Parti Zameen - 2 in Hindi Fiction Stories by Raushan Pathak books and stories PDF | परती जमीन भाग - २

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परती जमीन भाग - २

परती जमीन

रौशन पाठक

नमन

सर्वप्रथम मैं नमन करता हूँ बाबा (दादाजी) और दाई (दादी) को फिर नमन करता हूँ पापा (पिता) और मां (माता) को| जिनके संघर्ष से मेरा अस्तित्व रहा है और आशीष से जीवन|

मैं नमन करता हूँ स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद जी को जिनकी रचनाये प्रेरणा भी रहीं और मार्गदर्शक भी|

धन्यवाद

मैं धन्यवाद करता हूँ आनंद पाठक (भाई) का जिसने मुझे उत्साहित किया इस कहानी को लिखने के लिए और उससे कहीं अधिक इसलिए की उसने मुझे प्रोत्साहित किया हिंदी में लिखने के लिए|

मैं धन्यवाद करता हूँ राव्या पाठक (बेटी) का जिसकी खिलखिलाती हंसी ने मुझे व्यस्तता के बावजूद तनाव मुक्त रखा और मैं यह कहानी लिख पाया|

मैं धन्यवाद करता हूँ और राखी पाठक (बहन) का जिसने इस किताब के आवरण पृष्ठ को अंकित किया|

मैं धन्यवाद करता हूँ रूपा पाठक (पत्नी), रूबी पाठक (बहन) और मेरे समस्त परिवार का उनके प्रेम और स्नेह के लिए|

प्रेरणा स्त्रोत

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌|

- गीता

अथार्त,

जीवात्मा का विनाश करने वाले "काम, क्रोध और लोभ" यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को नरक में ले जाने वाले हैं|

संतोषं परम सुखं

इंसान के समस्त दुखों का कारण उसकी अपनी इच्छाएँ है|

लालच बुरी बला है|

लालच इंसान का चरित्र बदल देती है|

भाग

स्थानांतरण

लोभ

शपथ

निर्वासन

साझेदारी

अनावरण

(२)

लोभ

गाँव बसे अब कई महीने बीत चुके थे| फसल की हरी भरी खेतों ने सभी के हृदय में ख़ुशी और उन्माद भर दिए थे| चारों तरफ हर घर में फसल के आने का हर्ष फैला हुआ था| सब के चेहरे पर एक चमक देखी जा सकती थी| अब जहाँ चार लोगो की बैठक होती वहीँ फसल बेच कर जरुरत की चीजें खरीदने की बातें होने लगती| सभी ने देवपुरा गाँव में जाकर फसल बेचने की मंशा भी जाहिर कर दी थी|

कई नए परिवार भी आ कर वहाँ बस चुके थे| गाँव अब विस्तृत हो चुका था| नदी के आस पास की जितनी जमीनें खेती के लायक हो सकती थी वो सब कब्ज़े में जा चुकी थी| इसमें वो लोग ज्यादा ज़मीन बटोर सके जो पहले आये थे| अब अगर कोई ज़मीन परती बची थी तो तो वह थी मनहर के घर के सामने की ज़मीन| मनहर ने अपने घर के पीछे वाले ज़मीन पर तो खेती कर ली थी लेकिन वह अपने घर के सामने वाली ज़मीन को जोत ना सका| ऐसा नहीं था की ये बात उसने सोची ना थी लेकिन, अभी उसका छोटा लड़का हाथ बटाने लायक नहीं हुआ था और इसीलिए उसने ये सोच रखी थी की धीरे-धीरे अगले वर्ष इस ज़मीन को जोत लेगा|

अत्यधिक उपजाऊ ज़मीन और कोशी के पानी ने सभी को इतनी उपज दी थी की अब चारों तरफ लोग इस युक्ति में लगे थे की कैसे और ज़मीन हासिल की जाये और अधिक से अधिक ज़मीन जोती जाए| लेकिन आसानी से मिलने वाली ज़मीन अब उतनी ही बची थी, जो मनहर के घर के आगे थी ।

