Antar jatiy Sambandh in Hindi Love Stories by Lakshmi Narayan Panna books and stories PDF | अंतर जातीय सम्बन्ध

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अंतर जातीय सम्बन्ध

अंतरजातीय सम्बंध

( एक अमर प्रेम )

भाग-1

यह कहानी एक ऐसे प्रेम की कल्पनिक कथा है जहाँ प्रेम की प्रगाढ़ता के सामने जाति-धर्म के बन्धन टूट जाते हैं । फिर शुरू होती है प्रेम और अहंकार के बीच कभी न खत्म होने वाली जंग । इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं परन्तु यह कहानी बदलते हुए आधुनिक समाज में भी होने वाली ऑनर किलिंग की सत्य घटनाओं पर आधारित है ।

( कहते हैं कि बचपन जीवन का सबसे ज्यादा अच्छा समय होता है । बचपन में न तो मन में किसी के लिए मैल होता है, न ही किसी प्रकार की ईर्ष्या या द्वेष । कहने को तो बच्चे अच्छा बुरा कुछ नही जानते, लेकिन क्या हम जो अपने को समझदार समझते हैं, अच्छे बुरे की पहचान रखते हैं ? कहीं हम अपने मन में भरी हुई गन्दगी को ही तो बुद्धिमता नही समझ बैठे हैं । बचपन को न तो धर्म और न ही जाति से कोई मतलब होता है । बचपन की तो बस एक ही खूबी है सबके लिए प्यार बस प्यार ही प्यार । हम कहते हैं कि सब ईश्वर ने बनाया है, तो फिर पैदा होते ही वह मन मस्तिष्क में जाति धर्म की समझ क्यों नही भर देता ? जैसे प्यार बचपन का गुण है वैसे ही एक बच्चे को बताने की जरूरत ही न पड़ती की वह किस जाति या धर्म का है । इसी प्रकार हर उस बच्चे को अपनी जाति - धर्म का ज्ञान होता जिसे जन्म लेते ही फेंक दिया जाता है और उसे पालने वाले व्यक्ति भी यह भली भांति पहचान सकता कि वह बालक किस जाति धर्म से सम्बंध रखता है । परन्तु ऐसा कुछ नही होता । कुछ लोग जिनमें स्वार्थ होता है वे एक नवजात को फेंक देते हैं और जिनमें प्यार होता है वे उसे पालते हैं । वे कभी उस बच्चे की जाती धर्म से मतलब नही रखते बच्चा भी उन्हें और उनके जाति धर्म को ही अपना मानता है । फिर भी एक बात तो जरूर है कि वे उसका जाति धर्म का अंतर व भेदभाव तो सिखा ही देते हैं । यह कहानी एक ऐसे प्रेमी युगल की है जो बचपन से ही साथ-साथ खेले,पढ़े- लिखे, और बिछड़े फिर मिले । जब फिर मिले तो प्यार हो गया ।इस प्रेम की प्रगाढ़ता के कारण थे बचपन के खुशनुमा पल । )

उस दिन सोनापुर गाँव में मातम का माहौल था । गाँव में एक साथ पास-पास दो चिताएं धूं-धूं कर जल रही थीं, उनसे उठती हुईं लपटे आपस में लिपटकर एक-दूसरे में विलीन हो जा रहीं थीं । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि आज मुद्दत के बाद उन्हें गले मिलने की पूरी आजदी मिली हो । अग्नि स्वयं के फेरे ले रही हो और पूरा गाँव दुल्हन की विदाई पर रहा हो । परन्तु अमर बहादुर इस अग्नि में भीतर ही भीतर जल रहे थे । उनकी आँखों से आंसुओं की नदी बह रही थी कि आँखों में जैसे समन्दर भरा हो । फिर भी अंदर जल उठ रही आग बुझ नही पा रही थी । वह व्यक्ति शायद जीवन में पहली बार रोया होगा । उनके दुख का कारण था कि उन चिताओं में से एक चिता उनकी लाडली सौम्या की थी । बहुत सारी धन-दौलत होने के बावजूद भी अमर बहादुर आज लाचार और बेवश नजर आ रहे थे । दूसरी चिता थी सेवाराम के बेटे प्रकाश की । उनके मुँह से तो आवाज ही नही निकल रही थी । आँखों में आँसू की एक बून्द नही । आँसू तो जैसे चिताओं का आग में भाप बनकर उड़ गए थे । वे एकदम खमोश थे जैसे कि उनसे किसी ने शब्द ही छीन लिए हों । बस कभी -कभी जोर से कराहते फिर चुप हो जाते । स्थिति ऐसी थी कि किसी ने आग लगाई तो उनका भी घर जल गया ।

