Use vachan nibhana tha in Hindi Moral Stories by Bhupendra Kumar Dave books and stories PDF | उसे वचन निभाना था

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उसे वचन निभाना था

उसे वचन निभाना था

मैं जिस कहानी को स्वरूप दे रहा हूँ उसमें यह तथ्य निहित है कि अंटार्कटिका सदा से साहसी नवयुवकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है और कई साहसी युवकों को अपने आँचल में छिपाये यह भगवान शिव की तरह शांत, गंभीर आज भी बना हुआ है।

वह व्यक्ति जिसके चेहरे पर खिलती मुस्कान पर अपने आप को संतुलन करने पर इतराती मूँछें हैं, वह क्रूज है और उसके साथ है स्टीफन अपनी गंभीर मुद्रा में हँसी का खजाना लिये एक साहसी नवयुवक। उसी ने कहा था, ‘यह जमीन कुँवारी है, अपनी अल्हड़ मस्ती लिये हुए। इसका स्पर्श मुझे गुदगुदाने लगता है।’ वे अपने तम्बूओं से बाहर निकलकर प्रकृति को धन्यवाद दे रहे थे, क्योंकि प्रकृति आज उनकी यात्रा के लिये अनुकूलता का श्रृंगार किये हुए थी। दो स्लेज गाड़ियाँ थी, तंबू का सामान, खाने के बंद डब्बे और अन्य आवश्यक वस्तुओं से लदी।

‘हमें वापस होने में पाँच हफ्ते लग सकते हैं,’ स्टीफन ने कहा।

‘इस प्रश्न का उत्तर तो यहाँ का मौसम देगा।’

‘लेकिन यहाँ तो मौसम महज गुर्राना ही जानता है,’ यह कहते हुए स्टीफन, क्रूज के चेहरे पर आँखें जमाये उभरती मुस्कान का इंतजार करने लगा। फिर कुत्तों की पीठ थपथपाते हुए बोला, ‘मेरे बच्चों, अब इस जमीन को अलविदा कहो।’

‘अंटार्कटिका अलविदा। मैं तुम्हें मातृभूमि तो नहीं कह सकता। पर तुम मेरी आत्मा की भूमि हो। मैं यहाँ से चला भी जाऊँ, पर मेरी आत्मा सदा यहीं विचरित करती रहेगी।’

‘हाँ, हमारे पदचिन्हों को मिटने न देना, ऐ बर्फीली हवाओं! ऐ बर्फ की संगमरमरी चट्टानों ! अलविदा !’

और फिर वे अपनी यात्रा पर चल पड़े। क्रूज ने अपने काले चश्मे को उतारकर एक बार चारों ओर देखा, ‘ यार, मुझे तो यहाँ की अनंत तन्हाई बड़ी लुभावनी लगती है।’

‘ और ये चाबुक की तरह तीखी हवा की मार,’ स्टीफन ने फिर मजाक किया।

‘ वो मुझे चुम्बन-सी लगती है,’ यह कहकर क्रूज हँस पड़ा। प्रकृति को जैसे यह मखौल अच्छा नहीं लगा। दक्षिण से उठी हवा फुफकारती बरस पड़ी यकायक 130 किलोमीटर की रफ्तार से। विशाल बर्फ की चादर ने उनके अट्ठहास को दबोच डाला। अचानक हमले ने उन्हें घुटने पर रेंगने पर मजबूर कर दिया।

