Koi meri beti ko bachao in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | कोई मेरी बेटी को बचाओ

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कोई मेरी बेटी को बचाओ

कोई मेरी बेटी को बचाओ

“माँ, मैं स्कूल नहीं जाऊँगी” सुकन्या ने दबी जुबान में माँ से कहा। “क्यों क्या हुआ बेटा?” राधिका ने बेटी सुकन्या के बाल संवारते हुए प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर कर पूछा।

पहले तो सुकन्या चुप हो गयी, फिर थोड़ी देर बाद कहने लगी, “माँ! गली के नुक्कड़ पर खड़े चार लड़के मुझे ऐसे घूर कर देखते हैं जैसे खा जाएंगे, मुझे उनकी नजरों से भय लगता है।”

माँ ने समझाया, “बेटा! मैं स्वयं तुझे छोडने स्कूल जाया करूंगी और तेरी छुट्टी के समय तुझे लेने तेरे स्कूल के गेट पर आ जाया करूंगी, तू चिंता न कर, मेरी बहादुर बेटी बन और पढ़ लिख कर एक दिन बहुत बड़ी अधिकारी बनना, अगर स्कूल नहीं जाएगी तो पढ़ेगी कैसे, और पढ़ेगी नहीं तो बड़ी अधिकारी कैसे बनेगी, चल जल्दी नाश्ता कर ले, लंच बॉक्स अपने बैग में रख ले, जल्दी चल नहीं तो स्कूल पहुँचने में देर हो जाएगी।”

सुकन्या बहुत ही सुंदर थी, अभी नवीं कक्षा में पढ़ रही थी, माँ व पिता की अकेली संतान होने के कारण दोनों का भरपूर प्यार भी मिल रहा था, और इस प्यार ने उसको थोड़ा जिद्दी बना दिया था। उस दिन बाज़ार में सुकन्या को एक महंगी परी वाली ड्रेस पसंद आ गयी जो राधिका और मोहन की सामर्थ्य से बाहर थी, लेकिन सुकन्या बार बार वही ड्रेस लेने की जिद्द कर रही थी।

सुकन्या के ज्यादा जिद्द करने पर मोहन ने अपने क्रेडिट कार्ड से बिटिया को वह परी वाली ड्रेस खरीद कर दे दी।

घर जाकर सुकन्या ने ड्रेस पहन कर दिखाई और पूछा, “माँ-पापा मैं कैसी लग रही हूँ?” माँ ने तुरंत ही काजल की डिब्बी खोल कर सुकन्या के चेहरे पर एक काला टीका लगा दिया और अपने अंक में भर कर कहने लगी, “मेरी बेटी बिलकुल नन्ही परी लग रही है।”

माँ राधिका रोजाना अपनी बेटी सुकन्या को सुबह स्कूल छोडने जाती और दोपहर में स्कूल की छुट्टी होने से पहले ही सुकन्या को लाने के लिए स्कूल के गेट के बाहर खड़ी हो जाती। सुकन्या भी छुट्टी होने पर दौड़ कर मुसकुराते हुए स्कूल के गेट से बाहर आकर माँ से लिपट जाती और अपना बैग माँ के कंधे पर टांग कर माँ के साथ साथ चलने लगती।

उस दिन सुकन्या अपनी माँ को पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बताते हुए साथ साथ चल रही थी, तभी अचानक एक वैन आकर उन दोनों के पास रुकी और दरवाजा खोल कर सुकन्या को अंदर खींच लिया। राधिका अचानक इस तरह घटने वाली घटना से घबरा गयी और ज़ोर ज़ोर से शोर मचाने लगी, “कोई मेरी बेटी को बचाओ, कोई मेरी बेटी को बचाओ।”

वहीं बराबर में सो रहे मोहन की आँख राधिका के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज सुनकर खुल गयी और देखा कि राधिका सोते हुए ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही है, “मेरी बेटी को बचाओ, मेरी बेटी को बचाओ।” मोहन ने राधिका को हिला कर जगाया और इस तरह ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने का कारण पूछा।

राधिका रो रही थी, आँखों से आँसू निकल रहे थे और बुरी तरह से डरी हुई थी। रोते रोते अभी भी राधिका बड़बड़ा रही थी, “मोहन वे लड़के हमारी बेटी को उठाकर ले गए, वो मेरी बेटी को मार डालेंगे, मैं कुछ भी नहीं कर पायी।”

मोहन से राधिका से पूछा, “राधिका! हमारी कौन सी बेटी? क्या कोई डरावना सपना देखा? अभी तो हमारे कोई बच्चा ही पैदा नहीं हुआ, फिर तुम कौन सी बेटी की बात कर रही हो?”

