Kaun Sa Sira Pakadu ! in Hindi Comedy stories by Jahnavi Suman books and stories PDF | कौन सा सिरा पकड़ूं !

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कौन सा सिरा पकड़ूं !

कौन सा सिरा पकड़ूं !

------- सुमन शर्मा

jahnavi.suman7@gmail.co

contact no 9810485427

कौन सा सिरा पकड़ूं !

ह्मारे देश वासियोँ को विदेश भ्रमन का बहुत शौक है। ज़रा लक्ष्मी जी कृपालु हो जाएँ, तो फिर क्या ? ,पाँव थिरकने लग जाते हैं।

ग्रेट वॉल ऑफ चाइना ,चीख -चीख कर बुलाने लगती है। स्टेचू ऑफ लिबर्टी तो, जैसे उन्हीं के लिए बाहें पसारे खड़ी हो।

भारत से विदेश पर्यटन हेतु प्रस्थान करने वाले स्वदेशी ,जब भ्रमण के उपरान्त अपने वतन लौटते हैं ,तब उनकी नाक भौं ऐसे सिकुड़ जाती है ,जैसे उन्हें स्वर्ग से सीधा नरक में धक्का दे दिया हो। बस कोसने लगते , प्रशासन व्यवस्था को , सरकार को।

'देश का क्या हाल हो गया है।' 'दूसरे देश कहाँ से कहाँ पहुँच गई हैं।' ऐसे ही घृणित वाक्यों की उनके मुँह से बौछार होने लगती है।

लेकिन वह भूल जाते हैं कि, देश को नरक बनाने में उन का सहयोग भी कुछ कम नहीं। अपने देश को नम्बर वन बनाने के लिए प्रत्येक देशवासी का सहयोग जरुरी है।

हम सभी का यह स्वप्न है, कि भारत एक विकासशील देश से शीघ्र ही न केवल विकसित देश बन जाए, अपितु विश्व का नम्बर एक देश कहलाए। एक समाचार पत्र की संवाददाता विभिन्न वर्ग के लोगों से यह जानने के लिए कि, वह कैसे भारत की कल्पना करते हैं, लोगों से बातचीत के लिए निकल पड़ती है।

सबसे पहले उसकी मुलाकात ऐसे छात्रों से होती है जो अपने घर से दूर पब्लिक स्कूल में पढ़ने जाते हैं।

संवाददाता बच्चों से पहला प्रश्न करती है, ‘‘बच्चों तुम आज के भारत में जी रहे हो , लेकिन तुम्हारे मन की भीतर भी अपने देश को लेकर कुछ सपने छिपे होगें ,कि काश !

कुछ चमत्कार हो जाए और ज़िंदगी में फलाँ -फलां बदलाव आ जाए।

तो बताओ बच्चों ! तुम कैसे भारत का सपना देखते हो?’’

बच्चों के चेहरे ऐसे खिल उठते हैं, जैसे कोई परी जादू की छड़ी लेकर उनके सामने खड़ी हो. बस छड़ी के घुमाने भर की ही देर है , उनके सारे सपने पूरे हो जाएगें।

एक छात्र ने अत्याधिक उत्साहित होते हुए कहा, ‘‘हम सबके पास एक रॉबट तो ज़रूर होना चाहिए।" दूसरे छात्रों के चेहरों पर भी, ख़ुशी की लहर दौड़ गई।

संवाददाता ने सवाल किया, "रॉबट ?पर किस लिए ?"

छात्र हम रॉबट को जब चाहें तब आदेश दें, कि वह हमारे गणित के जटिल-जटिल प्रश्नों को तुरन्त हल कर दे, हमारा होमवर्क झट पट निपट जाए और हम मजे सेे क्रिकेट खेलें। दूसरे छात्र ने कहा, ‘‘हाँ ये अच्छा रहेगा ! हिन्दी के लम्बे-लम्बे निबंध भी हमें याद नहीं करने पड़ेगें । कोई ऐसा अविष्कार भी होना चाहिए, जिससे किताब पर उँगली रखते ही सारी जानकारी हमारे दिमाग में एकत्र हो जाए, और काग़ज़ पर ऊँगली रखते ही सब कुछ वहाँ लिखा जाए बिलकुल कॉपी पेस्ट की तरह।

तीसरा छात्र बोला, ‘‘ भारत में कुछ ऐेसा अविष्कार हो जाए, कि हम स्कूल में अपना डमी भेज दें और स्वयं घर में आराम करें।’’

संवाददाता अपनी डायरी में सब कुछ लिख लेती है। वह सोचती है, भारत का भविष्य बहुत आलसी है। यह छात्र तो मेहनत से बचने के सपने देख रहें हैं।

