Nari Shakti - Naina Lal Kidvai in Hindi Biography by Monika Sharma books and stories PDF | Nari Shakti - Naina Lal Kidvai

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Nari Shakti - Naina Lal Kidvai

नारी शक्ति

नैना लाल किदवई

मोनिका शर्मा

monikasharma1092@gmail-com



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अनुक्रमणिका

1ण्जन्म, शिक्षा व प्रारंभिक जीवन

2ण्करियर की शुरुआत

3ण्करियर में प्रमुख उपलब्धियां

4ण्सामाजिक कार्य

5ण्महिलाओं के लिए संदेश

जन्म, शिक्षा व प्रारंभिक जीवन

नैना लाल किदवई एक ऐसे परिवार से है जिसके सदस्यों ने सदा उच्च उपलब्धियाँ हासिल की है । उनके पिता एक प्रमुख भारतीय बीमा कंपनी के सीईओ थे, उनकी बहन भारत के शीर्ष गोल्फरों में से एक रहीं, और उनके पति, राशिद के. किदवई एक गैर — लाभकारी संस्था डिजिटल पार्टनर्स के प्रबंध निदेशक थे। किदवई हाई स्कूल में हर साल अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रहीं और उन्हें अपने स्कूल का कप्तान भी चुना गया । उनकी बचपन की सहेली, मीरा नायर, एक फिल्म निर्देशक ने टाइम्स अॉफ इंडिया को बताया,” जब मैं पहली बार नैना से स्कूल में मिली, वह तब से ही एक दिव्य चरित्र की भांति दृढ थी“ । वह प्रतिवर्ष अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पाती थी, वह हमेशा ही वाद विवाद प्रतियोगिताएँ जीता करती थी और उन्होंने हर खेल में अपने वि।ालय का प्रतिनिधित्व भी किया था । 16 वर्ष की आयु तक वह निश्चित कर चुकी थी कि उन्हें व्यापार में ही अपना करियर बनाना है, जो कि उस समय में केवल पुरुष अधिकारियों का ही गढ़ था ।

किदवई ने दिल्ली विश्ववि।ालय से अर्थशास्त्र की डिग्री प्राप्त की , जहाँ वह छात्र संघ की अध्यक्ष के रूप में चुनी गई थी और जहाँ उन्हे अपने कॉलेज का नेतृत्व करने के लिए सम्मानित भी किया गया । उन्होंने 1977 में प्राइस वाटरहाउस में एक शिक्षार्थी के लिए आवेदन करने से पहले चार्टेड एकाउंटेंसी का कोर्स पूरा किया । उनके सहयोगियों में से एक ने उनको बताया कि वे नहीं जानते की एक महिला के साथ कार्यक्षेत्र में कैसा व्यवहार किया जाता है क्योंकि उस संस्था में उनके अलावा कोई अन्य महिला कार्यरत नहीं थी । वह प्राइस वाटरहाउस के साथ 3 वषोर्ं तक एक स्वतंत्र लेखा परीक्षक के रूप में जुडी रही , उनका मुख्य कार्य कंपनी के ग्राहकों के लेखांकन और वित्त के रिकॉडोर्ं की जांच करना था कि वह स्थापित नीतियों , नियंत्रण , प्रक्रियाओं व कानूनों का अनुपालन कर रहें है या नहीं ।

किदवई ने फैसला किया कि अधिक से अधिक डिग्री प्राप्त करना ही उनके लिए लैंगिक भेदभाव से बचने का सबसे अच्छा उपाय था । सन्‌ 1982 में वह प्रतिष्ठित हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एम.बी.ए. करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं । स्नातक की पढाई करने के बाद किदवई भारत लौट आई और आ कर उन्होंने ए.एन.जेड. ग्रिंडलेज बैंक में कार्यभार सम्भाला । 1980 के दशक में भारत का निवेश बैंकिंग उ।ोग अपनी प्रारंभिक अवस्था में था , और ऐसे में नई व युवा महिला व्यावसायिकों के लिए किसी रोल मॉडल की कमी थी । किदवई ने अपना खुद का रास्ता पाया और वह तीन सालों के भीतर ग्रिंडलेज के लिए उसके पश्चिमी क्षेत्रीय निवेश बैंकिंग संचालन की मुखिया बन गईं । सन्‌ 1989 में पूरे विभाग का नेतृत्व करने के लिए उनको पदोन्नत किया गया । सन्‌ 1991 आते आते उन्होंने महसूस किया कि अब उनके लिए नई चुनौती लेने का समय आ गया और उन्होंने कंपनी के खुदरा बैंकिंग विभाग में जाने का निर्णय किया ।