अमर बहादुर और सेवाराम दोनों सोनापुर के ही निवासी हैं । उनके बच्चे सौम्या और प्रकाश एक ही स्कूल में पढ़ते थे । दोनों ही पढ़ने में बहुत अच्छे थे उनके शिक्षक भी उन्हें प्यार करते थे । चूंकि पढ़ने में दोनों ही अच्छे थे और एक ही क्लास में थे इसलिए दोनों में दोस्ती भी थी । दोनों एक दूसरे से किसी भी प्रकार से कम नही थे । फर्क था तो बस इतना कि प्रकाश एक गरीब किसान का बेटा था और सौम्या पुस्तैनी जमीदारों के घर की बेटी थी । लेकिन बचपन यह सब नही जानता वह तो बस एक दूसरे से प्यार चाहता है । जमीदारी भी अब रही नही लेकिन सौम्या के घर की आर्थिक स्थिति प्रकाश के घर से अच्छी थी । सौम्या प्रकाश और उनके सभी दोस्त एक साथ ही लंच करते, एक साथ खेलते । उनके बीच ऊंच-नीच या अमीर-गरीब का कोई भी भेद-भाव नही था । हँसते खेलते और पढ़ते वक्त गुजरता गया प्राइमरी की पढ़ाई खत्म हुई तब सारे दोस्त आगे की पढ़ाई के लिए अपने अपने अभिभावकों द्वारा चुने हुए विद्द्यालयों की चर्चा करते, कभी खुश होते तो कभी इस बात की चिंता भी करते कि पता नही कौन-कौन साथ रहेगा और कौन बिछुड़ेगा । आगे की पढ़ाई के लिए सारे बच्चे अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से अलग-अलग विद्द्यालयों में दाखिला करवा के पढाई में व्यस्त हो गए । सबको नया विद्द्यालय नए दोस्त मिल गए । लेकिन वे अपने पुराने दोस्तों को भूले नहीं थे । अपने नए दोस्तों से अक्सर ही पुरानी बातें और दोस्तों के बारे में बताया करते थे । धीरे-धीरे वे बड़े हो रहे थे उनमें शारीरिक बदलाव हो रहे थे । पहले जो लड़के बिना दाड़ी मूँछ के भोले-भाले दिखते थे अब उनके चेहरे पर जवानी का तेज चमकने लगा था । लड़कियों की भोली आंखें अब खूबसूरत दिखने लगीं थीं । सभी अब एक जैसे नही रहे थे कुछ बहुत ही सीधे-सादे थे तो कुछ चालक हो गए थे । सभी आस पास ही पढ़ते थे तो कभी-कभार कोई न कोई एक दूसरे से मिल ही जाता था और फिर बचपन की यादें ताजा हो जाती थीं । उन बातों को याद करके बड़ा सकून मिलता था । ऐसा लगता था कि शायद वे अब इतने खुश नही हैं जितने पहले थे । कभी हाथ में पतली छड़ी लिए गुरु जी तो कभी साथ में बैठ कर लंच करते दोस्त बहुत याद आते थे । अब तो कोई गुरु जी अच्छा प्रदर्शन करने पर पीठ भी नही थपथपाते थे नही किसी बात पर डाँटते थे बस क्लास में आये और पढा कर चले गए परीक्षा के अंक भी बोर्ड द्वारा मिलते थे, कभी कभार खराब अंक मिलने पर गुरु जी बस इतना कहते कि ठीक से पढ़ाई नही करोगे तो यही होगा । इसके अलावा कहते भी क्या किशोरावस्था में बच्चों को ज्यादा डांट-फटकार भी तो नही लगाई जा सकती । क्योंकि जवान लड़के कहीं भड़क गए तो गुरु शिष्य का रिश्ता भी याद नही रखते या कभी कभी तो अवसादग्रस्त होकर उल्टे-सीधे कदम उठा लेते हैं ।

