संकल्प
मंजू गुप्ता
सुहाग रात की सेज पर शराब के नशे में धुत लड़खड़ाते कदमों से इंजीनियर पति गीतेश को देख कर पत्नी गीता के दुःख की अविरल बहनेवाली आंसुओं की धाराएं गीतेश को शराब से मुक्त कराने के संकल्प की साक्षी बनी थीं.
गीतेश ने अपने छात्र जीवन से ही अपने संयुक्त परिवार में नशे के माहौल में पिता - चाचा को शराब के नशे में चूर गाली - गलोच, मारपीट पारिवारिक कलह को कई बार देखा था. उसने परिवार की खुशाहली को शराब की वजह से आर्थिक तंगी की बरबादी को भी देखा था. ऐसे कुसंस्कारों के बीच कुवृत्तियों के बीज गीतेश में अंकुरित होने लगे थे. छात्र जीवन से ही कभी कभार पिता की शराब की बोतल में से शराब पी लिया करता था. फिर अपने यार - दोस्तों के साथ बाग़ - बगीचों में, एकांत स्थलों में बैठ के शराब पीता था. जिसका नशीला नशा गीतेश को आनंदित करने लगा था. जैसे - जैसे दिन गुजरने लगे वैसे - वैसे गीतेश शराब का आदी हो गया.
उसका पढ़ाई में मन न लगता था. कैसे - तैसे कक्षाओं में पास हो कर गीतेश इंजीनियर बन गया और शादी के लिए योग्य लड़कियों के प्रस्ताव भी आने लगे. ‘ शादी डाट कोम ‘ की वेब साइट के द्वारा गीतेश के माता - पिता को डा. गीता का बायोडेटा पसंद आ गया. वह शुभ दिन भी आ गया जब सात फेरों के बंधन में डाक्टर गीता अपने सपनों का घर बसाने गीतेश के बंधन में बंध गई.
विदूषी- निपुण डाक्टर गीता को शादी की पहली रात पति गीतेश के लडखडाते क़दमों के देख के अपने भाग्य को कोसा. गीतेश के कपड़ों में से शराब की दुर्गन्ध वातावारण को विषैली कर रही थी. गीतेश का का टूटे फूटे शब्दों में गीता के साथ संवाद गीता के भावी जीवन के सपनों पर पानी फेर रहे थे और अपने छटपटाते गमगीन, उदास मन को सांत्वना देते हुए अपने सपनों के घर को टूटते - बिखरते हुए नहीं देखना चाहती थी. तनावग्रस्त गीता सोचने लगी कि शादी भी एक जूंआ है कोई जिन्दगी को जीतता है. कोई हारता है. गीता मन ही मन बडबडाने लगी कि जिन्दगी के इस दांव को कैसे भी जीत में बदलूंगी और जीवन साथी की इस गलत मार्ग पर चलने वाली इस लत को छुड़ाने की विकट समस्या के हल के बारे में उलझती हुई खुद से सवाल करती थी. इसी उलझन में कब रात कटी उसे पता ही न चला.
तभी उसे भान हुआ जब सासू माँ ने कुंडी खटखटाई. दरवाजे की चटकनी खोल गीता ने चरण छू के माताश्री का वंदन किया. तनाव ग्रस्त निरुत्साहित गीता की पीड़ा - दुविधा को अनुभवी माता श्री ने अपनी पैनी नजर से भांप ली थी . तभी सासू माँ को अपना अतीत याद आया.
मुजफ्फरपुर के अमीर व्यापारी, खानदानी रुतवे के नाम पर सुंदर, गोरा - चिट्टा राकेश के साथ मेरी शादी हो गयी. जो मुझे अभी तक उल्टा तवा, काली कमली, कमली के नाम से संबोधित करके ताना मारा करते हैं . मेरी माँ मेरे काले रंग को गोरा करने के लिए मुझे कितनी आयुर्वैदिक पहाड़ी जड़ी - बूटी को कूट - छान - उबाल के अर्क बना के पिलाया करती थी और चेहरे पर अभिमंत्रित लेप लगाया करती थी. इन सब का कुछ भी असर न होता था.जैसे की काली भैंस के ऊपर गोरा करने के लिए कितनी भी गोरे रंग की फेयर एंड लवली क्रीम लगा लो, कोई असर नहीं होता है . मेरे भाई - बहन, सहेलियां भी मुझे काली माई, दियासलाई कह के चिढ़ाया करती थी.