मनहर के ज़मीन के अलावा किसी को आसानी से कोई जमीन हासिल करने का रास्ता नहीं दीखता था और किसी की यह हिम्मत नहीं पड़ती थी की उस ज़मीन पर हल लेकर खड़ा हो जाए| आखिर वह मनहर के घर के आगे की ज़मीन थी और सब ये जानते थे की वह ज़मीन हक़ से मनहर की है| लालच से ग्रसित लोग इस फिराक में थे की कैसे अगली बुआई के पहले यह ज़मीन उनके कब्जे में हो|

आजकल हर घर में इसी विषय पर चर्च होता की कैसे वो अपने लिए मनहर के घर के आगे की ज़मीन को अपने कब्जे में करें| अपने मन को यह समझाने के लिए, की वो कुछ गलत नहीं कर रहें, ये दलीलें दी जाती की मनहर ने कौन ज़मीन को जोत लिया, या कोई ये कहता की अरे भाई हम तो ये जानते है की किसी ने खरीदी तो नहीं, अगर खाली पड़ी है तो जो चाहे वो जोत ले, कुछ दो कदम आगे सोचते की हम कहाँ ज़मीन लिए भागे जा रहे, अभी जोत लेंगे जब मनहर को लगे हम ज़मीन छोड़ देंगें|

ये दलीलें लेकिन घर के अंदर परिवार के सदस्यों के बीच ही रहती, बाहर कोई इस का चर्च भी ना करता| अगर गलती से चर्च उठता तो लोग यही कहते की भाई दूसरों की ज़मीन को कोई कैसे जोत लेगा, ये तो अन्याय होगा।

ग्रीष्म ऋतू का मौसम था, रात का वक़्त था, झिंगुर विरह के गीत गाते थे, चिर शांति फैली हुई थी, रामचरण के आँगन में दीप धीमी-धीमी लौ से जल रही थी| रसोई घर के बहार रामचरण भोजन कर रहा था, और सामने उसके तीनो लड़के भी बैठे भोजन कर रहे थे| सुर्खी पास में ज़मीन पर बैठा ऊंघ रहा था| यकायक रामचरण की आवाज़ ने उसकी निद्रा भंग कर दी|

कल हम सुबह मनहर के घर की पास वाली ज़मीन को जोतेंगे|”, - रामचरण की आवाज़ में गंभीरता थी|

रामबाबू के हाथों का निवाला मुँह तक जाकर रुक गया| उसने सिर झुकाये हुए चोर आँखों से अपने पिता की तरफ देखा|

रामचरण के दूसरे लड़के भी निस्तब्ध भाव से अपने पिता की ओर देखने लगे|

रामचरण को ये भांपते देर ना लगी की उसके बच्चे इस बात में अनैतिकता देख रहे है| और ये बातें उन्होंने अपने उसूल परस्त पिता से ही तो सीखी थी|

इससे पहले की रामचरण कुछ कह पाता, रामचरण की पत्नी रगनिया बोल पड़ी - " हमारे पास कोई जमीन कम नहीं है, फिर मनहर के घर के आगे जमीन जोतने की क्या जरुरत है, मुझे फसाद नहीं चाहिए|

रामचरण के चेहरे पर क्रोध झलक उठा, उसने गहरी सांस लेकर अपने चित्त को शांत किया और बोला - जमीन कम कैसे नहीं, चार बेटे है, कल को सबका बियाह होगा उनके बच्चे होंगे, इतने बड़े परिवार का निबाह करने योग्य जमीन है हमारे पास ? और जो जमीन हम जोतने जा रहे है, वो किसी का नहीं है| यहाँ तो जिसने जो जमीन जोत ली वो उसी की हो गयी और फिर आज हम नहीं जोतेंगे तो कोई और जोत लेगा| लोग तो इसी फ़िराक़ में है की कब वो उस जमीन पर कब्ज़ा कर लें| मैंने यह निश्चय किया है की इससे पहले कोई और उस ज़मीन पर कब्ज़ा करे हमें वह ज़मीन हासिल कर लेनी चाहिए| कल सुबह सूर्योदय के पहले हम वो जमीन जोतेंगे|

रामचरण ने रामबाबू की तरफ देखा, रामबाबू ने आँखों से आज्ञा स्वीकार की और खाने में व्यस्त हो गया|

