Chamatkari Baba ka Chamatkar in Hindi Comedy stories by Arvind Kumar books and stories PDF | चमत्कारी बाबा का चमत्कार

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चमत्कारी बाबा का चमत्कार

चमत्कारी बाबा का चमत्कार

बाबा पहले लेटे थे। फिर उठ कर बैठ गए। और फिर अचानक ही खड़े हो कर बोलने लगे। बोलने क्या, अपने मुंह की गंगोत्री से उद्गारों की पवित्र गंगा बहाने लगे----आत्मा अजर है। अमर है। आत्मा को न तो अग्नि नष्ट कर सकती है, न वायु, न जल और न ही मिट्टी। आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। वह मात्र अपना चोला बदलती है। और अपने चौरासी लाख चोलों में बार-बार विचरण का चक्र पूरा करते हुए अनंत काल तक ब्रह्माण्ड में विद्यमान रहती है। गीता में कृष्ण ने भी कहा है...

बाबा के मुखारबिंदु से शब्दों की अविरल धारा निकल कर वहां उपस्थित भक्तों को सम्मोहन की गहराइयों में डुबाती-उतराती इहलोक से परलोक के बीच झुलाने लगी। सब गदगद थे। सब इस बात से प्रसन्न थे कि बाबा के दर्शन से उनका जीवन कृतार्थ तो हुआ ही, अब उनके पवित्र वचनों के कानों में प्रवेश करते ही उनकी ज़िंदगी भी बदल जायेगी। गरीबी। बीमारी। घर की अशांति। नौकरी की टेंशन। शराब की लत। डाईन का प्रकोप। कोर्ट-कचहरी का चक्कर। सिर पर लदा हुआ कर्ज। लड़की की शादी। लडके की नौकरी। और बीबी-बहू-बेटी का बांझपन। सब आप से आप ठीक हो जायेगा। उनका यह जीवन तो सुधरेगा ही, अगला जीवन भी सुख-शांति और धन-धान्य से भर जायेगा। और अगर कहीं बाबा का उछाला हुआ प्रसाद हाँथ लग गया, तब तो समझो सोने पर सुहागा। बदकिस्मती दूर हो जायेगी। किस्मत का पिटारा खुल जायेगा। लॉटरी लग जायेगी।

वाकई, वे बहुत पहुंचे हुए बाबा थे। सर्दी हो या गर्मी, दिन हो या रात, धूप हो या बरसात उस बूढ़े बरगद के पेड़ की जड़ में बने खोह में समाधिस्त रहते थे। और सिर्फ जनता की मांग पर ही बाहर निकलते थे। अक्सर तो मौन रहते थे। पर कभी-कभार प्रवचन भी देते थे। धाराप्रवाह प्रवचन। और प्रसाद उछाल-उछाल कर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते थे। लम्बी लम्बी जटायें, लम्बी घनी खिचड़ी दाढ़ी और एक गेरुआ गमछे के अलावा भभूत पुता हुआ पूरा नंगा शरीर। लाल बड़ी आँखें। और ललाट पर चन्दन और रोली का बड़ा सा लेप।

बाबा अन्न जल नहीं, सिर्फ दूध-दही और फलों का सेवन करते थे। बाबा न तो पैसे को हाँथ लगाते थे और न ही किसी महिला को। पर अपने प्रतापी और दीक्षा प्राप्त चेलों के माध्यम से अमावस्या की काली अंधेरी रात को एक ख़ास अनुष्ठान कराकर वे हर सूनी गोद को हरा भरा कर देते थे। भक्तों द्वारा लाये गए चढ़ावे को भी बाबा नहीं, उनके शिष्यगण ही स्वीकार करते थे। मुंह-मुंही चर्चा थी कि बाबा ने हिमालय की गुफाओं में लम्बी और कठिन तपस्या करके सिद्धि प्राप्त की थी। और अब अपने चमत्कारों से पीड़ित भक्तों के कष्टों का निवारण कर रहे थे।

अगल बगल के गाँव, कस्बे और शहर ही नहीं, दूर-दराज़ के इलाकों में भी बाबा के चमत्कारों ने धूम मचा रखी थी। चूंकि बाबा के अधिकांश भक्त सिर्फ भक्त ही नहीं, उनके प्रचारक भी थे, इसलिए उनके भक्तों की संख्या भी दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही थी। और यह तो विधि का विधान ही है कि जब चर्चाओं और चेलों की संख्या काफी बढ़ जाती है, तो बाज़ार भी सजने लगता है। और जब बाज़ार सजता है, तो मीडिया वाले भी बहती गंगा में हाँथ धोने के लिए जी जान से जुट जाते हैं। सो यहाँ भी वही हुआ। बाबा टीवी, अखबार ही नहीं इंटरनेट पर भी बुरी से तरह छा गए। और सिर्फ छाये ही नहीं, घर-घर में पहुँच भी गए। क्या मर्द, क्या औरत, क्या बूढ़े और क्या जवान, सभी चमत्कारी बाबा के दर्शन के लिए लालायित थे। यही नहीं, कहा तो यह भी जाता है कि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान जैसे देशों के राष्ट्रपति भी बाबा के मुरीद हो गए थे।