‘ कहो, कैसी रही यह चुम्मी,’ स्टीफन ने पुनः चिकौटी काटी। पर दूर तक बर्फ की ऊँची-ऊँची चट्टानों के सिवा उसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। किसी अनहोनी की आशंका से स्टीफन भयभीत हो उठा। उसने क्रूज को आवाज लगाई पर शून्य में लहराते स्वर, कटे पंखों की तरह खामोश झरते रहे। अपनी स्लेज को रोक कर स्टीफन पीछे भागा जहाँ दूसरी स्लेज के निशान खिचते चले गये थे, चार-पाँच मीटर तक और फिर यकायक अदृश्य हो गये थे। स्टीफन की धड़कनें कराह उठीं, यह देखकर कि स्लेज गाड़ी बर्फ की चमकती सतह को छोड़ एक अंधकूप में जा गिरी थी। कुत्तों की आवाज गहराई से आ रही थी -- उफान लिये दूध की तरह जो ऊपर आकर बुलबुलों के फूटते ही बिखर जाता है। उसने क्रूज को फिर आवाज दी पर उसे उस तीखी खामोशी में कुत्तों की उखड़ती आवाज सुनाई दी जिनमें मात्र दर्द था, रुदन था। भीतर झाँककर देखा तो बर्फ की नीलिमा उस गहराई में सिर्फ स्याह होती नजर आयी। करीबन 50 मीटर की गहराई में स्लेज गाड़ी टूटी पड़ी थी और अब कुत्ते भी अपने प्रयासों को शिथिल कर मौन हो चुके थे। हताश स्टीफन खाई के चारों ओर घूमता रहा, क्रूज को आवाज देता हुआ। क्रूज दूर एक चट्टान से टिका पड़ा था। स्टीफन उसे उठाकर पास ही बर्फ की बनी गुफा के अंदर ले गया। स्टीफन ने स्टोव्ह पर पानी गर्म किया और अल्कोहल मिलाकर क्रूज को पिलाया। क्रूज शायद कुछ साँसों को बटोरने लायक हो चला था। कुत्ते कुड़मुड़ाकर सोने का स्वाँग रच रहे थे।

दूसरे दिन फिर वापसी प्रारंभ हुई, अपने पुराने मार्ग को खोजती हुई। दिन बीतते गये और समय की परतों से उभरती थकान, भूख और हताश होती साँसें उपहार बन मिलती रही। बेचारे कुत्ते भी थक चुके थे। भूख से अधमरे से नजर आ रहे थे। रसद भी इतनी न थी कि पार लगा सके। उनकी भोजन सामग्री का एक बड़ा हिस्सा तो दूसरी स्लेज के साथ खाई में समा गया था -- बिना खाये -- जिसकी याद में वे न जाने कितने दिन तक यूँ ही तरसते रहेंगे। इसी बात पर क्रूज चिंतित था और अपनी खुराक को हर वक्त आधी करता जा रहा था। फिर भी दस घंटे लगातार, वह भी बिना रुके चलने वाले क्रूज ने हिम्मत नहीं हारी थी। लेकिन तापमान लगातार गिरता जा रहा था। शून्य से उन्नीस डिग्री नीचे। अभी तक दो कुत्ते भी साथ छोड़ चुके थे और उनके जिस्म बचे कुत्तों की खुराक बन चुके थे।

स्टीफन अब बोलने की ख्वाहिश को दबाये रखते हुए प्रायः चुप रहता था। उसकी दोनों आँखों पर बर्फ ने अंधेरा भर दिया था, पर इस बात को वह अपने अंदर छुपाये रहा ताकि क्रूज का मनोबल क्षीण न हो। इधर एक के बाद एक बिस्कुट, चाय, कोको, मक्खन आदि के डब्बे अपनी खाली होने की सूचना देते जा रहे थे। मौसम कठिन होता जा रहा था। ध्रुव की निकटता के कारण चुम्बकीय सुई दिशाज्ञान देना भूल गई थी। एक अनिश्चिंतता का माहौल गहराता जा रहा था -- स्टीफन और क्रूज के मस्तिष्क में कहीं आक्रोश लिये घुमावदार घाटियाँ थी तो कहीं गहरी खाइयाँ उदासी से पूर्ण थी। भयावह बर्फीली चट्टानें यहाँ वहाँ तिरस्कृत-सी बिखरी पड़ी थीं। ऐसा प्रतीत होता था जैसे सारा वातावरण मौसम के इस बीभत्स रूप का सहायक बन इन्हें त्रस्त करने पर उतर आया है। स्टीफन सिर नीचा किये चलता रहा। क्रूज अपनी थकान को छिपाने की व्यर्थ चेष्टा करता था पर स्टीफन की अनुभवी आँखें ताड़ जाती थीं। वे दोनों पूरी तरह थक चुके थे, टूट चुके थे और कुत्ते एक के बाद एक साथ छोड़ते जा रहे थे। जो बचे थे वे भी नाममात्र की शक्ति को परिभाषित कर रहे थे।

