Dahej - Ek Shaitan in Hindi Short Stories by vinod kumar dave books and stories PDF | दहेज: एक शैतान - ‘National Story Competition-Jan’

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दहेज: एक शैतान - ‘National Story Competition-Jan’

  • दहेज: एक शैतान
  • विनोद कुमार दवे
  • जेठ माह की गर्मी से रणछोड़ का बदन पसीने से तरबतर हो उठा था। खेत की मेढ़ पर खड़ी इमली की छांव में सुस्ताते सुस्ताते उसे झपकी आ गई। आंखें खुलते ही उसे याद आया, आज कमली के नवीं कक्षा का रिजल्ट आने वाला था। दो घूंट पानी के भर, उसने झट से पगड़ी सिर पर बांधी, अपना अंगोछा कंधे पर धरे घर के लिए निकल गया। लेकिन वह जानता न था, आज की दोपहर से उसकी ज़िंदगी बदल जाने वाली थी। रणछोड़ को उम्मीद थी हर बरस की तरह इस बार भी कमली कक्षा में फर्स्ट रहेगी। घर जाकर देखता है कमली की चप्पल बाहर ही पड़ी है, दरवाजा अंदर से बंद था। दरवाजा खटखटाया लेकिन अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। थोड़ी देर तक रणछोड़ ने बाहर इंतजार किया। फिर एकाएक उसने महसूस किया, एक अजीब तरह की बदबू अंदर से आ रही थी। रणछोड़ का माथा ठनका। यह केरोसिन की बदबू थी। रणछोड़ ने आव देखा न ताव, बाहर पड़े पानी के ड्रम पर पैर रखकर शौचालय पर चढ़ गया। वहां से छत पर चढ़ कर चौक में झांकते ही उसके हाथ पांव फूल गए,

    यह क्या होने वाला था!...

    ***

    रणछोड़ की आंखों का सितारा थी कमली, आखिर होता भी क्यों नहीं? कमली रणछोड़ की इकलौती बहन शांति की लड़की जो ठहरी। शांति शादी के कुछ बरस पश्चात ही चल बसी थी। ससुराल वालों का कहना था, स्टोव भभकने के कारण उसकी ओढ़नी ने आग पकड़ ली। रणछोड़ जानता है, जिन जिन ससुरालों की दहेज की भूख नहीं मिटती, वहां की ओढ़नियाँ आग जल्दी पकड़ती हैं। हरिया ने अपना पूरा घर खाली कर दिया, बेटी के ससुराल को भरने के लिए। यहां तक कि गैस का चूल्हा भी लाकर दिया ताकि स्टोव न भभके। स्टोव न भभका, तो फूल सी बेटी की ओढ़नी फंदे में बदल गई। एक थी सविता, उसके जितना तो चिड़ियाँ भी न चहकती होगी। कहते है चाय पत्ती की जगह भूल वश सविता कीटनाशक डाल कर पी गई। सविता का बाप चीख चीख कर कहता रहा, ससुराल में किसी और ने क्यों नहीं पी चाय? सब जानते थे, एक शैतान है जो स्टोव में भभक उठता है, जो ओढ़नियों को फंदे में बदल देता है, जो चाय में कीटनाशक डाल देता है, सब को उस शैतान का नाम पता हैं। मगर कोई मुंह नहीं खोलता। रणछोड़ ने हिम्मत की मुंह खोलने की। पंचायत ने हुक्का पानी बंद कर दिया। उसका बहनोई इतने बड़े समाज में से एक मात्र सरकारी शिक्षक था तो उसकी पैठ भी काफी थी। उसकी बहन के ससुर समाज के जाने माने पंच थे। रणछोड़ पुलिस स्टेशन गया, तो धक्के मार कर बाहर फेंक दिया गया। बहन की चिता की राख भी ठंडी न हुई थी, बहनोई ने नई औरत को डाल दिया घर में। साल भर में लड़का जनने के बाद सौतन की लड़की पालना उस औरत को रास न आया। बहनोई शांति की बच्ची को रणछोड़ के आंगन में पटक गया, शांति के चरित्र पर लांछन लगाते हुए। रणछोड़ ने रत्ती भर भी विरोध न किया।

