Narak ka Publicity Department in Hindi Comedy stories by Ashok Mishra books and stories PDF | नरक का पब्लिसिटी डिपार्टमेंट

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नरक का पब्लिसिटी डिपार्टमेंट

नरक का पब्लिसिटी डिपार्टमेंट

अशोक मिश्र

मैं स्कूटर लेकर घर से निकला ही रहा था कि बेटे ने टोक दिया, 'दो-ढ़ाई घंटे में लौट आइएगा। शालू को लांग ड्राइव पर ले जाना है। आपको कल ही बता दिया था कि दोपहर के बाद मुझे कहीं जाना है।Ó शालू मीन्स बेटे की छम्मकछल्लो....गर्लफ्रेंड। उसके साथ ही कालेज में पढ़ती है। बेटे का टोकना मुझे काफी बुरा लगा। मैं भुनभुनाता हुआ घर से निकल पड़ा। लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर पहुंचा ही था कि कैं ट की तरफ से आते हुए ट्रक ने टक्कर मार दी।

मैं धड़ाम से गिरा और कुछ देर तड़पने के बाद अल्लाह को प्यारा हो गया। ट्रक का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन मेरे स्कूटर की चटनी बन गई । चटनी तो मेरी भी बन गई थी। यही वजह थी कि मुझे दिवंगत होते देर नहीं लगी। हादसा होने के बाद भी लोग मेरी परवाह किए बिना लगातार हार्न बजाए चले जा रहे थे। ट्रैफिक पुलिस का एक कांस्टेबल दौड़ता हुआ आया और मेरे मुर्दा शरीर पर दो घूंसे जड़ता हुआ बोला, 'अबे साले, तुझे पीक ऑवर में ही मरना था। कमाई का यही तो समय होता है, जब लोग आफिस समय पर पहुंचने के चक्कर में अंटी से दस-पांच रुपये ढीली करते हैं। तेरा बेड़ा गर्क हो..नासपीटे! तुझे भवानी उठा ले जाए। काली माई का कोप तुझ पर नाजिल हो।Ó

मैं चिल्लाया, 'अबे साले! तेरी यह मजाल... तुने मुझे थप्पड़ मारा। समझ ले बेटा.. तेरी नौकरी तो गई...तू नहीं जानता है कि किससे पंगा लिया है तूने। अबे कांस्टेबल की दुम, मेरा नाम सुनकर तेरे बापों की भी हवा खराब हो जाती है, उनके भी पसीने छूट जाते हैं। तू किस खेत की मूली है, तेरी बिसात क्या है मेेरे सामने? तूने इतने बड़े पत्रकार को थप्पड़ मारा। तेरी यह मजाल...? अब तो तू गया काम से।Ó

लेकिन यह क्या? वह शायद मेरी आवाज सुन नहीं पा रहा था। ओह शिट...आत्मा की आवाज कोई सुन सका है आज तक। अगर आदमी अपनी या किसी पराई आत्मा की आवाज सुन ही लेता, तो कम से कम देश और समाज की यह दुर्गति नहीं होती। देश से भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, हत्या, बलात्कार और तमाम जुर्म ठीक उसी तरह फुर्र हो गए होते, जैसे हवा के संपर्क में आते ही कपूर या हींग की सुगंध काफूर हो जाती है। मैं ही मरने से पहले अपनी आत्मा की आवाज कहां सुन पाया था? खैर...मेरी समझ में यह बात तब आई...जब मैं इस असार संसार से मुक्ति पा चुका था। और फिर मैंने देखा कि मैं..नहीं...मेरी आत्मा किसी हवा भरे गुब्बारे की तरह हलकी होकर कहीं भी आ जा सकती है।

इसी बीच कांस्टेबल ने मेरी (माफ कीजिएगा...मेरे शव की) टांग पकड़ी और किसी बोरे की तरह घसीट कर सड़क के किनारे कर दिया। खून का एक मोटा-सा निशान सड़क पर बनता चला गया। लोग अब भी हार्न बजाए जा रहे थे। इसी बीच ट्रैफिक जाम में एक मंत्री की गाड़ी फंस चुकी थी। कांस्टेबल ने कुछ लोगों की मदद से मेरे चटनी यानी टूट-फूट चुके स्कूटर को खींचकर किनारे किया और ड्राइवर को भी ट्रक किनारे करने का इशारा किया। ट्रक ड्राइवर शायद शरीफ था, जो इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी रुका हुआ था।

