Samajh in Hindi Moral Stories by Pawnesh Dixit books and stories PDF | समझ...

Featured Books
Categories
Share

समझ...

“ समझ “

पवनेश दीक्षित

ज्यादा सुनना, कम बोलना भी खतरनाक हो जाता है,विक्की के साथ भी ऐसा था, सबसे पहले अपने दायें पैर को ऊपर उठाकर, जहाँ तक उठा पाएं वहां तक |ये पी टी के टीचर की आवाज़ थी, विक्की ...– तुम्हारा ध्यान किधर है !! तुम हमेशा अलग ही माया मगन में रमे रहते हो |

तुम्हारा ध्यान किधर रहता है ! चलो तुरंत निकल जाओ क्लास के बाहर सर! मैं तो स्टूडेंट हूँ आप टीचर हैं बोल मैं सकता नहीं ज्यादा, केवल सुनना अच्छा नहीं लगता मुझे | चुप!! एक शब्द भी नहीं, तुम्हारी शिकायत बड़े सर को करनी पड़ेगी तभी अक्ल ठिकाने आयेगी |व्यायाम की कक्षा में भी तुम्हारा मन नहीं लगता, इतना कहकर वे अपना डंडा घुमाने लगे शायद डेस्क पर जोर से मारने वाले थे ताकि क्लास का माहौल शांत रह सके |

विक्की वैसे तो बुरा नहीं था बस स्कूल में उसका मन बिलकुल नहीं लगता था | घर पर माँ का दुलार और पुच्चु के अगड़म बगड़म खेल उसे बहुत प्रिय थे | पुच्चु एक पिल्ला था पर वे लोग उसे अपने बेटे की तरह प्यार करते थे वैसे भी सारे जानवरों में कुत्ता सबसे वफ़ादार होता है तो उसका बच्चा यानी पिल्ले को बेईमान समझने की छोटी सी गलती भी इंसान नहीं करते इतने समझदार वे होते हैं |

एक दिन विक्की सभी दोस्तों के साथ पार्क में बैठा हुआ था और गरमागरम बहस छिड़ पड़ी | बात केवल इतनी सी थी कि कुक्कू को जाड़े में आइसक्रीम खाना अच्छा लगता था जबकि विक्की और उसके साथी गर्मी में आइसक्रीम न खाने की बेजोड़ दलीलें दे रहे थे | घुमाफिरा के बात यहाँ पर पहुँच गयी, कि खाने के लिए जीते हैं सब या जीने के लिए खाते हैं सब | विक्की की फूली हुयी तोंद देखकर सभी उसका मज़ाक उड़ाने लगे |

वह वहां से फ़ौरन सटक लिया | घर पर पहुंचा तो माँ ने कह दिया जाओ दूध लेकर आ जाओ नहीं तो शाम की खीर नहीं बन पायेगी फिर मत कहना कि छोटू के जन्मदिन पर खीर नहीं बनायी |

इधर –उधर की कल्पनाएँ करने के बजाय वह सोचता ही चला गया कि कैसे पिछले जन्मदिन पर उसे चुराकर केक खाना पड़ा था केवल खीर की वजह से |

नहीं नहीं !!! ऐसा कभी ... आगे कुछ वह बोलता इसके पहले ही माँ ने बीच में टोक दिया बेटे !! चप्पल पहन जल्दी जा नहीं तो तेरे पापा आ जायेंगे फिर न दूध बचेगा न खोया अरे खीर तो दूर उल्टा दही की तरह मन खट्टा हो जाएगा |

वह इतनी लम्बी बात सुनकर कस कर बोला ठीक है भाई !! दिमाग मत खाओ मेरा तब तक पीछे से छोटू बोला दिमाग होगा तब तो दिमाग खायेंगे हम लोग !!

तू इधर आ !!! भागता किधर है !!

वहां जहाँ कोई आता जाता नहीं !!

अबे वीराने में भागेगा, वहां कोई भूत - चुड़ैल मिल गए तो.... क्या करेगा मेरा शेर !!! बच्चों के पापा कमरे में आ चुके थे |

शेर सबको चबाचबा कर खा जायेगा |

विक्की भैया भुनभुनाने वाले ही थे –

पापा और छोटू अब मुस्कुराने लगे थे | वे जानते थे कि विक्की बोलता कम सुनता ज्यादा है या फिर चिल्ला बैठता है |

यही हुआ चुप हो जाओ !!! मेरा दिमाग मत खराब करो आप लोग, मेरी परीक्षा आने वाली हैं |