    उसे अपनी बहन से बहुत लगाव था। उसने निश्चय किया, अपनी बहन की आखिरी निशानी अपनी भांजी को कभी माँ की कमी महसूस न होने देगा।

    कमली भी पढ़ने में कम न थी। पूत के पग पालने में ही दिखने लगे थे। अन्य शिशु जब ‘मां’ शब्द भी ठीक से नहीं बोल पाते थे, वह जो भी सुनती, उसकी हूबहू नकल उतार देती। कमली की चहचहाहट से घर आंगन गुलजार रहता। रणछोड़ ने अपना जीवन कमली के नाम कर दिया। शादी तक की नहीं सोची, चौबीस घंटे बस एक ही धुन सवार रहती, कैसे भी करके कमली को उस मुकाम पर पहुंचाना है, जिसे देख कर उसके बाप को अपनी निर्लज्जता से घिन्न हो जाये। वक़्त के साथ साथ रणछोड़ का संकल्प दृढ़ होता गया। कमली भी वक़्त के पंखों पर सवार होकर आठवीं कक्षा तक पहुंच गई थी। रणछोड़ ने कमली को उसके बाप की परछाई से भी काफी दूर रखा था किंतु एक शाम स्कूल से आते ही कमली बोल पड़ी,

    “मामा! नवो मास्टर आयो है स्कूल मांय।“

    “हूं...” रणछोड़ ने कमली की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

    “पाथेडा गांव रो है।”

    रणछोड़ के कान खड़े हो गए। पाथेडा, उसकी बहन का ससुराल।

    “कांईं नाम है?”

    “जयंती लाल।“

    कमली एक पल भर को ठहरी फिर वापिस बोली, “जयंती लाल जी।“

    रणछोड़ ने अपनी भांजी से आंखें न मिलाई लेकिन वह जानता था, कमली उसे घूर रही थी। रणछोड़ ने अनजान बनते हुए कहा, “तो?”

    “पूनम कैवै रह्यी ही, “ओ थारो बापू है।““

    “ थारो बापू तो मर गयो।“

    “मामा! ...”

    कमली कुछ कहना चाह रही थी, किन्तु उसकी ज़बान जैसे हलक में ही अटक गई। रणछोड़ उसे नज़रअंदाज़ करता रहा। उपेक्षा होती देख कमली बस्ता पटक कर अंदर चली गई।

    कमली के लिए आज एक अजीब सी स्थिति थी। पूरी स्कूल जानती थी, कमली जयंती लाल की बेटी है। लेकिन जयंती लाल उसकी तरफ एक नज़र देखता तक नहीं था। कमली को शुरू से बताया गया था, उसकी मां को जलाकर मार डाला था ससुराल वालों ने। लेकिन इस सीधे सादे मास्टर को देखकर कमली को यह कभी न लगा कि मामा ने उसे सही बात बताई होगी। जयंती लाल कक्षा में आता, सब बच्चे खड़े हो जाते। सम्मान था या पता नहीं, पहली कक्षा से जो सीखा था उसकी पुनरावृत्ति ही थी। कमली बहुत उत्साह से सबसे पहले खड़ी होती। वो सबसे आगे बैठती तो सबसे पहले उसी पर नज़र पड़नी चाहिए थी लेकिन जयंती लाल की नजरें जाने कैसे कमली को अनदेखा कर जाती। बच्चों के लिए शुरू में यह कौतूहल का विषय था कि मास्साब की बेटी उनके साथ पढ़ रही है। लेकिन जयंती लाल की उपेक्षा से धीरे धीरे यह मजाक का विषय बन गया। दिल के एक कोने में उसे उम्मीद थी कि मामा द्वारा उसके निरीह पिता पर लगाया गया वो आरोप झूठा होगा, कमली रोज सुबह उत्साह से स्कूल जाती इस आशा में कि उसके बापू उसे एक रोज अकेले में बुलाएंगे,प्यार से उसके सिर पर हाथ रखेंगे, उसके छोटे छोटे हाथों को चूमते हुए उसे बताएंगे, “मैं थारी माँ नै नीं मार्यी। उण दिन स्टोव री वजह सूं थारी मां बळ गयी।“ लेकिन ऐसा कुछ न हुआ। उसे लगता जैसे मास्साब को वो दिखती ही नहीं, शायद लंबे होने की वजह से वो छोटी सी कमली को नहीं देख पाते, शायद उनको पता ही नहीं कमली उनकी लाड़ली है, हो सकता है वो मामा से नाराज हो, शायद...। यह शायद का दीया कभी खत्म न होने वाले उम्मीदों के घी से जलता रहता था। लेकिन ऐसा दिन कभी न आया। जयंती लाल की उपेक्षा झेलते झेलते कमली के मन में मामा के प्रति भी घृणा पैदा होने लगी। रणछोड़ देख रहा था, कमली का स्वभाव काफी चिड़चिड़ा हो गया था। रणछोड़ के बस में होता तो वह कमली को शहर के इंग्लिश स्कूल में भरती करवा देता लेकिन तंग जेब अकसर मुंह चिड़ाती थी। खुद अनपढ़ होने के बावजूद रणछोड़ कमली को पढ़ने के लिए प्रेरित करता रहता। चिड़चिड़ाहट का असर आठवीं कक्षा के रिजल्ट में साफ दिख रहा था। जहां उस के मेरिट में आने की उम्मीद लगाए बैठे थे, वह बमुश्किल फर्स्ट डिवीज़न से पास हुई थी।

