अपनी 'आत्मशक्ति' के कारण टिका हूँ
आशीष कुमार त्रिवेदी
अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले प्रायः अकेले पड़ जाते हैं। समाज और परिवार की तरफ से उन्हें वह सहयोग नही मिल पाता जो मिलना चाहिए। यही कारण है कि हमारे समाज में न्याय देर से मिलता है। जबकी जो लोग भी अन्याय के विरुद्ध लड़ते हैं उसमें केवल उनका स्वार्थ नही होता। वह लड़ाई दरअसल हमारी अपनी लड़ाई होती है।
मास्टर विजय कुमार सिंह पिछले दो दशकों से एक ऐसी ही लड़ाई लड़ रहे हैं। जो उनकी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है। बल्कि यह लड़ाई उन सभी किसानों की है जिनकी भूमि पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया जाता है। उनकी सरकार से मांग है कि उनके गांव की लगभग 4000 बीघा जमीन जिस पर भूमि माफिया का कब्ज़ा है मुक्त कर दी जाए।
अपनी इसी मांग को लेकर वह पिछले 21 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। वह मुजफ्फर नगर कलेक्ट्रेट के गलियारे में इस अन्याय के विरुद्ध धरने पर बैठे हैं।
इनके गांव चौसाना मे दबंगो का बोलबाला था। गरीबों को न्याय नही मिलता था। सरकारी भूमि व योजनाओ को दबंग लोग हड़प लेते थे। पेशे से शिक्षक विजय सिंह एक दिन जब स्कुल से घर आ रहे थे तो एक पाँच साल का बच्चा अपनी माँ से कह रहा था कि माँ किसी के घर से आटा ले आओ। ताकि शाम को तो रोटी बन सके। बच्चे के इन शब्दों ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया। उस रात उन्हें नींद नही आई। वह सोंचते रहे कि यह कैसी विचित्र स्थिति है जहाँ अन्न उपजाने वाले किसान को ही खाने को नहीं मिल रहा है।
लेकिन औरों की तरह विजय जी ने सिर्फ अफसोस करने की जगह इस विषय में कुछ करने की ठानी। उन्होंने अपने शिक्षक पद से त्याग पत्र दे दिया। वह रोज़ अपने गांव से 70 किमी दूर कलेक्ट्रेट के दफ्तर में जाकर चौसाना की भूमि संबंधित रिकॉर्ड की छानबीन करते थे। इन्हें पता चला की गांव की भूमि का एक बड़ा भाग भूमि माफियाओं के कब्ज़े में था। इस जानकारी ने उस बच्चे की भूख के कारण का खुलासा कर दिया।
विजय जी ने इन दबंगों के विरुद्ध मुहिम छेड़ दी। मुजफ्फर नगर के डीएम, राज्य सरकार के होम सेक्रेटरी तथा केंद्र की सरकार को इन्होंने इस विषय में पत्र लिखे। इन्हें इनके मकसद से डिगाने के लिए पहले तो लालच देने का प्रयास किया गया। किंतु जब इससे बात नही बनी तो इन्हें मारने की धमकियां मिलने लगीं। एक बार अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले में विजय जी बाल बाल बचे। अतः पुनः इस प्रकार का हमला ना हो इसलिए वह 26 फरवरी 1996 को डीएम के दफ्तर के सामने धरने पर बैठ गए। तब से अपनी मांग को लेकर वह धरने पर बैठे हैं।
2007 में विजय जी ने लखनऊ तक की 600 किमी की पैदल यात्रा की। इस यात्रा के दौरान मार्ग में पड़ने वाले गांव के लोगों को वह भूमि माफियाओं के विषय में बता कर उन्हें इस आंदोलन के लिए तैयार करते रहे। उस समय के राज्य के होम सेक्रेटरी से मिल कर उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी। इसके परिणाम स्वरूप तकरीबन 300 बीघा जमीन भूमि माफियाओं के कब्ज़े से छुड़ा ली गई। इसके अलावा कई बाहुबलियों के विरुद्ध 136 के करीब मामले भी दर्ज़ किए गए। लेकिन इससे अधिक कुछ नही हो पाया।