हवा में लटककर मैं यह सब देखने में तल्लीन था कि पीछे से किसी ने कंधे पर थपकी दी, 'चलें...?Ó मैंने चौंककर पीछे देखा। एक अजीबोगरीब किस्म का मोपेडनुमा वाहन लिए हुए एक यमदूत खड़ा खैनी मल रहा था। मैंने उससे पूछा, 'कहां.... ?Ó

'यमराज जी के पास और कहां?Ó

अभी तक मुझे यह विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं मर चुका हूं। एक बार मैंने यमदूत को ऊपर से नीचे तक घूरने के बाद बचने की कोशिश की। 'क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप कुछ दिन बाद आ जाएं। आपके आने-जाने में जो खर्च-खराबा हुआ है, उसका टीए-डीए मुझसे ले लें और मुझे कुछ साल के लिए बख्श दें।Ó

यमदूत ने तल्ख लहजे में कहा, 'सुनो, मैं मृत्यु लोक का रिश्वतखोर बाबू या चपरासी नहीं हूं कि किसी मरे हुए आदमी को भी सालों तक जिंदा रखूं। यह सब मृत्युलोक में ही संभव है कि मरा आदमी सालों तक सरकारी खजाने से पेंशन उठाता रहे और सरकार को भनक तक न लगे। आप एक बात अच्छी तरह से समझ लीजिए, आपकी मौत हो चुकी है और आपको तत्काल यमराज जी के हुजूर में पेश होना है। आप शराफत से चलेंगे तो ठीक है, वरना जबरदस्ती ले चलने की भी इंतजाम है मेरे पास।Ó

मैं समझ गया कि मïृत्युलोक वाले हथकंडे इस खूंखार यमदूत पर नहीं चलेंगे। सो, मैं रिरियाने लगा, 'भाई साहब, थोड़ी-सी मोहलत दीजिए। कुछ काम बाकी हैं जिन्हें निपटाना बहुत जरूरी है। सबसे पहले तो इस कांस्टेबल को इसकी करनी का मजा चखाना है। दस-बारह हजार रुपये तनख्वाह पाने वाले इस कांस्टेबल की इतनी हिम्मत कि वह मेरे जैसे इतने बड़े पत्रकार के मुर्दा शरीर पर थप्पड़ मारे। इसे तो इसकी औकात बतानी है और फिर थोड़ी देर के लिए मुझे घर भी जाना है। मेरा बेटा अभी घर पर बैठा मेरे लौटने का इंतजार कर रहा होगा। बीवी वो शाम से ही मार्केटिंग के लिए नाक में दम किए हुए थी। वह भी सजी-धजी बैठी होगी। परिवार के लोगों को तो कम से कम एक बार देख लूं। भाई साहब, इतनी रियायत तो आपको देनी ही पड़ेगी। भले ही आप इसके लिए कोई चार्ज-वार्ज लेना चाहें, तो वह मैं दे सकता हूं।Ó

यमदूत ने कहा, 'कांस्टेबल को भी अपने किए की सजा मरने के बाद मिल ही जाएगी। उसके खाते में उसका पाप दर्ज हो चुका है। जहां तक अपने परिजनों से मिलने की बात है, तो यह संभव नहीं है। हां, उनकी एक झलक तो आप यमलोक से भी देख सकते हैं। इसकी व्यवस्था यमलोक में है। वहां तो ऐसे-ऐसे टेलीस्कोप हैं, राडार हैं कि आप पूरे ब्रह्माण्ड को बड़े नजदीक से निहार सकते हैं। आप अपने परिवार की कतई चिंता न करें।Ó

तभी मैंने देखा कि जिस जगह मेरी मौत हुई थी, वहां का रुका हुआ ट्रेफिक चल निकला था। मंत्री की गाड़ी जा चुकी थी। अब कांस्टेबल ट्रक ड्राइवर से लेन-देन में व्यस्त था। तब तक ट्रक का मालिक भी मौके पर पहुंच चुका था। काफी झिक-झिक और मोल-तोल के बाद चालीस हजार रुपये की गड्डी मोटरमालिक ने ट्रैफिक कांस्टेबल को थमाई और ड्राइवर ने ट्रक स्टार्ट किया और अपने मालिक को बिठाकर चलता बना।

मैं चिल्लाया, 'यमदूत जी...यमदूत जी, उस नामाकूल ट्रक ड्राइवर को रोकिए। वह कांस्टेबल को रिश्वत देने के बाद फरार हो रहा है और यह देखिए, कांस्टेबल अपने अधिकारी को ब्रीफ कर रहा है कि किसी अज्ञात ट्रक ड्राइवर ने एक आदमी को टक्कर मार दी और मौके से फरार हो गया। उसकी लाश हजरतगंज चौराहे पर पड़ी हुई है।Ó

