थी| मुझे यह ज्ञात हुआ की यह गाँव शरणार्थियों ने मिलकर बनाया हैं, मैंने सभी से गुज़ारिश की मुझे गाँव के एक किनारे एक झोपडी बांधने दी जाये - मेरी घरवाली बीमार थी, मेरा १२ वर्ष का बीटा बुखार से तप रहा था|
कैलाशी की आवाज़ थोड़ी तीव्र हुई, कभी ना देखा गया उसका क्रोध उसके चेहरे पर झलक उठा, मुझे गाँव वालो ने अछूत होने के कारण एक झोपड़ी ना बांधने दी, क्या मैं इंसान नहीं, मुझे एक किनारे रहने का अधिकार नहीं| मालिक मैं और मेरा परिवार इसी बाँस के तले रात दिन भींगते रहे, उस बरसात ने पुरे गाँव को सींच दिया, लेकिन मेरा बेटा ले गया, मेरी घरवाली ठण्ड से काँप कर मर गयी, तब भी सबने मेरे मरते हुए परिवार को दया की जगह घृणा से देखा, किसी ने एक मदद ना की| मैं अपने बच्चों को गोद में लिए कई दिनों तक दो मृत शरीरो के साथ इस बाँस के झुरमुट में बैठा रहा, मैंने उस समय ये फैसला किया की इस गाँव में खुशहाली कभी बरक़रार नहीं रहने दूँगा| और ईश्वर ने मेरी मदद की इस गाँव के लोगो में इतना लोभ आ गया की सब कुछ पाकर भी सब दुखी थे| अंसतोष और एक दूसरों से ईर्ष्या में सब एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए|
रामबाबू का ह्रदय ग्लानि से भर गया, कैलाशी के साथ हुए ऐसे व्यवहार का उसे बिलकुल पता नहीं था, ना ही अधिकतर गाँव वालो को, सभी की आँखों में आंसू थे| कैलाशी की बात सुनकर उसे एहसास हुआ की एक जमीन के लिए लोगो ने एक दूसरे का परिवार उजार दिया| इतनी ज़मीन होने पर भी किसी ने कैलाशी को एक झोपड़ा नहीं बांधने दिया|
कैलाशी का साहस बढ़ गया उसने कहा - आप कहते है क्या धरमु ने आपके पिता की हत्या की, मैं कहता हूँ नहीं एक लोभी ने दूसरे लोभी की हत्या की, जाईये आप खुद पूछ लीजिये उसे, जिसे आप खुनी समझते हो | मैं अछूत हूँ अज्ञानी हूँ पर ये समझता हूँ की सब को लोभ ने मारा, और मुझे मौका मिला तो मैंने अपना प्रतिशोध लिया, मैंने कई परिवार को बर्बाद होते हुए देखा, और मुझे संतोष हुआ और मैं अब भी लोभी हूँ; मैं इस गाँव में अहित देखने का और जब मैं वो होते देखता हूँ तो मुझे प्रसन्नता होती है| इसकी सजा अगर आप मुझे देना चाहते हो तो जरूर दीजिये, लेकिन पहले इन तीन बच्चों को मेरी आँखों के सामने मार दीजिये, मैं नहीं चाहता ये अनाथ होकर जिये और फिर दाने--दाने को तरस कर मरे|
रामबाबू ने एक बार भाला उठाया कैलाशी पर प्रहार करने के लिए, लेकिन जैसे उसके अंतरात्मा ने उसे मजबर किया हाथ रोक लेने के लिए|
रामबाबू को जैसे सारे सवालों का जवाब मिल गया था, उसे साफ़ दिख रहा था की धरमु ही इस सब खेल का असली रचयिता है और उसने कैलाशी का उपयोग किया है, लेकिन अभी कई सवाल थे जिसका जवाब उसे चाहिए था, और वो सब कुछ जानने के बाद ही अपने पिता और परिवार के साथ हुए अन्याय का बदला लेना चाहता था|
रामबाबू ने भाले के नोंक से कैलाशी को खड़ा होने का इशारा किया, कैलाशी बड़े भलमनसाहत के साथ खड़ा हुआ, रामबाबू ने उसे और गणेशिया को सैनिकों के हवाले किया और धरमु के घर का रुख किया और उसके पीछे चली सेना की टुकड़ीरी और पीछे पीछे गाँव के लोग| जहाँ-जहाँ से ये काफिला गुजरता गाँव के लोग चाहे बच्चे हों या बूढ़े या औरतेँ सब पीछे जुरते जाते थे , सब के अंदर एक कौतुहल था, ये देखने का की अब क्या होगा ?
