Bhatkal in Hindi Short Stories by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | भटकल

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भटकल

भटकल

भक्तों की लम्बी लाइन, शाम घिरने के बाद भी जमी थी l किसी को बूढ़े माँ-बाप की बीमारी का लाभ चाहिए था, कोई अपनी बेरोजगारी, परीक्षा और दुखों से घिरा था l आज मंगलवार भी था तो विशेष भीड़ थी lहजारों का जनसमूह श्रद्वा, धैर्य, समर्पण के साथ था l" भाई साहब जरा मेरा नंबर देखिएगा, मैं अपनी माँ को पीछे देखकर आता हूँ .....कहने वाले युवक के मासूम चहेरे पर परेशानी के भाव थे l" "जल्दी आना" "बस गया और आया, मेरे सामान का ध्यान रखना" कहकर आँखों में सावधानचमक लिए वह चला गया l

शहर पुणे रात के नो बजे का वक्त, उस फूड जांइट में युवाओं की भीड़ l वह युवा, जो दिन भर, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के टार्गेट को पूरा करने में अपने को झोंक देते हैं l ढंग से खाना खाने का अवसर भी यह नव उदारवादी समय उन्हें नहीं देता हैं l वह विद्यार्थी भी थे जो सुदूर के राज्यों से अपने सपने पुरे करने के लिए यहाँ से एम.बी.ए., आई.टी. आदि कोर्स कर रहे हैं l घर से दूर, कुछ बनने का जज्बा ले आया है, एक सपना हैं उनकी आँखों में lवह आँखे जो रात दिन पढ़ा करती हैं, मेहनत करती हैं lक्योंकि घर वाले कैसी मुश्किल से उनकी पढ़ाई का खर्चा उठा रहे हैं, यह वह जानते हैं l तो बस पढ़ना है मेहनत करनी है लक्ष्य पूरा करना है तो न्यूनतम खाना lज्यादा होगा तो सुस्ती आएगी, नींद आएगी lयह समय सोने का नहीं, कड़ी मेहनत से सफल होने का है l यहाँ से नपा तुला खाना जैसे बड़ा पाव, एक हैग सैंडविच या वेज बर्गर की पर्ची डिलीवरी काउंटर पर देता l भटकल ...... बिल्कुल खुदा का बंदा लगता, उन्ही १८ से २२ वर्ष के युवाओ में से एक l पर उसे नहीं जानते थे यह निर्दोष बच्चे जो अपने सपनों को सच में बदलने की ताकत रखते थे l जिन्हें घर वालों ने प्यार दुलार से दुआऐं देकर अपने जिगर के टुकड़ो को यहाँ सैकड़ो मील दूर पढ़ने भेजा था l जिन्हें कल बहुत काम करना था l और .......कल......अब उनके लिए नहीं था l

दॄश्य (२)

सुदूर धने जंगलों के बीच, एक खुला मैदान जहाँ आठ से दस वर्ष तक के बच्चे पिस्तौल चलाना सीख रहे थे l कुछ दूरी पर बैरकनुमा गैलरी में एक धर्म गुरु 'बता रहे थे किशोरों को ज़ेहाद करने से, अपने प्राणों को धर्म के लिए कुरबान करने से जन्नत मिलती है lवहीं कुछ ही दूरी पर सपना रहित, भाव रहित आँखों से कुछ युवक बमों के सर्किट, टाइमर को फिट करते, देख, समझ रहे थे lभटकल कह रहा था, "यह बम पीठ में, या किसी भी फाइल के आकार की चीज में आ जाता है lलाइट वेट है पर इसकी तीव्रता बेहद खतरनाक है l अतः इसे बेहद भीड़ भरी जगहों पर सावधानी से रखना है l कहकर भटकल रुका, सामने खड़े भावहीन चेहरे वाले को ध्यान से बात सुनते देखा lदो तरह की डिवाइस है lएक में मोबाईल रिमोट से आप विस्फोट करें तो दूसरे में इसकी डिवाइस को बैग के खोलने से जोड़ दे जिससे जो भी खोलेगा, तभी धमाका हो जाएगा l तभी एक किशोर आया "कमांडर ने बुलाया है" l