यमदूत ने अपना मोपेडनुमा वाहन स्टार्ट करते हए कहा, 'चिंता मत करो, इसका भी पाप उसके खाते में जमा हो गया है मय ब्याज सहित। जो जैसा करेगा, उसे यमलोक में वैसा ही भरना पड़ेगा।Ó आखिरकार मन मारकर मुझे यमदूत के मोपेडनुमा वाहन पर बैठना पड़ा। मोपेड राकेट की गति से यमलोक की ओर रवाना हो गई। बीच रास्ते में यमदूत ने जब अपने मुंह से तंबाकू थूका, तो वह एकदम दस-पंद्रह किलो के उल्का पिंड में तब्दील हो गया, जो पृथ्वी की कक्षा में पहुंचते ही भक्क से जल उठा। जब मैं मत्र्यलोक में था यानी जिंदा था, तो मैंने ऐसे कई उल्कापिंडों को जलते हुए देखा था। तब मैं समझता था कि यह अंतरिक्ष से आने वाले पत्थर हैं, जो अपनी दिशा से भटककर पृथ्वी की कक्षा में पहुंच जाते हैं। यह तो अब जाकर मालूम हुआ कि यह यमदूत जी का थूका गया तंबाकू है।

यमलोक पहुंचा, तो वहां का एक अलग ही नजारा था। मृत्युलोक से आने वाली हर आत्मा एक पंक्ति में खड़ी अपने पाप-पुण्य का कंम्प्यूटराइज्ड लेखा-जोखा निकलवा रही थी। उस दिन यमलोक का लेखा विभाग हड़ताल पर था या काम अधिक था, बहुत सुस्त गति से हो रहा था। पृथ्वी पर मैंने अक्सर देखा है कि जहां भी पब्लिक डीलिंग वाला काम होता है, वहां के क्लर्क या अधिकारी अधिक काम होने का बहाना बनाकर मरियल बैल की चाल वाले अंदाज में काम करते हैं। अब मुझे मृत्युलोक में राशन की दुकान पर लगने वाली लाइन याद आ गई।

मुझे याद आया कि मैं बचपन में मिट्टी का तेल या चीनी लेने के लिए सरकारी राशन की दुकान पर इसी तरह लाइन लगाया करता था। कभी लोगों की धक्का-मुक्की के चलते लाइन गड़बड़ा जाती थी, तो एकदम से आगे पहुंच जाता था या फिर लाइन से बाहर। इस आपाधापी का जिम्मेदार मुझे मानकर कुछ बुजुर्ग और खडूस टाइप लोगों ने एकाध बार दो-चार हाथ जमा भी दिया। हांलाकि बाद में दो-चार हाथ जमाकर अपने को गामा पहलवान समझने वालों को खामियाजा भी भुगतना पड़ता था। चीनी या मिट्टी का तेल लेने के बाद पीटने वाले से एक निश्चित दूरी बना लेता था। इसके बाद एक बड़ा सा पत्थर उठाकर पीटकर गामा बनने वाले पहलवान की पीठ पर दे मारता था। निशाना चूकने का कोई सवाल ही नहीं था। (पाठक इसका मतलब न लगाएं कि मैं कोई बहुत बड़ा निशानची था। दरअसल, उन दिनों काफी दूर रखे कंचे का निशाना लगा लेने की मुझे महारथ हासिल थी। ठीक वैसे ही जैसे अर्जुन को खौलते तेल की परछाई देखकर ऊपर टंगी और नाचती मछली की आंख का निशाना लगा लेने की महारथ हासिल थी। मोहल्ले के ज्यादातर लड़के मुझसे कंचा खेलने से परहेज करते थे।)

यमलोक में भी लगी लंबी लाइन देखकर इस बात का संतोष हुआ कि लोग बेकार में ही मृत्युलोक की अव्यवस्था का रोना रोते हैं, खासतौर पर भारत के लोग। व्यवस्था चाहे स्वर्ग की हो या मृत्युलोक की, उसे बिगाड़ देने वाले हर युग में पाए जाते रहे हैं और भविष्य में ये व्यवस्था बिगाड़ू लोग पैदा नहीं होंगे, इसकी दूर-दूर तक कम से कम मुझे तो कोई संभावना नजर नहीं आई। व्यवस्था बिगाडऩे की बात मुझे मृत्युलोक में काफी चाव से सुना और सुनाया जाने वाला एक बहुचर्चित चुटकुला याद आ रहा है, जो कामरेड स्टालिन पर है।