समय जैसे सब कुछ छीनता चलता गया। सारे कुत्ते चल बसे और बर्फ के जंगल के वीराने में रह गई सिर्फ दो भटकती आत्मायें। पर समय जब कुछ छीनता है तो देने के लिये अपने साथ कुछ तोहफे भी लाता है। इन दो आत्माओं के लिये वह लेकर आया था उबकाई, धुंधलापन, नैराश्य और रह-रह कर चक्कर खिलाकर गिरा देने वाली शून्यता। चमड़ी का जगह-जगह चटकना, बालों का झर जाना और शरीर के जोड़ों पर फटती दरारों का दर्द और रह-रह कर अवयवों का सुन्न होना। स्थिति ऐसी थी कि भूख आकर भी अहसास जगाना बरका जाती थी और दे जाती थी पेट में उठती ऐंठन जो कभी लम्बे दौर से गुजरती हुई मौत को ही करीब लाकर खड़ी कर जाती। स्टीफन ने इस भूख का नाम रखा था ‘मनहूस भूख’।

स्टीफन ने हताश हो एक दिन कह भी दिया, ‘मित्र, ऐसा लगता है कि मौत हमारे शरीर से ही घृणा करने लगी है। वह इस घिनौने शरीर को अपने आगोश में लेने से कतरा रही है।’

‘कब तक कतरायेगी, साली। उसे तो घिनौने को ही गले लगाना होता है।’

‘यह सच है, एक कडुआ सच।’

पर अपनी जिन्दगी का कडुआपन तो और भी असहनीय है।’

‘हाँ, अब मौत ही ज्यादा अच्छी लगती है। आज लगता है कि जीवन भी सूना या खाली नहीं रहता है। जैसे-जैसे इस महल के कमरे खाली होते हैं, मौत उन्हें किराये पर लेती जाती है। पीड़ा इसी किराये की वसूली गई रकम है, बंधु। जिन्दगी भर मनुष्य मौत की यही तस्वीर देखता रहता है।’

‘ सच, मौत ही से मुक्ति है। एक लम्बी उम्दा नींद, और क्या।’

‘ नहीं क्रूज, मैं आत्मा की मुक्ति की बात कर रहा हूँ, इस शरीर की नहीं।’

‘ ओफ्, उसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं क्योंकि मैं पहले मरूँगा और तुम मुझे दफनाओगे। मेरे लिये प्रार्थना पढ़ोगे। कहो, यह करोगे ना। इससे मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।’

‘ और अगर मैं पहले मर गया तो !’

‘ ऐसा हो ही नहीं सकता, मेरे स्टीफन।’

स्टीफन चुप रहा। वह एक आँख खो चुका था और दूसरी धुंधली हो चली थी। उसके जूते पैर की चमड़ी से यूँ चिपके थे कि उन्हें वह उतारने से डरता था कि कहीं खाल न उधड़ जाये। उसे रह-रह कर दौरे से पड़ते थे पर वह क्रूज को सब कुछ बताना नहीं चाहता था। ‘ पर कहीं सच में ऐसा हुआ तो !’ यह ख्याल आते ही स्टीफन विचलित हो उठा। उसने अपने बैग में से बिस्किुट का पैकेट निकाला और क्रूज के निकट आकर बैठ गया।

‘ क्रूज मेरे भाई, मैं तुम्हें पहले मरने नहीं दूँगा। ये बिस्किुट देखो। मैंने इन्हें तुमसे छिपाकर रखे थे। मुझे माफ कर दो।’