कमांडर देर तक समझाता रहा, नफा नुकसान और राजनीतिक दबाव भी l " चुनाव सिर पर है, इस सरकार ने लगातार हमें सर्पोट किया है l हर तरह की मदद दी है l " भटकल मुस्काया :

" मैं जानता हूँ भाई जान l कई बार तो मैं इनके सरकारी बंगलों में भी रुका था l और जाफरानी, पुलाव, मुर्ग मुस्स्लम का लुफ्त लिया हैं l दोनों ठठाकर हँसे l "तो अब जनता को दिखाने के लिए की सरकार आतंकवाद पर सख्त है, कुछ बड़े नामों की गिरफ्तारी दिखाना है l" " जिस बाद में चुनाव के बाद किसी वी.आई.पी को किडनैप करके हम छुड़वा लेंगे " - कहकर वह खूब हँसा l

" अभी वह गए है न बड़े मियाँ l" हा, हा, हा भटकल की हँसी गूँज उठी l क्या दाँव खेला भाई जान आपने, हजारों बमों का जानकार, खूँखार, कट्टर आतंकवादी ही वह लूला ! अरे मुझे तो शक था कि वह दिखने में लाचार, बेबस बूढ़ा गले भी उतरेगा या नहीं l पर शुक्र है मीडिया कि बेवकूफी और सत्ता के दलालों का, वह कट्टर खूँखार आतंकवादी ही माना गया l " कमांडर हँसा, फिर बोला, वैसे भी बड़े मियाँ की एक्सपायरी डेट बरसों पहले ही हो गई थी l और ऊपर से कई किस्म की बीमारियाँ थी l इस बहाने आखिरी दिन भी काट लेंगे और हिन्दुस्तान की सरकार के खर्चे पर वी.आई.पी. इलाज भी हो जाएगा l"

" अभ एक और समस्या है l" " क्या "? " कोई युवा आतंकवादी भी पकड़ा जाए l " तो क्या सोचा है ? " तुम बताओं कोई ऐसा जो मजबूत हो, वफादार हो और नपा तुला ही राज, जो हम कहें वहीं बताऐ, खोले lबार-बार मंत्रियों के फोन आ रहे हैं l " नसीर भटकल देर तक सोचता रहता है, फिर सामने कैंप की तरह देखता है, याकूब पठान, सलीम खां ओर वह हकलाने वाला लड़का माहरुख ? " " नहीं नहीं, यह सब अभी एक्सपोज नहीं हुए है, धमाके नहीं किये है lइनकी पहचान छुपी हुई है l इनसे हम आगे काफी बड़े-बड़े काम लेने वाले है l " भटकल की आँखों में सवाल उभर आए l वह देर तक कमांडर को देखता रहा lकमांडर ने उसकी तरफ व्हिस्की का गिलास बढ़ाया l यूँ ही देर तक वह पीते रहे, विचार विमर्श करते रहे l भटकल की आँखों के सामने, पुणे, हैदराबाद, जयपुर, गुजरात न जाने कितने सफल, धर्म के लिए किए कार्य घूम