कहते हैं कि रूस के तानाशाह के रूप में विख्यात कामरेड स्टालिन की आत्मा जब मौत के बाद यमलोक पहुंची, तो यमराज ने अपने यहां के सारे कर्मचारियों को बुलाकर एक लाइन में खड़ा कर दिया और स्टालिन की आत्मा की ओर संकेत करते हुए उन्हें बताया कि यह ऐसे व्यक्ति की आत्मा है, जो अपने जीवनकाल में एक बहुत बड़ा संगठनकर्ता रहा है। इसने विरोधियों के गढ़ में भी पार्टी कैडर तैयार किए हैं। यहां तक कि वेश्यालयों और जुआघरों को भी नहीं छोड़ा है। चूंकि इसे मरे हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, इसलिए इस आत्मा पर स्टालिन के कार्यों का प्रभाव हो सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो यहां भी यह आत्मा अपने पक्ष में संगठन खड़ा करके आंदोलन करवा सकती है, यमलोक में हड़ताल करवा सकती है। इसी वजह से एहतियातन इसको नजर बंद रखना ही उचित है।Ó

इतना बताने के बाद यमराज ने कुछ पुराने यमदूतों को बुलाकर कहा, 'स्टालिन की आत्मा पर छह महीने नजर रखो। इसके बाद इसे स्वर्ग भेजना है या नरक? इस पर विचार किया जाएगा।Ó

आत्मा नजरबंद कर दी गई। उस पर कड़ा पहरा लगा दिया गया। इसके बाद समय गुजरता गया, दो साल बाद एक दिन यमराज को स्टालिन की आत्मा को नजरबंद किए जाने की बात याद आई। उन्होंने तुरंत यमदूतों को तलब किया और बोले, 'हरामखोर! तुम लोग इतने नकारा हो कि छह महीने बाद मुझे स्टालिन की आत्मा के बारे में याद तक नहीं दिलाया। उसकी गतिविधियां क्या हैं? इसके बारे में जानकारी तक नहीं दी।

यमदूत ने सावधान की मुद्रा में यमराज का 'कामरेड लाल सलामÓ शब्द से अभिवादन करते हुए कहा, 'सब कुछ तो ठीक है कामरेड यमराज, लेकिन कामरेड स्टालिन की आत्मा हर दो घंटे के बाद दीवार की ओर मुंह करके क्रांति पर भाषण जरूर देती है। इसके अलावा ऐसी कोई नई बात नहीं है जिसकी चर्चा की जाए।Ó

यमराज ने अपना माथा पीट लिया, 'अरे! उसने यहां भी संगठन खड़ा कर लिया। उसे तत्काल किसी बच्चे के शरीर में डालकर मृत्युलोक भेजो, वरना यहां गड़बड़ हो जाएगी। मुझे तो अब यहां भी हड़ताल का अंदेशा दिखाई देने लगा है।Ó

खैर....। यह तो थी मृत्युलोक के चुटकुले की बात। लेकिन यमलोक में लगी लाइन से मुझे इस बात की आश्वस्ति हुई कि यहां भी जुगाड़ भिड़ाने की गुंजाइश बन सकती है। बस यही सोचकर लाइन में सबसे आगे खड़े होने की कोशिश में जुट गया। लाइन में दो आदमियों के बीच के गैप में अपनी टांग घुसाने की सोच ही रहा था कि पीछे खड़े लोग शोर मचाने लगे, 'मृत्युलोक वाली धांधली यहां नहीं चलेगी। यह यमलोक है...यहां तो कम से कम अपनी हरकतों से बाज आओ।Ó

लोगों के शोर मचाने से मेरा मूड उखड़ गया। मैं अपने से ठीक पीछे खड़ी आत्मा पर गुर्रा उठा, 'क्या है जो इतना भाव खा रहे हो। मुझसे कुछ देर पहले आ गए, तो कोई तीर नहीं मार लिया है। अगर तुमने ऐसा मृत्युलोक पर किया होता, तो आपको औकात बता देता, समझे मिस्टर धनीराम....। बस...आपको महिमा मंडित करने के लिए दो-तीन खबरें ही छापनी पड़ती। उसके बाद तो भरी दोपहरिया में राग भैरवी गाते फिरते। या तो मुझ पर मुकदमा ठोक देते या फिर मेरे चरणों में गिर जाते।Ó

उस आत्मा ने प्रतिवाद किया, 'मेरा नाम धनीराम नहीं था...मैं उत्तर प्रदेश का एक नामी-गिरामी मजदूर नेता प्रीतम सिंह बाहुबली था। मैंने भी तुम जैसे पत्रकारों को सड़े करेले के भाव जिंदगी भर खरीदा-बेचा था, समझे।Ó