रगनिया अपना मन मसोस कर रह गयी|

रात का सन्नाटा और गहरा हो चला, मानो रात ने आने वाली अनहोनी को भांप लिया हो|

अभी सूरज उगने में घंटो बाकी था, रामचरण के घर का कीवार खुला, रामचरण हाथों में कुदाल लिए घर के बाहर निकला पीछे से रामबाबू भी एक कुदाल लिए घर से निकला, नवजीवन और जीवछ हाथों में एक-एक बाँस की बत्तियों की टोकरी लिए बाहर निकले|

अँधेरे में बाप बेटे कतारबद्ध होकर मनहर के घर की तरफ बढ़ चले| वहां पहुंच कर सब ने अपना कुदाल फावडा रखा और काम शुरू करने को तैयार होने लगे|

मैं एक तरफ से लकीर खोदता हूँ और तुम एक तरफ से- रामचरण ने रामबाबू की तरफ देखते हुए कहा|

नवजीवन और जीवछ मिट्टी उठा कर फेंकने के लिए तैयार हो गए|

सुबह का सूरज निकल आया था, आकाश में लालिमा छ गयी थी| करीब एक तरफ से सीधी लकीर में मेड़ बन चुकी थी|

बाप बेटे जोरो से अपने काम में व्यस्त थे, तभी मनहर चीखता, चिल्लाता, दौड़ता हुआ रामचरण की तरफ बढ़ा|

मनहर दौड़ता हुआ आया, और उसने बिना देरी के जीवछ को धकेलते हुए बोला, ये मेरे हिस्से की ज़मीन है, तुम लोगो की जुर्रत कैसे हुई इस ज़मीन पर काम करने की।

जीवछ लड़खड़ाता हुआ रामबाबू की तरफ गिरा और उसका पाँव कुदाल पर पड़ा और वो चीख पड़ा|

जीवछ के पाँव से खून की धारा फुट पड़ी, रामबाबू ने ना आव देखा ना ताव और मनहर पर झपट पड़ा ।

मनहर दुर्बल शरीर का छोटे कद का व्यक्ति था । साधारणतया धीमे स्वर में बात करने वाला और सबसे घुल मिलकर बात करने वाला था।

रामबाबू अभी 21 वर्ष का जवान और अपने बाप से लंबे कद काठी का हट्टा-कट्टा मर्द था।

एक धक्के में उसने मनहर को ज़मीन पे गिरा दिया, और उसपर लात घुशों का प्रहार कर दिया ।

रामचरण जो कुछ गज़ की दूरी पर था उसे भी पहुँचते देर ना लगी, उसने भी रामबाबू का सहयोग देते हुए मनहर पर दो चार हाथ जमाये। रामचरण लंबा और हट्टा-कट्टा व्यक्ति था । उसका एक-एक हाथ मनहर के लिए सहना भारी था।

दूर से भाग कर मनहर की स्त्री को आता देख रामचरण के हाथ थम गए। रामचरण क्रोधी जरूर था लेकिन उसमें मानवीयता का बोध भी बहुत था।

वो खड़ा होकर दूर हट गया, लेकिन रामबाबू क्रोध में अपने आप से बाहर था और वो अब भी मनहर पे लातों से लगातार प्रहार किये जा रहा था| मनहर की स्त्री फुलसिन ने अपने पति का हश्र देख और वो रामबाबू पे झपट पड़ी, उसे धक्का दिया और मनहर के शरीर पर लोट गई जिससे, उसपे और प्रहार ना हो। एक स्त्री पर रामबाबू ने हाथ उठाना मुनासिब नही समझा वहीं अब मनहर की भी दुर्दशा हो चुकी थी| रामबाबू का क्रोध कुछ शनः हो गया और उसे ध्यान आया कि जीवछ जख्मी है ।

रामबाबू ने बिना विलंब जीवछ की तरफ देखा, नवजीवन उसके घाव को दबाये हुये था ताकि खून का रिसाव बंद हो सके।

मनहर की अवस्था अधमरी सी हो गयी थी, वो दर्द से कराह रहा था, उसके मुंह से खून निकल रहा था। फुलसिन उसके सर को गोद में लेकर कलेजा पीटकर रो रही थी और गालियां दे रही थी| उसके चेहरा आक्रोश से लाल हो उठा था| वो गालियाँ देती एकटक रामचरण को घूरे जा रही थी, इससे पहले उसके मन में रामचरण के लिए बहुत इज्जत थी लेकिन रामचरण के हाथों अपने पति का ये हश्र देखकर शायद उसके ह्रदय में रामचरण के लिए कोई आदर नहीं बची थी|