काले रंग की वजह स्कूल जाने से डरती, शर्माती थी. कैसे तैसे आठवीं पास की थी. गाँव में लड़कियों को ज्यादा नहीं पढ़ाते थे. जैसे - जैसे बड़ी होने लगी माता - पित़ा को मेरी शादी की चिंता सताने लगी थी. मेरे रंग - रूप के कारण कोई लड़कावाला शादी के लिए राजी न होता था. जिससे भी पिता जी मेरे रिश्ते की बात करते थे, वही मेरे रंग को देख के विदक जाता था. मुझे अपने जीवन में अँधेरा नजर आता था,अपने आप से सवाल करती थी कि कुदरत का दोष है या मेरा क्या कसूर है ?...... एक दिन राकेश के माँ - पिता ने मुंहमांगी देहज के दम पर मेरे पिता जी ने राकेश से रिश्ता तय कर दिया. शराबी पति की बांहों में पहली रात कटी थी.
तभी राकेश ने कमली ओ कमली किधर हो कह के आवाज दी. तभी कमली का ध्यान भंग हुआ. बहू को नहाने के लिए कह कर रसोईघर की और सुबह का नाश्ता बनाने के लिए लपकी.
नया घर, नया परिवेश में गीता को माता - पिता, अपनों की याद आना तो स्वाभाविक ही था. गीता नहा - धो कर पूजा पाठ कर रसोई में माता श्री का हाथ बंटाने में लग गयी. बड़ी तसल्ली के साथ डाईनिंग टेबल पर नाश्ता सजाकर सबने मिलकर खाया. जैसे - जैसे दिन ढलते गए. गीता और गीतेश आप से तुम तुम से तू हो गए.
एक रात गीतेश की शराब की लत छुड़ाने के लिए गीता ने मेज पर दो गिलास रख के उसमें गीतेश और अपने लिए शराब उड़ेली और खुद झूठमुठ पीने का नाटक करने लगी. गीतेश को गीता का शराब पीना अच्छा नहीं लगा उसके हाथ से गिलास छिन लिया.
गीता ने गीतेश से कहा - " आप पी सकते हैं तो में क्यों नहीं ?"
गीतेश ने प्यार से गीता को कहा -
" तुम तो डाक्टर हो, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. फिर तुम बीमार पड़ जाओगी तो मरीजों का इलाज कैसी करोगी ? "
गीता ने फिर प्यार से समझाते हुए गीतेश को कहा -
" तुम भी तो पीते हो, मेरे कहने से भी इस जहर को छोड़ते नहीं हो तुम तो अपने साथ मेरी जिन्दगी भी बरवाद कर रहे हो, तुम भी तो नशे के मेरे मरीज हो. "
तब गीतेश ने कहा - " इससे दूरी बनाने की कोशिश करूंगा. "
लत जब लग जाती है तो जाने का नाम नहीं लेती है. गीतेश ने मन ही मन में सोचा.
गीता इसी उधेड़ बुन में लगी रहती थी कि गीतेश के अतीत की समस्या को वर्तमान के इस अँधेरे में कैसे उजाला लाऊं ?
रात होते ही गीतेश की हरकते देख के गीता का दम घुटने लगता था. गीतेश की विचित्र - सी मनोस्थिति हो जाती थी.
जाड़े की सुबह की गुनगुनी धूप में लान में बैठे सासू माँ के संग चाय की गर्म - गर्म चुस्कियां ले रही थी. गंभीर हो के गीता ने माँ से कहा - " मांजी ! अपने पति गीतेश की शराब की लत छुड़ाने के लिए देवी से मन्नत मांगना चाहती हूँ और बिना चप्पल पहने मंदिर पैदल चल के प्रार्थना करूंगी " इस पूण्य काम में मुझे आपकी सहमती चाहिए.
