Parda gira do! in Hindi Comedy stories by Jahnavi Suman books and stories PDF | पर्दा गिरा दो

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पर्दा गिरा दो

परदा गिरा दो

सुमन शर्मा

jahnavi-suman7@gmail-com



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परदा गिरा दो

हास्य परिहास से ही सही हिन्दी ज़्िान्दा तो है। पब्लिक स्कूलों में तो हिन्दी का लगभग पतन हो गया है। प्रस्तुत है एक नाटक जिसमें पब्लिक स्कूल के छात्र भाग ले रहें हैं। पर्दा उठने पर एक मंत्री व राजा का वार्तालाप चल रहा है। अध्यापिका के लाख समझाने पर भी कुछ छात्र अवकाश पर चले जातें हैं। नए छात्र नाटक समझ नहीं पाए और बहुत सी गल्तियाँ कर रहें हैं। इसलिए अध्यापिका ने नाटक को राम भरोसे छोड़ दिया।

राज़ा अपने कमरे में टहल रहा है। तभी कमरे में मंत्री का प्रवेश होता है। मंंत्री कमर झुका कर तीन बार राजा को सलाम ठोकता है।

मं़त्री; राजा से कहता हैद्ध हूज़ूर फरमाइये! इस नाचीज़ को कैसे याद फरमाया,?

राजा बना छात्र; मंत्री से कहता हैद्ध ‘‘कैसे याद फरमाया से क्या तात्पर्य है तेरा? अब यहाँ मैं तूझे नॉटंकी करके दिखाउफँ ,कि ऐसे याद पफरमाया।''

मंत्री कहता है, ‘‘नहीं अन्नदाता! आप तो बस हुक्म दीजिए।''

अभी हम कुछ दे नहीं सकते यह भीख —वीख बाद में माँगना।''

अपनी बात को जारी रखते हुए राजा मंत्राी से कहता है, ‘‘आज हमें अपने दुश्मन वीर सिंह पर चढ़ाई कर देनी चाहिए। वीर सिंह की आघी सेना बीमार है।

मंत्री ने इस पर कहा, ‘‘महाराज आप सही फरमा रहें हैं। आज हमारे पास मौका भी है और दस्तूर भी।''

मंंत्री से महाराजा कहते हैं, ‘‘अबे मंत्री तू दो दो वस्तुएँ रख कर क्या करेगा। ‘मौका' तू ले ले और ‘दस्तूर' मुझे दे दे। हाँ मेरी तलवार भी मुझे दे दे।

मंत्री, राजा को जल्दबाजी में तलवार की जगह गुलदस्ता थमा देता है। राजा मंत्री को थप्पड़ मारता हैं और कहता है, ‘‘ये गुलदस्ता क्या मैं वीर सिंह के चरणों में रखूँगा?

मंत्राी क्रोध्ति होकर राजा से कहता है, ‘‘आपने अपनी पिता समान पुत्री पर हाथ उठाया?

राजा मंत्री को एक ओर थप्पड़ जड़ते हुए कहता है, ‘‘तू मेरी पुत्री नहीं मेरा मंत्री है।'' मंत्री अपना क्रोघ छिपाने के लिए इधर उधर कुछ ढूँढता है।

एक सैनिक दौड़ा—दौड़ा आता है और कहता ह,ै ‘‘महाराज़ वीर सिंह के सैनिक हमारे राज्य में पढ़ाई करने आ रहें हैं।''

राजा गुस्से से कहता है ‘‘मैंने क्या यहाँ स्कूल खोला हुआ है? उफ! कहीं तुम ये तो नहीं कहना चाहते, कि वीर सिंह ने हमारे राज्य पर चढ़ाई कर दी है।

सैनिक हामी में सिर हिलाता हुआ कहता है, ‘‘जी हज़ूर!''

राजा चिल्लाते हैं, ‘‘मंत्री! जल्दी से हमारे हथियार ले कर आओ।

मंत्री कहता है, ‘‘मैं हथियार कैसे ला सकता हूँ। हथियार तो महरानी ने अपने गले में पहन रखा हैं।''

राजा कहता है, ‘‘उसे ‘हथियार' नहीं ‘हार' कहतें हैंं।

मंत्री लड़ाई पर जाने के लिए सज—धजकर आ जाता है। मंत्री की पत्नी मंत्री के पीछे—पीछे उस को विदाई का तिलक करने आती है। उसकी आँखोैं से आँंसू टपक रहें हैं।

मंत्री जी ने अपनी पत्नी को सांत्वना देते हुए कहा, ''प्रिय चिंता मत करो हम वीर सिंह से पराजित होेेेकर शीघ्र लौटेंगें।''

राजा आग बबूला हो जातें हैं और कहतें हैं, ‘‘मंत्री! ये क्या अनाप— शनाप बक रहे हो।

मंत्री कहता है कुछ नहीं प्रभूु स्त्रियाँ स्वभाव से कोमल होतीं हैं। मेरी पत्नी भी मेरे लड़ाई पर जाने से अपने विद्वान होने के भय से ग्रस्त हो रही है।

राजा कहतें हैं, ‘‘मूर्ख विद्वान तो हम हैं वह तो अपने विधवा होने से डर रही है।''

मंत्री आश्चर्य से कहता है, ‘‘महाराज! आप कब विद्वान हुए? क्या महरानी साहिबा अब इस दुनिया में नहीं रहीं?''

दर्शक हँसते—हँसते लोट पोट हो जातें हैं। इससे पहले कि छात्र और कोई संवाद शुरू करें, अघ्यापिका पर्दा गिराने का इशारा कर देती है।

— सुमन शर्मा

jahnavi-suman7@gmail-com