अपने पर हंस कर जग को हंसाया
आशीष कुमार त्रिवेदी
'ज़िंदगी करीब से देखने में एक त्रासदी है और दूर से देखने में कॉमेडी।'
यह कहना है उस शख्स का जिसने वर्षों तक अपने दुखों को अपने भीतर छिपा कर लोगों को हंसाया। इन्हें विश्व सिनेमा का सबसे बड़ा कॉमेडियन माना जाता है। अपने जीवन की मुश्किलों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यह लगातार लोगो को हंसाने का काम करते रहे। उनका कहना था कि हंसी के बिना बिताया हुआ दिन बर्बाद किये हुए दिन के बराबर है।
इस महान शख्सियत का नाम था चार्ली चैपलिन।
बचपन में आप सभी ने बिना संवाद वाली ब्लैक और व्हाइट फिल्में ज़रूर देखी होंगी। इनमें हैट लगाए, छोटी सी मूंछ रखे एक शख्स लड़खड़ता हुआ चलता है। उसका नाम ट्रंप था। इस चरित्र को निभाने वाले अभिनेता का नाम चार्ली चैपलिन था। उस शख्स की हरकतों पर हम हंस हंस कर लोटपोट हो जाते थे। तब क्या कभी हम सोंचते थे कि पर्दे पर उस चरित्र को निभाने वाले अभिनेता के अपने जीवन में कितनी उथल पुथल होगी। नहीं क्योंकी वह व्यक्ति हमें सिर्फ एक मसखरा लगता था।
यही कारण था कि चार्ली चैपलिन ने कहा कि पास से जो त्रासदी है वही दूर से कॉमेडी। सर्कस में नाटे कद का आदमी चेहरे पर रंग लगा कर, रंग बिरंगे कपड़े पहन कर हमे हंसाता है। हम उसे जोकर कहते हैं। उसके गिरने पर हंस कर ताली बजाते हैं। उसकी ऊटपटांग हरकतों पर खूब मज़ा लेते हैं। लेकिन जोकर बना वह इंसान दरअसल अपने दुख का सौदा कर रहा होता है।
वैसे अपनी तकलीफों को छिपा कर दूसरों को हंसा सकना बहुत कठिन काम है। जो यह काम करता है उसका पूरा ध्यान इस बात पर रहता है कि वह दर्शकों का मनोरंजन कैसे कर सकता है। अपने ग़म को भुला कर केवल दूसरों की खुशी के बारे में सोंचना पड़ता है।
चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल 1889 को लंदन में हुआ था। पिता चार्ल्स स्पैंसर चैपलिन व माँ हाना चैपलिन सीनियर म्यूज़िक हॉल में गायन और अभिनय करते थे। आरंभ के तीन वर्षों को छोङकर चार्ली का बचपन बहुत ही कठिनाइयों व गरीबी में व्यतीत हुआ था। अपने कॉन्सर्ट से इनके माता पिता को इतना पैसा नही मिलता था कि वो ऐशो आराम की जिन्दगी बिता सकें। इन स्टेज कार्यक्रमों से बस उनको दो वक़्त की रोटी मिल जाती थी |
इन कॉन्सर्ट के दौरान दर्शको को शराब पिलाना आम बात थी जिसकी वजह से चार्ली चैपलिन के पिता को भी शराब की लत लग गयी थी | शराब के नशे में वो अब अपने पारिवारिक जीवन से दूर होते जा रहे थे जिसकी वजह से चार्ली चैपलिन के माता पिता के बीच संबंध बिगड़ते जा रहे थे। अंततः माता पिता का संबंध विच्छेद हो गया।
चार्ली तथा उनका बड़ा भाई सिडनी हाना के साथ रहते थे। हाना आर्थिक रूप से कमज़ोर हो रही थी। कोई मदद करने वाला भी नहीं था। हाना की आवाज़ भी अब पहले जैसी नहीं रही थी।
एक बार जब हाना गाना गा रही थी तभी अचानक आवाज़ बंद हो गई। वह स्टेज पर गाना न गा सकी। दर्शकों ने जोर-जोर चिल्लाना शुरू कर दिया। कोई उपाय ना देख कर मैनेजर ने पाँच साल के नन्हें चार्ली को स्टेज पर लाकर खड़ा कर दिया। चार्ली ने अपनी भोली आवाज में माँ के गाने की नकल की जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। स्टेज पर सिक्कों की बारिश होने लगी। यही चार्ली की पहली कमाई थी। लोगों ने चार्ली से एक और गाना गाने की फरमाइश की। इस पर चार्ली ने कहा “पहले मुझे मंच पर पड़े सिक्के उठाने दो उसके बाद गाने सुनाऊंगा।" यह बात सुनते ही दर्शकों में एक ज़ोरदार ठहाका गूंज उठा। पैसे उठाने के बाद चार्ली ने फिर गाना शुरू किया। जनता उनके गानों पर झुमने लगी। यह चार्ली के लिए मनोरजन के क्षेत्र में पहली शुरुआत थी।
