परती जमीन
रौशन पाठक
नमन
सर्वप्रथम मैं नमन करता हूँ बाबा (दादाजी) और दाई (दादी) को फिर नमन करता हूँ पापा (पिता) और मां (माता) को| जिनके संघर्ष से मेरा अस्तित्व रहा है और आशीष से जीवन|
मैं नमन करता हूँ स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद जी को जिनकी रचनाये प्रेरणा भी रहीं और मार्गदर्शक भी|
धन्यवाद
मैं धन्यवाद करता हूँ आनंद पाठक (भाई) का जिसने मुझे उत्साहित किया इस कहानी को लिखने के लिए और उससे कहीं अधिक इसलिए की उसने मुझे प्रोत्साहित किया हिंदी में लिखने के लिए|
मैं धन्यवाद करता हूँ राव्या पाठक (बेटी) का जिसकी खिलखिलाती हंसी ने मुझे व्यस्तता के बावजूद तनाव मुक्त रखा और मैं यह कहानी लिख पाया|
मैं धन्यवाद करता हूँ और राखी पाठक (बहन) का जिसने इस किताब के आवरण पृष्ठ को अंकित किया|
मैं धन्यवाद करता हूँ रूपा पाठक (पत्नी), रूबी पाठक (बहन) और मेरे समस्त परिवार का उनके प्रेम और स्नेह के लिए|
प्रेरणा स्त्रोत
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्|
- गीता
अथार्त,
जीवात्मा का विनाश करने वाले "काम, क्रोध और लोभ" यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को नरक में ले जाने वाले हैं|
संतोषं परम सुखं
इंसान के समस्त दुखों का कारण उसकी अपनी इच्छाएँ है|
लालच बुरी बला है|
लालच इंसान का चरित्र बदल देती है|
भाग
स्थानांतरण
लोभ
शपथ
निर्वासन
साझेदारी
अनावरण
***
(३)
शपथ
आज रामचरण को मरे पंद्रह दीन बीत चुके थे, रामचरण के लड़के पंद्रह दिनों से घर पर ही थे, कोई खेतों पे काम करने भी नहीं गया| पहले पांच दिन दाना पानी भी गणेशिया के घर से ही आती रही, कभी उसकी घरवाली पहुँचाती और कभी गणेशिया खुद, लेकिन फिर रगनिया को ये एहसास हुआ की कितने दिन वो दुसरो के चूल्हे के बदौलत अपने बच्चों को पालेगी, तो उसने अपने घर का चूल्हा फूंका|
गणेशिया आँगन के किनारे पॉंव लटकाये बैठा था, रामबाबू आँगन में खाट से लगकर बैठा था, आँगन में चूल्हे के सामने रगनिया आंच बढाने के लिए चूल्हे में जलावन ठुसे जाती थी| सुर्खी सो चुका था, और नवजीवन और जीवछ कमरे में बैठे थे|
देख लो, रामबाबू कैसे अंधेर नगरी में हम सब रह रहे हैं और कैसे यहाँ इंसानो का निबाह होगा| मैंने पंचायत बैठाने की मांग की थी, गुनहगारों को खोजकर उसे सजा देने की मांग की थी, लेकिन किसी ने चर्च भी ना किया - गणेशिया बोल ही रहा था की रामबाबू बीच में ही बात काट कर बोला - हम क्या यह नहीं जानते की मनहर और उसके बेटे ने ये काण्ड किया है, जो हम गुनेहगार को खोजने जाएँ और अगर गाँव वाले पंचायत नहीं बिठाते ना सही हम इस अन्याय का प्रतिशोध स्वतः ही लेंगे|
यह सब सुनकर नवजीवन और जीवछ घर से बाहर निकल आये और रामबाबू के पास जाकर बैठ गए|
गणेशिया कुछ बोलने को हुए - तभी दरवाज़े पर एक दस्तख सुनाई दी, और कैलाशी चमार की आवाज़ आयी - मै हु कैलाशी|
रामबाबू ने आवाज़ लगायी - भीतर आ जाओ
कैलाशी चमार आँगन के अंदर आया और दरवाज़े से लगकर बैठ गया|
गणेशिया ने गंभीर स्वर में पूछा - क्या है रे कैलशिया रात को इधर कैसे आया ?
कैलाशी ने सदैव की तरह मासूमियता के साथ बोलना शुरू किया - मालिक मैं स्वर्गवासी रामचरण मालिक का बहुत आदर करता था, मैंने उन्हें सदैव देवता की तरह माना है| मैं भी बेहद सदमे में हूँ की कैसे किसी ने उस देवता सामान व्यक्ति की निर्मम हत्या की| और जो कुछ मैंने अभी सुना मुझे लगा की ये बात आप लोगों को बता देनी चाहिए|
रामबाबू ने सख्ती से सवाल किया - क्या सुना ?
