Kshitij in Hindi Short Stories by Neha Agarwal Neh books and stories PDF | क्षितिज

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क्षितिज

"क्षितिज"

नेहा अग्रवाल नेह

कहने को तो बहुत कुछ था आकाश के पास पर शायद धरा के पास ही वक्त की कमी थी।

आज तीन साल हो गये थे आकाश को पर धरा आज भी सबके सामने उसके प्यार का मजाक बना मुस्करा कर गुजर जाती हैं । धरा रखती तो अपने कदम जमीन पर ही है पर आकाश को ऐसा लगता था ।

जैसे धरा का एक एक कदम उसके दिल की दहलीज को लहूलहान कर देता है।

आकाश की धुंधली आंखो मैं एक बार फिर तीन साल पुराने मंजर का साया लहरा गया था।

कालेज के पहले दिन बेफ्रिक आकाश अपनी मोटरसाइकिल स्टैंड पर लगाने ही वाला था। तभी धरा तूफान की तरह अपनी स्कूटी के साथ आकाश से जा टकरायी थी ।गलती धरा की ही थी पर वो मानने को तैयार नहीं थी चोट दोनों को ही लगी थी।

पर आकाश का जख्म कुछ ज्यादा गहरा था । उसका दिल भी घायल हो गया था इस हादसे में और उस पर सितम यह सामने वाले को कोई फरक ही नहीं पड़ा था।एक छोटा सा sorry भी नहीं बोला था धरा ने।

और आकाश की तों दुनिया ही बदल गई थी उस दिन से ,

सुबह शाम धरा को याद करता आकाश खुद को भूल गया था।

अपनी सारी दुआ कबूल लगी थी आकाश को जब पता लगा था की धरा उसके ही क्लास में है ।

पर साथ ही बुरा भी लगा कि पूरी क्लास जान देती है धरा पर ।

कहने को यह तो धरा की गलती नहीं थी। पर अगर आकाश का बस चलता तो वो पूरी क्लास को जादू गायब कर देता । कोई और उसकी धरा को देखता भी था तो आकाश का खून खौल जाता था।

धरा मस्त मौला सी लड़की थी । हमेशा मुस्कुराने वाली और जब जब वो मुस्कुराती उसके गालों पर डिम्पल पड़ जाते। और बस तभी आकाश का दिल भी उसी डिम्पल में उलझ जाता।

बहुत मुश्किल मे था आकाश दिल उसकी बात समझता नहीं था । और धरा शायद समझ कर भी अन्जान बन जाती।

आकाश समझ नहीं पा रहा था की क्या करें ।

कैसे धरा को बताये वो धरा से कितना प्यार करता हैं साल गुजर गया था पर आकाश आज भी पहले दिन के मायाजाल से निकल नहीं पाया था।

आज धरा का जन्मदिन था ।

और आकाश ने भी यह सोच लिया था चाहे कुछ हो जाये वो धरा को अपने दिल की बात बता कर रहेगा।

अपनी साल भर की पाकेट मनी को कुरबान कर आकाश ने धरा के लिए कालेज कैन्टीन मे एक छोटी सी पार्टी रखी थी।पर आकाश आज भी धरा को अपने प्यार का यकीन नहीं दिला पाया था।

जाने क्या हो जाता था आकाश को ,

धरा के सामने आते ही जैसे आकाश के सारे लफ्ज जम जाते है।आकाश को लगता जैसे अचानक हिमयुग आ गया हो ।और सब कुछ बर्फ की सफेद चादर के साये तले छुप गया हों।जज्बातों की नदी बर्फ कीचादर से ढक कर अपना वजूद खो बैठी हों।।

बेबस सा आकाश धरा के प्यार की गरमी के लिए तडपता रह जाता हैं ।

उस दिन सुबह से ही दिल घबरा रहा था आकाश का।

कुछ बुरा होने वाला हो जैसे।और तभी मोबाइल मे आये एक मैसज ने आकाश के सारे अन्देशों को सच कर दिया था।

धरा को एक बस ने टक्कर मार दी थी।धरा की हालत बहुत नाजुक थी।उसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी।आकाश को उस वक्त अपना दिल बन्द होता हुआ महसूस हुआ था ।जाने कैसे वो हास्पिटल पहुँचा था यह सिर्फ़ उसका ही दिल जानता था।

बहुत मुश्किल वक्त था यह आकाश के लिए धरा को बहुत खून की जरूरत थी।आकाश के साथ और भी कुछ लोगों ने धरा को बचाने के लिए अपना रक्त दिया था। आकाश की दुआ कबूल हो गयी थी आज ।

धरा फिर से लौट आयी थी जिन्दगी की तरफ और आकाश उसकी तो खुशियों का कोई ठिकाना ही नहीं था।उसको फिर से जैसे नयी जिन्दगी मिल गयी थी।

कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।आकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

यह हादसा धरा को आकाश के प्यार का यकिन दिला गया था। धरा औऱ आकाश के जीवन में प्यार का मौसम आ गया था।आकाश को कभी कभी डर भी लगता कहीं उसकी खुशियों को किसी की नजर ना लग जाये।

दूसरा साल गुजरते गुजरते पतझड़ आ गयीं थी ।औऱ यह पतझड़ सिर्फ़ मौसम में ही नहीं धरा औऱ आकाश के जीवन मे भी आयी थी ।

धरा फिर पहले की तरह आकाश को नजरअन्दाज करने लगती थी।आकाश से बात नहीं करती हैं ।आकाश को कभी कभी लगता शायद वो प्यार का मौसम आया ही नहीं था।उसने एक सपना देखा था ।जो आंख खुलने के साथ ही बिखर गया था।धरा आकाश से दूर जाती जा रही थी ।अब तो आकाश को भी लगने लगा था कि धरा और आकाश का कभी मिलन नहीं हो सकता दूर सें देखने मे लगता तो हैं कि दोनों मिल रहे हैं पर कितनी भी कोशिश कर ले क्षितिज तक पहुँचना तो असम्भव ही है ना ।

आकाश के लिए धरा का प्यार बिल्कुल वैसा ही है जैसे तपते हुये रेगिस्तान मे ठंडे पानी का भ्रम होना।

और फिर एक दिन आकाश के इन्द्र धनुष के सारे रंग चुरा ले गया कोई उदास सा इन्द्रधनुष अपने वजूद के मिट जाने का मातम कर रहा था।धरा अपनी पढाई अधूरी छोड़ कर चली गयी थी ।पर आकाश की दुनिया से नहीं पूरी दुनिया को छोड़ कर ।उस हादसे ने जान तो बचाई थी धरा की पर कुछ लापरवाही के कारण दूषित रक्त घुल गया था धरा की नसों मे HIV हो गया था धरा को और यह जानकर ही दूर चली गयी थी धरा आकाश की जिन्दगी से।

बेवफा नहीं थी धरा बस वक्त ने ही वफा नहीं की।

***