Laagdaat in Hindi Short Stories by Munshi Premchand books and stories PDF | लागदात

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लागदात

लागदात

प्रेमचंद


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लागदात

जोखू भगत और बेचन चौधरी में तीन पीढ़ियों से अदावत चली आती थी। कुछ डॉड-मेड़ का झगड़ा था। उनके परदादों में कई बार खून-खच्चर हुआ। बापों के समय से मुकदमेंबाजी शुरू हुई। दोनों कई बार हाईकोर्ट गये। लड़कों के समय में संग्राम की भीषणता और भी बढ़ी ।

यहाँ तक कि दोनों ही अशक्त हो ग । पहले दोनों इसी गाँव में आधे-आधे के हिस्सेदार थे।

अब उनके पास झगड़े वाले खेत को छोड़ कर के अंगुल भी जमीन न थी। भूमि गयी, धन गया, मान मर्यादा गयी, लेकिन वह विवाद ज्यों का त्यों बना रहा। हाईकोर्ट के धुरन्धर नीतिज्ञ के मामूली-सा झगड़ा तय न करे सके।

इन दोनों सज्जनों ने गाँव को दो विरोधी दलों में विभक्त कर दिया था। कइश्दल की भंग-बूटी चौधरी के द्वार पर छनती तो दूसरे दल के चरस-गाँजे के दम भगत के द्वार पर लगते थे। स्त्रियों और बालकों के भी दो-दो दल हो ग थे। यहाँ तक दोनों सज्जनों के सामाजिक और धार्मिक विचारों में भी विचारक रेखा खिंची हुई थी। चौधरी कपड़े पहने सत्तू खा लेते और भगत को ढ़ोगी कहते। भगत बिना कपड़े उतारे पानी भी न पीते और चौधरी को भ्रष्ट बतलाते। भगत सनातन धर्मी बने तो चौधरी ने आर्य समाज का आश्रय लिया।

जिस बजाज, पंसारी या कुंजड़े से चौधरी सौदा लेते उसकी ओर भगत जी ताकना भी पाप समझते थे और भगत जी के हलवाई की मिठाइयाँ, उनके ग्वाले का दूध और तेली का तेल चौधरी के लिएश्त्याज्य था। यहाँ तक कि उनके आरोग्य के सिद्धान्तों में भी भिन्नता थी भगत जी वैद्यक के कायल थे, चौधरी यूनानी प्रथा को मानने वाले थे। दोनों चाहे रोग से मर जाते पर अपने सिद्धान्तों को न छोड़ते।

जब देश में राजनैतिक आन्दोलन शुरू हुआ तो उसकी भनक उस गाँव में भी पहुँची।

चौधरी ने आन्दोलन का पक्ष लिया, भगत उसकी विपक्षी हो गये। क सज्जन ने आकर गाँव में किसान सभा खोली। चौधरी उसमें शरीक हुए, भगत अलग रहे। जागृति और बढ़ी, स्वराज्य की चर्चा होने लगी।

चौधरी स्वराज्यवादी हो ग, भगत ने राज्यभक्ति का पक्ष लिया। चौधरी का घर स्वराज्यवादियों का अड्डा हो गया, भगत ने राज्यभक्तों का पक्ष लिया। चौधरी का घर स्वराज्यवादियों का अड्डा हो गया, भगत घर राज्यभक्तों का क्लब बन गया।

चौधरी जनता में स्वराज्यवाद का प्रचार करने लगे-मित्रों, स्वराज्य का अर्थ अपना राज्य ।

अपने देश में अपना राज्य हो तो वह अच्छा है, कि किसी भी दूसरे का राज्य हो वह ?

जनता ने कहा-अपना राज हो वह अच्छा है।

चौधरी -तो स्वराज्य कैसे मिलेगा ? आत्मबल से, पुरूषार्थ से, मेल से । क दूसरे से द्वेष छोड़ दो, अपने झगड़े आप निपटा लो।

क शंका--आप तो नित्य अदालत में खड़े रहते हैं।

चौधरी -हाँ, पर आज से अदालत जाऊँ तो गऊहत्या का पाप लगे। तुम्हें चाहिए कि तुमश्अपनी गाढ़ी कमाई अपने बाल-बच्चों को खिलाओ, और बचे तो परोपकार में लगाओ, वकील-मुख्तारों की जेब क्यों भरते हो ? थानेदार को घूस क्यों देते हो, अमलों की चिरौरी क्यों करते हो ? पहले हमारे लड़के अपने धर्म की शिक्षा पाते थे, वे सदाचारी, त्यागी, पुरूषार्थी बनते थे। अब वे विदेशी मदरसों में पढ़कर चाकरी करते हैं, घूस खाते हैं, शौक करते हैं। अपने देवताओं और पितरों की निन्दा करते हैं, सिगरेट पीते हैं, बाल बनाते हैं और हाकिमों की गोड़धारियाँ करते हैं। क्या यह हमारा कर्तव्य नही है कि हम अपने बालकों को धर्मानुसार शिक्षा दें ?