तभी मैंने देखा कि लेखा-जोखा (एकाउंट़्स) विभाग वालों ने चार-पांच नई खिड़कियां खोल दी थीं। लाइन में से कुछ लोग भागकर उन खिड़कियों के सामने खड़े हो गए। लोगों के बंट जाने से लाइन छोटी हो गई। पांच-सात मिनट के बाद मेरा भी नंबर आया, तो यमलोक के लेखा क्लर्क ने मुझसे नाम, पता पूछकर मुझे एक प्रिटेड कागज थमा दिया और चित्रगुप्त जी से मिलने को कहा।

मैंने उस प्रिंटेड कागज को बड़ी गौर से देखा, तो पाया कि मेरे पाप और पुण्य बराबर थे। मैं चकराया। अपनी समझ से मैंने जीवन भर कोई पाप किया ही नहीं था। पत्रकारिता में भले ही कुछ लोगों से झूठ बोला हो, उनके खिलाफ बड़े-बड़े लेख लिखे हों, एकाध असली-नकली स्टिंग आपरेशन चलाया हो, इसके अलावा तो मैंने कोई पाप किया ही नहीं था। अपना कागज लेकर चित्रगुप्त जी के हुजूर में पेश हुआ।

चित्रगुप्त जी ने मुझे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए कहा, 'तुम्हारा मामला काफी पेचीदा है। ऐसा करो, धर्मराज जी से मिल लो....। ऐसे मामले वे ही देखते हैं। अगर पाप या पुण्य में से कोई ज्यादा होता, तो मैं तुमको नरक या स्वर्ग भेजने की रिकमंडेशन कर देता। तुम्हारा मामला तो बराबरी का है, ऐसे मामले यमराज ही निपटाते है।Ó

मैं अपना कागज लेकर धर्मराज के दरबार में पहुंचा। उन्होंने मुझे देखते ही कहा, 'तुम वही हो न जिसने मुझ पर अपने अखबार में एक लंबा-चौड़ा व्यंग्य छापा था? देखा, यमलोक में भी तुम्हारा अखबार पढ़ा जाता है। हां, लाओ...। देखूं तुम्हारा क्या मामला है?

मैंने धर्मराज के सामने अपना कागज पटकते हुए कहा, 'आपके एकाउंटेंट्स डिपार्टमेंट से शायद मिस्टेक हुई है। मेरे खाते में पाप चढ़ा दिए हैं ...जबकि मैंने पूरी जिंदगी शराफत से बिताई है। किसी से एक धेले की बेइमानी नहीं की, किसी की हत्या नहीं की, किसी से विश्वासघात नहीं किया। तो फिर मेरे खाते में ये पाप कहां से जुड़ गए?Ó मुझे न जाने क्यों अब अपने जीवन भर शरीफ बने रहने पर अफसोस हो रहा था।

धर्मराज ने मुझ पर व्यंग्यात्मक दृष्टि डालते हुए कहा, 'यह ठीक है कि तुमने कोई पाप नहीं किया, लेकिन पुण्य भी तो नहीं कमाया। तुमने जिन लोगों को व्यक्तिगत हितों के लिए टारगेट बनाया, उनकी पीड़ा तुम्हारे खाते में पाप बनकर दर्ज हुई। तुमने कुछ गरीबों और असहायों की मदद के लिए भी लिखा, उनके शोषण और दोहन की खबरें छापीं। ऐसे लोगों के मुंह से निकली दुुआएं तुम्हारे लिए पुण्य बनकर संचित हो गईं। यह संयोग है कि तुम्हारे दोनों तरह के काम बराबर हुए। तुमने किसी एक से बेईमानी की, तो दूसरे का भला भी किया।Ó

धर्मराज की बात सुनकर मैं चिल्लाया, 'जिन लोगों के खिलाफ मैंने लिखा, वे वाकई भ्रष्ट थे, कालाबाजारी थे, गरीब महिलाओं और लड़कियों की अस्मत का सौदा करते थे। उनके खिलाफ लिखकर तो मैंने जनहित का काम किया था।Ó

धर्मराज फिर मुस्कुराए, 'लेकिन तुम्हारा लिखा छपने के बाद क्या हुआ? उन भ्रष्टों से तुमने नगदऊ भी तो वसूला था। काफी मोटी रकम तुम अगला लेख न छापने के एवज में वसूलते थे। पैसा वसूलने के बाद भी तुम अपनी हरकत से बाज नहीं आते थे। उनका कच्चा चिट़्ठा छाप ही देते थे। तुमने अभी जिस जनहित का रेाना रोया है, उसी जनहित को ध्यान में रखते हुए तुम्हें फिलहाल स्वर्ग भेजा जा रहा है।Ó इतना कहकर धर्मराज वहां से अंतरध्यान हो गए।