    नवीं कक्षा में भी कमली का मन पढ़ाई में नहीं लग पा रहा था। अब वो खुद जयंती लाल की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखती थी क्योंकि उसे पता था कि जयंती लाल शक्ल से जितना भोला दिखता है, उतना है नहीं। कमली पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम के दौरान जल-भून कर रह गई। जयंती लाल अपने बेटे को लेकर स्कूल आया था। जीन्स की हाफ पैंट, टीशर्ट, काला चश्मा, सिर पर गोल हैट लगाए अपने सौतेले भाई को देख कमली के मासूम दिल में डाह की एक लहर उमड़ पड़ी। कमली ने अपने ड्रेस को देखा, पुराने ड्रेस को जैसे तैसे तुरपाई करके चला रही थी। ऐसा काला चश्मा उसने गौतमजी के मेले में देखा था, उसकी बहुत इच्छा हुई लेकिन वह जानती थी, मामा की जेब खाली हो चुकी थी। उसने अपने कोमल दिल को समझा दिया था अगले मेले तक के लिए। ऐसी हैट तो उसने वास्तव में आज पहली बार ही देखी थी। हां, एक बार सहेली शारदा के घर उसने टीवी में एक शो जरूर देखा था जिसमें ऐसी ही हैट पहने एक जोकर सा व्यक्ति इधर उधर भाग रहा था। उसकी आधी मूंछें थी, और हाथ में छड़ी पकड़े उसकी पागलों जैसी हरकतों से हंस हंस कर कमली की आंखों में पानी आ गया था। शारदा की माँ ने टीवी बन्द करते हुए उन्हें बहुत जोर से डांटा था, “छोरियों नै इण भांति नीं हँसनो चाइजै।“ कमली अकसर सोचती, लड़कियों को इस तरह नहीं हंसना चाहिए तो किस तरह हंसे? हंसना तो हंसना होता है, इस तरह, उस तरह का क्या मतलब। लड़के तो खी खी करते रहते है हर जगह, उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता? वो देख रही थी, अपने सौतेले भाई को बाप के सीने से चिपके हुए। कमरे में आकर उसकी रुलाई फूट गई। ये ऐसा कोई बाप होता है क्या, इसी ने मारा होगा मेरी माँ को। नहीं मारता तो ऐसे नजरें क्यों चुराता? रह रह कर उसकी नजरें जयंती लाल को ढूंढती। जयंतीलाल अपने बेटे को बहुत प्यार से बूंदी के लड्डू खिला रहा था। उसने पहली बार लड्डुओं की तरफ देखा तक नहीं। उसे कौन खिलाने वाला है इतने प्यार से, मामा तो बेचारा खेत और ढोरों से थक कर ढेर हो जाता है। वो बार बार देखती अपना ड्रैस और अपने बाप के बेटे का ड्रेस, उसकी आँखों के आंसू थकने का नाम नहीं ले रहे थे। उसका पंद्रह अगस्त तो जैसे उसी दिन आना बंद हो गया था, जिस दिन उसकी माँ को जलाकर मार डाला होगा उस दरिंदे ने। एकाएक उस लड़की ने महसूस किया, उसे छोटे बच्चों की तरह नहीं रोना चाहिए, वो बड़ी हो गई थी।