धीरे-धीरे वह समय आ गया जब कुछ ने पढाई छोड़ कर कोई काम धंधा पकड़ लिया, कोई खेती-बाड़ी में लग गया तो कोई उच्च शिक्षा के लिए शहर निकल गया । अब तो वर्षों बाद भी मुलाकात मुश्किल हो गई । सौम्या और प्रकाश भी उच्च शिक्षा के लिए अलग-अलग शहर में पढ़ाई करने चले गए । अपनी पढ़ाई में दोनों इतना व्यस्त हो गए कि जब कभी वापस गाँव लौटे तो भी मुलाकात नही हुई या सायद जरूरत भी नही थी और सामाजिक तौर तरीके भी तो देखने होते हैं अब वे बच्चे तो रहे नही की घूमते खेलते मिल जाएं । सौम्या तो घर से बाहर ही बहुत कम आती क्योंकि गाँवों में घर के बड़े बुजुर्गों के बनाए गए कुछ कायदे कानून देखने पड़ते हैं । समय बीतता गया दोनों पढ़ाई पूरी करके नौकरी की तैयारी करने लगे । इधर उनके घर वाले उनकी लिए वर व वधु की तलाश कर रहे थे । प्रकाश के घर वालों ने तो उससे इस विषय पर बात भी की और उसने कुछ दिन रुकने को कहा । इधर सौम्या को तो पता भी नही कि उसके घर वाले उसके लिए वर ढूंढ रहे हैं । उसे तो तब पता चला जब उसके पास माँ का फोन आया। उसकी माँ ने कहा कि वह अगले शनिवार तक घर आ जाये क्योंकि उसको देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं । अब वह क्या करे उसे तो नौकरी के लिए तैयारी करनी थी और घरवाले उसकी शादी के लिए तैयारियों में लगे हैं । जैसे तैसे उसने माँ को समझाया कि वह अभी शादी नही करना चाहती तो कुछ समय तक रुक जाएं ताकि आत्मनिर्भर हो सके । लेकिन घर वालों यह बात बताना उसकी माँ के बस की नही थी । सौम्या को आना ही पड़ा । भला हो दहेज की बीमारी का कि अधिक दहेज की मांग के कारण वह रिश्ता नही हो पाया । जिस कारण सौम्या को तैयारी का समय मिल गया ।

दूसरी तरफ प्रकाश का सिलेक्शन एक सरकारी विभाग में अधिकारी पद पर हो गया था । वह अपने काम में पूरी तरह व्यस्त हो गया था उसे अब पुरानी बात याद करने का समय भी नही रह गया था । वह समय भी आ गया जब सौम्या का सिलेक्शन भी उसी विभाग में हो गया जहाँ प्रकाश पहले से ही पोस्टेड था ।

एक दिन जब दोनों पहली बार मिलते हैं, तो वे एक दूसरे के लिए अजनबी होते हैं । वे दोनों ही यह नही जान पाते कि वे बचपन के दोस्त हैं और साथ साथ पढ़े हैं । क्योंकि बचपन में छोटे-छोटे बालों से दो चोटी करने वाली नकचढ़ी लड़की अब वैसी नही रही थी । अब वह सुंदर सुड़ौल और आकर्षक शरीर वाली जवान युवती थी । उम्र के अनुसार पर्याप्त वसा का जमाव शरीर को आकर्षण और त्वचा को चमक प्रदान कर रहा था । उसकी बड़ी- बड़ी मनमोहक आँखें और घने लम्बे बाल उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे । उस दिन हरित वस्त्रों में उसका गौर बदन और भी आकर्षक लग रहा था, उसके खूबसूरत गुलाबी होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे कोई खिलता हुआ कमल मुस्करा कर कह रहा हो की तेरी ही तलाश थी मुझे । प्रकाश भी अब वैसा नही था उसके चेहरे पर जीत की रौनक साफ दिखती थी पहले की तरह गरीबी के कारण परेशान सा दिखनेवाला मासूम प्रकाश नही था । अब वह गठीले शरीर वाला आत्मविश्वास से भरा हुआ एक हष्ट-पुष्ट नवयुवक था ।