धरमु अपने पूरे परिवार के साथ घर के अंदर था, इतनी शोर और आवाज़ सुन वो और उसके पीछे उसका परिवार घर के बाहर ढूंढता हुआ आया, उसने पट खोला तो सामने रामबाबू खड़ा था| धरमु ने उसे देखा और उसके चेहरे का रंग उड़ गया, उसका सर घूमने लगा, ये वो दृश्य था जिसकी कल्पना उसने कभी ना की थी|
रामबाबू ने धरमु की बाहें पकड़ी और बाहर खींच लाया, धरमु के घर के आगे बड़ा खलिहान था, लोग चारो तरफ से खड़े होकर तमाशा देखने लगे, शनिया घर से बाहर निकला और उसने रामबाबू को हाथ जोर कर निवेदन किया- ये क्या करते हो रामबाबू मेरे बापू ने क्या किया ? तुम तो सेना में भर्ती हो गए हो, और क्यों ना हो, तुम तो पहले से ही शूरवीर थे, क्या तुम्हे एक निर्बल को पीटना शोभा देगा ?
पीछे से मनहर भीड़ को चीरता हुआ आया, सैनिकों ने उसे रामबाबू की तरफ जाने से रोका, रामबाबू ने देखा और सैनिकों को मनहर को आने देने का इशारा किया| मनहर रामबाबू के करीब जाकर बोला- रामबाबू अब तुम आ गए हो तो मेरी हिम्मत बंधी है, मैं कुछ बताना चाहता हूँ|
रामबाबू ने हां में सर हिलाया|
मनहर बोला- शनिया की चिकनी चुपड़ी बातो में मत आओ रामबाबू जब धरमु, गणेशिया और तुम्हारे दो भाई, बलराम से लड़ रहे थे, तब शनिया ने पीछे से बलराम को एक जोरदार लठ्ठ मारा था और फिर इसके सहयोग से ही बलराम की हत्या हुई|
धरमु अब भी जमीन पर पड़ा था, अब उसने अपने सर नीचे कर लिया और सिसकियाँ लेकर रोने लगा|
बिंदी दरवाज़े के पास खड़ी थी, उसके जैसे प्राण सुख गए, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी, और वो घुटनो पे बैठ गयी|
शनिया अब भय से आतंकित हो गया उसने इधर - उधर देखा और भागने के लिए दो कदम बढ़ा ही था, की एक सैनिक छलांग लगाई और कर उस पर जोरदार प्रहार किया, और शनिया मुँह के बल जमीन पर गिरा, उसे उठने की हिम्मत नहीं हुई|
धरमु की घरवाली, माथे पर हाथ धरकर दरवाज़े से लगी बैठी रही और उसको पकडे उसकी बेटियां भी| उसके आँखों के सामने उसका सब कुछ उजड़ रहा था और वो बेवश थी|
रामबाबू कुछ पल के लिए मौन होकर सोचने लगा और फिर उसने एक सैनिकों को बुलाकर कुछ आदेश दिया, कुछ ही पल में सैनिकों ने धरमु के घर से एक खाट लाकर बाहर लगाया, रामबाबू उस पर बैठ गया, सैनिकों ने कैलाशी, गणेशिया, धरमु और शनिया को लाकर रामबाबू के सामने १० कदम की दुरी पर बिठा दिया|
तीन सैनिक त्रिभुजाकार बनाकर गुनहगारों के पास खड़े हो गए, और बाकी सैनिकों ने गाँव जनता के आस पास स्थान लिया, एक सैनिक रामबाबू के पीछे जाकर खड़ा हो गया|