जनता-चन्दे से पाठशाला खोलनी चाहिए।

चौधरी -हम पहले मदिरा छूना पाप समझते थे, अब गाँव-गाँव और गली-गली में मदिरा की दुकानें हैं। हम अपनी गाढ़ी कमाई के करोड़ों रूपये गाँजे-शराब में उड़ा देते हैं।

जनता - जो दारू-भाँग पि, उसे डाँड़ लगाना चाहिए।

चौधरी- हमारे दादा, बाबा, छोटे-बड़े सब गाढ़ा-गंजी पहनते थे। हमारे दादी, नानी चरखा काता करती थीं। सब धन देश में रहता था। हमारे जुलाहे भाई चैन की बंसी बजाते थे।

अब हम विदेश के बने हु महीन रंगीन कपड़ों पर जान देते हैं। इसी तरह दूसरे देश वाले हमारा धन ढो ले जाते हैं। बेचारे जुलाहे कंगाल हो ग। क्या हमारा यही धर्म है कि अपने भाइयों की थाली छीनकर दूसरों के सामने रख दें ?

जनता-गाढ़ा कहीं मिलता ही नहीं।

चौधरी-अपने घर का बना हुआ गाढ़ा पहनों, अदालतों को त्यागो, नशे-बाजी छोड़ो, अपने लड़कों को धर्म-कर्म सिखाओं, मेल से रहो, बस यही स्वराज्य है। जो कहते हैं कि स्वराज्य के लि खून की नदी बहेगी वे पागल हैं। उनकी बातों पर ध्यान मत दो।

जनता यह बात बड़े चाव से सुनती थी, दिनों दिन श्रोताओं की संख्या बढ़ती जाती थी।

चौधरी सबके श्रद्धा भाजन बनेगा ।

भगत भी राजभक्ति का उपदेश करने लगे-भाइयों, राजा का काम राज करना और प्रजा का काम उसकी आज्ञा का पालन करना है, इसी को राजभक्ति कहते हैं और हमारे धार्मिक ग्रन्थों में हमें इसी राजभक्ति की शिक्षा दी गयी है। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है, उसकी आज्ञा के विरूद्ध चलना महान् पातक है। राज विमुख प्राणी नरक का भागी होता है।

एक शंका-राजा को भी अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

दूसरी शंका- हमारे राजा तो नाम के हैं, असली राजा तो विलायत के बनिये महाजन हैं।

तीसरी शंका-बनिये धन कमाना जानते हैं, राज करना क्या जानें।

भगतजी - लोग तुम्हें शिक्षा देते हैं कि अदालतों में मत जाओ, पंचायतों में मुकदमें ले जाओ। ेसे पंच कहाँ हैं, जो सच्चा न्याय करें, दूध का दूध, पानी का पानी कर दें। यहाँ तो मुँह देखी बातें होगीं। जिनका दबाव है उनकी जीत होगी। जिनका कुछ दबाव नहीं वे बेचारे मारे जायेंगे। अदालतों में सब कार्रवाई कानून से होती है, वहाँ छोटे-बड़े सब बराबर हैं, शेर-बकरी सब क घाट पानी पीते हैं। इन अदालतों को त्यागना अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारना है।

क शंका-अदालतों में जायें तो रूपयों की थैली कहाँ से लावें।

दूसरी शंका-अदालतों का न्याय कहने ही को है, जिसके पास बने हुए, गवाह दाँव-पेंच खेले हुए वकील होते हैं उसी की जीत होती है, झूठे-सच्चे की परख कौन करता है, हाँ हैरानी अलबत्ता होती है।

भगत-कहा जाता है कि विदेशी चीजों का व्यवहार मत करो। यह गरीबों के साथ घोर अन्याय है। हमें बाजार में जो चीज सस्ती और अच्छी मिले, वह लेनी चाहिए, चाहे स्वदेशी हो या विदेशी। हमारा पैसा सेंत में नहीं आता कि भद्दी-भद्दी स्वदेशी चीजों पर फेंकें।

क शंका- पैसा अपने देश में तो रहता है, दूसरों के हाथ में तो नहीं जाता।

दूसरी शंका- अपने घर में अच्छा खाना न मिले तो क्या विजातियों के घर अच्छा भोजन करने लगेंगे ?

