वर्जिन
(काव्य संग्रह)
ललित कुमार मिश्र
'सोनीललित'
वर्जिन
मैं वर्जिन हूँ
विवाह के इतने वर्षों के पश्चात् भी
मैं वर्जिन हूँ
संतानों की उत्पत्ति के बाद भी।
वो जो तथाकथित प्रेम था
वो तो मिलन था भौतिक गुणों का
और यह जो विवाह था
यह मिलन था दो शरीरों का
मैं आज भी वर्जिन हूँ
अनछुई, स्पर्शरहित।
मैं मात्र भौतिक गुण नहीं
मैं मात्र शरीर भी नहीं
मैं वो हूँ
जो पिता के आदर्शों के वस्त्र में छिपी रही
मैं वो हूँ
जो माँ के ख्वाबों के पंख लगाये उड़ती रही
मैं वो हूँ
जो पति की जरूरतों में उलझी रही
मैं वो भी हूँ
जो बच्चों की खुशियों के पीछे दौड़ती रही।
मैं अब वर्जिन नहीं रहना चाहती
मैं छूना चाहती हूँ खुद को।
***
देवदासी
वो मेरे देवता हैं
हर रूप में
और मैं उनकी देवी हूँ
सशर्त
***
पहचान
बड़ी कोशिशें की
खुद को जानने की
पहचानने की
ज्ञानियों से चर्चा की
पोथियाँ पढ़ी
ध्यान लगाया
पर आज जब
बाजार गई
तो समझ आया
कि मैं
ब्लाउज और
पेटीकोट हूँ
इससे अधिक
कुछ नहीं
***
अच्छी स्त्रियां
कामेच्छा आपकी शारीरिक और मानसिक
सभी तापों को हरने का सामर्थ्य रखती है
पर अच्छी स्त्रियों में कामेच्छा नहीं होती
कंडोम आपको अनचाहे गर्भ और रोगों से
बचाने का सामर्थ्य रखता है
पर अच्छी स्त्रियां दुकानों पर
कंडोम खरीदने नहीं जातीं
गले लगने से बड़ा सुकून मिलता है
पर अच्छी स्त्रियां पिता, पुत्र, और पति के अलावा
किसी भी आत्मीय पुरुष मित्र से गले नहीं मिलतीं
मनचाहा जीवनसाथी स्वस्थ समाज का आधार है
पर अच्छी स्त्रियां समाज द्वारा थोपित पति को ही
मन से चाह लेती हैं।
पीड़ा को कह देने से उसका असर कम किया जा सकता है
पर अच्छी स्त्रियां माहवारी का दर्द चुपचाप सह लेती हैं
बेमेल विवाह का उपचार है तलाक़
पर अच्छी स्त्रियां तलाक़ नहीं देती
ज्ञान और ध्यान पर्याप्त हैं ब्रह्म मार्ग हेतु
पर अच्छी स्त्रियां अपने पति को ही ब्रह्म मान लेती हैं।
अब देखिये ना, हर धर्म में भगवान पुरुष ही हैं
ब्रह्मा विष्णु महेश ईसा अल्लाह इत्यादि
पर अच्छी स्त्रियां कभी कुतर्क नहीं करती हैं।
***
पिंजरा
अनिश्चित भविष्य से बेहतर है
निश्चित पीड़ाइसीलिए
पशु-पक्षीपिंजरे में रहना पसंद करते हैंऔर स्त्रियां विवाह में
***
कवच
दहेज़ की आग में जब रोज जलाई जाओगी
तो कौन आएगा तुम्हारे लिए
कमाऊ पति के रहते भी जब एक एक पैसे के लिए तरस जाओगी
तो कौन आएगा तुम्हारे लिए
तलाक़ मिलने पर जब रोड पर आ जाओगी
तो कौन आएगा तुम्हारे लिए
माँ-बाप की बदहाली में जब चाह कर भी हाथ नहीं बंटा पाओगी
तो कौन आएगा तुम्हारे लिए
तंगहाली में जब अनचाहे काम के लिए भी मज़बूर हो जाओगी
तो कौन आएगा तुम्हारे लिए
अब तो सोचो लड़कियों
ये जो पढ़ लिखकर तुम
आत्मनिर्भरता का कवच हासिल करती हो
विवाह की वेदी पर क्यों कुर्बान कर देती हो
क्या तुम जानती नहीं कि
कवच के बिना कर्ण का क्या हश्र हुआ था
शोषण, साज़िश और फिर हत्या का वो शिकार हुआ था
सब जानकर भी वही गलती दोहराती हो
खुद को तुम खुद ही लाचार बनाती हो
गर इसी तरह गलतियाँ दोहराओगी
अपनी ही हत्या पर आंसू बहाओगी
तो कौन आएगा तुम्हारे लिए
बोलो
***
सुनो अमृता!