चहुँ ओर ख्याति फैलने के कारण अब बाबा को भी लगने लगा कि जब चर्चाओं की लहरें स्वयं ही उछल-उछल कर चाँद को छूना चाहती हैं, तो क्यों न खुद भी इन लहरों पर सवार होकर आसमान को चूम लिया जाये। भक्तों को कुछ ऐसा बड़ा चमत्कार कर के दिखलाया जाये, जिसकी गूँज सत्ता के गलियारों तक पहुँच जाये। और एक छोटे से गाँव के बड़े से बरगद की जड़ में बने छोटे से खोह में एक गुमनाम सी ज़िंदगी बिताने वाले वे भी सरकार की कृपा से एक सरकारी बाबा बन कर बची-खुची ज़िंदगी को आन-बान और शान से जी लें।

फिर क्या था? बाबा को जोश आ गया. और उन्होंने ऐलान कर दिया कि वे देश में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, बलात्कार, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से बहुत दुखी हैं। और इन सब को ख़त्म करने के लिए वे सरकार से नहीं, सीधे परम पिता परमेश्वर से वार्ता करेंगे। इसके लिए वे ज़मीन के भीतर दस दिन की समाधी लेंगे। और अपनी चमत्कारी आत्मा के प्रताप से परमात्मा को मजबूर कर देंगे कि या तो फ़ौरन इस महान देश के महान नागरिकों की स्थिति को फ़ौरन सुधारो, नहीं तो अपनी गद्दी छोड़ कर बनवास पर चले जाओ। खाली करो सिंघासन कि जनता आती है के अंदाज़ में वे ईश्वर को समझायेंगे कि उनके ऐसा न करने पर देश की जनता जल्दी ही सडकों पर उतर आयेगी। क़ानून अपने हाँथ में ले लेगी। और हर तरफ अराजकता फ़ैल जायेगी। नेता, मंत्री, संतरी, अधिकारी और अफसर तो पिटेंगे ही, देश के बड़े-बड़े मुनाफाखोर दलाल पूंजीपति भी लोगों की क्रोधाग्नि से बचने के लिए इधर-उधर भाग कर नदी, नालों, तालाबों और समन्दरों में कूदते-फलांगते नज़र आयेंगे।

इसलिए जनहित में एक निश्चित दिन और निश्चित मुहूर्त पर भक्तों की आकाश फाड़ू जै-जैकार के बीच बाबा अपनी खोह से बाहर निकले। और समाधी स्थल की और खरामा खरामा चलने लगे। बुरी आत्माओं से बचने के लिए बाबा ने सिर से पैर तक को ढँक कर रखने वाला एक बड़ा सा काला चोंगा पहन रखा था। उनके गले में पड़ी फूलों की अनगिनत मालाएं उनके तेज़ को और बढ़ा रही थीं। बाबा ने ऊपर आसमान की तरफ हाँथ उठा कर ईश्वर से कुछ कहा। और समाधी स्थल में प्रवेश कर गए। जिसे फ़ौरन ही मिट्टी से ढँक दिया गया।

आयोजक चेलों ने लोगों से गुज़ारिश की---भक्त गण बस कुछ देर तक ही समाधी की परिक्रमा करें। और बाबा को समाधी में कोई खलल न पड़े, इस लिए जल्द-से जल्द अपने-अपने घरों को प्रस्थान कर जायें। फिर दस दिन बाद बाबा की समाधी टूटने से दो-तीन घंटे पहले वापस आकर फिर से इसी प्रकार समाधी की परिक्रमा करें। और जै-जैकार के नारों के बीच खुद अपने हांथों से बाबा को समाधी से बाहर निकालें। बाबा की यही इच्छा है। पर बेचारे भक्त और वो भी हिन्दुस्तानी, अपने बाबा को इतने दिनों तक अकेला कैसे छोड़ देते?

आयोजकों के लाख मना करने के बावजूद लोग उस समय चले तो गए, पर अगले दिन सुबह से ही वहां फिर से जुटने लगे। चिंतित आयोजकों ने बहुत मना किया। पाप-अभिशाप-अनिष्ट की दुहाई दी। पर कोई नहीं माना। पल-पल बढ़ती हुयी भीड़ समाधी की लगातार परिक्रमा करने लगी। सबका डेरा-लंगर वहीं लग गया। भजन कीर्तन और रतजगा होने लगा। देखते ही देखते मजमा मेले में तब्दील हो गया। अखबार और टीवी वाले भी अपने कैमरे, स्टैंड और गाड़ियाँ लेकर वहीं डट गए। पूरे देश में समाधी का लाइव टेलीकास्ट होने लगा।

और आखिर में वो घड़ी भी आ गयी जब बाबा को समाधी से निकलना था। लेकिन जगमग करते भक्ति पूर्ण माहौल में जब नियत समय पर समाधी की मिट्टी हटा कर बाबा को निकाला गया, तो लोगों की आँखें फटी की फटी रह गयीं। उस फटे-गले चोंगे में चमत्कारी बाबा नहीं, बगल के कस्बे के स्टेशन पर भीख मांगने वाले उस भिखारी की बिगड़ी हुयी लाश थी, जो समाधी वाले दिन से ही किसी को कहीं नज़र नहीं आ रहा था, जिस तरह से अब लाश निकलने के बाद चमत्कारी बाबा, उनके सिद्धि प्राप्त चेले और आयोजक अब किसी को कहीं नज़र नहीं आ रहे थे।