“मोहन मैंने बहुत ही भयानक सपना देखा, हमारी बेटी बहुत सुंदर है, परी की तरह, मैं उसको स्कूल से लेकर आ रही थी कि तभी वो लड़के जो उसे घूरते रहते थे, एक वैन में उठाकर ले गए........”

“मोहन मैं अब चैक करवा कर पता करूंगी अगर मेरे गर्भ में लड़की हुई तो मैं उसको जन्म नहीं दूँगी, मैं नहीं चाहती कोई मेरी बेटी को उठाकर ले जाए, उसकी छोटी उम्र में ही उसका समूहिक बलात्कार हो और उसके बाद उसको मार दिया जाए।”

मोहन ने प्यार से राधिका का सिर सहलाया और फिर से सुला दिया लेकिन सुबह जागने के बाद राधिका ने फिर उसी बात की जिद्द पकड़ ली, “मैं लड़की को जन्म नहीं देना चाहती।”

राधिका जरा सोचो, तुम्हारे गर्भ को सात महीने हो गए हैं, और आज तक तो तुम भगवान से यही प्रार्थना करती रहीं कि भगवान हमें एक सुंदर सी लड़की देना, अभी तो हमें मालूम भी नहीं कि तुम्हारे गर्भ में लड़की है या लड़का........ दुर्घटनाएँ घटती हैं लेकिन लोग गाड़ी चलाना या रेल में बैठना बंद तो नहीं कर देते.......माँ दुर्गा भी तो एक लड़की है जिसने असंख्य राक्षसों का वध किया।

कुछ दिन बाद राधिका ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया, दो दिन बाद मोहन अपनी बेटी और पत्नी राधिका को लेकर घर पहुंचे .......मोहन ने बेटी पैदा होने पर सबको बर्फी बांटी, ढ़ोल बजवाये और महिला संगीत का कार्यक्रम रखा। बेटी का कुआं पूजन करवाने और एक बड़ा भोज रखने का प्रस्ताव रखा जिसके बारे में लोग तरह तरह की चर्चा करने लगे, मोहन को किसी की भी कोई परवाह नहीं थी बस उसको डर था राधिका का, जो अपनी ही बेटी को अजीब नजरों से देखती थी, कुछ बोलती भी नहीं थी........

राधिका अपनी बेटी को देख कर एवं उसके भविष्य की कल्पना करके पूरी तरह अवसाद ग्रस्त हो गयी थी। एक दिन राधिका ने मौका देख कर अपनी बेटी का गला घोंट कर मार दिया और रात के अंधेरे में कूड़ेदान में डालकर लौटने को जैसे ही वापस मुड़ी, सामने मोहन खड़ा था ......मोहन को देखकर राधिका घबरा गयी लेकिन फिर भी अपने डर पर कायम रही, “मैं अपनी सुंदर लड़की को लेकर हर पल डर डर कर नहीं रहना चाहती थी इसलिए मैंने उसको अभी मार डाला, मैंने उसको मार डाला, मैंने उसको मार डाला.......”

“राधिका! क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही हो, क्या हो गया? क्या फिर कोई डरावना सपना देखा?” पसीना पसीना हुई राधिका नींद से जागकर बैठ गयी, मोहन ने बत्ती जलाकर रोशनी की, राधिका को पानी पिलाया, फिर राधिका ने अपनी नजरें अपनी सुंदर बेटी पर डाली एवं उसको उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

मोहन हमारी बेटी बहुत सुंदर है, हम इसको प्यार से पालेंगे, हम इसको अबला नहीं बनाएँगे, हम इसको इतना बहादुर बनाएँगे , इतनी बहादुर कि हर तरह की समस्या से निबटते हुए शीर्ष पर पहुंचे........

मोहन ने हाँ में सिर हिलाया और अपनी बेटी और पत्नी दोनों का माथा चूम कर वापस अपने बिस्तर पर चला गया, अभी रात बाकी थी और आंखे नींद से बोझिल थी, वो सो गया एक नई सुबह में जागने के लिए। अब वह राधिका का बेटी के लिए प्यार देख कर निश्चिंत हो गया था और वह सो गया एक नई सुबह के लिए।