दोनों ही एक दूसरे को पहचान नही रहे थे फिर भी उनको ऐसा लग रहा था कि वे पहले भी कभी मिले हैं, पर कहाँ ? कुछ याद नही आ रहा था । एक ही विभाग में थे तो मिलना जुलना तो होता ही था लेकिन बातचीत के लिए ज्यादा वक्त तो होता नही की पहले-दूसरे दिन ही किसी की तहकीकात करने लगेगा कोई । एक दिन जब विभाग के ही एक व्यक्ति के घर पर दावत थी तो वे दोनों भी वहाँ पहुँचे । पार्टी में तो समय ही समय था कि दोनों एक-दूसरे से अच्छी तरह बात कर सकते थे, वैसे भी सौम्या के लिए सभी लोग नए ही थे । लेकिन उसका ध्यान तो प्रकाश पर ही था क्योंकि उसे देखते ही उसके मन में कुछ चित्र चलने लगते । ठीक यही स्थित प्रकाश की भी थी । मौका अच्छा था ही दोनों एक दूसरे के बारे में जानना भी चाहते थे । समस्या यह थी कि पहले पूछे कौन ? खैर प्रकाश ने पहल की और उसने सौम्या से कह ही दिया कि उसने उसे पहले भी कहीं देखा है । यही बात सौम्या ने भी कही की उसे भी ऐसा ही लग रहा है । तब दोनों को समझते तनिक भी देर नही लगी कि वे दोनों बचपन के दोस्त हैं । फिर क्या था कुछ पल के लिए दोनों ही यादों के भंवर में घूमने लगे । बचपन की सभी यादें लड़ना- झगड़ना, रूठना-मनाना सब कुछ एक पल के लिए हकीकत सा लगने लगा । फिर किसी ने सौम्या को आवाज दी और दोनों पुनः ख्वाबों से निकलकर हकीकत में आये । कोई उनसे कह रहा था कि ये क्या बचपना है ? कब से एक दूसरे से बच्चों की तरह लड़ रहे हो ! अब तो सभी को पता भी चल गया कि तुम लोग एक-दूसरे के बचपन के दोस्त हो । चलो पार्टी एन्जॉय करो पुरानी बातें घर जाके अच्छे से याद करना । जिंदगी में कभी-कभी ऐसे ही वक्त की कमी के करण बहुत से दोस्त पीछे छूट जाते हैं ।