रामबाबू ने जीवछ को सहारा देकर उठाया और दूसरी तरफ से नवजीवन ने| रामचरण ने अपने फावड़े, कुदाल और बाकी सामन बटोरे और घर की तरफ चल पड़े| इतनी देर में लोगो की भीड़ जमा हो चुकी थी| कुछ लोग दौड़ कर मनहर को उठा कर उसके घर तक ले चले| मनहर का छोटा लड़का भी पहुँच चुका था और यह सब देखकर वो भी सिसकियाँ लेकर रो रहा था|

मनहर के घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी, और काना-फूसी चल रही थी| फुलसिन की क़रीबी कुछ औरतेँं घर के अंदर बैठी थी और उसे सांत्वना दिए जा रही थी|

फुलसिन लगातार रामचरण को अभिशाप दे रही थी - उस पापी को अन्न भी नसीब ना हो हे अग्निदेव, तुम कहर बनकर उसके पुरे परिवार को ख़ाक कर देना| हे इष्टदेव उसके खानदान को तबाह कर देना, उसके लड़कों को नरक में भी जगह ना मिले|

मनहर दर्द से कराह रहा था, गाँव के अकेले हकीम बलेश्वर लाल के बुजुर्ग पिता मलहम का लेप लगा रहे थे| बलेश्वर लाल रामचरण के पैरो की हड्डियों को लकड़ी से सीधा करके बांध रहे थे|

घर के बहार औरतेँ बात कर रही थी -

जाने क्या हो गया रामचरण को इतनी क्या लालच की खेत भी जोतेगा और जिसकी जमीन है उसकी जान भी ले लेगा|

रामचरण के घर पर भी भीड़ थी लेकिन मनहर के घर के भीड़ के मुताबिक कुछ भी नहीं| यूँ तो रामचरण का मनहर की अपेक्षा गाँव में अधिक मान था लेकिन इस वक़्त सहानुभूति की आवश्यकता के हिसाब से मनहर का पलड़ा भारी था|

गुरूजी जो पेशे से वैद्य तो नहीं थे लेकिन जरुरत पड़ने पर थोड़ा बहुत ज्ञान रखते थे, वह रामचरण के घर मौजूद थे| कपड़े का टुकड़ा आग में जलाया गया, उसके राख को नवजीवन के घाव पर लगाया गया, देखते ही झट खून का रिसाव बंद हुआ| रामबाबू सील-पत्थर पर गुरूजी की बताई हुई पत्तियों का लेप तैयार कर ले आया, और गुरूजी को हाथों सुपुर्द किया|

गुरूजी ने वो लेप जीवछ के घाव पर लगा कर कपड़े की पट्टियां बांध दी और रामचरण के तरफ देखकर बोले - घाव बहुत गहरा है, भरने में काफी वक़्त लगेगा|

रामचरण ने सर हिलाकर गुरूजी के बात को स्वीकार किया|

गणेशिया पास में खड़ा सब देख रहा था, आस-पास रामचरण के पड़ोस में रहने वाली औरतेँं भी खड़ी थी और कुछ लोग भी खड़े थे|

सभी स्तब्ध थे और तभी रामचरण ने ताव में बोलना शुरू किया - मुँह से कहता की भाई ये जमीन मेरे लिए छोड़ दो, या गालियाँ देकर ही कहता, या मुझ पर वार ही करता, लेकिन उसने ये कैसे सोचा की वो रामचरण के बच्चे को मारेगा और रामचरण दुम दबाकर भाग जायेगा|

और शायद बातचीत से रामचरण पिघल भी जाता, शायद वो ज़मीन छोड़ भी देता लेकिन अब ये सौगंध रही मेरी की वो ज़मीन मेरी होगी, और मैं देखता हूँ किस माई के लाल में इतनी शक्ति है की मुझे रोक लेता है|

इतना कहते कहते रामचरण का क्रोध सातवें आसमान तक पहुँच चुका था|

गणेशिया ने हाथ बढ़ाकर रामचरण के कंधे पर रखा और धीमे स्वर में बोला - ज़रुर तुम्हारी होगी, शांत रहो बच्चा बीमार है अभी उस पर ध्यान दो|