रामबाबू ने तेज आवाज़ में ऐलान किया - यह अति आवश्यक है की आदमी समाज में एक नियम कानून के दायरे में रहे, नहीं तो आदमी और जानवर में कोई फर्क नहीं रहता| यह गाँव अब अज़ीमाबाद का क्षेत्र है, और यहाँ राजा का न्याय चलेगा, मैं राजा के आदेश पर यहाँ नियम और कानून की स्थापना करने आया हूँ |
और साथ ही ये बताने की अब से अगले तीन वर्ष तक आपकी फसल का आधा हिस्सा राजा का होगा, और उसके बाद राजा ये फैसला लेंगे की आपको कितनी रियायत दी जा सकती है|
लोगो ने आपस में बात चीत शुरू कर दी| आधा हिस्सा बहुत ज्यादा कर था|
रामबाबू ने बोलना जारी रखा, और लोग सुनने लगे -
यहाँ आज इस दरबार में मैं राजा के आदेश से उन सभी गुनहगारों को सजा देने आया हूँ, जिसने मेरे पिता की हत्या की, जिसने मनहर के बेटे की हत्या की. जिसने गुरूजी की हत्या की जिसने बलराम की हत्या की और जिसने मुझपर और शम्भू पर झूठे आरोप लगाए और हमें गाँव से निर्वासित किया|
सभा सन्न थी, सब उत्सुकता से सुन रहे थे, सभी के मन में ये कौतुहल था की आखिर ये सब किसने किया और क्यों?
गाँव के लोग इस उत्सुकता में इस बात को भूल गए की अब से उन्हें फसल पर कर देना होगा|
मैं चाहता हूँ की तुम लोग अब मुझे पूरी और सच्ची बात बताओ, रामबाबू ने चारो को देखते हुए कहा|
चारों एक दूसरे का मुँह देखने लगे,|
रामबाबू ने एक धरमु के पास खड़े सैनिक को इशारा किया, सैनिक ने तलवार खींची ही थी की चारो के चेहरे के रंग बदलने लगे, गणेशिया और शनिया ने धरमु की तरफ देखा|
धरमु ने सर झुकाये हुए बोलना शुरू किया -
एक दिन बलेश्वर ने रामचरण को कहा की वह मनहर के पास वाली जमीन को जोतना चाहता है| इसपर रामचरण बलेश्वर पे भड़क उठा, उसने कहा की बलेश्वर के पास पहले ही बहुत जमीन है, और उसका एक ही लड़का है, और मनहर की जमीन अगर मनहर नहीं जोतता तो मनहर से बात करनी चाहिए ऐसे - कैसे तुम जोत लोगे| बलेश्वर उस रात मेरे पास आया और उसने मुझे ये बाते बताई, उसके अगले ही दिन मनहर और तुमलोगो का झगड़ा हो गया| अगले दिन जब तुम्हारे पिता की हत्या हो चुकी थी, बलेश्वर मुझे मिलने आया, उसने कहा की चाहे जिसने भी रामचरण को मारा हो पर उसके रास्ते का काँटा तो निकल गया, उसने मुझसे मदद मांगी की मैं उस जमीन को कब्जा करने में उसकी मदद करूँ और उसके एवज़ में वह मुझे आधी जमीन देगा| फलस्वरूप हम इस युक्ति में लग गए की कैसे उस जमीन को हथियाया जाये|
मैंने यह युक्ति सुझाई की हम कैलाशी के हाथो ये खबर भीजवाएं की मनहर उस जमीन को जोतना चाहता है, हमें यह उम्मीद थी की यह सुनते ही तुम भाई मिलकर मनहर को मार दोगे, और हम तुम्हे रंगे हाथों पकड़ लेंगे और फिर उस जमीन पर कोई अधिकार जताने वाला नहीं रहेगा|