शायद इसी घटना के बाद बालक चार्ली समझ गया कि अपने दुख दर्द से भी हास्य पैदा किया जा सकता है। चार्ली की फिल्मों में दुख, दरिद्रता, अकेलेपन तथा बेरोजगारी से जूझते पात्रों का चित्रण किया गया है। जो अपनी हरकतों से हमें हंसाते रहे।
चार्ली की माँ हाना के पास कुछ नहीं बचा था। इसने उसके स्वास्थ पर भी असर डाला। हाना को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस बीच चार्ली और उनके भाई को एक लॉ स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया। तब चार्ली की आयु 7 साल और सिडनी की 11 साल थी। सिडनी अपने छोटे भाई का पिता के समान खयाल रखता था। वह दुख में हमेशा उसके साथ रहता था | एक बार चार्ली के सिर में खारिश होने के कारण उनका सिर घुटा दिया गया। बच्चे उनके मूंडे हुए सिर की वजह से उनका मजाक उड़ाते थे। उन्हें कमतर होने का एहसास कराते थे। लेकिन इन कठिन परिस्तिथियो में भी चार्ली ने हार नही मानी।
इसी दौरान माँ के पागल हो जाने की खबर मिली। कुछ दिनों तक चार्ली और सिडनी अपने पिता व सौतेली माँ के साथ भी रहे। यहाँ सौतेली माँ की प्रतारणा सहनी पड़ी। पिता सदैव नशे में धुत्त रहते थे। इसके चलते उनकी मृत्यु हो गई। पिता की मौत और माँ के मानसिक रूप से बीमार होने के कारण चार्ली बिल्कुल अनाथ हो गए थे। अपना जीवन चलाने के लिए उन्हें कुछ काम करने की जरूरत थी। चार्ली को “लंकाशायर लैंड्स ” नामक एक बाल नृत्य मंडली में सम्मिलित कर लिया गया। इस मंडली के मालिक जेक्सन बहुत दयालु व्यक्ति थे। चार्ली मंडली के साथ काम करने लगे। किंतु दो वर्ष बाद ही उस मंडली में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया।
एक बार फिर चार्ली के सामने रोज़गार ढूंढ़ने की समस्या आ खड़ी हुई। वह शराबखानों के बाहर खड़े होकर फूलों के गुलदस्ते बेचने लगे। परंतु माँ को डर था कि कहीं उन्हें भी पिता की तरह शराब की लत ना लग जाए। अतः माँ के ज़ोर देने पर चार्ली ने यह काम छोड़ दिया। वह छोटे मोटे काम कर अपना पेट पालते रहे।
14 साल की उम्र में चार्ली को सेंट्सबेरी के नाटक a Romance of Cockayne में काम करने का प्रस्ताव मिला। 1903 में इस नाटक का प्रदर्शन हुआ लेकिन नाटक ज्यादा सफल नही रहा। केवल दो सप्ताह में ही यह बंद हो गया। लेकिन इस नाटक में चार्ली के अभिनय को बहुत सराहा गया। इसका लाभ यह रहा कि चार्ली को से शेरलॉक होम्स नाटक में पेज ब्वॉय बिली का किरदार निभाने का मौका मिला। ढाई साल तक इस नाटक में काम करने के बाद चार्ली ने यह नाटक छोड़ दिया।
सन 1908 में चार्ली ने Vaudeville कंपनी में हास्य कलाकार के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। जिसके फलस्वरूप सन 1910 में यूनाइटेड स्टेटस की फ्रेड कार्नो रेपेर्टिरे कंपनी में प्रधान अभिनेता बनने का मौका मिला।
चार्ली के फिल्मी कैरियर का आरंभ 1914 में हुआ। इनकी पहली फिल्म का नाम था 'मेकिंग अ लिविंग' जो फरवरी 1914 में रिलीज हुई थी। इसके बाद चार्ली ने 'किड ऑटो रेसिस एट वेनिस', (1914), 'हिज न्यू जॉब'(1915), 'अ नाइट इन द शो' (1915), 'ट्रिपल ट्रबल' (1918), 'द गोल्ड रश' (1925), 'द ग्रेट डिक्टेटर' (1940) और 'द चैपलिन रिव्यू' (1959) जैसी कई विख्यात फिल्मों में काम किया।
