घ्यान केवल लक्ष्य पर रहे
आशीष कुमार त्रिवेदी
हम लोगों को कई बार यह शिकायत करते सुनते हैं कि मैंने तो बहुत मेहनत की किंतु सफलता नहीं मिली। पर बहुत कम लोग यह जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। बहुत से लोग इस विफलता के लिए अपने भाग्य को दोष देते हैं। क्या सचमुच असफता का कारण हमारा दुर्भाग्य होता है या इसके पीछे हमारी ही कोई चूक होती है। इसका जवाब हम स्वामी विवेकानंद के जीवन से संबंधित इस रोचक व प्रेरणागाई किस्से में खोजेंगे।
स्वामी विवेकानंद हमारे देश में पैदा हुई महान विभूतियों में एक हैं। स्वामी जी का जन्म उस समय हुआ जब हमारा देश स्वाभिमान को भुला कर बैठा था। अपने देश व संस्कृति को लेकर लोगों में हीन भावना थी। ऐसे में अपनी ओजपूर्ण वाणी से उन्होंने हमारे सोए आत्मसम्मान को जाग्रत किया। हमें अपनी धर्म व संस्कृति में आस्था रखना सिखाया।
स्वामी जी ने अमेरिका में आयोजित 'सर्वधर्म सम्मेलन' में भारत की तरफ से हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। अपने व्यक्तव्यों से हिंदू धर्म व संस्कृति की पताका फहराई।
अपने पहले भाषण में ही जब स्वामी विवेकानंद ने प्रस्तुत लोगों को 'अमेरिका के भाइयों एवं बहनों' कह कर संबोधित किया तो संपूर्ण हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
अमेरिका में कई स्थानों पर घूम घूम कर उन्होंने अपने भाषणों के माध्यम से वहाँ के लोगों को भारत की महान संस्कृति तथा दर्शन से परिचित कराया।
अपने प्रवास के दौरान एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे। अचानक एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था। वह बहुत ध्यान से उन लड़कों की गतिविधियों को देख रहे थे।
जब वह सभी अपने प्रयास में असफल रहे तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और कहा कि वह खुद निशाना लगाएंगे। बन्दूक लेकर स्वामी जी ने बहुत ध्यान से निशाना साधा और बन्दूक चला दी। उनका पहला निशाना बिलकुल सही लगा। फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाए। सभी बिलकुल सटीक लगे।
यह देख कर सभी लड़के दंग रह गए। लड़कों ने उनसे पूँछा "स्वामी जी आपने बिना कोई चूक किए सभी निशाने सही लगाए। हम सब हैरान हैं कि आप यह कैसे कर लेते हैं ? आपने सारे निशाने बिलकुल सटीक कैसे लगा लिए?"
स्वामी विवेकानंद जी बोले "दुनिया में असंभव कुछ नहीं है। चाहो तो तुम भी ऐसा आसानी से कर सकते हो। शर्त यह है कि जो भी तुम कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ।"
वह आगे बोले "तुम्हारा ध्यान सदा ही अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ निशाने पर ही होना चाहिए। यदि तुम ऐसा करोगे तब तुम कभी चूकोगे नहीं।"
इस किस्से में स्वामी जी ने उन लड़कों को जो संदेश दिया वह ध्यान देने योग्य है।
'सफलता के लिए आवश्यक है कि हमारा ध्यान कभी भी अपने लक्ष्य से ना भटके।'
दरअसल जो लोग अपनी असफलता के लिए भाग्य या अन्य वस्तुओं को दोष देते हैं वह भूल करते हैं। उनकी असफलता के पीछे प्रमुख कारण लक्ष्य से भटकाव है।
हम अक्सर अपने लिए एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं। पूरे उत्साह के साथ उसे पाने के लिए मेहनत करते हैं। लेकिन अधिकांश लोग कुछ ही समय में ऊब जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि हमारा मन भटकने लगता है। हम अपने लक्ष्य को छोड़ कर दूसरी चीज़ों के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। यही हमारी असफलता की प्रमुख वजह होती है।
अतः हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारा ध्यान कभी भी लक्ष्य से ना भटकने पाए।
पहले हमें उन कारणों को समझना चाहिए जिनके कारण मन हमारे लक्ष्य से भटकता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है। वह बहुत जल्दी ही एक चीज़ से ऊबकर दूसरी चीज़ों की तरफ खिंचने लगता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने मन को नियंत्रण में रखने की पूरी कोशिश करें।
अपने लिए लक्ष्य का निर्धारण करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। पहले यह निश्चित कर लें कि जो लक्ष्य आपने चुना है वह आपके रुचि के अनुसार है या नहीं। यदि आप उस दिशा में बढ़ने का प्रयास करेंगे जो आपकी अभिरुचि के अनुकूल नहीं है। जो आपके स्वभाव से मेल नहीं खाता तो लक्ष्य पर ध्यान बनाए रखना कठिन होता है। अतः लक्ष्य का निश्चय अपनी रुचियों तथा व्यक्तित्व को ध्यान में रख कर करना चाहिए।
अपने मन का लक्ष्य होने पर भी मन भटकता है। ऐसे में निराश या हताश नहीं होना चाहिए। अपनी सभी इंद्रियों को लक्ष्य की ओर मोड़ने का प्रयास करना चाहिए। यह काम कठिन है किंतु असंभव नहीं। उन महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने अनेक कठिनाइयों के बाद भी अपना ध्यान लक्ष्य प्राप्ति की ओर लगाए रखा।
कठिनाइयों से हारें नहीं। मन को वश में रखें। पूरी मेहनत से लक्ष्य की तरफ बढ़ें तो सफलता अवश्य मिलेगी।
आपकी इच्छाशक्ति व लगन ही आपके सपने पूरे करने में मददगार होते हैं। किसी भी सपने को तभी पाया जा सकता है जब आपकी समस्त शक्ति उसे प्राप्त करने में लगाई जाए। पूरी ईमानदारी से धैर्यपूर्वक जब हम अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो वह अवश्य पूरे होते हैं।
धैर्य बनाए रखना बहुत आवश्यक है। लक्ष्य प्राप्ति की राह में आने वाली बाधाएं मन को विचलित करती हैं। यदि धैर्य ना रखा जाए तो आगे बढ़ने में बहुत मुश्किल होती है।
आत्मविश्वास से बड़ी कोई पूंजी नहीं होती है। स्वयं पर विश्वास डिगने ना दें। हमारे विचार ही हमें बनाते या बिगाड़ते हैं। सकारात्मक विचार मन को हौंसला देते हैं। सदैव सकारात्मक रहें। स्वयं को दुर्बल ना समझें।
हो सकता है कि लोग आपके सपने का उपहास करें। आपको आपके लक्ष्य से डिगाने की पूरी कोशिश करें। लेकिन आप अडिग बने रहें। अपने सपने से विमुख ना हों। यही सफलता का मूल मंत्र है
स्वामी विवेकानंद का कहना है कि अपने लिए एक लक्ष्य चुनें। अपनी सारी शक्ति उसे पाने में लगाएं। तब तक प्रयास ना छोड़ें जब तक लक्ष्य प्राप्त ना कर लें।