करियर की शुरुआत

सन्‌ 1994 में मॉर्गन स्टैनले ने भारत में अपने दफ्तर खोलें और किदवई को अपने निवेश बैंकिंग के व्यापार को संभालने के लिए भर्ती किया । उन्होंने मॉर्गन स्टैनले को सूचना प्रौ।ोगिकी और दूरसंचार जैसे उभरते उ।ोगों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राजी कर लिया । जब किदवई ने निवेशकों और भारत की सबसे उच्च तकनीक कंपनियों के बीच वित्तीय समझौतों को करवाने की अपनी अद्‌भुत प्रतिभा को दर्शाया तो वह एक जितने वाली रणनीति साबित हुई । उन्होंने विप्रो और इंफोसिस जैसी भारत की शीर्ष आई.टी. कंपनियों के लिए वित्त पोषण पाया । उन्होंने भारत के सबसे तेजी से बढ़ते टेलिकॉम , भारती टेली वेंचर्स , और अग्रणी वाहन निर्माता , मारुती उ।ोग की आरंभिक सार्वजनिक पेशकश ( आईपीओ ) का भी प्रबन्धन किया ।

किदवई करियर की प्रमुख उपलब्धियां

किदवई ने मॉर्गन स्टैनले के लिए सन्‌ 1997 में मुंबई स्थित जे. एम. फाइनेंसियलस के साथ एक संयुक्त उ।म की नींव रखी । किदवई के नेतृत्व में , सन्‌ 1999 में बदले हुए नाम वाली कंपनी जे. एम. मॉर्गन स्टैनले करीब 700 मिलियन डॉलर के मूल्य के कॉर्पोरेट विलय के प्रबंधन के साथ भारत का सबसे महत्वपूर्ण निवेश बैंक बना ।

सन्‌ 2002 में एचएसबीसी सिक्योरिटीज ने ( हांगकांग और शंघाई बैंक कारपोरेशन का ही एक हिस्सा है ) उन्हें भारत में उनके कार्य का उपाध्यक्ष , प्रबंध निदेशक और निवेश बैंकिंग का मुखिया नियुक्त किया । कंपनी के प्रतिभूति व्यापार और अनुसंधान की देख—रेख भी उन्हें सौंप दी गई थी । किदवई को कई अमेरिकन बैंकों ने भी उनके साथ काम करने का प्रस्ताव दिया परन्तु , उन्होंने टाइम पत्रिका को बताया कि वह कभी भी भारत के अलावा कहीं ओर काम नहीं करना चाहती रू ” अमेरिका में भलें ही मुझे ज्यादा बेहतर समझोते व सौदे करने का मौका मिला हो परन्तु यहाँ भारत में यह उससे कहीं अधिक जरूरी एक बदलाव , एक सुधार का कार्य था , सही दिशा में लोगों को प्रभावित करने का “ ।

किदवई को आत्म प्रेरित , आत्म विश्वासी और एक चालाक व्यापारी कहा जाता था । सन्‌ 2003 में उन्हें भारत का सबसे ज्यादा वेतन पाने वाला बैंकर माना गया । उन्हें अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान भी मिले । सन्‌ 2002 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 15 सबसे होनहार युवा अधिकारियों ( ” वैश्विक प्रभावशाली “ ) की सूचि में शामिल किया । फार्च्‌यून पत्रिका और भारत की बिजनेस टुडे पत्रिका ने उन्हें सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूचि में शामिल किया । फिर भी उन्होंने हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी टीम को ही दिया । उन्होंने भारत की बिजनेस टुडे पत्रिका को समझाया , ” निवेश बैंकिंग , विभिन्न आयामों और कौशल वाले लोगों को एक साथ ले कर आने के बारे में है “ । उन्होंने टाइम्स अॉफ इंडिया को बताया , ” मैं मानती हूँ कि मेरी सफलता का सारा श्रेय मेरे साथ काम करने वाली टीमों को जाता है “ । ” हमेशा लोगों का एक समूह होता है जो कि किसी विचार को सफल बनता है न कि कोई अकेला एक इंसान “ ।

सामाजिक कार्य

सन्‌ 2003 तक किदवई को लगा कि अब महिला संबंधी भेदभाव समाज में उतना नहीं रहा जितना की उनके समय में हुआ करता था , उन्होंने इशारा किया कि व्यापार और वाणिज्य का अध्ययन करने वाली महिलाओं की संख्या उनके समय के मुकाबले अब दस गुना बढ़ गई है । उसी प्राइस वाटरहाउस के कार्यकारी ने जो कि सन्‌ 1977 में एक महिला के साथ काम करने से हैरान था उन्हें बताया कि सन्‌ 2002 तक उनको महिलाओं की तुलना में योग्य पुरुष उम्मीदवारों को ढूँढने में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा ।

किदवई अपने समुदाय में स्वरोजगार महिला संगठन और डिजिटल पार्टनर्स जैसे संगठनो के साथ सक्रिय थी । डिजिटल पार्टनर्स , उनके पति द्वारा संचालित एक गैर — लाभकारी संगठन जो कि अमीर और गरीब के बीच का तकनीकी अंतर कम करने का काम करती है ।

महिलाओं के लिए संदेश

किदवई ने टाइम्स अॉफ इंडिया को बताया, ” मैं इस बात में बहुत विश्वास रखती हूँ कि हम जो कुछ भी समाज से लेते है वो हमे समाज को भी वापस लौटाना चाहिए“ ।