कैलाशी ने कहा - मैं मनहर मालिक के घर अपनी मजूरी मांगने गया था, वहीँ मैंने सुना की मनहर अपने बेटे से उस खेत को जोतने की बात कर रहे थे|
इतना कहकर कैलाशी चमार उठ खड़ा हुआ और बोला - मैं चलता हूँ मालिक, मेरे बच्चे भूखे हैं उन्हें भोजन करा लूँ|
कैलाशी चमार बाहर निकला उसने देखा की सामने गुरूजी खड़े है, उसने आँखे चुराई और अपने घर के तरफ बढ़ चला, गुरूजी उसके पीछे चल पड़े| कैलाशी ने अपनी चाल तेज कर दी और संग ही गुरूजी ने भी| कैलाशी दायीं और अपने घर की तरफ मुड़ गया और गुरूजी अपनी घर की ओर बायीं तरफ, कैलाशी ने पीछे मुड़कर देखा, गुरूजी वहीँ खड़े उसे देखते रहे, कैलाशी तेज कदमों से भागता रहा जैसे वह कोई गुनाह करके भाग रहा हो, गुरूजी तब तक खड़े रहे जब तक कैलाशी अपने झोपड़े में नहीं चला गया| उसके बाद गुरुजी ने अपने घर का रुख किया|
गणेशिया ने रामबाबू की तरफ देखा और दृठता से बोला- जिस जमीन पर तुम्हारे पिता की हत्या हुई,वो जमीन किसी के अधीन नहीं होनी चाहिए अगर उस जमीन को जोतने का किसी को हक़ है तो सिर्फ तुम्हारा|
शपथ लो की उस जमीन को किसी को जोतने नहीं देंगे|
रामबाबू उठ खड़ा हुआ और चूल्हे से आंच में लगी हुई लकड़ी जिसका एक सिरा जल कर लाल हो चुका था, उठा लाया और उसे रखकर उस के करीब हाथ रखकर बोला - सौगंध आग की, उस जमीन पर अगर किसी और ने हल डाली तो उसे पहले उसी हल से मेरी छाती चिरनी होगी|
रगनिया विस्मित भाव से मुड़कर रामबाबू का आग बबूला चेहरा देखती रही, उसे रामचरण की वो ज़मीन जोतने वाली सौगंध याद आने लगी जो मृत्यु से पहले रामचरण ने ली थी|
रात घनी हो चली थी, घर में सब सो रहे थे, रामबाबू ने हाथ में कुल्हारी उठाई और घर से दबे पाँव बहार निकल आया| उसने दृढ निश्चय किया था की वो चुपके से उसके उद्दंड बेटे शम्भू को मौत के घाट उतार देगा, इससे उसके पिता के मौत का बदला भी हो जायेगा और उस जमीन को मनहर जोत भी नहीं पायेगा|
आक्रोश से भरे तेज कदमों से वह अपने खेतों के किनारे से होता हुआ मनहर के खेत के किनारे पहुंचा,| जहाँ रामचरण के खेत की सीमाएं समाप्त होती थी वही से मनहर का खेत शुरू था, धान के छोटे छोटे पौधे बोये जा चुके थे और खेत इस वक्त कीचड़ और पानी से भरा हुआ था| मनहर के खेत और घर के बीच की जमीन ऊंची थी जो उसके घर को उसके खेत से अलग करती थी| रामबाबू अभी मनहर के खेत के किनारे से चल ही रहा था की उसने कुछ आवाज़े सुनी, ये आवाज़े मनहर के खेत के किनारे बनी झोपड़े से आ रही थी| एक पल को रामबाबू ठहर गया, उसे लगा की शायद एक से ज्यादा लोग है झोपड़े में| उसने सोच रखा था की मनहर का बेटा शम्भू खेत की रखवाली के लिए अकेला होगा और वो उसे मारकर अपने बाप के हत्या का बदला पूरा करेगा| कुछ ही पल में रामबाबू को एहसास हुआ की झोपड़े से कोई निकल कर भागा| रामबाबू सरपट दौड़ कर झोपड़े के पास पहुंचा, उसका पूरा बदन सिहर उठा, क्रोध करुणा में बदल गया, उसके हाथ पॉंव सुन्न हो गए, झोपड़े के दरवाज़े पर मनहर का छोटा बेटा सुन्दर खून से लथपथ पड़ा था, रामबाबू ने दूर तक किसी को भागते देखा| रामबाबू को ये भांपते देर ना लगी की अगर किसी ने उसे हाथ में कुलहारी लिए वहां देख लिया तो ये हत्या उसके सर चढ़ेगी और इस भय से वह तुरंत अपने घर की तरफ रवाना हुआ|
सुबह आठ बज रहे थे, शम्भू चीखता हुआ भय से आतंकित अपने घर की तरफ भागता हुआ आया, मनहर अब भी पट्टीयों में बंधा घर के बहार खाट पर बैठा था, उसने शम्भू को देखते ही भय भरे स्वर में पूछा, क्या हुआ शम्भू?