गिध्द की तरह झपटकर बिस्कुट छीनते हुए क्रूज ने लापरवाही से कहा, ‘ अच्छा, माफ किया। मरने के पहले ऐसे अच्छे काम तो करना ही चाहिये।’

‘हूँ’ स्टीफन ने हुंकार भरी और किसी गहरी सोच में पड़ गया। क्रूज को लगा कि स्टीफन उसके व्यवहार से खिन्न हो गया है। वह खिसक कर पास आया और स्टीफन के गले में टंगे क्रास की तारीफ करने लगा। वह जानता था कि स्टीफन को इस क्रास से बड़ा लगाव है और उसे खुश करने का तरीका यही है कि क्रास की तारीफ की जाय। वह यह तरीका कई बार आजमा चुका था।

फिर कुछ देर दोनों मौन रहे। क्रूज से न रहा गया। वह और करीब खिसक आया और कहने लगा, ‘ मित्र, मैं एक बात कहूँ। हम वचन दें कि जो पहले मरेगा उसे दूसरा दफनायेगा और प्रार्थना पढ़ेगा।’

‘ और दूसरे की लाश बर्फ पर यूँ ही पड़ी रहेगी -- बरसों तक -- यूँ ही अपनी अंतिम क्रिया को तरसती। जानते हो इन बर्फीली चट्टानों में आज भी आदिमानव की लाशें तरोताजा पड़ी हैं। ऐसे में आत्मा को शांति कैसे मिलेगी।’

‘ उसकी चिन्ता मत कर, यार। अपने आप को उन हिन्दुओं के हवाले कर दो जिनकी किताब -- क्या नाम है उसका -- जिसमें कृष्ण ने कहा है कि शरीर का मोह त्याग दो और मोक्ष ले लो।’

‘यदि यही बात है तो मौत के बाद अंतिम संस्कार पर वचन देने की बात तुम क्यूँ करते हो?’

‘क्योंकि जब तक मनुष्य जीता है कर्तव्य से बंधा होता है। इस कर्तव्य को निभाने के वचन की ही बात कही है मैंने।’

‘पर तू पहले मरने की सोचता ही क्यूँ है, मेरे पास का यह क्रास तुझे मरने नहीं देगा। समझे।’

‘ बंधु, तू लाख मिन्नतें कर पर मरूँगा मैं ही पहले और तू मुझे दफनायेगा। बोल वचन देता है।’

‘ मैंने अपना वचन दिया और तू भी ऐसा ही वचन दे तो बात बने।’

‘ मंजूर है। मेरा वचन रहा।’ क्रूज ने लापरवाही से कहा और मन ही मन बुदबुदाया, ‘ बच्चू, वचन तो तुझे ही निभाना होगा।’

इस वचन ने उन दोनों को अपनी गिरफ्त में यूँ जकड़ लिया जैसे आत्माओं ने शरीर की अदला-बदली कर ली हो। अब दोनों एक दूसरे की लम्बी उम्र की प्रार्थना करने लगे थे। क्रूज जिन्दगी से हताश हो चुका था, यह बात स्टीफन को समझने में देर न लगी। आखिरकार उसे टोकना पड़ा ....

‘क्रूज, तुम अपने प्रति लापरवाह होते जा रहे हो ताकि तुम पहले मरो। यह एक धोखाधड़ी होगी। याद रखो कि हम में से कोई भी खुदकुशी करेगा तो दूसरा अपने आप वचन से मुक्त हो जावेगा। यह हमारे किये वचन की शर्त है। समझे।’

‘ पर मैं खुदकुशी क्यों करने चला ?’

‘ यह खुद के प्रति लापरवाही, खुदकुशी नहीं तो और क्या है ?