    ***

    आज नवीं कक्षा का रिजल्ट आने वाला था। रणछोड़ को उम्मीद थी हर बरस की तरह इस बार भी कमली कक्षा में फर्स्ट रहेगी। तपती दुपहरी में खेत से घर जाकर देखता है कमली की चप्पल बाहर ही पड़ी है, लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था। दरवाजा खटखटाया लेकिन अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। थोड़ी देर तक रणछोड़ ने बाहर इंतजार किया। फिर एकाएक उसने महसूस किया, एक अजीब तरह की बदबू अंदर से आ रही थी। रणछोड़ का माथा ठनका। यह केरोसिन की बदबू थी। रणछोड़ ने आव देखा न ताव, बाहर पड़े पानी के ड्रम पर पैर रखकर शौचालय पर चढ़ गया। वहां से छत पर चढ़ कर चौक में झांकते ही उसके हाथ पांव फूल गए,

    यह क्या होने वाला था!...

    रोती हुई कमली चौक में खड़ी थी। उसके हाथ में माचिस थी, रणछोड़ पागलों की तरह चौक में कूद पड़ा। लेकिन संतुलन गड़बड़ाने के कारण औंधे मुंह गोबर लिपे फर्श पर गिर गया...

    होश आने पर रणछोड़ ने खुद को सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर पाया। उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी। जैसे ही दिमाग में चौक का दृश्य उमड़ा, वह पागलों की तरह कमली कमली चीख पड़ा। कमली भाग मामा से लिपट गई। दोनों की आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी।

    कमली ने अपना प्रगति पत्र मामा के हाथ में दिया। मामा ठहरा अनपढ, कभी प्रगति पत्र को देखता, कभी कमली को। कमली ने उसे रोते रोते बताया कि सभी विषयों में काफी अच्छे नम्बर होने के बावजूद वह गणित में फैल हो गई थी। गणित उसे जयंती लाल पढ़ाता था।

    ***

    इस दुर्घटना के बाद रणछोड़ की ज़िंदगी का एक ही लक्ष्य रह गया था। कमली को उस ऊंचाई तक पहुंचाना, जहां से जयंती लाल कीड़े मकोडों से ज्यादा बड़ा न दिखाई दे। अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े उसे चारों तरफ सफेद कपड़ों में मंडराती नर्स, डॉक्टर, कम्पाउण्डर ही दिखाई दे रहे थे। देखते देखते कमली की पुरानी सी स्कूल यूनिफार्म सफेद झक डॉक्टरी पोशाक में बदलती जा रही थी। रणछोड़ ने निश्चय कर लिया, कमली को क्या बनाना है...

    अस्पताल से बाहर आते ही रणछोड़ ने तय कर लिया, खूब मेहनत करेगा और ढेर सारे पैसे कमाकर कमली को इस सरकारी विद्यालय की बजाय शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाएगा। मानो अर्जुन के तीर को मछली की आंख दिख गई थी।

    ***

    सफर आसान नहीं था, प्राइवेट स्कूल की फीस भी बहुत ज्यादा थी। हाड़ तोड़ मजदूरी के बावजूद भी रणछोड़ फीस इकट्ठी नहीं कर पाया था। कई बार उसने प्राइवेट स्कूल के चक्कर काटे। लेकिन उसे उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आ रही थी। तभी रणछोड़ को एक मास्साब ने बताया कि प्राइवेट स्कूल में भी गरीब बच्चों के लिए एक चौथाई सीटें आरक्षित होती है। फिर तो मानो रणछोड़ की आशाओं को नया आसमान मिल गया था। सिफारिश के वास्ते सरपंच साहब से हाथ पांव जोड़े। बेगारी की। फिर प्रिंसिपल साहिब के पैर पकड़े। प्रिंसिपल साहिब किसी दूसरे प्रांत के थे। उन्हें भी विश्वासपात्र घरेलू नौकर की आवश्यकता थी ही। इस तरह शहर में रणछोड़ की ज़िंदगी का नया अध्याय शुरू हुआ। गांव की खेती बाड़ी को छोड़ कमली के भविष्य की खातिर रणछोड़ ने शहर की नौकरी स्वीकार की।