फिर उन लोगों ने पार्टी का पूरा आनन्द लिया और खूब जी भर के बातें की, उनको ऐसा लग रहा था कि जैसे बचपन वापस लौट आया हो । इसके बाद तो प्रकाश और सौम्या में अक्सर ही बातें होने लगीं । अक्सर सांय काल मे ऑफिस से निकलकर पहले वे दोनों साथ बैठकर चाय पीते फिर अपने अपने आवास के लिए चले जाते । रफ्त-रफ्त समय गुजर रहा था दोस्ती अपना स्वरूप बदलने की तैयारी में थी । बचपन की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदलने लगी थी । परन्तु वे इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि वे एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं । क्योंकि एक लंबे अर्से के बाद मिले उसके बाद एक ही स्थान पर काम करते वक्त पता ही नही चला कि वे एक दूसरे के लिए क्या अहमियत रखते हैं । एक-दूसरे की जिंदगी में क्या जरूरत है क्या नही , इसका कभी एहसास नही हुआ । प्यार है या हुआ समझ पाना या जान पाना इतना आसान नही है । क्योंकि प्यार सोची समझी रणनीति के तहत नही होता । यह ऐसा एहसास है जो तब पता चलता कोई जान पाता है कि कोई व्यक्ति उसकी जिंदगी में क्या एहमियत रखता है । एक दिन जब प्रकाश को अचानक किसी काम से बाहर जाना पड़ा और वह दो-तीन दिन नही दिखा तब सौम्या को एहसास हुआ कि वह प्रकाश को प्यार करने लगी है । क्योंकि अब उसकी कमी उसे खल रही थी । वह प्रकाश के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी । साथ ही साथ अपने प्यार का इजहार कैसे करे यह सोंच कर परेशान भी थी । मन में तरह- तरह के प्रश्न भी उठ रहे थे कि क्या यह सही हो रहा है, कभी सोंचती उसके घर वाले क्या कहेंगें । क्या प्रकाश भी प्यार करता है या नही ? कभी यह सोंच कर चिंतित होती कि कहीं प्रकाश इस बात से नाराज न हो जाये । अगर ऐसा हुआ तो उनकी दोस्ती भी टूट जाएगी अपना इतना अच्छा दोस्त वह खोना नही चाहती थी । फिर यह भी सोंचती कि कहीं वह देर न कर दे कि वह अपने प्यार को फिर कभी न पा सके । वह इसी उधेड़बुन में लगी थी कि प्रकाश भी वापस आ गया । अब जब सौम्या प्रकाश से मिली तो रोज की अपेक्षा आज वह कुछ अलग सा महसूस कर रही थी । वह प्रकाश से रोज की तरह बात नही कर पा रही थी । आज तो वह कुछ कहते-कहते अटक जा रही थी । प्रकाश को लगा कि उसकी तबीयत ठीक नही है, उसने पूछा तो सौम्या ने कहा नही सब ठीक है । लेकिन प्रकाश समझ रहा था सब कुछ तो ठीक नही है । उसने सौम्या से कहा तुम्हारी तबियत ठीक नही है मैं तुम्हे डॉक्टर को दिखाते हुए घर तक छोड़ देता हूँ । प्रकाश ने उसे पास के ही एक क्लीनिक पर डॉक्टर को दिखाकर घर तक छोड़ दिया ।

प्रकाश यह तो समझ गया कि सौम्या परेशान है मगर उसका कारण नही समझ पाया । सौम्या जो कहना चाहती थी, वह कह नही पा रही थी । प्रकाश भी सौम्या से प्यार तो करता था परन्तु वह भी कहने की हिम्मत नही कर पा रहा था । जिस लड़की को वह बचपन से जनता है, जिससे हमेशा ही सामान्य रूप से और दोस्तों की तरह ही मिलता आया हो उससे प्यार का इजहार करना उसके लिए भी आसान नही था । उसको भी यही डर था कि अगर सौम्या किसी और को प्यार करती हो या वह लवर के रूप में वह सौम्या को पसंद नही आया तो कहीं वह नाराज न हो जाए । मोहब्बत की आग तो दोनों तरफ धधक रही थी परन्तु उसको हवा देने की हिम्मत कोई नही जुटा पा रहा । गजब स्थिति बनी हुई थी कि प्यास लगी है, कुँआ भी है, लेकिन पानी निकलने के लिए रस्सी कौन लाये । लेकिन किसी न किसी को तो पहल करनी ही पड़ेगी, प्यार हुआ है तो इजहार होना ही है । किसी ने खूब लिखा "इश्क़ छुपता नही छुपाने" ।

प्यार का इजहार ही करना हो तो इतना कठिन नही था यहाँ तो एक सबसे बड़ी समस्या थी कि एक अंतर जातीय प्रेम था । सौम्या और प्रकाश इस बात को बाखूबी समझ रहे थे इस कारण उनके लिए कोई भी निर्णय लेना और भी कठिन था । दोनों के मन में एक ही बात थी कि कहीं इस जाति व्यस्था के कारण ही इनमें से कोई किसी को नापसंद न कर दे । उनकी यह चिंता जायज भी थी क्योंकि हमारा समाज ऐसे रिश्तों को स्वीकार ही नही करना चाहता । बाबा आदम के जमाने की रूढ़िवादी सोंच ने पहले भी उनके जैसे तमाम सौम्या और प्रकाश को मौत के घाट उतार दिया है । कुछ को समाज के लालची तत्वों ने मार दिया कुछ को इतना मजबूर कर दिया कि उनके सामने दो ही विकल्प थे अपनी जान दें या मोहब्बत की कुर्बानी । फिलहाल समय बदल रहा था परन्तु हर मनुष्य की सोंच पूरी तरह नही बदली थी । पहले की अपेक्षा लड़कियों पर पाबन्दी कम हुई थी, जातिवादी मतभेद भी कम हो रहा था परन्तु यह सब कुछ शहरों तक ही सीमित था ।