मैं स्वर्ग में ढकेल दिया गया। स्वर्ग का अजीब सा नजारा था। हर आदमी अपने हाथ में सुमिरनी लिए राम नाम जपता नजर आ रहा था। न कोई सोमरस या सुरा पी रहा था और न ही सुंदरी के नृत्य या भोगविलास का आनंद ही उठा ही रहा था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैया स्वर्ग है जहां आमोद-प्रमोद का कोई साधन ही नहीं है। क्या यही स्वर्ग है जिसकी रंगीनी और भोग विलास के बारे में मृत्युलोक में इतनी कथाएं कहीं-सुनी जाती है कि किसी का भी मन ललचा सकता है। मïृत्युलोक पर तो हर बुद्धिजीवी, साधु-महात्मा, चोर-डाकू से लेकर भिखारी तक मरे जाते हैं। लेकिन स्वर्ग की वीरानी देखकर एकाध लोगों से पूछा भी, तो पता चला कि कई दशक पहले मेनका, रंभा और उर्वशी जैसी अप्सराएं रिटायर हो गई थीं। पिछले कई शताब्दियों से यमलोक प्रशासन उनके कार्यकाल को बढ़ाता चला आ रहा था, लेकिन जब से मृत्युलोक में 'जहां सौ-सौ बरस की हूरें हों, उस जन्नत का क्या करें कोईÓ शेर चर्चित हुआ, तब से अप्सराओं ने रिटायरमेंट की जिद पकड़ ली। यमलोक प्रशासन ने भी फंड की कमी के चलते अप्सराओं की नई भर्ती नहीं की। इससे स्वर्ग में सुंदरियों का अभाव हो गया है। वहीं गांधी जी के स्वर्गारोहण के बाद स्वर्ग में भी मद्यनिषेध लागू कर दिया गया। अब स्वर्ग में आने वाली आत्माएं या तो खाली इधर-उधर डोलती रहती हैं या फिर यमलोक के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम देखती रहती हैं। कुछ आध्यात्मिक किस्म की आत्माओं के लिए सुमिरनी की भी व्यवस्था है ओर वे रामनाम का जाप करके अपने संचित पुण्य को और बढ़ा सकती हैं।

स्वर्ग का यह अजब-गजब रूप देखकर मुझे काफी कोफ्त होने लगी। एक दिन की बात है, मैं स्वर्ग की चहारदीवारी के साथ-साथ कुछ नएपन की तलाश में भटक रहा था कि स्वर्ग के दूसरी ओर यानी नरक के प्रवेश द्वार की बगल में एक कमरे में मल्लिका स्टाइल में कुछ लड़कियों को नृत्य करते देखा। पलभर को लगा कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यमलोक प्रशासन ने मल्लिका, राखी सावंत, बिपाशा या ईशा कोप्पिकर जैसी कुछ हिंदुस्तानी हीरोइनों को डेपुटेशन पर यहां बुला लिया हो? अच्छा खासा पैकेज मिले तो भला कौन नहीं आना चाहेगा। मैं काफी देर तक लड़कियों की अदाएं और उनका मनमोहक नृत्य देखता रहा। मैं अपने जीवनकाल में यार-दोस्तों के बीच काफी दिलफेंक और रंगीन मिजाज समझा जाता था। लेकिन इन लड़कियों की अदाएं तो किसी को भी मतवाला बना देने के लिए काफी थीं।

मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई तो एक आत्मा को परमात्मा में रमा पाया। मैं दौड़ कर उसके पास पहुंचा और पूछा 'भाई साहब, यह क्या है?Ó

उस आत्मा ने निरपेक्ष भाव से जवाब दिया, 'वहां से नर्क की सीमाएं शुरू होती हैं। उधर मत देखो, वरना जीवन भर का संचित पुण्य क्षीण हो जाएगा।Ó

