छोटी लड़की की सीख
Abhishek Hada
सभी की जिन्दगी में बचपन की यादें अच्छी नही होती है। कुछ लोगो का बचपन संघर्ष तनाव और मुसीबतों से भरा होता है। जो उन्हे वक्त से पहले ही बचपन से निकाल कर भ्रमपूर्ण यौवन में पहुँचा देता है।
ऐसे ही एक बच्चे पर मेरी नजर उस वक्त पड़ी जब मैं अपने शहर कोटा के सब्जीमंडी क्षेत्र में से गुजर रहा था। वहाँ बड़े-बड़े भवनों के एक तरफ भिखारियों के टेंटनुमा निवासस्थान है।
वे सर्दियों के दिन थे। मैं सब्जीमंडी से सब्जी खरीद कर नयापुरा जाने के लिए सिटीबस के आने का इंतजार कर रहा था। जब से स्मार्टफोन आए है किसी भी व्यक्ति को समय काटने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकता ही कहाँ रहती है ? इसलिए मैं भी अपना स्मार्टफोन चलाने में व्यस्त था। पर अचानक एक गंदे कपड़े और काले मटमेले रंग वाली एक 7-8 वर्षीय लड़की मेरे पास आई। उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि उसने कई दिनों से स्नान नही किया है। एक फटी सी फ्रोक पर उसने पुराना स्वेटर पहन रखा था। पैरो में एक टूटी चप्पल भी नही थी। वो बार बार हाथ पसार कर मुझसे पैसे और खाने को कुछ माँगने लगी। मैंने उसकी तरफ ध्यान नही दिया। पर जब उसने मुझे हाथ लगाकर माँगने की कोशिश की तो मैंने गुस्से से आँखे बड़ी कर उसे देखा और दुत्कार कर दूर कर दिया। और चुपचाप अपने मोबाइल में लगा हुआ वहाँ से चल दिया। तभी कुछ देर बाद मैने देखा कि एक कुत्ता मुंह में कुछ सूखी रोटियाँ दबाए ले जा रहा है। एक कोने में जाकर उसने उन रोटियों को जमीन पर रखा ही था कि वो लड़की जो मुझसे कुछ समय पहले पैसे माँग रही थी, वहाँ आई और उस कुत्ते के पास से एक रोटी उठाने लगी। कुत्ता उस पर भौंका और उसे काटने की कोशिश करने लगा। पर वो समझदार थी कुत्ता उसे काटता इससे पहले ही उसने एक पत्थर उसकी तरफ मारा। जिससे वो बेचारा भी डर गया। और वहीं रूक गया।
लड़की ने जो रोटी हाथ में ली थी उसे लेकर भागी। मैं जो अब तक मोबाइल की आभासी दुनिया में खोया हुआ था। इस घटना का आगे का भाग भी देखना चाहता था। उत्सुकतावश धीरे धीरे लड़की के पीछे चल दिया। देखूँ तो सही कि ये किस के लिए काम करती है ? क्योंकि मैने अक्सर देखा है कि ऐसे बच्चों के माँ बाप अच्छे खासे तंदरूस्त होते है लेकिन आलस और नाकारेपन की वजह से अपने बच्चों से भीख मँगवाने का काम करते है। पर मेरा अनुमान गलत साबित हुआ। वो लड़की अपने भाई के पास गई थी, जो लगभग 4-5 साल का होगा। उसने पास ही के एक नल से टूटी कटोरी में पानी भरा और रोटी गीली कर के उसको खिलाने लगी। जिन आँखों ने गुस्से से घूरकर उसे देखा था उन आँखों में अब उसी के लिए आँसू थे।
इस घटना ने मुझ पर जैसे सम्मोहन कर दिया हो। जाने किस प्रेरणा से बिना एक पल गंवायें मैने मेरे बैग में से अपने बच्चों के लिए जो बिस्कुट, टोस्ट और चॉकलेट के पैकेट्स खरीदे थे। वो उस लड़की को बुलाकर उसे सौंप दिए। वो लड़की बहुत खुश हो गई। उसे धन्यवाद करना नही आता था पर उस के सजल नेत्र मुझे मौन धन्यवाद दे रहे थे। उस छोटी लड़की में सबके साथ और प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी थी। इसीलिए इस बार भी उसने अपनी खुशी को खुद तक सीमित नही रखा। जोर जोर से अपने साथी बच्चों को आवाज दी और मिल बाँट कर उनके साथ खाने लगी। क्या ये समय पूर्व परिपक्वता नही थी ?