समय बीता और दोपहर तक दोनों घरों से लोग धीरे-धीरे अपने-अपने घरों को जाने लगे|

उस दिन पूरे गाँव में इसी घटना की बातें चलती रही लोग एक दूसरे को घटना का विवरण देते, जहाँ दो लोग मिले, जहाँ दो औरतेँं इकट्ठी हुई, यहाँ तक बच्चे भी खेलने की जगह यही चर्च करते की कैसे रामबाबू ने मनहर को बहुत पीटा| लोग अपने अपने तरीके से उस घटना पर अपनी राय रखते, कोई कहता रामचरण ने जमीन जब्त कर गलती तो की लेकिन मनहर ने नवजीवन पर हाथ उठाकर सही नहीं किया| कोई कहता की अगर कोई तुम्हारी ज़मीन जोत लेगा तो क्या तुम उसकी पूजा करोगे| जो रामचरण के हितैशी थे वे रामचरण को सही कहते और जो मनहर के हितैशी थे वे मनहर को बिचारा| लेकिन सभी लोग इस झगडे से आहत ज़रूर हुए थे, क्योंकि इस नए गावों में ये पहला फसाद था|

सूर्यास्त का समय आ चला था, मनहर खाट पर लेटेे अब भी कराह रहा था, लेकिन उसकी पीड़ा कुछ कम हो चली थी| मनहर के दोनों बच्चे पास में बैठे हुए थे, छोटा लड़का मनहर को कपड़े का बुना पंखा झल रहा था| बड़ा लड़का शम्भू जो सुबह खेतों पर चला गया था, और अपने पिता की दुर्दशा की खबर सुनकर घर भागा आया था, वो तब से आग बबूला हुआ बैठा था और हर थोड़ी देर पर क्रोध में बोल पड़ता -

मैं रामचरण के परिवार का नामो निशान मिटा दूँगा, एक एक कर सबको ख़त्म कर दूंगा|

फुलसिन चुल्हे के सामने भोजन तैयार करने में जुटी थी, लेकिन उसका क्रोध अब भी ख़त्म नहीं हुआ था, वैसे तो वो सुबह से चीख चिल्ला कर थक चुकी थी, लेकिन रह-रह कर जाने कहा से उसमे उर्जा भर आती और वो रामचरण को बद्दुआयें देने लगती|

अपने बेटे को बड़बड़ाता देख मनहर ने कराहते हुए स्वर में कहा -तुझे कुछ करने की कोई जरुरत नहीं, जो करना है मैं करूँगा, मुझे ठीक हो ले ने दो फिर इस जमीन को जोत लेंगे, फिर तो कोई कोशिश नहीं करेगा इस ज़मीन को छीनने की और फिर सारा फसाद ख़त्म हो जाएगा|

शम्भू क्रोध में आ कर बोला - कोई भरोसा नहीं लोगो का अगर आज ये हिम्मत की है तो कल कोई जोती हुई ज़मीन भी हड़पने की कोशिश कर सकता है, ये कोई बड़ी बात नहीं ।

मनहर धीमे स्वर में बड़बड़ा उठा - अब इसका कोई क्या कर सकता है ? उसकी आवाज़ में एक व्यथा थी वो सोच बैठा की अगर ऐसा हुआ तो वो तो सबसे कमजोर परिवारों में से है उसका तो सब कुछ छिन जायेगा, एक पल के लिए उसका कलेजा धक् से रह गया|

शम्भू ने अपने क्रोध को और तीव्र किया और बोला - तुम कुछ नहीं जानते आज ही रामचरण कह रहा था की कल वो इस जमीन को जोतेगा और वो इस बात की सौगंध भी खा रहा था, लेकिन तुम चिंता ना करो कल मैं उनकी अच्छी खबर लूँगा, एक-एक को सबक सिखाऊंगा”|

फुलसिन का चेहरा जैसे भय से आतंकित हो उठा और वो क्रोधित स्वर में बोली - तुम कुछ नहीं करोगे, हमें नहीं चाहिए ये ज़मीन, हम कम जमीन में गुजारा कर लेंगे|