‘ ठीक है बाबा, अब ऐसी गलती नहीं करूँगा।’ क्रूज को कहना पड़ा। इसके बाद दोनों ने लन्बी नींद की शरण ली।

दूसरे दिन सुबह बड़े दिन की थी। दोनों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया इसलिये नहीं कि वे स्वयं जिन्दा थे। पर शायद इसलिये कि उनका साथी जिन्दा था जो उसकी अंत्येष्ठि करने के लिये वचनबध्द था। ईश्वर ने भी बड़े दिन के उपहार में उन्हें नवस्फूर्ति प्रदान की और साथ ही उनके माथे पर अच्छे मौसम को चुम्बन अंकित करने भेजा। वे अपने प्रवास में आगे बढ़ने को व्याकुल हो उठे। कभी स्टीफन क्रूज को सहारा देता तो कभी क्रूज स्टीफन का साहस बाँधता। ग्लेशियर पार कर वे उस पार टीले को भी लाँध गये पर उतरते समय दोनों थककर चूर हो गये। मौसम ने भी करवट ले ली थी। चारों ओर बर्फ से निकलती तीखी प्रकाश किरणें थीं जैसे वो भ्रम पैदा करने के लिये ही बनी हों। कितनी बार वे खाईयों से बाल-बाल बच गये। यही सब सोचते वे स्लीपिंग बैग में पड़े रहे और अच्छे मौसम की राह तकने लगे।

पर जब मौसम की क्रूरता कम हुई तो वे अपने आप को आगे ले चलने में असहाय महसूस करने लगे। आत्मा शरीर को निर्देश देती भी तो कैसे ? अब तो आत्मा ही थक कर चूर हो चुकी थी। आशा तो न जाने कब की मर चुकी थी। हिम्मत के चिथड़े-चिथड़े हो गये थे। हौसला मर चुका था। उमंग और उत्साह को पदच्युत कर शून्यता ने मन-मस्तिष्क को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। अब उनके व्यक्तित्व में चहल-पहल थी तो मात्र कुछेक इच्छाओं की जो कुंठित हो सिर्फ अंतिम साँसों के टूटने की बाट जोह रही थी। जीवन जैसे कब्रिस्थान में बैठा अपने को दफनाये जाने के सुखद स्वप्न देख रहा था।

‘ क्रूज, क्या सोच रहे हो ?’ स्टीफन ने खामोशी की मनहूस परतों को काटने के लिये ही जैसे प्रश्न किया,‘ दिखता है हमारा क्रूज हिन्दुओं के कृष्ण की याद कर रहा है।’

‘ याद ! अरे वह तो मेरे शरीर में आकर बस गया है। स्टीफन ! क्या खूब कल्पना की है हिन्दुओं ने। सच में मुझे इस वक्त शरीर से बिल्कुल मोह नहीं हो रहा है।’

‘ और अपनी डायरी से।’

‘ इसमें तो बस एक पूर्ण विराम और लगाना है। वह तो तुम भी लगा सकते हो। है ना ।’

स्टीफन को मजाक सूझा। वह बोला, ‘ मित्र, अब तो मैं स्वयं एक पूर्ण विराम चिन्ह-सा बन गया हूँ। मुझे ही उठाकर अपनी डायरी में चिपका लो।’

क्रूज उस मजाक को समझा नहीं। इस उत्तर से उसे लगा कि स्टीफन अपने हौसले खो चुका है। सच है, जो स्वयं ही हताश हो और अपने स्वजनों को भी हताश होता देखे तो किलबिला उठता है। इस किलबिलाहट को ही निराशा की पूर्णता कहते हैं। क्रूज ने बात बदलते हुए कहा, ‘ यार, मेरे अंदर बैठा कृष्ण कहता है उठो, आगे बढ़ो। सूर्य कभी अस्त नहीं होता। उसका अस्त होना मात्र भ्रम है क्योंकि वह कहीं ना कहीं उस समय उदित होता है। उठो।’

‘ याने तुम्हें फिर शरीर से मोह हो गया है।’

‘ हाँ, यही समझ लो पर चलो, उठो। हमें अभी और जीना है।’

‘ लेकिन अब मौत के सामने जीने की इच्छा बेशर्मी ही होगी, क्रूज।’

वे उबड़-खाबड़ बर्फ की चट्टानों पर फिर से चलने अग्रसर हुए। पाँच किलामीटर चलने पर स्टीफन बच्चों की तरह बैठकर रोने लगा। यह उसके चेहरे के हाव-भाव से दिखता था, क्योंकि उसके सूखे शरीर में आँसुओं को अपना स्त्रोत मिलता ही कहाँ ?