इस उधेड़बुन ने सौम्या को काफी आहत किया वह किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले ही आने वाले तूफान की आहट से सहम जाती थी । उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा था, प्रकाश से मिले बगैर वह रह भी नही सकती थी और उससे कुछ कह भी नही सकती थी । प्रकाश उसके व्यवहार में आये हुए परिवर्तन के बारे में सोंचने को मजबूर हो गया कि आखिर क्या बात है ? हमेशा मुस्करा कर मिलने वाली खुशमिजाज सौम्या अचानक गुमशुम सी क्यों रहने लगी ? उससे सौम्या की ये हालत देखी नही जा रही थी वह उसके व्यवहार से भलीभांति परिचित था । कुछ दिनों से वह देख रहा था कि सौम्या उससे मिलती है तो लगता है कुछ कहना चाहती है पर बिना कुछ कहे ही चली जाती है । सौम्या की परेशानी ने प्रकाश के प्यार को बल दिया । उसने सोंचा भले ही सौम्या उसे न चाहती हो पर एक दोस्त के नाते उसे चाहिए कि वह सौम्या की परेशानी को जाने और उसकी मदद करे ।

अगले दिन जब वह सौम्या से मिला तो पूँछ ही लिया कि "क्या बात है सौम्या ? आजकल काफी परेशान हो कोई समस्या हो तो मुझे बताओ एक दोस्त के नाते जो हो सकता है मैं करूंगा । सौम्या ने टालने की कोशिस की परन्तु प्रकाश ने दोस्ती का वास्ता देकर सौम्या को और परेशान कर दिया । वह क्या कहे ? कैसे कहे ?क्या सही है? क्या गलत है ? उसे कुछ समझ नही आ रहा था । वह भावनाओं के समंदर इस प्रकार उलझी की सीधे प्रकाश के शीने से लिपटकर रोने लगी । प्रकाश उसे समझने की कोशिस करता रहा । फिर उसने इतना कहा तुम समझते ही तो नही हो मैं क्या कहूँ । इससे पहले कि प्रकाश कुछ बोले वह रोती हुई चली गई । अब प्रकाश को समझ आने लगा कि कुछ ऐसा है जो वह कहने की हिम्मत नही जुटा पा रही है । उस रोज प्रकाश पूरी रात यही सोंचता रहा कि क्या बात हो सकती है । फिर जब "उसने सौम्या का शीने से लिपट कर रोना और यह कहना कि तुम समझते ही तो नही हो" वाले दृश्य पर ध्यान दिया तो तस्बीर साफ हो गई । वह समझ गया कि सौम्या उसे प्यार करती है पर कह नही पा रही । उसने सौम्या को तुरंत मोबाइल कॉल किया । और फिर बिना देर किए उससे अपनी मोहब्बत का इजहार कर डाला । सौम्या की एक परेशानी तो दूर हो गई, यह जानकर उसके शरीर में जान आई कि प्रकाश भी उसे उतना ही प्यार करता है जितना कि वह उससे करती है । वह तो ख़ामोखः डर रही थी कि कहीं प्रकाश उसके प्यार को ठुकरा न दे । सौम्या ने आखिर आई लव यू टू कह ही दीया । वह एक बार फिर रो पड़ी, मगर इस बार उसकी खूबशूरत आँखों से निकले आंशू खुशी के थे ।