लेकिन आधी रात तक मनहर के खेतों के पास इंतज़ार करने के बाद जब कोई नहीं आया तो हम सब अपने घरो को चले गए, लेकिन बलेश्वर वहीँ बैठा रहा| सुबह जब मनहर के छोटे बेटे की हत्या हो गयी थी, तब बलेश्वर ने बताया की तुमने (धरमु ने रामबाबू की तरफ इशारा किया) मनहर के बेटे का खून किया था, उसने ही मुझे कैलाशी से तुम्हारे खिलाफ गवाही दिलवाने के लिए कहा था| उसी ने मुझे गाँववालों के साथ पंचायत का प्रस्ताव लेकर आने को कहा था|
रामबाबू को याद आया कि उस रात उसने किसी को मनहर के खेतों पर बने झोपड़े से भागते देखा था, उसे ये समझते देर ना लगी की मनहर के बेटे की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि बलेश्वर लाल ने ही की है|
रामबाबू ने धरमु की तरफ घूर कर देखा ।
धरमु ने पुनः बोलना शुरू किया -
योजना के अनुसार हम सिर्फ तुम्हे गाँव से निकालने वाले थे, लेकिन मौके पर बलेश्वर के फैसले पर तुम्हे और मनहर के लड़के को गाँव से निकालने पर हम आस्वस्त हो गए थे की अब ज़मीन हमारी होगी ।
लेकिन एक रोज़ जब बलेश्वर ने मुझे बताया कि बलराम की नज़र उस ज़मीन पर पड़ गयी है तब इस बात की पुष्टि के लिए मैं उसके घर अपने बेटे और उसकी बेटी के शादी का प्रस्ताव लेकर गया । मुझे यह पता था कि मेरा बेटा और बिंदी एक दूसरे से विवाह करना चाहते है| मैंने सोचा था कि यदि बलराम वह ज़मीन मुझे दहेज में दे दे तो मुझे उसमें बलेश्वर को कोई हिस्सा नही देना होगा । वह तैयार तो हुआ लेकिन हम किसी निष्कर्श पर नही पहुँच पाए ।
फिर हमारे पास उसका मुकाबला करने के सिवा कोई और रास्ता नही था ।
बलेश्वर ने सामने आने से इनकार कर दिया लेकिन उसने हमें युक्ति बताई और उसी युक्ति के सहारे हमने बलराम से लड़ने के लिए गणेशिया को ज़मीन के एक टुकड़े का लालच दिया और तुम्हारे भाइयों को उकसाने के लिए कहा
गणेशिया क्रोधित होकर बोल पड़ा - मुझे अपने जैसा कुकर्मी मत बनाओ धरमु, तुम लोगो ने मुझे धमकी दी थी, और मैं ज़मीन के लालच में नहीं आया था ।
धरमु ने सर हिलाकर स्वीकार किया और पुनः बोलना शुरू किया - यह सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था लेकिन हम चार लोग मिलकर भी बलराम का मुकाबला नही कर पा रहे थे और तब योजनानुसार शनिया ने पीछे से उसपर प्रहार किया और हमे मौका मिला फिर हैम सबने पीटकर उसकी हत्या कर दी।
धरमु ने अपने शब्दों को विराम दिया और हाथ ज़मीन पर रखकर रोने लगा । शायद इतना कहते-कहते उसे अपने गुनाह नज़र आने लगे थे।
रामबाबू ने थोड़ी देर तक सोचा, सभा स्थिर और शांत थी, बीच बीच में थोड़ी बहुत फुसफुसाहट की आवाज़ आती और फिर शांति छा जाती।
रामबाबू ने कहा- मुझे अब तक यह समझ नही आया कि गुरुजी की हत्या क्यों हुई और मेरे पिता की हत्या किसने की ?
