Rece ka Ghoda in Hindi Moral Stories by Alka Pramod books and stories PDF | रेस का घोड़ा - National Story Competition

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रेस का घोड़ा - National Story Competition

रेस का घोड़ा

अलका प्रमोद

शाश्वत ने घर में पांव रखा ही था कि मेहा बोली ’’शाश्वत कपड़े मत बदलियेगा अभी हमें रेयान को ले कर एडमिशन कराने चलना है ‘‘।

’’एडमिशन ? अरे वो शहर के सबसे अच्छे स्कूल में जा रहा है, कितनी कठिनाइयों के बाद तो वहां एडमिशन हुआ है।‘‘

’’अरे वो तो मुझे भी पता है मैं स्कूल नही कुमॅान क्लासेज की बात कर रही हूं । शाश्वत समझ गया कि मेहा की किसी मित्र ने कुमॅान कक्षा में अपने बच्चे का प्रवेश कराया है औैर मेहा को रेयान का पूरा भविष्य अंधकारमय लगने लगा है, भला किसी भी जगह उसका बेटा किसी से पीछे कैसे रह सकता है?

’’कुमॅान ये क्या बला है ‘‘? शाश्वत ने हल्के मूड में कहा।

पर मेहा मजाक के मूड में नही थी उसने बताया ’’ कुमॅान एक जापानी विधा है इसमें छात्र को किसी भी विषय में इतनी बार अभ्यास कराया जाता है कि वह सोते में भी वह काम आसानी से कर लेगा ।‘‘

’’अच्छा पर तुम्हे पता कहां से चला ‘‘शाश्वत ने पूछा उसको भी इसके बारे में जानने की उत्सुकता हुई।

मेहा ने बताया ’’विदिशा ने अक्षरा का एडमिशन कराया है, फिर रहस्यात्मक ढंग से बोली ’’ पता है वह तो मुझे बताती ही नही पर कल तब मैं रेयान को ले कर स्कूल से लौट रही थी तो विदिशा टेम्पो का इंतजार कर रही थी मैने उसे अपनी गाड़ी में बैठने को कहा तो वो टाल मटोल करने लगी मुझे कुछ शक हुआ, सदा मुझसे लिफ्ट लेने को आतुर विदिशा आज मना कर नही है, जरूर कुछ बात है मैने उसे जोर दे कर अपनी गाड़ी में बैठा ही लिया।

’’ फिर ‘‘?

‘‘फिर वो पार्क रोड के मोड़ पर बोली, रोक दो, मैंने पूछा यहां कैसे तब बोली अरे कुछ नही अक्षरा की कुमॅान क्लासेज ले जाना हैं’’।

‘‘मैने पूछा कुमान क्लासेज क्या है, तो बोली कुछ नही मैथ्स की प्रैक्टिस होती है बस‘‘।

मेहा ने विदिशा की आवाज की नकल उतारते हुये कहा ।फिर विजयी स्वर में बोली ’’ पर मै कोई कम नही हूं मैने घर आ कर इंटरनेट पर पूरी जानकारी ले ली और उसके सेंटर फीस समय आदि सब देख कर लिया।’’

’’वाह मेरी शरलक होम्स‘‘।शाश्वत ने प्रसन्न हो कर कहा । वैसे तो शाश्वत और मेहा सरलता से किसी बात पर एकमत नही होते थे पर बात जब रेयान की हो तो दोनो पूर्णतः एकमत होते कि उनका बेटा किसी भी क्षेत्र में किसी से पीछे नही हो।

उसी दिन शाम को रेयान का एडमिशन कॅुमान की कोचिंग में हो गया शाश्वत और मेहा दोनो ऐसे प्रसन्न थे मानो किसी युद्ध में विजय पायी हो वह बात और है कि रेयान को अच्छा नही लगा, उसके श्शाम को तीन से पांच सोने के और पांच से सात खेलने के समय में एक एक घंटे की कटौती जो हो गयी थी।पर उस की आवाज तो नक्कारखाने में तूती की आवाज थी। उस नादान को क्या पता कि पापा मम्मी उसे सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते हैं ।

पहले तो रेयान रोज स्कूल से आ कर खाना खा कर तीन बजे से पांच बजे तक सोता था फिर दूध पी कर सात बजे तक खेलता और एक घंटे पढ़ाई करके आठ बजे सो जाता था पर अब जब उसे चार ही बजे मम्मा उठातीं तो रोज ही वह नानुकुर करता और कभी प्यार से कभी मम्मा की डांट खा कर कुमॅान क्लास में जाता।मम्मा उसे समझाती ’’ बेटा हम तुम्हे अच्छा बच्चा बनाने के लिये ही भेजते है देखा अक्षरा भी जाती है न’‘।

पर रेयान को न ही अच्छा बच्चा बनने में कोई रुचि थी न ही अक्षरा जैसा बनने में। उसे तो सोना भी अच्छा लगता था और खेलना तो उससे भी अच्छा। खेलने के लिये तो वह सोना भी छोड़ सकता था ।उसे याद है कि जब वह कुमॅान क्लास में नही जाता था और जल्दी खेलने जाना चाहता था तो मम्मा उसे जबरदस्ती सुलाती थीं कि बच्चों को अधिक सोना चाहिये और अब वो सोना चाहता है तो उसे चार बजे ही उठा देतीं हैं । इन बड़े लोगो का कुछ भी पता नही होता, वह मन ही मन सोचता।

रेयान की डायरी में अध्यापिका ने लिखा था कि वह रेयान के अभिभावकों से मिलना चाहती हैं, जब शाश्वत और मेहा गये तो रीता मैम ने कहा ‘‘आज कल रेयान पढ़ाई में बहुत गलतियां करता है उसका ध्यान दीजिये । ’’