संवाददाता कुछ आगे बढ़ती है। एक महिला गोल गप्पे खा रही थी। समाचार पत्र संवाददाता महिला से कहती है, ’’ आप थोड़ी देर के लिए गोल गप्पे खाना बन्द करेगीं?’’ महिला गोल गप्पे तैयार कर रहे खोमचे वाले को रुकने का ईशारा करती है। संवाददाता उससे पहला सवाल पूछती है,‘‘यदि भारत विश्व का सबसे उन्नत देश बन जाता है , तो आप अपना कौन सा सपना पूरा होते हुए देखना चाहेंगी ?’’ महिला का जवाब था, ‘‘ हाय! कब आएगा वह दिन। मेरा सपना कब पूरा होगा? कब आखिर कब? महिला आँखें बन्द करके अनजानी दुनिया मैं खो जाती है। संवाददाता उसे झिन्झोड़ कर पूछती है, ‘‘मैडम! मैडम कहाँ खो गईं आप? सपनों की दुनिया से बाहर आकर जरा बताएँ आपका सपना क्या है? महिला हड़बड़ा कर इधर-उधर देखती है। संवाददाता आशा भरी निगाहों से उसकी ओर देखती है। महिला बोलना शुरु करती है, ‘‘ मैं चाहे जितने भी गोल गप्पे क्यों न खालूँ , खाते-खाते मेरा पेट भर जाता है लेकिन मन नहीं भरता। मैं सोच रही थी, कि विशेेष तरह की लेजर गन का अविष्कार होना चाहिए। मैं चाहती हूँ, कि गोल गप्पे खा कर लेज़र गन पेट पर घुमायोे और सारे गोल गप्पे नष्ट हो जाऐ और मैं फिर से, गोल गप्पे खाने का आनन्द उठा सकूँ। यह सिल सिला चलता रहे, बस चलता ही रहे। महिला झूमती रहती है और संवाददाता अपनी डायरी मैं सब कुछ लिख लेती है वह सोचती है, क्या भारत का भविष्य गोल गप्पों मैं सिमट कर रह गया है?

संवाददाता कुछ और आगे बढ़ती है। कुछ व्यक्ति बगीचे में ताश खेलते हुए दिखाई देतें हैं। संवाददाता वहाँ जाकर उनसे पूछती है, ‘‘क्या आप में से कोई ऐसा है, जो यह बता सके कि भारत की उन्नति को लेकर आप क्या सपने देखतें हैेेे।’’ एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बोला, ‘‘अच्छा हुआ आज आपने हमसे यह सवाल पूछ लिया। हम सब तो रोज़ एक ही सपना देखतें हैं। ’’ संवाददाता ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘कौन सा सपना।’’ अधेड़ व्यक्ति बोला, ‘‘हम सब अपने परिवार वालों से छुपते छूपाते ताश खेलने आतें हैं।’’ संवाददाता सवाल करती है, ‘‘क्यों?’’ एक बूढ़े व्यक्ति ने अपना पोपला मुँह खोलते हुए कहा, ‘‘घर वाले मना करतें हैं। हम नए-नए स्थान तलाश करतें हैं वह वहाँ भी पहुँच जाते हैं’’ संवाददाता ने पूछा "लेकिन, उनको आप लोगों के खेलने पर एतराज क्यों है ? कहीं आप लोग जुआ तो नहीं खेलते?" वह व्यक्ति बोला , "बस ऐसा ही समझ लो ,जो जीत जाता है वो सबको पिलाता है। "

संवाददाता बोली, "तौबा तौबा, मगर आप लोगों का सपना क्या है? बूढ़ा व्यक्ति बोला, ‘‘ऐसा रॉकेट बन जाए, जो आधे घंटे में ही हमें चाँद पर पहुँचा देेेे। वहाँ हम आराम से ताश खेल सकतें हैं। पी कर झूम सकते हैं। ’’ संवाददाता ने कहा, ‘‘ तुम्हारे घर वाले भी आधे घंटे में दूसरे रॉकेट से चाँद पर पहुँच जाएगें।’’

सब ठहाका मार कर हँसने लगते हैं। संवाददाता इसे भी अपनी डायरी में लिख लेती है। वह सोचती है, सभी किसी चमत्कार की आशा लगाए बैठे हैं लेकिन कोई भी मेहनत नहीं करना चाहता।

संवाददाता आगे बढ़ती है , एक व्यक्ति समाचार पत्र पढता हुआ मुस्कुरा रहा था। वह उस व्यक्ति से सवाल करती है , "क्या है ऐसा समाचार पत्र में , जो आप ऐसे मुस्कुरा रहे हैं?"

वह एक समाचार को ज़ोर से पढ़ने लगता है, "उतर प्रदेश सरकार ने, नोएडा के रिहाइशी इलाकों से बैंकों को हटाने के आदेश दिए हैं।" संवाददाता ने पूछा , "लेकिन तुम क्यों इतना खुश दिखाई दे रहे हो? " वह व्यक्ति , जिसने काला कोट पहना हुआ था और गले में मफलर लपेटा हुआ था। संवाददाता से कहता है , ‘‘ जी, हमको बहुत खुशी हुई जब सुना कि बैंक रिहाईशी इलाकों से हटाये जा रहें हैं। मैडम जी! आपको क्या बताऐ, रिहायशी इलाकों में ,बैंक लूटने की बड़ी दिक्कत हो जाती है। बैंक लूटने के बाद, रिहाईशी इलाकों में भागने के लिए, खाली सड़क ही नहीं मिलती है। महिलाओं को देखकर, तो पता ही नहीं चलता है, कि बैंक से पैसा निकलवा कर लौट रहीं हैेें, या सव्जी लेकर।"

संवाददाता ने दुबारा उस व्यक्ति को उपर से नीचे तक देखा। वह व्यक्ति बेखौफ अपनी दुनाली बन्दूक साफ करता रहा। संवाददाता की निगाह एक पोस्टर पर पड़ती है जिस पर एक मंत्री की तस्वीर के साथ लिखा हुआ था - ‘देश को खुशहाल बनाना है, हर चेहरे पर मुस्कान लाना है।’

संवाददाता के मुँह से निकला ,"अरे कहाँ नरक में आ गई मैं। इस से अच्छा तो मैं वापिस अमेरिका लौट जाऊं। ये देश कभी नहीं सुधरेगा। न जाने इस देश के कौन कौन से सिरे कहाँ -कहाँ उलझ गए हैं ,सुलझाने के लिए कोई सिरा हाथ नहीं आता।

---सुमन शर्मा

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