विजय जी का यह आंदोलन बहुत ही शांतिपूर्ण एवं अहिंसात्मक तरीके से जारी है। इस आंदोलन के कारण विजय जी को कई त्याग करने पड़े। इनके परिवार वाले उनके इस आंदोलन से इत्तेफाक नहीं रहते हैं। अतः उन्होंने इनसे नाता तोड़ लिया। आज उनका अपना कोई पारिवारिक जीवन नहीं है। वह पूरी तरह से अपने उद्देश्य को समर्पित हैं।
समाज से भी उन्हें इनके इस मिशन के लिए कोई सहायता प्राप्त नही हुई। कुछ लोग ऐसे अवश्य हैं जो विजय जी एवं उनके आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखते हैं। उनसे मिली थोड़ी बहुत सहायता के कारण विजय जी जीवन निर्वाह कर पा रहे हैं। लेकिन अधिकांश लोग इस विषय में उदासीन हैं। इसका कारण बताते हुए विजय जी कहते हैं "आज समाज की उदासीनता का कारण समाज के उच्च पदों पर बैठे ठेकेदार हैं। जो अपने दायित्वों का सही प्रकार से निर्वाह नहीं करते हैं। पद का लाभ उठा कर लूट खसोट कर रहे हैं। आमजन आपनी रोजी रोटी की फिक्र से ही नहीं उबर पाता है। अपने लाभ के लिए इन्होंने समाज को जाति व, धर्म के आधार पर बांट दिया है। समाज का बडा भाग हताश व, निराश है।"
विजय जी का कहना है कि माता पिता,, गुरु व सन्तों की शिक्षा तथा आध्यात्मिकता ही उन्हें आंतरिक रूप से मजबूत बनाते हैं। उनके इस आंदोलन में अहिंसावाद एवं सुचिता उनके मुख्य हथियार हैं।
2015 में विजय जी के इस आंदोलन को किसी भी व्यक्ति द्वारा सबसे लंबे समय तक धरने पर बैठने के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ किया गया है।
विजय जी एक आशावादी व्यक्ति हैं। अब तक मिली उपेक्षा के बावजूद विजय जी पूरी उम्मीद से इस जंग को जारी रखे हुए हैं। उनका कहना है कि परिवर्तन प्रकृति व संसार का नियम है। यहाँ देर है पर अंधेर नही। एक दिन बुराई अवश्य समाप्त होगी और अच्छाई की जीत होगी। सर्व विदित है काली रात के बाद सवेरा अवश्य होता है।
उनका मानना है कि वह दिन अवश्य आएगा जब उनका गांव चौसाना एक आदर्श गांव बनेगा। जब भूमि माफियाओं के कब्ज़े वाली ज़मीन पर गांव वालों का अधिकार होगा।
यह सब तब ही संभव होगा जब हम सब अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठ सकेंगे। धर्म और जाति के दायरों को तोड़ कर एक होंगे। अपने अधिकारों के साथ साथ दायित्वों के प्रति भी सजग होंगे। समाज को बदलने की ज़िम्मेदारी हमारी साझी है।
हमारा कर्तव्य है कि हम उच्च पदों पर बैठे लोगों को जवाबदेय बनाएं। जब हम स्वयं ज़िम्मेदार बनेंगे तभी हम दूसरों से ज़िम्मेदारी की उम्मीद रख सकते हैं। समाज को भ्रष्टाचार से मुक्त करना भी बहुत आवश्यक है। भ्रष्टाचार समाज के उत्थान में सबसे बड़ी बाधा है।
समाज को विजय जी का संदेश है
"अपने अधिकारो के लिए संघर्ष करें। बिना हमारे संघर्ष के कुछ नहीं होगा। भ्रष्टाचार से लड़ें। जब तक देश मे भ्रष्टाचार व्याप्त है तब तक कुछ नही होगा।"