वहाँ से विदा होकर मैं पुनः बाजार में गया और जो चीजे उनको दी थी, दुबारा से अपने बच्चों के लिए खरीदी। घर पर पहुँचा तो मेरे दोनो बेटे अजय और विजय आपस में एक चॉकलेट के लिए लड़ रहे थे। अजय की उम्र 14 वर्ष और विजय की 11 वर्ष है। दोनो ही कोटा के बहुत ही जाने माने अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में पढ़ते है जहाँ स्कूली शिक्षा के साथ साथ शिक्षा और संस्कार भी दिए जाते है। मेरी धर्मपत्नी उन दोनो समझाने का प्रयत्न कर रही थी। पर शायद वो उस विवाद को सुलझाने में असमर्थ थी।
अपने पापा को देखते ही दोनो चुप हो गए। मैने पूछा - क्या बात हो गई ?
दोनो ने अपना अपना पक्ष रखकर ये साबित करने की कोशिश की कि ये चॉकलेट उसे मिलनी चाहिए। मैने उन दोनो से कहा मेरे पास इस समस्या का एक बहुत ही आसान सा हल है। और ये कहते हुए मैने उस चॉकलेट को हाथ में लिया और दो टुकडे़ कर के दोनो को देना चाहा तो दोनो ही गुस्सा हो गए और बोले हमें नही खाना ये आधी चॉकलेट। हमें तो पूरी चॉकलेट चाहिए। और वो भी नई। ये आप ही खा लो।
तब बैग में से चॉकलेट निकाल कर मैंने कहा - ठीक है ये वाली पापा खा लेते है और ये वाली भी। तब दोनो जल्दी से मेरे पास दौड़कर आए और चॉकलेट हाथ में से लेकर खुश हो गए।
पापा और क्या लाए मेरे लिए - मेरे छोटे बेटे विजय ने पूछा।
तुम्हारे लिए ये टॉय कार - मैंने विजय को देते हुए कहा ।
और पापा मेरे लिए ?? - बड़े बेटे अजय ने उत्सुकतावश पूछा।
मैंने बैग मे हाथ डाला लेकिन अचानक मुझे याद आया कि अजय के लिए खरीदी हुई टॉय कार मैंने उस लड़की के भाई को दे दी थी। जिसे में दुबारा खरीदना भूल गए।
मैंने कहा - पापा अभी तुम्हारे लिए कुछ नही लाए। क्योंकि तुम्हारे लायक कोई कार बाजार में नही थी। तुम दोनो बारी बारी से इसी कार से खेल लेना। अगली बार जब बाजार जाऊँगा तो एक और टॉय कार ले आऊँगा।
और ये कह कर मैं अपने काम में लग गया।
कुछ समय बाद जब मैं उनके कमरे में गया तो देखा कि ददोनो ने एक दूसरे के बाल पकड़ कर एक दूसरे से लड़ने में लगे थे। दोनो जानी दुश्मनों की तरह से एक दूसरे से लड़ रहे थे और एक दूसरे को मार रहे थे। टॉय कार टूटी हुई पड़ी थी और साथ ही कमरे का सारा सामान बिखरा पड़ा था।
मैंने दोनो को डाँटा तो दोनो अलग हुए और डर कर चुपचाप बैठ गए। दोनो से विवाद का कारण पूछा तो दोनो को ही अपनी अपनी कार चाहिए थी। उन्होंने कह दिया कि एक कार से मिलकर कैसे खेल सकते है ? मुझसे कुछ कहा नही गया। उनसे आगे से ऐसी हरकत दुबारा न करने और सॉरी माँगने की कहा। दोनां ने एक दूसरे को सॉरी कहा। जाते जाते मैंने उनसे रूम को ठीक करने को कहा।
रूम से जाने लगा तो टूटी हुई टॉय कार से पैर टकरा गया। मैंने उसे उठाया और वो दृश्य याद आ गया जहाँ वो गरीबों के बच्चे बारी बारी से उस टॉय कार से खेल रहे थे। मेरे जाते ही दोनो में फिर जुबानी जंग छिड़ गई।
मैं सोचने लगा - शहर के महँगे और प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ कर ये दोनो वो ना सीख सके जो वो भीख माँगने वाली लड़की बिना स्कूली शिक्षा के सीख गई। वो छोटी लड़की सच में मुझे बहुत बड़ी सीख दे गई।
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