सुनो अमृता!
अच्छा हुआ
जो तुम लेखिका थी
क्योंकि अगर तुम लेखिका न होती
तो निश्चित तौर
तुम्हें चरित्रहीन और
बदलचलन की श्रेणी में रखा जाता।
अच्छा हुआ तुम असाधारण थी
क्योंकि साधारण स्त्रियों की ज़िंदगी में
तीन-तीन पुरुषों का होना
वैश्यावृत्ति माना जाता है
अच्छा हुआ अमृता
तुम बोल्ड थी
इसीलिए तुम्हारे मुंह पर
किसी ने कुछ न कहा
किन्तु यह भी सत्य है
आज इमरोज की कामना करने वाली
कोई भी स्त्री अमृता बनना नहीं चाहेगी
क्योंकि दहलीज़ों को लांघना
कोई मज़ाक नहीं है।
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वह बच सकती थी!!!
वह बच सकती थी
अगर वह चिल्ला सकती
उस दिन जब खेल खेल में
किरायेदार अंकल
उसे गोद मे उठा दुलारने लगे
और वह दुलार जब तकलीफदेह होने लगा
तब वह अगर चिल्ला पाती
तो वह बच सकती थी
संभवतः उसे पता ही नहीं था
कि चीख भी एक अस्त्र है
वह बच सकती थी
बार-बार अतिक्रमित होने से
अगर वह कहना जानती
उस दिन जब देर रात
घर वाले अंकल की उंगलियां
उसके अंगों पर
भयंकर तांडव करने लगीं
वह रोक सकती थी यह तांडव
अगर वह कह पाती
संभवतः वह नहीं जानती थी
कि कहना एक संजीवनी है
वह बच सकती थी
अगर उसे पढ़ाया गया होता
शरीर विज्ञान
ताकि वह समझ पाती
विभिन्न स्पर्शों का अंतर
खैर, उसकी छोड़ो
तुम तो जानती हो न बिटिया
चीखना, कहना और
स्पर्शों का अंतर?
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गंदगी
मुझे गंदगी पसंद है
क्योंकि ये कभी
स्वच्छ दिखने का
प्रयत्न नहीं करते
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26 जनवरी
26 जनवरी को
सब देशभक्त हो जाते हैं
नेता बड़ी ही शालीन भाषा में
वक्तव्य देते हैं
पुलिस थाने में बैठ
केस का इंतज़ार नहीं करती
बल्कि किसी भी केस की
संभावनाओं को ही खत्म कर देती है
सभी सरकारी विभाग
ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते हैं
क्योंकि यह देश की
अर्थात उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है।
26 जनवरी के बाद
सब पूर्ववत हो जाता है
नेता फिर से भौंकना शुरू कर देते हैं
पुलिस थाने में बैठ
केस का इंतज़ार करने लगती है
सभी विभाग
हड्डियां इकठ्ठी करने में जुट जाते हैं
क्योंकि अब प्रश्न
जनता की प्रतिष्ठा होता है
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