प्रश्न पूछ कर रामबाबू चारों की तरफ देखने लगा ।
सब लोग रामबाबू का मुंह देखने लगे, कोई कुछ नही बोल रहा था ।
रामबाबू ने सैनिक को इशारा किया, धरमु के पास खड़े सैनिक ने अपनी तलवार निकाली ही थी कि धरमु ने पुनः हकलाते हुए बोलना शुरू किया ।
बलेश्वर लाल ने रामबाबू, बलेश्वर लाल ने।
कैलाशी ने मुझे बताया कि जब वह तुम्हारे घर ये झूठी खबर देने गया था कि मनहर खेत को जोतना चाहता है तो उसने गुरुजी को रास्ते मे देखा, और उसे ये शक हुआ कि गुरुजी को सब मालूम हो गया है । यह बात मैने बलेश्वर को बताया था और जहाँ तक मैं जनता हूँ गुरूजी की हत्या उसी ने की ।
उसी ने तुम्हारे पिता को भी मारा क्योंकि, वो इस बात से बहुत बौखला गया था की तुम्हारे पिता ने मनहर की ज़मीन पर कब्जा करने की कसम खा है। और उसने मुझे कहा था कि अब मुश्किल फैसलों का वक़्त आ गया है ।
रामबाबू का पूरा शरीर सिहर उठा, उसने इधर -उधर देखा, और जोर से चीखा, कहाँ है बलेश्वर लाल। उसने तुरंत दो सैनिकों को बुलाया और कहा कि वो एक गाँव वाले के साथ जाए और बलेश्वर को लेकर आये ।
तभी किसीने भीड़ में से आकर कहा । रामबाबू बलेश्वर अभी पूरव की तरफ भाग रहा था । रामबाबू का इशारा पाकर दो सैनिक घोड़ों पर बैठकर रवाना हो गए ।
इतने में बिंदी ने अपनी पूरी हिम्मत बंधी और किसी शेरनी की तरह छलांग लगाई और वो झपट परी शनिया के ऊपर। जब तक सैनिकों उसे पकड़ते उसने अपने नाखून से शनिया के मुंह को नोच दिया, और दांत से उसे कान पकड़ लिया । सैनिकों ने उसे जोर लगाकर खींचा जिससे वह शनिया के कान के साथ अलग हो गयी। शनिया दर्द से छटपटाने लगा, वह ज़मीन पर तड़पने लगा और धरमु रोते हुए उसे सम्हालने लगा और बिंदी को कोसने लगा ।
कैलाशी के आँखों में आँसू होते हुए भी उसके चेहरे पर संतोष की एक चमक थी।
कुछ ही पल में घोड़ों की टापें सुनाई दी, सैनिक बलेश्वर को उठा कर ले आये थे।
बलेश्वर लाल मटके सा तोंद उगाए सफेद धोती पहने और छोटे कद काठी के लेकिन मजबूत शरीर का था। वह भय से बुरी तरह हांफ रहा था और उसका शरीर कांप रहा था।
लेकिन वह अपनी अवस्था को छुपाने कि कोशिश कर रहा था, जैसे वह कुछ जानता ना हो।
रामबाबू ने उसे देखा और जैसे उसके पूरे शरीर में एक अनोखे ऊर्जा का संचार हो गया हो, वह दो कदम पूरे जोर से चलकर आया, एक जोरदार तमाचा बलेश्वर को मारा, वह सीधा धरमु के पास जाकर गिरा ।
उसके जैसे होश ठीकाने आ गए हो, उसके हाव भाव बदल गए और वह हाथ जोड़कर बैठ गया ।
उसने गिड़गिड़ाते हुए एक स्वर में बोलना शुरू कर दिया - मुझे माफ़ कर दो ।
रामबाबू ने कड़े स्वर में पूछा -क्या तुमने मेरे पिता मनहर के बेटे और गुरुजी की हत्या की और बलराम के हत्या की साजिश की ।
बलेश्वर लाल सिर झुकाए रोता रहा ।