भाग कर दूसरे कमरे में चला जाता है, अचानक याद आता है कि बढ़े हुए पेट यानी तोंद को भी कम करना है,नहीं नहीं उसे इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता वह तो पढ़ने के लिए बना है पढलिख कर उसे बड़ा आदमी बनना है |वह अपना वक़्त बेफ़िजूल की बातों में नहीं गँवाएगा | वह एक समझदार लड़का है | अभी यहीं बैठा है गया नहीं अभी तक ......माँ ने आवाज़ दी |

उसे ध्यान आया कि उसे दूध लेने जाना था | इधर छोटू उधम काट कर रखे दे रहा था -- पापा मुझे साइकिल लेनी है और मम्मी आपको घड़ी देनी है | बेचारा मनपसंद गिफ्ट के चक्कर में अपने बचपन के अरमानों का गला घोंट नहीं पाया था और खुलकर बोल बैठा था |

सारे इंतजाम हो चुके थे अब मेहमानों यानी छोटू के दोस्तों का इंतज़ार था,छोटू अपनी मनपसंद कपड़े पहनकर तैयार था एकदम जेंटलमैन लग रहा था आज तभी किसी ने उसे पुकारा ए !! मिस्टर भोलूराम !! आ गयी मैं, अन्दर नहीं बुलाओगे इसका नाम बीना था ये छोटू के पड़ोस में रहती थी छोटू मन ही मन इसे बहुत पसंद करता था पर आज तक उसने ये बात अपने दिल में छुपा कर रखी थी कहने की हिम्मत नहीं कर पाया था |

आज तो वह कह ही डालेगा चाहे कुछ भी हो जाय |

विक्की भी तैयार होकर अब आ चुका था बड़े सोच विचार में आज मग्न था बात ये थी कि उसे डर लग रहा था कि हर बार की तरह कोई ऐसा सीन न बन जाय कि केक छोटू के बजाय पहले उसके मुहं पर पोत दिया जाय हर बार की तरह | विक्की के मुहं पर अबकी बार भी छोटू के एक दोस्त ने केक फेंक के मार दिया था |

हुआ यों कि विक्की आज भी कुछ बडबडाते हुए ड्राइंग रम में घुसा था जहाँ भीड़ इकट्ठा थी पर वह अपने में ऐसा मगन था कि भूल से केक में हाथ लगा बैठा और केक का एक टुकड़ा उछल कर मनु की नाक पर तपाक से चिपक बैठा |मनु ने फ़ौरन ही अपनी नाक पोंछते हुए उस बिगड़े केक में हाथ मारा और एक लोंदा बनाकर विक्की के मुहं पर जड़ मारा |

पर आज सभी आश्चर्य में थे कि बजाय चिल्लाने और खिसयाने के विक्की खुद पर हंसने लगा और कोई कुछ पूछता इसके पहले ही विक्की खी खी करके हंसने लगा और एक कविता गाने लगा –

छोटू का बर्थडे आया,(मुस्कुराते हुए )

केक को मुहं पर मनु ने लपटाया,( मुस्कुराते हुए )

अरे !! इस केक को देखो ! ( मुस्कुराते हुए )

मेरे ऊपर फेंको ( मुस्कुराते हुए )

फेंकने से पहले अपनी नाक को देखो

ये बन्दर जैसी कैसी अलबेली !!!

है ये एक पहेली जिसके दो दरवाज़े

घने जंगल जैसे अँधेरे से भी होकर

ज़िंदगी की ऑक्सीजन ले जाते,

किसी की लगती जैसे पकौड़ा

है हड्डी या कुक्कू का फोड़ा,

अरे!! मैं भागा भागा

दौड़ा दौड़ा.... ,

अपनी दुम पर मारो

सब अब हथौड़ा |

दौड़ा दौड़ा मैं तो दौड़ा और चालाकी दिखाते हुए वहां से भाग जाता है |

शायद वह भी अब बोलना सीख गया था अपने अंतर्मन की शक्ति से या ज़िंदगी का फलसफा उसे समझ में आ चुका था | डरने से और और दबने से काम नहीं चलता और ना ही पागलों की तरह उछलने से, इन दोनों के बीच के रास्ता ही सबसे अच्छा होता है | उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे अब वह भी लोगों की जुबां पर आ गया था अपने अच्छे बर्ताव की वजह से बहुत जल्दी ही उसे अपनी कमी का अहसास हो चला था अभी उसकी उम्र ही क्या थी !!महज़ १५ साल !!!! और लोगों के बीच उठकर चलने का रास्ता बुलंद हो चुका था | ये उसकी किस्मत थी या कर्मठता या हिम्मत या हौसला क्या कहा जा सकता है !!!

***