सासू माँ ने बहू की सकारात्मक सोच और पुत्र के ठीक होने के लिए हामी भरी और कहा - " मेरी सारी दुआ मेरे बेटे के लिए तेरे साथ में है. बहू ! सदा सुहाग बना रहे, दूधो नहाओ पूतो फलो ! की आशीषें देने लगी. "
तभी उसने अपन मन में सोचा कि प्रेम के बल से सावित्री भी सत्यवान को यम से वापस ले आयी थी. गीतेश को अपनापन, समर्पण, देखभाल, सहयोग और प्रेम से ही अपने वश में किया जा सकता है. पवित्र - सच्चा प्रेम पूर्णता का प्रतीक है.. प्रेम मानव जीवन की संजीवनी है. क्यों न इस संजीवनी से गीतेश के खोखले जीवन में प्राण शक्ति का संचार करूँ ? तभी उसने आत्म विश्वास के संकल्प से गीतेश की शराब की लत को दूर करने का बीड़ा उठाया.
परेशान, हतोत्साहित गीता शराब की दुर्गंध से जहरीले परिवेश में बेसुध, निढ़ाल गीतेश का मुख को चूम ईश्वर के बनाए पति - पत्नी के रिश्ते के दाम्पत्य जीवन की खुशाहली की प्रार्थना करने लगी.
गीता अपनी हर ख़ुशी को दांव पर लगा कर गीतेश को नशे के दलदल से मुक्त कराने के लिए प्रेमिका, मित्र,माँ मार्गदर्शिका बन के शराब के मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक दुष्परिणामों को बताती थी. लेकिन गीता की सारी कोशिशें शराबी गीतेश के आगे नाकाम हो जाती थी. लेकिन तब भी गीता ने हिम्मत न हारी. उसकी सकारात्मक सोच, धैर्य, विश्वास, प्यार आत्मबल से गीतेश की शराब की लत छुटाने का हल सोचती रहती थी.
तभी उसके मन पंख ने उड़ान भरी. झटपट गीतेश को तैयार करके अपने अस्पताल ले आयी. जहाँ पर सारे मरीज शराब, तम्बाकू, नशीली वस्तुओं के नशे के सेवन से शारीरिक, मानसिक बीमारियों जैसे हृदयघात, ब्रेन हेमरेज, लकवा, कैंसर, लीवर सोराइसिस, अल्सर और फेफड़ों में इन्फेक्शन आदि से पीड़ित थे और दर्द से कहरा रहे थे. किसी रोगी के में मुँह खाने के लिए तरल पदार्थों के लिए पतली नली लगी हुयी थी .
इन सब की बुरी हालत को देख के मन ही मन बुदबुदाते हुए गीतेश ने अपने आप से कहा कि नशे के सेवन से ऐसे जान लेवा घातक परिणाम होते हैं.
तभी उसी पल गीतेश ने विनाश के इस नजारे को देख के गीता के हाथ पर अपना हाथ रख कहने लगा,
" आज से संकल्प लेता हूँ कि शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा. "
यह सुन गीता ने गीतेश को कहा,
" हाँ, अच्छे आचरण, विधायक भाव और सकारात्मक सोच से बाह्य और अंतर मन की गन्दगी को हम साफ़ कर सकते हैं. क्योंकि मन के संकल्प से विल पावर, सद्संगति से कुवृत्तियों और कुमार्गगामियों को सही रास्ते पर लाकर व्यसनों से मुक्त करा सकते हैं. जिससे परिवार, समाज का विकास, कल्याण होता है. "
गीता और गीतेश की सुहाग रात आँखों ही आँखों में दाम्पत्य जीवन के कैनवास पर संकल्प की तूलिका ख़ुशी - सुख और खुशहाली के नए रंग भर रही थी.
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