‘ क्रूज, मेरा मन आगे चलने को कहता है पर पांव तो स्थिर ही रहते हैं।’

क्रूज ने उसे पकड़कर पैरों पर खड़ा किया, ‘ देखो, चलकर देखो। पैर उठाओ, वो खुद-ब-खुद चलने लगेंगे। प्रयत्न करो। प्रयत्न ही तो जीवन का आनंद है। तुम्हें चलता देखकर ईश्वर भी खुश होंगे।’

‘ नहीं क्रूज, मैं चलूँगा तो ईश्वर शर्म से नत्मस्तक हो जावेंगे। यह उनकी इच्छा का नकारात्मक उत्तर होगा। मैं अंतिम समय ईश्वर की हँसी नहीं उड़ाना चाहता। मुझे .... मुझे ... मेरे हाल पर छोड़ दो क्रूज।’

‘ देखो, यह खुदकुशी होगी। तुम्हें अपना वचन याद है ना।’

‘ हाँ, याद है।’

स्टीफन हिचकिचाया और धीरे-धीरे पैर आगे रखने लगा। पर अपने आप को संभाल न पाया। ‘ क्रूज, भगवान के लिये मुझे मेरी हालत में छोड़ दो। अब तो मेरी हर साँस पर लदा है थकान का बोझ जिसे तुम मृत्यु के पहले जीवन का भारी तोहफ भी कह सकते हो।’

‘ नहीं, मेरी दुआ यूँ बेकार नहीं जा सकती, स्टीफन।’

‘ अरे पगले, दुआ कभी अजर-अमर बनकर नहीं आती। नैराश्य की घड़ी में तो उसका असर और भी क्षणिक हो जाता है।’

‘ हकीकत तो यही है,’ क्रूज ने मन में सोचा और रुआँसा हो गया। किन्तु हकीकत से हार मानकर हताश होना उसने सीखा ही नहीं था। उसने स्टीफन के हाथों को कैंची नुमा कर अपने कंधे पर बाँध लिये और पीठ पर लादे आगे बढ़ने लगा। वह जानता था कि वह किसी भी क्षण फिसल सकता है और वही उसकी आखरी फिसलन होगी। पर वह बोझ लिये बढ़ता रहा। उसे लगा जैसे स्टीफन से ज्यादा भारी उसके अपने पाँव हैं। इस तरह वह पाँच किलोमीटर और चला। शाम हो चली थी और मौसम ने जैसे हर शाम क्रूर होने की कसम खा रखी थी।

स्टीफन शायद बेहोश हो गया था। काँपते हाथों से क्रूज ने उसे छुआ। साँस चल रही है या नहीं, क्रूज समझ न सका। क्रूज ने अपना फर का मफलर स्टीफन के गले में डाल दिये तभी उसकी नजर गले से बँधे क्रास पर पड़ी। क्रास निकाल कर उसे अपनी हथेली में रखकर वह कुछ बुदबुदाने की सी आवाज कर शांत हो गया। मृत्यु की प्रतीक्षा में आशा जागती रही और लाशोन्मुख होती उन शरीरों के सिराहने बैठी रही। सच है, मनुष्य अपने साथ आशा को भी कहाँ कहाँ भटकने पर मजबूर नहीं कर देता। पर इस आशा को देखो, वह कठिनतम क्षणों में भी भारतीय पतिव्रता नारी की तरह मनुष्य का हर कहीं साथ देती रहती है।

जब आँखें खुली तो स्टीफन क्रूज के शरीर को टटोलने लगा ... साँसों की खोज करने -- ठीक उसी तरह जिस तरह क्रूज अभी कुछ समय पूर्व कर रहा था। स्टीफन अपने दोनों नेत्रों की ज्योति खो चुका था। फिर भी जब टटोलते हुए उसने क्रूज के हाथ में अपने क्रास को पाया तो वह तड़प उठा।

