Hell's Apsara in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | नर्क की अप्सरा

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नर्क की अप्सरा

नर्क की अप्सरा

डॉ मेहुल काफी थक गए थे, आज अस्पताल में मरीजों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी, अकेले ही पूरा वार्ड संभाल रखा था, 48 घंटे हो गए थे मरीजों के बीच में, कई मरीज तो काफी नाजुक हालत में थे, उनको ऑक्सिजन लगाई, दवा दी और रोते बिलखते परिजनों को सांत्वना भी दी, इस सब को करते करते कब दिन से रात और रात से फिर दिन हो गया पता ही नहीं चला। रात में जब थोड़ा शांत माहौल हुआ तब डॉ मेहुल ने विश्राम गृह मे जाकर सोने का प्रयास किया लेकिन तभी नर्स दौड़ कर आई और बोली, “डॉ साहब, बैड नंबर 22 वाला मरीज गुजर गया” तभी डॉ मेहुल दौड़ कर गए और निरीक्षण करके मृत घोषित कर दिया, मरीज के परिजन बुरी तरह रोने बिलखने लगे, वार्ड में माहौल पूरी तरह गमगीन हो गया।

थोड़ी देर बाद बैड नंबर 24 का मरीज भी गुजर गया अब तो पूरे वार्ड का वातावरण रोने बिलखने और चीख पुकार की आवाजों से भर गया। डॉ मेहुल इस सब का आदी हो चुका था परंतु था तो एक इंसान ही, उसका मन भी विचलित हुए बिना कैसे रह सकता था, अभी उन दोनों मरीजों को मृत घोषित करके दूसरे मरीजों का निरीक्षण करने लगा तभी सुरक्षा गार्ड बैड नंबर 23 के मरीज को पकड़ कर लाया और कहने लगा, “डॉ साहब, यह मरीज़ अस्पताल से बिना बताए भाग रहा था।”

डॉ मेहुल ने उस मरीज से जब अस्पताल से इस तरह बिना बताए भागने का कारण पूछा तो उसका जवाब सुन कर डॉ मेहुल भौंचक्का रह गया। उस मरीज का कहना था कि वह बैड नंबर 23 पर है जबकि बैड नंबर 22 और 24 दोनों ही मरीजों की मृत्यु हो गयी तब उसको लगा कि वहाँ पर यमदूत घूम रहे हैं कहीं अब उसको न ले जाएँ इस लिए वह उस वार्ड से भाग निकला, मरीज ने यह भी कहा, “डॉ साहब, अब मैं अस्पताल में नहीं रहूँगा मेरी छुट्टी कर दो, अगर मुझे मरना ही होगा तो क्यों न अपने घर जाकर मरूँ?” और अपनी मर्जी से डिस्चार्ज लेकर चला गया।

डॉ मेहुल के पास इस तर्क का कोई जवाब भी नहीं था, रात ढल चुकी थी, सुबह हो गयी तभी डॉ सपना ने आकर मेहुल को हैलो कहा। डॉ सपना अब ड्यूटी पर आ गयी थी, डॉ मेहुल जाने की तैयारी कर रहा था तभी डॉ सपना ने कहा, “डॉ मेहुल, कल रविवार है और आप जानते ही हैं रविवार को मुझे जरूरी जाना होता है, अगर हो सके तो थोड़ा जल्दी आ जाना,” “बिलकुल! डॉ सपना, मैं समय से पहले ही आ जाऊंगा।” इतना कहकर डॉ मेहुल हॉस्टल में चला गया।

डॉ सपना और डॉ मेहुल ने चिकित्सा की पूरी पढ़ाई साथ साथ ही की थी और अब लोक नायक अस्पताल में हाउस जॉब भी साथ साथ ही कर रहे थे। डॉ सपना ने विश्व विद्यालय सुंदरी का खिताब भी जीता था और चिकत्सा शिक्षा में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। जब भी डॉ सपना वार्ड में ड्यूटी करती, सभी मरीज प्रसन्न रहते थे, वार्ड में सब ठीक रहा, रात भी ठीक से कट गयी। सुबह सुबह डॉ मेहुल आ गए और डॉ सपना को जाने की इजाजत दे दी।

डॉ सपना चली गयी लेकिन डॉ मेहुल सोचता ही रहा कि आखिर हर रविवार को डॉ सपना कहाँ जाती है, मेरे कई बार पूछने पर भी आज तक कुछ नहीं बताया। डॉ मेहुल डॉ सपना से बेइंतहा प्रेम करता था लेकिन आज तक उसने इसके बारे में कुछ नहीं बताया,उसको लगता था शायद डॉ सपना किसी और से प्यार करती है जिससे मिलने को वह हर रविवार को इतनी उतावली रहती है।