उस आत्मा की बात सुनकर मैंने मुंह बिचकाया और फिर तन्मय होकर उन लड़कियों का नृत्य देखने में मशगूल हो गया। कुछ देर बाद ऐसा लगा कि वे लड़कियां मुझे देखकर वहां आने का इशारा कर रही हैं। अचानक मेरे मन में खयाल आया कि क्यों न अपना तबादला स्वर्ग से नरक में करवा लूं। जब मेरे पाप और पुण्य बराबर हैं, तो स्वर्ग के बाद नरक जाने का मेरा हक बनता ही है। वैसे भी स्वर्ग में रहने वाला चाहे, तो अपने पुण्य किसी पापी को देकर नरक जा सकता है, यह यहां का पुराना विधान है। बस फिर क्या था...? मैं उठकर धर्मराज के पास जा पहुंचा। उन्होंने मुझे सामने पड़े आसन पर विराजमान होने का इशारा किया और पूछा, 'किसी खास काम से आए हो?Ó

मैंने विनीत भाव से खींसे निपोरते हुए कहा, 'महाराज, मैं नरक में जाना चाहता हूं।Ó

धर्मराज मेरी बात सुनकर चौक उठे। बोले, 'क्या ...तुम नरक जाना चाहते हो? तुम्हारा दिमाग तो सही है न...।Ó

मैंने कहा, 'हां, मेरा दिमाग पूरी तरह सही है और मैं पूरे होशोहवास में नरक जाने की इजाजत मांग रहा हूं। मेरा ख्याल है कि स्वर्ग में बहुत दिन मैंने गुजार लिए हैं। अब मुझे नरक चला जाना चाहिए। मेरे जैसे आदमी के लिए नरक से बेहतर दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती है।Ó

धर्मराज पल भर को मेरा अशरीरी चेहरा देखते रहे। फिर बोले, 'एक बार फिर सोच लो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें अपने फैसले पर बाद में पछताना पड़े।Ó

लड़कियों के मदहोश कर देने वाले नृत्य में डूबा हुआ मैं धर्मराज के मशविरे जरा गौर करने को कतई तैयार ही नहीं था। मैंने झट से कहा, 'उसमें सोचना क्या है, महाराज! मुझे तत्काल स्वर्ग से नरक ट्रांसफर कर दिया जाए। दरअसल, मैँ मृत्युलोक पर पैदा ही नरक जाने के लिए हुआ था। पता नहीं कहां आपके लेखाधिकारी ने गड़बड़ी की और मेरे पाप-पुण्य बराबर हो गए और मैं स्वर्ग में ला पटका गया। जबकि सच तो यह है कि जीवन भर मैं कर्म तो नरक जाने के लायक ही करता रहा। मैं तो कहता हूं कि आप अपने विभाग की गलती को तत्काल सुधार लें और मुझे तुरंत नरक भिजवाने की व्यवस्था करें।Ó

मेरी बात सुनकर धर्मराज हंसे, 'देखो, अभी इतनी हड़बड़ी मत दिखओ। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम स्वर्ग से नरक जाने को इतना क्यों मरे जा रहे हो। मैं तुम्हें एक सप्ताह का मौका देता हूं, अच्छी तरह से अपने प्रपोजल पर विचार कर लो। एक सप्ताह बाद मुझे बताना। अगर तुम्हारी यही जिद रही, तो तुम्हें नरक भेज दिया जाएगा। लेकिन एक बात याद रखना। यदि नरक जाने पर तुम अडिग रहे, तो वहां से वापसी का मौका नहीं मिलेगा।Ó इतना कहकर धर्मराज ने मुझे वहां से जाने का इशारा किया और खुद अंतरध्यान हो गए।

मैँ भी भारी मन से वापस लौट आया। अब एक-एक पल गुजारना मुझे भारी पड़ रहा था। स्वर्ग पहले से ही मुझे सूना और उजड़ा सा लग रहा था। दिल धड़काऊ नृत्य देखने के बाद तो वह और भी बेकार लगने लगा था। खैर...किसी तरह शताब्दियों जैसे पल बीते और स्वर्ग का एक सप्ताह बीता। मैं अपनी पुरानी दरख्वास्त लेकर धर्मराज के हुजूर में पेश हुआ। धर्मराज मुझे देखते ही मुस्कुराए और बोले, 'अब तो तुम्हारे सिर से नरक जाने का भूत उतर ही गया होगा।Ó

मैंने हाथ जोड़कर दीनहीन स्वर में कहा, 'महाराज, बड़ी बेसब्री से सात दिन गुजारने के बाद नरक जाने की इच्छा और प्रबल हो उठी है।Ó

इस पर धर्मराज ने ताली बजाई, तो अदृश्य दो यमदूत प्रकट हो गए। उन्होंने सिर झुकाकर कहा, 'आज्ञा स्वामी..।Ó