‘ तो तुम मुझे असहाय करना चाहते थे।’ इतना कहकर वह पागल की तरह क्रूज के मृतप्राय शरीर को झकझोरने लगा।

‘ क्रूज, तुमने मेरा क्रास छीन लिया। नहीं, तुम्हें ऐसा नहीं करना था। यह धोखा है, क्रूज। भगवान के लिये कुछ तो बोला, क्रूज।’

स्टीफन ने क्रास को चूमा और रुआँसा होकर लगभग चीख उठा, ‘ क्रूज ,तुम्हें यह क्रास चाहिये था, है ना। मैं वचन देता हूँ कि मेरे मरने के पहले तुम्हें यह क्रास दे दूँगा। बस एक बार तो जी उठो, मेरे मित्र।’

स्टीफन अपने इर्द-गिर्द फैली अँधी दुनिया का माहौल पाकर घबरा उठा। अँधेपन का एहसास असहाय स्थिति में और भी असहनीय-सा लगने लगता है। ‘ हे भगवान, मैं अँधा अपने मित्र को दिया वचन कैसे निभा सकूँगा। उसे कैसे दफनाऊँगा ? मुझे तो कुछ दिखाई ही नहीं देता।’

‘ स्टीफन तुम जिन्दा हो,’ क्रूज एकदम उठ बैठा। क्रूज की आवाज ने मृतप्राय स्टीफन में जान फूँक दी।

‘ हाँ, हाँ मैं जिन्दा हूँ, मेरे मुर्दा मित्र।’

स्टीफन ने अब अपने अँधे होने की बात बता देना ही उचित समझा, ‘ क्रूज मेरे मित्र, देखो तुम पहले मरने की गल्ती मत करना। मैं अपना वचन निभा नहीं सकता। मैं ..... मैं अँधा हो गया हूँ’

‘ क्या यह सच है ?’ क्रूज के मृतप्राय शरीर पर एक और कँपकपी-सी दौड़ गई।

‘ क्रूज, देखो ये क्रास तुम्हें पसंद है ना। मैं मरने के पहले इसे तुम्हें दे दूँगा। तुम्हें इसके लिये अब ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ेगा। बस, एक वादा करो कि तुम मुझसे पहले नहीं मरोगे।’

क्रूज का चेहरा एकदम मुरझा गया। ‘ स्टीफन, लेकिन यह नामुमकिन है। हाँ, एक तरीका है अगर तुम्हें स्वीकार हो तो कहूँ। मैं अपनी कब्र खोदकर तैयार कर देता हूँ जिससे मेरे मरने पर तुम मुझे उसमें ढकेल सको। और यह क्रास मेरे सिराहने याने अपनी दायीं ओर जमीन पर रख देना। ईश्वर से प्रार्थना भी करना और मुझे वह खुद-ब-खुद बर्फ से ढंक देगा।’

‘ और यदि मैं यह न कर सका तो ?’

‘ ईश्वर सभी को माफ करना जानता है। तुम्हें भी ..’ पर इसके आगे क्रूज के शब्द कंठ पर ही रुक गये।

‘ अच्छा क्रूज, पहले यह बताओ कि तुम कब्र वास्तव में किसके लिये बनाओगे ? क्या तुम्हें पता है हममें से कौन पहले चल बसेगा।’

‘ मैं दावे से कह सकता हूँ कि कब्र बनेगी तुम्हारे लिये और मेरे वास्ते।’

‘ तुम अब भी शब्दों की अच्छी पहली गढ़ लेते हो। इससे साफ जाहिर है कि तुम्हारी मृत्यु करीब नहीं है। मृत्यु के पूर्व बुध्दि शिथिल हो जाती है। पहले मस्तिष्क मरता है फिर मन और अंत में यह शरीर। हताश व्यक्ति को मृत्यु पहले अंधा, लंगडा़ और गूँगा बना देती है, यार।’

‘ और जो फिलासफी की बकवास तुम कर रहे हो, वह भी जाहिर करती है कि तुमसे मृत्यु अभी दूर खड़ी है।’

‘ पर मैं तुम्हें कब्र तैयार नहीं करने दूँगा।’

‘ इसमें हर्ज क्या है ?’