डॉ मेहुल ने एक रविवार डॉ सपना का पीछा किया यह जानने के लिए कि आखिर डॉ सपना कहाँ और किससे मिलने जाती है, उससे इसका रिश्ता क्या है? डॉ सपना की कार ताहिरपुर के पास बसी कोढ़ी कॉलोनी मे जाकर रुक गयी और डॉ सपना दवाइयों के बैग उतार कर बराबर मे एक क्लीनिक में घुस गयी। क्लीनिक के बाहर सैंकड़ों कोढ़ी पंक्ति बद्ध बैठे थे, बिना देर किए डॉ सपना ने कोढ़ी मरीजों का इलाज़ करना शुरू कर दिया।

एक एक करके सभी मरीजों की पुरानी पट्टियाँ खोल कर सभी घाव अपने हाथों से साफ़ किए, घावों पर दवा लगाई, पट्टी बांधी और दवा देकर फिर अगले मरीज का इलाज़ करने लगी। इस तरह डॉ सपना पूरा दिन उन कोढ़ियों का इलाज़ करने में लगी रही, न कुछ खाया न ही कुछ पिया और ना ही एक मिनट को भी आराम किया। बिना थके रात के दस बजे तक डॉ सपना उन कोड़ पीड़ित मरीजों का इलाज़ करती रही, जब तसल्ली हो गयी कि सभी की पट्टियाँ बदल दी गयी और सभी को दवा मिल गयी तभी डॉ सपना वहाँ से वापस हॉस्टल के लिए चली।

जब सपना वापस चलने लगी, सभी मरीज हाथ जोड़ कर कहने लगे, “डॉ दीदी! हमारी कॉलोनी तो नर्क है, आप एक अप्सरा की तरह सुंदर हो इसलिए हम तो आपको नरक की अप्सरा कह कर पुकारते हैं।, आप अप्सरा की तरह ही हमारे इस नारकीय जीवन में खुशियाँ ल रही हो।”

अगले दिन डॉ मेहुल समय निकाल कर डॉ सपना को कॉफी पिलाने के लिए ले गया और उसके सामने प्रस्ताव रखा, “डॉ सपना! मैं भी कोढ़ी मरीजों का इलाज़ करने के लिए तुम्हारे साथ जाना चाहता हूँ, क्या तुम मुझे अपने साथ लेकर चलोगी?”

डॉ सपना बोली, “क्या तुम मेरी जासूसी कर रहे थे मेरा पीछा करके?”

डॉ मेहुल बोला, “हाँ सपना, मैंने यह अपराध तो किया है, वास्तव में मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ और मुझे लगा जैसे तुम्हारे जीवन में कोई और है, बस यही जानने के लिए मैंने तुम्हारा पीछा किया, अब अपराध किया तो सजा पाने को भी तैयार हूँ।”

“हाँ मेहुल! प्यार तो मैं भी तुमसे बहुत करती हूँ और न ही मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और है बस मेरा मकसद अलग है, उन मरीजों की सेवा करना जिन्हे सबने तिरस्कृत कर दिया है, मैं उनको ठीक करके सामान्य जीवन देना चाहती हूँ, इसमे अगर तुम मेरा साथ दोगे तो मुझे बड़ी खुशी होगी।”

अब नर्क की अप्सरा के साथ एक फरिश्ता भी उन लोगों का इलाज़ करने लगा। दोनों डॉक्टर ने कोशिश की तो वहीं पर एक गैर सरकारी संस्था ने बड़ा अस्पताल बना दिया जिसमे सिर्फ और सिर्फ कोढ़ियों का ही इलाज़ होता था। उन दोनों की खुशी का ठिकाना तो तब नहीं रहा जब प्रिंस चार्ल्स स्वयं उस अस्पताल में आए और अपने हाथों से दोनों डॉक्टर को उनकी सेवा के लिए सम्मानित किया, अस्पताल में और ज्यादा व आधुनिक सेवाएँ मिले उसके लिए अस्पताल को आर्थिक सहायता भी प्रदान की, लेकिन वे दोनों जो मरीजों के सेवा कर रहे थे उसके लिए उन्हे किसी तरह के सम्मान की आकांक्षा नहीं थी। डॉ सपना ने कोढ़ियों की सेवा यह सोच कर शुरू की थी कि ‘नर सेवा नारायण सेवा’ होती है और जब उसके अस्पताल से कोढ़ी मरीज ठीक होकर सामान्य जीवन बिताने के लिए वापस अपने परिवार व समाज में जाते तो डॉ सपना व डॉ मेहुल को सब तरह का सम्मान मिल जाता, संतुष्टि मिलती।