धर्मराज ने यमदूतों से कहा, 'इस आत्मा को हवाई कोरियर से नरक भेज दिया जाए।Ó

यह सुनकर उन दोनों यमदूतों ने लपककर मुझे पकड़ लिया और खींचकर भवन के बाहर लाए। धर्मराज के मुंह से 'हवाई कोरियरÓ शब्द सुनकर मुझे ऐसा लगा कि मृत्युलोक की कुछ व्यवस्थाएं यहां भी लागू हैं। अगर किसी व्यक्ति को जल्दी से जल्दी इधर उधर ट्रांसफर करना होगा, तो किसी कोरियर कंपनी की सहायता ली जाती होगी। लेकिन कोरियर का मतलब भी जल्दी ही मेरी समझ में आ गया। उन दोनों यमदूतों ने मुझे लाकर उस स्थान पर खड़ा कर दिया, जहां से नरक की दीवार शुरू होती थी। फिर अचानक एक यमदूत ने मेरी दोनों टांगें पकड़ी और दूसरे ने दोनों बाहें।

इसके बाद उन्होंने मुझे झूला झुलाना शुरू कर किया। मृत्युलोक पर झूले से चक़्कर खा जाने वाला मैं नरक जाने के जोश में इसका आनंद उठाने लगा। दस-बारह झूला झुलाने के बाद उन यमदूतों ने मुझे नरक की ओर उछाल दिया। मैं किसी बेहतरीन बल्लेबाज द्वारा ठोके गए सिक्सर वाली बॉल की तरह स्वर्ग की बाउंड्री के उस पार स्थित नरक में जा गिरा। नरक में गिरा भी तो, एक खौलते हुए गरम तेल की कड़ाह में। खौलते तेल में गिरने से मुझे काफी तेज जलन महसूस होने लगी। मैं चिल्लाया, 'अरे बेहूदों! ..मुझे बाहर निकालो। अपने पापकर्मों की वजह से मैं नरक नहीं आया हूं। स्वर्ग का अधिकारी होते हुए भी मैंने नरक आना कबूल किया है और तुम लोगों का यह बरताव...। अरे, कुछ तो शर्म करो नालायकों..।

तभी मुझे पास में गरम भ_ी पर सेंकी जा रही आत्मा की हंसी सुनाई दी। वह मुझे देखकर हंस रही थी। मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था। मेरा मन हुआ कि लपककर उसके पास पहुंचूं और एक ही घंूसे में उसकी बत्तीसी अंदर कर दूं। लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी मैं कड़ाह से बाहर नहीं आ पा रहा था।

मैंने उससे पूछा, 'अबे, तू क्यों हंसते हुए मरा जा रहा है? कोई जोक्स सुना है क्या?Ó उस आत्मा ने हंसी पर ब्रेक लगाते हुए कहा, 'मैं जानता हूं तुम किस चक्कर में स्वर्ग से नरक में आए हो? वे नरक की पब्लिसिटी डिपार्टमेंट की अप्सराएं हैं, जो स्वर्ग से डेपुटेशन पर यहां भेजी गई हैं। स्वर्ग से ज्यादा वेतन और सुविधाओं का पैकेज देकर इन्हें यहां बुला लिया गया है। अब वे स्वर्ग में नहीं, नरक में पाई जाती हैं।Ó

'लेकिन मुझे श्राद्ध भोज के लिए उबाले जा रहे आलू की तरह कड़ाह में उबाला क्यों जा रहा है?Ó मैं हलक फाड़कर चिल्ला उठा।फिर सिसकते हुए बोला, 'और फिर उन अप्सराओं को वहां इस तरह क्यों नचाया जा रहा है।Ó

'अबे उल्लू! अगर इन अप्सराओं को वहां नचाया न जाए, तो फिर तुम जैसा कौन भकु आ स्वर्ग से नरक आना चाहेगा। हम तुम जैसे भुकुए ही इन अप्सराओं के चक्कर में फंसते हैं। उस झरोखे के पास नाचते हुए ये अप्सराएं नरक की पब्लिसिटी करती हैं, स्वर्ग के लोगों को लुभाती हैं, ताकि वे नरक आने को प्रेरित हों।Ó आत्मा यह कहते हुए हंस रही थी।

'लेकिन यह तो धोखा है....चीटिंग है..Ó कहते हुए मैंने कड़ाह सेबाहर निकलने के लिए हाथ-पांव पटके। तभी लगा कि मुझे कोई जगा रहा है। दरअसल, मेरी बीवी मेरा कंथा पकड़कर जगाते हुए कह रही थी, 'हाय राम...लगता है फिर कोई बुरा सपना देख रहे हैं। सुबह के सपने सच्ची होते हैं जी।Ó मैं उठकर अपने चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने पोंछने लगा था।