चार्ली चैपलिन का व्यक्तिगत जीवन भी उथल पुथल से भरा रहा। इन्होंने चार शादियां कीं लेकिन पहली तीन शादियां अधिक सफल नहीं रहीं। इन शादियों से उन्हें कुल 11 संताने हुईं। चार्ली अपनी माँ से बहुत प्रभावित थे। जब वह प्रसिद्ध हो गए तब उन्होंने अपनी माँ को अपने साथ रखा। 1928 में उनकी माँ की मृत्यु हो गई। चार्ली का कहना था कि वह जो भी हैं उसका कारण उनकी माँ हैं।
जिस अमेरिका में उन्हें इतनी शोहरत व इज़्जत मिली वहीं एक ऐसा समय भी आया जब अमेरिकी सरकार उन पर संदेह करने लगी। उनके कम्युनिस्ट विचारों के कारण उन्हें रूस का ऐजेंट कहा जाता था। अमेरिकी खूफिया ऐजेंसी FBI उन पर कई सालों तक जासूसी करती रही। अंततः वह स्वीटज़रलैंड में बस गए।
चार्ली महात्मा गांधी से प्रभावित थे। लंदन में एक बार उनकी मुलाकात गांधीजी से हुई थी। चार्ली ने अपनी डायरी में लिखा था कि वह यह सोचने पर मजबूर हो गए कि राजनीति के इस माहिर खिलाड़ी से वह किस मुद्दे पर बात करें।
चार्ली ने गांधीजी से पूछा था कि आधूनिक समय में वह मशीनों का विरोध क्यों करते हैं? जवाब में बापू ने कहा था कि वह मशीनों के विरोधी नहीं हैं बल्कि उनका विरोध इस बात से है कि मशीनों की आड़ में इंसान ही इंसान का शोषण कर रहा है। गांधीजी की इसी बात से प्रभावित होकर चार्ली ने 'टाइम मशीन' नाम की एक फिल्म भी बनाई थी।
चार्ली चैपलिन ने अपने जीवन में 75 वर्ष से भी ज्यादा समय कार्य किया। चार्ली ने अपनी अधिकतर फिल्मों में ट्रंप नामक चरित्र को निभाया। ट्रंप दरअसल चार्ली के अपने बचपन की ही छवि थी। दुबले पतले, छोटे कद के फटेहाल ट्रंप के बेफिक्री के अंदाज़ ने लोगों का मन खूब लुभाया। गरीबी से जूझते इस चरित्र में दुनिया भर के मेहनतकश लोग अपनी झलक देख पाते थे। ट्रंप के चरित्र ने यह दिखाया कि गरीबी व तंगहाली में भी हंसने के मौके मिल सकते हैं।
उस दौर में जब पूरा युरोप आर्थिक महामंदी झेल रहा था और हिटलर का नाज़ीवाद अपने चरम पर था तब चार्ली किसी शीतल झोंके की मानिंद लोगों को अपने हास्य से सहला रहे थे। चार्ली ने सिखाया कि जब समय प्रतिकूल हो तो अपनी तकलीफों में भी हास्य खोजा जा सकता है।
चार्ली चैपलिन को अनेक पुरस्कारों सम्मानित किया गया। 1929 में उन्हें 'द सर्कस' के लिए अकादमी मानद पुरस्कार दिया गया। 1972 में लाइफ टाइम अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया। 1952 में सर्वोत्तम ओरिजनल म्युजिक स्कोर पुरस्कार लाइमलाइट के लिये प्राप्त हुआ। 1940 में द ग्रेट डिक्टेटर में किये अभिनय के लिये सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार तथा न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक सर्कल अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1972 में कैरियर गोल्डन लायन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
25 दिसंबर 1977 को उनकी मृत्यु हो गई। यह उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है कि वर्ष 1995 में ऑस्कर अवार्ड के दौरान द गार्जियन नामक अखबार द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि मृत्यु के बीस साल बाद भी चार्ली फिल्म समिक्षकों और दर्शकों के सबसे पसंदीदा अभिनेता थे।
इस महान अभिनेता का कहना था
“मेरा दर्द किसी के लिए हंसने की वजह हो सकता है। पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहिए। “