गए l कैसे पड़ौसी मुल्क से बारह वर्ष पहले ट्रेनिंग लेकर आया था lफिर कैसे उसी ने यह सुझाव दिया कि भीड़भाड़ वाले स्थानों को निशाना बनाओं l यहीं उसने अनगिनत युवाओं को छाँटा, तराशा और बम धमाकों की ट्रेनिंग दी l उसने जो बेहद जरुरी कार्य किया वह था आतंकवादी का चेहरा अधिक मानवीय सामान्य बनाने का l वह एक साथ अलग-अलग चेहरें, मोहरें, आयु वर्ग के युवकों को सामान्य, सामाजिक व्यवहार, बाड़ी लैग्वेज, चलने-फिरने, बोलने, बात करने के उच्चारण पर जोर देता l उसकी सतत लगातार वर्षों की मेहनत रंग लाइ और सौ भी अधिक भटकल तैयार थे l ऐसे भटकल जो किसी भी कॉलेज कैंपस, सिनेमा मॉल, डिस्कों जंतर-मंतर पर पहुँचते तो वहीं के युवकों जैसे ही लगते lलिखने-पढ़ने वाले, नौकरी करता आज युवा वर्ग lदेश के पूरे युवा वर्ग को बदनाम, शक के दायरे में लेन की, पूरी की पूरी पीढ़ी, इस देश की बर्बाद करने की साजिश वह कर चुका था l और क्रूरता में वह भटकल जेसे ही थे ऊपर से उनके चेहरे किसी भी जाँच एजेंसी के रिकार्ड में नहीं थे l ऊपर से कई कई बार वह इच्छित, प्रमुख जगहों पर देश भर में फ्रिकवैटली हो आए थे l जी हाँ, भटकल का ही दिमाग था, फर्जी आई. डी. आधार कार्ड के साथ पूरे भारत का भ्रमण l पूरे देश की रैकी, जगह के प्लान, मैप, रुट, टार्गेट सब कुछ उनके पास था lबस इशारे भर की देर थी राजनीतिक आकाओं की और धमाके lकई-कई बार वह रिर्हसल करवाके पूर्ण संतुष्ट था l " तो कमांडर मैं जाता हूँ इस बार l" " तुम...... पर....." कुछ नहीं, मैंने भी अपनी क्षमता से कई गुना कार्य कर लिया है l वैसे भी किसी धमाके में मारा जाऊँ, उससे बेहतर है l

" मेरी जिंदगी के आखिरी दिन भी हमारे जेहाद के काम आए l" " यह तो बेहद धमाकेदार न्यूज होगी, तुम बहुत बड़ा नाम हो मेरे दोस्त " -- कमांडर भावुक हो उठा lलेकिन यहाँ सब ? उसका पूरा इंतजाम मैं करके ही जाऊँगा, दोनों मेरे जूनियर असलम और फैजल है ही जो आई. टी. एक्सपर्ट है l"

" तो आप मुझे पहुँचाने का इंतजाम करे lथोड़ा हिन्दुस्तानी खातिरदारी का, लजीज बिरयानी का लुफ्त ले लूँ l" " वैसे तुम्हें कोई टॉर्चर, अथवा मारपीट नहीं होगी यह हिन्दुस्तानी गृह मंत्री को मैं अच्छी तरह समजा दूंगा l " कमांडर दॄढ़ स्वर में बोला lअगले दिन अखबारों में था मोस्ट वांटेड आतंकी भटकल नेपाल सीमा पर गिरफ्तार, सरकार की बड़ी कामयाबी l

कमांडर हाई सिक्योरिटी जेल, किसी सुदूर स्थान पर l रिमांड अवधि पूरी होने पर भटकल वहीं लाया गया आई.पी.एस. बिन्नी अख्तर पूछताछ विंग की इंचार्ज l " पर मैडम....यह सही होगा ? " " हाँ बिल्कुल तुम करो और पहले सारा इंतजाम छुपे कैमरे, माइक्रोफोन लगा देना l" " आप बहुत बड़ा खतरा ले रही है l" " देश के प्रति सच्चा फर्ज निभाने का अवसर हर बार आता है पर हम इन्हीं किन्तु-परन्तु में हिम्मत नहीं करते l इसलिए डू एज आई से l"

भटकल आठ बाई आठ के अंधेरे सैल में रात्रि को ही धकेला जा चुका था l थकान और जगाए रखने से परेशान वह बेसुध सो गया था l हल्की रोशनी से उसकी आँख खुली l ऊँचाई पर लगे पैनलों से उजाला आ रहा था l वह अंगडाई लेकर वह उठ बैठा lउस के साथ कोई खास बुरा सुलुक नहीं हुआ था l दो चार थप्पड़, वह भी छोटे अधिकारीयों द्वारा तभी गायत्री मंत्र की आवाज उसमें टकराई वह चौंका देखा सामने वाले कोने में कोई दाढ़ीधारी व्यक्ति योग की मुद्रा में था lवह उठा, गौर से देखा फिर मुस्कराया, " स्वामी अपरिचय देख वह बोला, " मैं भटकल, पुणे, जयपुर, हैदराबाद तक मेरे निशान हैं l"

डॉ. संदीप अवस्थी, आलोचक, कवि कथाकार, चार पुस्तके प्रकाशित,

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