भगत-लोग कहते हैं कि लड़कों को सरकारी मदरसों में मत भेजो। सरकारी मदरसों में न पढ़ते तो आज हमारे भाई बड़ी-बड़ी नौकरियाँ कैसे पाते ? बड़े-बड़े कारखाने कैसे चलते।

बिना नयी विद्या पढ़े संसार में निर्वाह नहीं हो सकता, पुरानी विद्या पढ़कर पत्रा देखने और कथा बाँचने के सिवा क्या आता है ? राज-काज क्या वही पोथी बाँचने वाले लोग करेंगे ?

क शंका-हमें राज-काज नहीं चाहिए। हम अपनी खेती-बारी ही में मगन हैं तो किसी के गुलाम तो नहीं।

दूसरी शंका--जो विद्या घमंडी बना दे उससे मूरर्ख ही अच्छा । यह नयी विद्या पढ़करलोग सूट-बूट, घड़ी-छड़ी, हैट-कोट लगाने लगते हैं अपने शौक के पीछे देश का धन विदेशियों की जेब में भरते हैं। ये देश के द्रोही हैं।

भगत - गाँजा शराब की ओर आजकल लोगों की कड़ी निगाह है। नशा बुरी बात है सब जानते हैं। सरकार को नशे की दुकानों से करोंड़ों रूपये साल की आमदनी होती है। अगर दुकानों में न जाने से लोगों की नशे की लत छूट जा तो बड़ी अच्छी बात है। लेकिन लती की लत कहीं छूटती है। वह दुकान न जाय तो चोरी छिपे किसी न किसी तरह दोगुने-चौगुने दाम देकर, सजा काटने पर तैयार होकर अपनी लत पूरी करेगा। ेसा काम क्यों करो कि सरकार का नुकसान होकर लत पूरी करेगा। ऐसा काम क्यो करो कि सरकार का नुकसान अलग हो और गरीब रैयत का नुकसान अलग हो। और फिर किसी-किसी को नशा खाने से फायदा होता है। मैं ही एक दिन अफीम न खाऊँ तो गाँठों में दर्द होने लगे, दम उखड़ जा और सरदी पकड़ ले।

एक आवाज -शराब पीने से बदन में फुर्ती आ जाती है।

एक शंका - सरकार अधर्म से रूपया कमाती है, उसे यह उचित नहीं है । अधर्मी के राज्य में रहकर प्रजा का कल्याण कैसे हो सकता है ?

दूसरी शंका- पहले दारू पिला कर पागल बना दिया। लत पड़ी तो पैसे की चाट हुई।

इतनी मजदूरी किसको मिलती है कि रोटी कपड़ा भी चले और दारू शराब भी उड़े। या तो बाल-बच्चों को भूखा मारो या चोरी करो, जुआ खेलो और बेईमानी करो। शराब की दुकान क्या है, हमारी गुलामी का अड्डा है।

चौधरी के उपदेश सुनने के लि जनता टूटती थी। लोगों को खड़े होने की जगह न मिलती। दिनोंदिन चौधरी का नाम बढ़ने लगा ; उनके वहाँ पंचायत की राष्ट्रोन्नति की चर्चा रहती। जनता को इन बातों से बड़ा आनन्द और उत्साह होता। उनके राजनैतिक ज्ञान की वृद्धि होती। वे अपना गौरव और महत्व समझने लगे, उन्हें अपनी सत्ता का अनुभव होने लगा, निरंकुशता और अन्याय पर अब उनकी त्यौरियाँ चढ़ने लगीं। उन्हें स्वतन्त्रता का स्वाद मिला । घर की रूई, घर का सूत, घर का कपड़ा, घर का भोजन, घर की अदालत, न पुलिस का भय, न अमलों की खुशामद, सुख और शान्ति से जीवन व्यतीत करने लगे।

कितने ही ने नशेबाजी छोड़ दी और सदभाव कीश्एक लहर, सी दौड़ने लगी।

लेकिन भगत जी इतने भाग्यशाली न थे । जनता को दिनोदिन उनके उपदेशों से अरूचि होती जा रही थी। यहाँ तक कि बहुधा उनके श्रोताओं में पटवारी, चौकीदार, मुदर्रिस और इन्ही कर्मचारियों के मेली-मित्रों के अतिरिक्त और कोई न होता था, कभी-कभी बड़े हाकिम भी आ निकलते और भगतजी का बड़ा, आदर सत्कार करते, जरा देर के लि भगत जी के आँसू पुँछ जाते, लेकिन क्षण-भर का सम्मान आठों पहर के अपमान की बराबरी कैसे करता। जिधर निकल जाते उधर ही उँगलियाँ उठने लगतीं। कोई कहता खुशामदी टट्टू है, कोई कहता खुफिया पुलिस का भेदी है। भगत जी अपने- प्रतिद्वंद्वी की बड़ाई और अपनी लोक निन्दा पर दाँत पीस कर रह जाते। जीवन में यह पहला अवसर था कि उन्हें अपने शत्रु के सामने नीचा देखना पड़ा-चिरकाल से जिस कुल मर्यादा की रक्षा करते आये थे। और जिस पर अपना सर्वस्व अर्पण कर चुके थे वह धूल में मिल गयी। यह दाहमय चिन्ता उन्हें क क्षण के लिए चैन न लेने देती थी। नित्य यही समस्या सामने रहती कि अपना खोया हुआ सम्मान क्यों कर पाऊँ, अपने प्रतिपक्षी को क्यों कर पददलित करूँ ? उसका गरूर क्यों कर तोड़ूँ ?