    ***

    वक़्त के ढलान पर ज़िंदगी की गाड़ी फिसलती चली गई। कमली ने निराश नहीं किया। दसवीं उसने बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की। रणछोड़ के सिर बस एक ही धुन सवार थी। कमली को डॉक्टर वाली सफेद यूनिफार्म में देखने की। उसने अपना सब कुछ वार दिया, प्रिंसिपल साहिब की जी भर कर सेवा की। एक किसान का घरेलू नौकर में बदल जाना इतना भी आसान न था। रहने खाने को मिल जाता। पगार भी ठीक ठाक मिल जाती। नौकरी में रणछोड़ का मन नहीं लगता था, खेती में कम आमदनी के बावजूद एक संतोष था, फिर भी खुशी की बात थी कि कमली की पढ़ाई अब कहीं अटकने वाली न थी। जीव विज्ञान से बारहवीं भी हो गई थी फर्स्ट डिवीज़न से। रणछोड़ जानता न था कि आगे क्या करना है, लेकिन वह प्रिंसिपल साहब का पूरा विश्वास जीत चुका था। प्रिंसिपल साहब ने एक छोटे से कोचिंग इंस्टीटूट में कमली का दाखिला करवा दिया। कमली ने जी तोड़ मेहनत की लेकिन पहले प्रयास में वह RPMT की परीक्षा उत्तीर्ण न कर पाई। रणछोड़ ने हिम्मत न हारी। अपनी सारी बचत लगाकर भी दूसरे साल कोचिंग जारी रखवाई। और वह खुशी का पल भी आ गया जब M.B.B.S. के लिए सरकारी कॉलेज में कमली का दाखिला हो गया। वक़्त को तो गुजरना था, गुजरता ही गया।

    ***

    सरकारी अस्पताल में मरीजों की भीड़ हैं। आंखों पर चश्मा चढ़ाये डॉक्टर बहुत ध्यान से मरीजों को देख रही है। तभी दनदनाते हुए एक एम्बुलेंस परिसर में दाखिल होती है। सीरियस बर्न केस है। पुलिस को खबर कर तुरंत मरीज का उपचार शुरू किया गया। मरीज की जान बचाकर उस लेडी डॉक्टर के चेहरे पर तसल्ली के भाव है। पीड़िता का बयान पुलिस ने दर्ज कर लिया है। दहेज के लिए नव विवाहिता को इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने केरोसिन डाल कर आत्मदाह का प्रयास किया। सुना है, पीड़िता का ससुर रिटायर्ड सरकारी अध्यापक है पास के ही गांव का। लेडी डॉक्टर का चेहरा पीला पड़ गया है पीड़िता के ससुर का नाम सुनकर। पीड़िता का पूरा ससुराल सलाखों के पीछे है, पीड़िता और उसकी दूध पीती बच्ची को देख डॉक्टर को खुशी है कि उसने एक कमली को अनाथ होने से बचा लिया है। उस डॉक्टर ने तय किया है, आज शाम को जब वह घर जाएगी, अपने मामा को जरूर यह खुशखबरी सुनाएगी कि वह शैतान अब बच नहीं पाएगा जो स्टोव में भभक उठता था, जो ओढ़नियों को फंदे में बदल देता था, जो चाय में कीटनाशक डाल देता था। अब और नहीं, न जलेगी, ना फंदे पर झूलेगी, जहर नहीं खाएगी, न डरेगी, ना ही मानेगी हार, अब बहू बेटियां लड़ेगी उस शैतान से…

    ***