अक्षर उग रहे है, स्वर बंजर हुए
जी हाँ कान में हैड फोन घुसेड़े, आँख मोबाइल पर टिकाये, यदि कोई बैठा-बैठा कुछ लिखते हुए तरह-तरह की भाव-भंगिमाये बनाये जा रहा है तो ये हर्गिज मत समझ लेना कि वो पागल हो गया है, हो सकता है कि वह किसी बहुत जरूरी मीटिंग में हो, या ऎसा भी हो सकता है कि घर के ही किसी सदस्य से बात कर रहा हो। सबसे दिलचस्प बात तो तब होती है जब घर के सभी सदस्य एक ही जगह पर बैठकर अपने-अपने मोबाइल पर इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें खाने-पीने तक की फ़िक्र नहीं रहती।
जितनी भी जरूरी मिटिंग्स हों या इवेंट्स हों सबकी प्लानिंग मोबाइल पर या कम्प्यूटर पर ही हो जाती है। इस वार्तालाप में आवाज नही होती, सिर्फ़ स्क्रीन पर कुछ अक्षर उभरते रहते हैं, अक्षरों के साथ ही हैप्पी, सैडी, नॉटी, अम्युज़िंग सभी तरह के स्माइली भी हैं, जो सोना जागना, खाना, बैठना, खेलना, कूदना सारे के सारे एक्सप्रेशन दे डा है, जिससे अक्षरों को उनकी फ़िलिंग्स के साथ डेकोरेट भी कर देते हैं। ज्यादा ही किसी पर प्यार उमढ़ने लगता है तो एक सेल्फ़ी भेज कर उस बेचैनी को शान्त करने का कार्य किया जाता है। कहने की बात सिर्फ़ इतनी ही है कि हमारे देश के लोग शान्ति प्रिय हो गये हैं, आज पत्नी भी महंगी साड़ी या गहनों की डिमांड नहीं करती, सीधे ही कहेगी जानू एक आई फोन ला देना बस, ज्यादा खर्चा करने की जरुरत नहीं है, बच्चों को भी जन्म दिन पर फोन विद रिचार्ज़ कूपन दे दो फ़िर देखो... सच्चा सुख इसी में प्राप्त हो जायेगा जब आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा और पति कहलाओगे। आप भी तो नहीं चाहते न कि घर में बेवजह की खटर-पटर हो तो सोचना तो पड़ेगा ही न!
कल की ही बात है जब मेरे ज़ोर से आवाज लगाने पर भी अक्षु को सुनाई नहीं दिया तो मुझे मजबूर होकर मोबाइल पर मैसेज़ टाइप करना पड़ा कि, “क्या कर रहा है? उसका भी झट जवाब आया पढ रहा हूँ माँ...। मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही कि मेरे बार-बार पुकारने पर सुनाई तक नही दिया और व्हाटस एप पर पढते हुए भी पूरा इमानदारी से निभाया जा रहा है। एक बात तो है इस सोशल मीडिया ने घर के लोग बेशक पराये किये हो लेकिन दूर-दूर के लोग जिनके दर्शन भी दुर्लभ थे, क्लॉज फ़्रेंड बना दिये हैं, इससे साबित होता है कि हम सबमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना अधिक घर कर गई है।
खैर जहाँ तक रिश्तों की बात है सब खुश हैं किसी को कोई रोके टोके नहीं, न स्टॆटस डालते वक्त न कमेंट और लाइक मारते हुए। आप सोच रहे हैं कि जब सब कुछ ठीक है तो मै क्यों परेशान हूँ, तो भैया मुझे फ़िक्र है मेरी खूबसूरत जीभ की, जीभ जिसकी मदद से मै बचपन से वकीलों की तरह बहस करती आई हूँ, वही जीभ जो इतना बोलती थी कि माँ डांट देती थी कितना बोलती है अब तो चुप हो जा। यहाँ तक की पतिदेव भी परेशान हो जाते थे मेरी बकर-बकर से, सोचिये तो जिस प्रकार पूँछ उपयोग में न आने के कारण हमारे शरीर से लुप्त हो गई थी, कल को जीभ ही न रही मुह में तो क्या होगा?