‘ नहीं। खुद की कब्र खोदने वाला शैतान होता है। क्रूज, मैं तुम्हें शैतान नहीं बनने दूँगा। मैं अन्धा जरूर हूँ पर मैं सदा भगवान का स्वरूप इन अंधी आँखों के बावजूद भी स्पष्ट देखता रहा हूँ। मैं अब तैयार हूँ, इच्छुक हूँ, उत्सुक हूँ, मृत्यु का आलिंगन करने। अब तुम चाहो तो मुझे जिन्दा दफना दो। अब मैं बस, इसी के काबिल रह गया हूँ। मैं अपना वचन नहीं निभा सकता। मुझ पर रहम करो, मित्र। देखो, अंधों से जिद नहीं की जाती।’

क्रूज में अब और कुछ सोचने की शक्ति शेष नहीं थी। उसे ते बस दो ही विकल्प नजर आये। या तो कब्र खोदकर मौत को पुकारना या फिर ..... दो कदम आगे चलकर भगवान को पुकारना। शायद यही ईश्वर की भी इच्छा हो और सच में वह स्टीफन को अपनी पीठ पर लादे चल पड़ा। अपनी हथेली में रखे क्रास को दिखाकर स्टीफन ने कहा, ‘ क्रूज, जब यह क्रास मेरी हथेली से नीचे गिरे तो समझना मैं यह तुम्हें देकर चल बसा हूँ।’

‘ ठीक है, चुप भी रहो।’ क्रूज अपनी बची-खुची ताकत को बोलने में खर्च नहीं करना चाहता था। उसे विश्वास था कि वह मंजिल तय कर ही लेगा। वह हर कदम गिन-गिन कर रख रहा था। स्टीफन की बातचीत से वह गिनती भूल गया था, सो झुंझला उठा था। उसने फिर गिनती शुरू की एक ... दो ... तीन ... ।

और जब यकायक कुहरा-सा उसकी आँखों के सामने छा गया तो उसके पैर डगमगा उठे। क्या यह फिसलन उसकी आखरी होगी ? उसने पैर संभालना चाहा पर सामने बड़े गड्ढे को देख हिम्मत हार गया।

‘ स्टीफन, गड्ढा ’ वह चिल्लाया।

पर स्टीफन ने जैसे उसकी आवाज सुनी ही नहीं। उसकी हथेली से फिसलकर क्रास नीचे गिर गया। क्रूज इस अचानक सदमे को बर्दास्त न कर सका। स्टीफन की लाश पकड़ छोड़ चुकी थी और नीचे फिसल रही थी। क्रूज सीधा विशालकाय गड्ढे में गिर गया और स्टीफन की लाश गड्ढे के ऊपर अधर लटकी रह गई।

क्रूज ने स्टीफन को आवाज लगाई पर उसकी आवाज उस गड्ढे की बर्फीली दीवार से टकरा कर रह गई।

क्रूज पागल की तरह गड्ढे से बाहर आने का प्रयास करने लगा। हर बार बर्फ की कतरनों के साथ वह नीचे गिर पड़ता था। कभी हाथ की पकड़ मजबूत-सी प्रतीत होती थी, पर पाँव फिसलकर नीचे खींच लाते थे।

‘ स्टीफन मेरी मदद करो। मुझे बाहर निकालो। ‘ मुझे तुम्हें दिया वचन निभाना है। तुम्हारी कब्र खोदना है। प्रार्थना पढ़नी है ... मुझे।’

क्रूज के दोनों हाथ की उँगलियाँ अपना सारा माँस खो चुकी थी और हड्डियाँ ठूंठ सी निकल आयी थी। फिर भी वह गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करता रहा, क्योंकि उसे अपना वचन निभाना था।

भूपेन्द्र कुमार दवे