अन्त में उन्होंने सिंह को उसकी माँद में पछाड़ने का निश्चय किया । संध्या का समय था। चौधरी के द्वार पर क बड़ी सभा में उपदेश हो रहे थे। आसपास के गाँव के किसान भी आ गए थे। हजारों आदमियों की भीड़ लगी थी। चौधरी उन्हें स्वराज्य-विषयक उपदेश दे रहेथे। बारम्बार भारत माता की जयकार की ध्वनि उठती थी। क ओर स्त्रियों का जमाव था।

चौधरी ने अपना उपदेश समाप्त किया और अपनी गद्दी पर बैठे। स्वयं सेवकों ने स्वराज्य फंड़ के लि चंदा करना शुरू किया कि इतने में भगत जी न जाने किधर से लपकते हु आये और श्रोताओं के सामने खड़े होकर उच्च स्वर में बोले-भाइयों, मुझे यहाँ देख कर अचरज मत करो, मैं स्वराज्य का विरोधी नहीं हूँ। ेसा पतित कौन होगा, जो प्राणी स्वराज्य का निंदक हो, लेकिन इसके प्राप्त करने का वह उपाय नहीं है जो चौधरी ने बतलाया है और जिस पर तुम लोग लट्टू हो रहे हो। जब आपस में फूट और रार हो तो पंचायतों से क्या होगा ? जब विलासिता का भूत सर पर सवार है तो वह कैसे हटेगा, मदिरा की दुकानों का बहिष्कार कैसे होगा ? सिगरेट, साबुन, मोजे, बनियाइन, अद्धी, तंजेब से कैसे पिंड छूटेगा? जब रोब और हुकूमत की लालसा बनी हुई है तो सरकारी मदरसे कैसे छोड़ोगे। विधर्मी शिक्षा की बेड़ी से कैसे मुक्त हो सकोगे ? स्वराज्य लाने का केवल एक ही उपाय है और वह आत्म-संयम है । यही महौषधि तुम्हारे समस्त रोगों को समूल नष्ट करेगी। अत्मा की दुर्बलता ही पराधीनता का मुख्य कारण है, आत्मा को बलवान बनाओ, इन्द्रियों को साधो, मन को वश में करो, तभी तुम में भ्रात-भाव पैदा होगा, तभी वैमनस्य मिटेगा, तभी ईर्ष्या और द्वेष का नाश होगा, तभी भोग विलास से मन हटेगा, तभी नशेबाजी का दमन होगा। आत्म-बल के बिना स्वराज्य कभी उपलब्ध न होगा। स्वार्थ सब पापों का मूल है, यहीं तुम्हें अदालतों में ले जाता है, यही तुम्हें विधर्मी शिक्षा का दास बनाये हुए है। इस पिशाच को आत्मबल से मारो और तुम्हारी कामना पूरी हो जायेगी। सब जानते हैं, मैं पचास साल से अफीम का सेवन करता हूँ, आज से अफीम को गौ को रक्त समझता हूँ। चौधरी से मेरी तीन पीढियों की अदावत है, आज से चौधरी मेरे भाई हैं। आज से मेरा घर के किसी प्राणी को घर के कते सूत के बने कपड़ों के सिवाय कुछ और पहनते देखो तो मुझे जो दंड़ चाहो दो। बस, मुझे हमें यही कहना है। परमात्मा हम सबकी इच्छा पूरी करें।

यह कहकर भगत जी घर की ओर चले कि चौधरी दौड़कर उनके गले से लिपट गये।

तीन पुश्तों की अदावत क ही क्षण में शांत हो गयी।

उस दिन से चौधरी और भगत साथ-साथ स्वराज्य का उपदेश करने लगे। उनमें गाढ़ी मित्रता हो गयी और निश्चय करना कठिन था कि दोनों में जनता किसका सम्मान करती है। प्रतिद्वंद्विता की चिनगारी ने दोनों पुरूषों के हृदय-दीपक को प्रकाशित कर दिया था।