पहली बार रेयान की शिकायत हुई थी, नही तो उसकी तो मैम सदा ही प्रशंसा ही करती थीं।

मेहा और शाश्वत अब रेयान की पढ़ाई का और अधिक ध्यान रखने लगे, दिन रात वो उससे कुछ न कुछ याद कराते रहते चाहे वह खाना खा रहा हो या नहा रहा हो।

आज उसका परिणाम आना था मेहा शाश्वत स्कूल गये तो सदा प्रथम स्थान पर रहने वाला रेयान काफी पीछे था, घर आ वो काफी नाराज हो गये उन्होने उसका खेलना बन्द कर दिया, अब उस समय भी उसे पढ़ाई करना होता था मेहा स्वयं उसे एकएक पाठ याद करातीं।

वह आश्वस्त थी कि इस बार रेयान अवश्य प्रथम आयेगा, पर उनकी आशा के विपरीत इस बार वह और पीछे हो गया हैं तो मेहा और शाश्वत मैम से मिले और कहा ’’ आप मेरे बेटे को क्यो कम नम्बर देती है उसे तो हम सब याद कराते हैं ।‘‘

रीता मैम ने कहा ’’ मै आपसे मिलना ही चाहती थी मैं तो स्वयं आश्चर्य में हूं कि इतना कुशाग्र था रेयान, पर पता नही अब उसे क्या हो गया है, न तो उसका मन पढ़ाई में लगता है, न ही वह परीक्षा में पहले जैसा उत्तर लिखता है और थका थका सा रहता है, कभी कभी तो सो जाता है।‘‘

शाश्वत और मेहा को चिन्ता हो गई, मेहा ने शाश्वत से कहा ’’ अब तो रेयान को और अच्छा परिणाम लाना चाहिये अब तो वह कॅुमान कक्षा में भी जाता है। ‘‘

शाश्वत ने और मेहा ने रेयान से बात की तो उसने कहा ’’हमें पढ़ना अच्छा नही लगता ।‘‘

मेहा ने समझाया ’’ बेटा अगर पढ़ोगे नही तो कैसे बड़े आफिसर बनोगे फिर खूब पैसा कैसे आएगा, अच्छी वाली कार कैसे लोगे‘‘?

रेयान ठुनकते हुए कहा’’ हमे नही चाहिये कार पैसा बस हमें खेलना है ‘‘ ।

शाश्वत ने कहा ’’ तुम फर्स्ट आओगे तो हम मन पसंद गेम देंगे ‘‘तो भी रेयान का एक ही हठ था हमें पढ़ना नही खेलना है।शाश्वत को गुस्सा आ गया उसकी पिटाई कर दी। रेयान हतप्रभ था उसे पहली बार मार पड़ी थी। उस दिन उसने खाना भी नही खाया और सो गया।मेहा जब उसे जगाने गई तो उसका बदन तप रहा था। मेहा ने उसे सहलाया तो वह चैांक पड़ा और बेसुध सा चिल्लाने लगा ’’ मुझे नही पढ़ना मुझे कार नही चाहिये पैसा भी नही चाहिये‘‘।

अन्ततः वो लोग उसे चिकित्सक के पास ले गये डाक्टर ने पूरी बात सुनी तो, रेयान उन्होने कहा कि वो रेयान से बात करना चाहता हैं । उन्होने से बात की उसे दवा दी और मेहा व शाश्वत से कहा ’’ इलाज की आवश्यकता रेयान को नही आप को है जो अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने हेतु आपने उसका यह हाल किया है।उसके सामथ्र्य से अधिक बोझ उस पर डाल दिया है यही वजह है कि वह थक जाता है और पढ़ाई से विमुख हो गया है।’’

डाक्टर ने समझाया ‘‘ बच्चे संवेदनशील होते हैं, आज आपने उसे पहली बार मारा तो वह इस धक्के को सह नही पाया।।यदि उस पर ऐसे ही दबाव पड़ता रहा तो वह दिन दूर नही जब वह मनोरोगी हो़ जाएगा।‘‘

यह सुन कर शाश्वत और मेहा के हाथ के तोते उड़ गये पर अभी भी उन्हे चिन्ता यह थी कि अक्षरा भी तो यह सब करती है जब वो कर सकती है तो उसकी आयु का रेयान क्यों नही ?‘‘

डाक्टर ने कहा ‘‘हर बच्चे की अलग अलग सामर्थ्य होती है, हो सकता है जो रेयान की विशेषता हो वह अक्षरा में न हो और यदि वह अधिक विलक्षण हो तो, क्या आप अपने बच्चे की जान ले लेगें, यह आपको तय करना है कि आपकी महत्वाकाक्षा अधिक महत्वपूर्ण है या आपका बच्चा‘‘?

दोनो डाक्टर का आशय समझ गये थे उन्होने रेयान को गले से लगा लिया श्शाश्वत बोला ’’ नही नही हमें हमारा बच्चा प्यारा है, हमे नही बनाना उसे सर्वश्रेष्ठ‘‘।

तो मेहा बोली ’’ अरे नही पढ़ेगा तो हम उसे दुकान खुलवा देगे न ‘‘।

डाक्टर ने हंसकर कहा ’’ ऐसा भी नही है कि आप उसे पढ़ाएं ही नही, आपका बेटा कुशाग्र है उसे पढ़ाइये आगे बढ़ाइये पर उसे बच्चा समझिये रेस का घोड़ा नही।‘‘

***