मनहर ने सर घुमा कर शम्भू की तरफ देखा और लड़ाई को याद कर सहम उठा उसने करूण स्वर में कहा - ऐसा कुछ ना करो की हम कष्ट में पड़ जाएँ, वो पांच बाप बेटे है और अब तुम अकेले हो, अगर वो ज़मीन लेते हो तो ले-ले, हमारे पास जितनी है उसमे गुजरा कर लेंगे|

मनहर हमेशा से लड़ाई झगड़े से दूर रहने वाला इंसान था, आज की लड़ाई उसकी ज़िंदगी की पहली झड़प थी|

शम्भू अभी सोलह वर्ष का था, भले शरीर से हल्का था लेकिन दिमाग का गर्म था, आये दिन गाँव के लड़कों से मार पीट करता रहता| अपनी पिता की इस तरह की हार मन लेने वाले बातों से वह बिलकुल सहमत नहीं था|

अत्यंत क्रोधित होकर वह जोर से चीखा और घर के दरवाज़े को धक्का मारकर बाहर चला गया|

रामचरण के घर में एक शांति सी छाई थी, रह रह कर रगनिया बोल पड़ती - मैंने कहा था वहां जाने से फसाद होगा लेकिन घर के औरतों की कौन सुनता है| और अब भी जिद शांत नहीं हुआ|

गणेशिया अब तक रामचरण के पास बैठा हुआ था| गाँव के बनने के दिनों से ही गणेशिया और रामचरण के बीच गहरी मित्रता हो गयी थी| वैसे गणेशिया और रामचरण के व्यक्तित्व में काफी अंतर था, जहाँ रामचरण कड़ी बोलने वाला व्यक्ति वहीँ गणेशिया मीठी बोली बोलने वाला व्यक्ति था| रामचरण गलत को गलत कहने में हिचकिचाता नहीं था, लेकिन गणेशिया परिस्थिति को टटोलकर और सोच समझ कर बोलने में विश्वास रखता था| गाँव में लोग रामचरण की इज़्ज़त उसके विचारों और सीधे व्यवहार के लिए करते थे, वहीँ गणेशिया की छवि एक मिलनसार व्यक्ति के रूप में थी|

गणेशिया का परिवार अभी छोटा था और उसकी उम्र भी रामचरण से काफी कम थी|

गणेशिया ने घुटने पर हाथ रख उठते हुए कहा चलो अब भोजन का समय हुआ, सुबह जरा सम्हाल कर और चौकन्ने रहकर ही कदम बढ़ाना| रामचरण ने सर हिलाया और गणेशिया वहां से रवाना हुआ|

रात हो चली थी दिन भर के कोलाहल के कारण रात और भी शांत लग रही थी, ठंडी हवाओं ने गर्मी थोड़ी कम कर दी थी| लोगो के घरों की बातियों की लौ धीमी हो चली थी, करीब सभी लोग सो चुके थे, लेकिन कुछ लोग शायद इस घटना से इतने प्रभावित हुए थे की वे सो नहीं पा रहे थे|

उनमें एक था मनहर जो सोना तो चाहता था, लेकिन ज़मीन चले जाने का डर और शरीर पर चोटों का दर्द नींद को उसके करीब आने नहीं देती थी|

दूसरे थे बलेश्वर लाल के बुजुर्ग पिता जो आँगन में बैठे आसमान को निहारते थे, और भगवान का नाम जपते थे, एक तो उम्र को वो पड़ाव जहाँ नींद कम आती है, दूसरी लोक कल्याण की भावना और शायद उन्हें ये एहसास हो चुका था जिस गाँव में उन्होंने शांति और खुशहाली देखी थी उसे शायद लालच की बुरी नज़र लग चुकी थी|