दोनों बहुत खुश थे एक-दूसरे की मोहब्बत पाकर । लेकिन उनकी परेशानियां कम नही थीं, उनकी मोहब्बत तभी तक जिंदा रह सकती थी जब तक किसी की नजर न लगे । अभी वे मोहब्बत की कश्ती पे सवार हुए ही थे कि उनकी जिंदगी के समन्दर में तूफानी लहरें उठने लगीं, जिनकी उन्हें भनक तक नही लगी । सुलगते हुए इश्क़ से उठते धुँए ने किसी को खबर कर ही दी होगी कि उनके प्यार को किसी की नजर लग गई । सौम्या और प्रकाश दोनों के घरों में रिश्ते देखे जा रहे थे । वैसे भी यह तो होना ही था माँ-बाप भी चाहते हैं कि समय पर वे शादी व्याह करके फ़ुर्सत पाएँ तो अच्छा है । अब उनकी चिंताएं बढ़ने लगीं । सौम्या ने प्रकाश से कहा कि वह उसके बिना नही जी सकती, कुछ करो नही तो मेरे घरवाले मेरा व्याह कहीं और कर देंगे । अगर ऐसा हुआ तो मैं अपनी जान दे दूँगी । प्रकाश ने उसे समझाया कि हम शादी करेंगें और घर वालों की रजामंदी से । सौम्या ने कहा, पर कैसे ? मेरे घरवालों को कौन मनाएगा । तब प्रकाश ने कहा कि वह पहले अपनी माँ से बात करे, अगर उसकी माँ तैयार हो गई तो पिता जी को मना ही लेंगीं । सौम्या को यह सलाह उचित लगी । एक दिन सौम्या ने अपनी माँ से इस सम्बन्ध में बात की । यह सुनकर उसकी माँ के पैरों तले से मानो जमीन ही खिसक गई हो । उसकी माँ ने कहा बिटिया दोबारा यह मत कहना अगर तुम्हारे पापा को पता चला तो वे तुम दोनों को जिंदा जला देंगे, और मेरा क्या होगा मुझे भी नही पता । सौम्या ने कहा आप लोग रिश्ता ढूंढ ही रहे हैं, और जिस तरह का रिश्ता आप ढूंढ रहे हैं, वह सब तो है प्रकाश में । प्रकाश वेल एडुकेटेड, समझदार लड़का है और तो और अच्छी सरकारी नौकरी भी है । कमी क्या है ? सौम्या की माँ बेटी की बात से सहमत थी लेकिन वह समाज के रूढ़िवादी विचारों को बदल तो सकती नही थी । उसने कहा 'जाति', वो बहुत छोटी जाति का है, और दूसरी बात कि अपने ही गाँव का है । यह बात अगर किसी को पता चली तो नाते रिश्ते से लेकर पूरे गाँव में हमारी थू-थू हो जाएगी । सौम्या किसी भी हाल में अपना प्यार खोना नही चाहती थी । उसने माँ से कहा की वह प्रकाश के बिना नही जी सकती । उसकी माँ उसे समझाती रही कि हम लड़कियों को ये समाज इतनी आजादी अभी नही देता की हम अपनी पसन्द नापसन्द बता सकें । इस घर के बड़े बुजुर्ग अपनी आनमान के अहंकार में सब कुछ भूल जाते । माँ तो माँ ही होती उसके लिए सभी नियमों या रश्मों से बढ़कर उसके बच्चों की जान और खुशी महत्व रखती है । वह सौम्या की जिद के आगे मजबूर हो गई । उसने कहा उचित समय देखकर बात करेगी तब तक प्रकाश से मिलना जुलना कम ही रक्खे तो ठीक होगा । अगर उसके पिता को कहीं से इसकी भनक भी लगी तो अनर्थ हो जाएगा ।

ऐसा ही माहौल कुछ प्रकाश के घर में था । परन्तु वह अपने माता-पिता का अकेला लड़का था, इसलिए उस माता-पिता को मनाने में अधिक दिक्कत नही हुई । उसके पिता ने कहा बेटा तुम्हारे सिवा हमारा कोई दूसरा सहारा नही है कुछ भी करना सोंच समझ के । वे लोग बहुत खतरनाक हैं अगर उन्हें यह बात नगवांर गुजरी तो खून खराबा हो जाएगा । जब तक सौम्या उन्हें खुद तैयार नही कर लेती तब तक अपनी तरफ से उन लोगों से कोई बात मत करना । हो सकता है बेटी का प्यार उनको बदल दे और वे उसकी भलाई के लिए भेदभाव मिटा कर इस रिश्ते के लिए तैयार हो जाएं । लेकिन मेरा मन घबरा रहा है । सावधान रहना कहीं उन लोगों को समझाने से पहले इस रिश्ते की जनकारी न होने पाए ।

***