शम्भू विलखती हुई आवाज़ में बोला, बाबू सुन्दर को मार दिया|
मनहर के जैसे प्राण सुख गए, वो उठने की कोशिश करने लगा और खाट से गिर पडा, फुलसिन ने ज्यों ही सुना छाती पीटती घर से बहार आयी और खेतों की तरफ दौड़ पड़ी, लंगड़ाता हुआ ज्यों-त्यों मनहर भी पीछे चल पड़ा| कुछ लोग जो हल लेकर सुबह खेतों पर जा रहे थे, वो भी साथ हो लिए, किसी ने मनहर को सहारा दिया, लोग मनहर के खेतों पर पहुँचने लगे भीड़ जम गयी| चीख-पुकार और रोने की आवाज़ में सारा वातावरण दुखमय हो गया| ऐसा कोई व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था जिसकी आँखों से अश्रु न निकले हो|
एक दुखद घटना जिसने लोगों के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था और तभी वहां कुछ लोग ये समाचार लेकर आनन फानन में पहुंचे की नदी किनारे गुरूजी की निष्प्राण शरीर प्राप्त हुआ| गुरूजी सुबह नित्य क्रिया के लिए घर से नदी की तरफ आये थे और इसके बाद वो घर नहीं लौटे| जब लोग खोज बिन में पहुंचे तो उनको नदी किनारे निष्प्राण पाए गए|
आपसी रंजिश में एक अबोध बालक की निर्मम हत्या अति निंदनीय थी साथ ही लोग इस यह संशय में थे की, क्यों किसी ने गुरूजी की हत्या की ? क्या उनका इस झगडे से कुछ लेना देना था ?| पुरे दिन तक क्रिया कर्म और रोना-धोना होने के साथ-साथ ये चर्च भी चलता रहा की, इन सब का निपटारा होना चाहिए इस तरह से अप्रिय घटनायें बर्दाश्त नहीं की जा सकती| संध्या काल धरमु, बलराम और कुछ गाँव के लोग मिलकर बलेश्वर लाल के घर पहुंचे|
सभी को बैठने का आमंत्रण दिया गया, बैठ चुकने के बाद धरमु ने बलराम की तरफ देखा और बलराम ने कहा - इस तरह से गाँव में घटनायें दुखद है और इसके रोकथाम के लिए उचित कदम उठाना हम सबका कर्तव्य है|
धरमु जैसे इंतज़ार कर रहा हो और उसने झट बोलना शुरू किया- जो हत्या के दोषी है उन्हें सजा दिया जाना चाहिए जिससे गाँव में हो रही अप्रिय घटना और ना हो|
बलेश्वर लाल ने लम्बी सांस ली और बोले मैं भी इन घटनाओं से बहुत आहत हुआ हूँ, और मैं तुम लोगो के साथ हूँ| गणेशिया ने भी पंचायत के गठन का सुझाव दिया था और मैं तभी से इस बारे में सोच रहा था लेकिन पिताजी के स्वास्थ्य को लेकर व्यस्तता के कारण मैं तुम लोगो से बात नहीं कर पाया|
धरमु ने ये प्रस्ताव रखा की बलेश्वर लाल और बलराम उस पंचायत के पंच होंगे, बलराम ने ये आग्रह किया कम से कम तीन लोग होने चाहिए और धरमु भी उस पंचायत में शामिल हो, कुछ और गाँव वालो ने भी इस तर्क में समर्थन दिया, धरमु ने पहले जरा संकोच दिखाया लेकिन अंततः राजी हुआ|
गाँव के कुछ बच्चो को इकठ्ठा किया गया और सभी के घर घर ये खबर पहुंचाई गयी की अगली सुबह धरमु के घर के आगे पंचायत का बुलावा आया है, मनहर और रामचरण के घर विशेष समाचार पहुँचाया गया की सपरिवार उपस्थित ना होने पर गाँव वाले परित्याग कर देंगे और उन्हें एकांत की सजा दी जाएगी|
आगे पढ़े भाग ४ – निर्वासन