रामबाबू ने दमदार आवाज़ में कहा - राजा के दिए हुए आदेश के तहत मैं अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए ये फैसला सुनाता हूँ कि धरमु और शनिया हत्या और उसकी साज़िश के गुनहगार है और दोनों के एक एक हाथ काट लिए जाए जिससे लोग ये पहचान सके कि वो इस गाँव के गुनहगार है । बिंदी चीख पड़ी मार दे उन्हें रामबाबू नहीं अगर जिंदा बचे तो मैं मार दूंगी। रामबाबू ने उसके बातों को नजर अंदाज करते हुए बोलना जारी रखा । कैलाशी के साथ हुए अन्याय के लिए मुझे खेद है लेकिन उसके गुनाहों को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता वह आगे भी गाँव के लिए एक अभिशाप है और आगे भी वह खतरा हो सकता है इसलिए वह अपने बच्चों के साथ इस गाँव से निकाले जाते है । सैनिक उसे अपने साथ अजीमाबाद ले जायेंगे। गणेशिया को अगले तीन वर्ष तक अपने फसल का तीन चौथाई हिस्सा कर के रूप में देना होगा ।
क्योंकि बलेश्वर लाल के ज़मीन के प्रति लोभ ने इस सब फसादों को जन्म दिया, इसलिए बलेश्वर लाल को ज़मीन के हवाले किया जाएगा।
एक सैनिक ने तुरंत तलवार निकाली और उसने बेझिझक धरमु का हाथ काट दिया, धरमु को सोचने का भी समय नही मिला। यह देखकर शनिया भागने को हुआ कि एक सैनिक ने उसे पकड़ा और फिर उसका भी एक हाथ काट लिया गया। धरमु और उसके लड़के को कुछ लोग उसके घर के अंदर ले गए भीड़ में से बलेश्वर लाल के बुजुर्ग पिता आगे आये और वो धरमु और शनिया के उपचार में लग गए।
रामबाबू ने बलेश्वर लाल को एक रस्सी से बंधा, उसे घसीटना शुरू कियाl पीछे पीछे सैनिक कैलाशी को पकडे हुए चलने लगे और उसके पीछे गाँव वाले चल रहे थे।
बलेश्वर लाल रोते रोते सिर्फ माफी मांग रहा था ।
गाँव वाले कौतूहलवश पीछे पीछे चल रहे थे और नारे लग रहे थे । मार दो मार दो ।
मनहर के घर के आगे की ज़मीन पर पहुंच कर रामबाबू ने बलेश्वर को ज़मीन पर गड़े बड़े से खूंटे से बांध दिया । रामबाबू का इशारा पाकर एक सैनिक मनहर के घर से पुआल का एक बोझ ले आया रामबाबू ने उसे बलेश्वर के नीचे बिछा दिया, रामबाबू ने फिर किसी गाँव वाले को बुलाया और उसे निर्देश देकर भेजा । वह दौड़कर गया और मनहर के घर से मिट्टी का तेल और आग ले आया ।
रामबाबू ने मिट्टी का तेल छिड़का, बलेश्वर के रोने की आवाज़ तीव्र होती जा रही थी। रामबाबू का कलेजा और जलता जाता, उसे अपने पिता की मृत्यु और उसके जले हुए घर के सिवा और कुछ याद नही आता।
रामबाबू ने पूरे क्रोध के साथ कहा तुम्हें ये ज़मीन चाहिए थी ना बलेश्वर तो यह लो अब तुम्हें इस ज़मीन से कोई अलग नही कर पायेगा । रामबाबू ने आग के मशाल को मिट्टी तेल से सने पुआल पर फेंक दिया । क्षण में पुआल से आग की लपटें निकल पड़ी और उसने चीखते हुए बलेश्वर लाल को गले से लगा लिया। बलेश्वर लाल जिंदा जल रहा था, गाँव के लोग विस्मित भाव से देख रहे थे और रामबाबू गाँव के रास्ते चल पड़ा।
कुछ देर में बलेश्वर लाल आग में झुलस चुका था और उसने अपने प्राण त्याग दिए थे, उसका मृत शरीर अब भी जल रहा था|
रामबाबू ने सैनिकों को बुलाया और उन्हें कैलाशी और उनके बच्चों को लेकर निकल जाने का आदेश दिया और उसे महामंत्री से कहकर उचित दंड दिलाने का भी हुक्म दिया|
रामबाबू ने उनमें से एक सैनिक को अपना तकमा निकाल कर देते हुए बोला - महामंत्री से कहना मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया और मैने ढोर गाँव का पता देकर अपना वादा पूरा किया ।
सैनिक ने कहा लेकिन आप कहाँ जाएंगे?
रामबाबू ने सर उठाकर आसमान को निहारते हुए कहा - अपने परिवार को ढूंढने|
समाप्त