रामचरण अपने बिस्तर पर करवट बदल बदल कर रात गुजरने का इंतज़ार कर रहा था, समय बीतने का नाम नहीं लेती थी और रामचरण दिन भर की घटनाओं को याद कर कर विभिन्न तरह की भावनाओं से ग्रसित था| कभी वो सोचता की शायद मनहर को ज्यादा ही पीट दिया, उसने तो केवल आवाज़ उठायी थी वह भी अपने हक़ के ज़मीन के लिए| कभी वो क्रोधित हो उठता की उसने जीवछ को धक्का क्यों मारा| ऐसे ही ख्यालों में शनैः-शनैः रात का आखिरी पहर आ गया था| रामचरण से अब बेचैनी बर्दाश्त नहीं होती थी, जैसे उसे चारों तरफ से कुछ पुकारता हो, उससे बिस्तर पर पड़ा रहना बर्दाश्त ना हुआ, वो उठकर कमरे से बाहर निकला, उसने अपने बच्चो को आँगन में खाट पर पड़े देखा, आँगन से बाहर निकला और अनायास मनहर के घर की तरफ निकल पड़ा| चाँद की रौशनी, ठंडी हवाओं के झोंके रामचरण को राहत से लग रहे थे वहां चार-दीवारी में उसका दम घुट रहा था| वह उस ज़मीन पर पहुंचा जहां एक तरफ से मेड़ बनी हुई थी, सामने मनहर के घर में एक बाती बस बुझने ही वाली थी| रामचरण उस ज़मीन पर खड़ा हुआ और चाँद की तरफ देखने लगा| उसके अंदर विचारो का एक मंथन चल रहा था| लालच, द्वेष, और ग्लानि ने उसे चारो तरफ से घेर लिया था और वो अपने अंदर ही एक लड़ाई लड़ रहा था| वो सही दिशा तलाश रहा था, वो झुक कर ज़मीन से मुट्ठी में मिट्टी उठने लगा और तभी उसके सर पर जोरदार प्रहार हुआ और वो मुँह के बल गिर पड़ा, अगले क्षण उसके सर के पीछे से खून की धारायें फुट पड़ी और रामचरण ने वहीँ दम तोड़ दिए|

सुबह का सूरज चढ़ने वाला था, लहू की लालिमा आसमान की लालिमा, रामचरण के बिखरे लहू की परछाई सी मालूम पड़ती थी| चारो तरफ लोगो की भीड़ खड़ी थी| रगनिया बेसुध रामचरण से लिपटी पड़ी थी, उसके आँखों से अश्रु सुख चुके थे, रामबाबू अब भी दहाड़े मार कर रो रहा था, नवजीवन, सुर्खी को गोद में लिए बैठा था, मालूम होता था जैसे उसमे प्राण ही नहीं, सुर्खी सिसकियाँ लेकर रो रहा था, जीवछ ने अपने घाव पर अपने ही हाथो से कई चोट किये जिससे उसके जख्म फिर जीवित हो उठे और खून बहने लगा| गणेशिया नवजीवन को पकडे हुए बैठा था| मनहर अपने घर के बहार दुआरे पर खूंटे को पकडे बैठा था, उसका चेहरा भावविहीन था|

गाँव के लोग इस तरह स्तब्ध खड़े थे जैसे सब को सांप सुंघ गया हो । गाँव में इससे पहले कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ था। मनहर और रामचरण का झगड़ा गाँव में पहला झगड़ा था इससे पहले कभी किसी किसी की तू-तू मैं-मैं भी नहीं हुई थी|

नदी किनारे रामचरण की चिता को आग दी गयी लोग अपने घरों को लौट रहे थे| गणेशिया और बलेश्वर लाल आगे चल रहे थे, अचानक गणेशिया बोल पड़ा - अब ये जरुरी हो गया है की गॉंव में थोड़े बहुत नियम कानून हो| यूँ कोई किसी की हत्या कर दे ऐसे जंगल राज में नहीं रहना|

बलेश्वर लाल ने गणेशिया की तरफ सजल नेत्रों से देखते हुए कहा - तो तुम क्या चाहते हो की हम सैनिकों को गाँव का पता दे दे ?

गणेशिया इस प्रश्न के लिए जैसे तैयार था उसने तपाक से उत्तर दिया - नहीं भाई मैं कहता हूँ की हम एक पंचायत का गठन करे और गॉंव के लोग उस पंचायत के फैसलों का आदर करें और हम नियम और अनुशासन से इस गाँव में जी सके| बलेश्वर लाल ने कोई जवाब ना दिया, गणेशिया वहीँ खड़ा हो गया, उसके घर का रास्ता बाएँ तरफ मुड़ता था, और वह रामबाबू और उसके भाइयों का इंतज़ार करने लगा|

आगे पढ़े भाग ३ – शपथ