Ruk jana nahi in Hindi Motivational Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रुक जाना नहीं

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रुक जाना नहीं

रुक जाना नहीं

आशीष कुमार त्रिवेदी

जब समय आपके प्रति कठोर हो तब अपने आप को और अधिक कठोर बनाएं. जब परेशानियों की उंची उंची लहरें उठ रही हों तब चट्टान के समान दृढ़ हो जाएं. यह आपको मुसीबतों का सामना करने में मदद करेगा. यह मानना है CA चिराग चौहान का.

चिराग के जीवन में कई चुनौतियां आईं किंतु अपनी इस सकारात्मक सोंच के कारण इन्होंने सभी का डट कर मुकाबला किया. मुसीबतों से हार ना मानने का इनका यह जज़्बा काबिले तारीफ है.

जब वह केवल 18 वर्ष के थे तभी उनके सर से पिता का साया उठ गया. यह एक बड़ा आघात था. लेकिन चिराग इससे परेशान नहीं हुए. अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए इन्होंने अपने पैरों पर खड़े होने का निश्चय किया. इसके लिए आवश्यक था कि चिराग अपनी शिक्षा पूरी करें. वह कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे वह अपनी ज़िम्मेदारियों को सही प्रकार से निभा सकें. अतः चिराग ने Charted Accountancy के कोर्स में दाखिला लिया. साथ ही साथ इन्होंने Graduation में भी प्रवेश लिया. अपने लिए एक मकाम बनाने के दृढ़ निश्चय के साथ दोनों परीक्षाओं की तैयारी आरंभ कर दी. वह मन लगा कर पढ़ने लगे. परिणाम स्वरूप इन्होंने स्नातक में प्रथम श्रेणी प्राप्त की. साथ ही साथ CA की PE II की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. चिराग को अपनी मंज़िल सामने नज़र आने लगी. Articleship के लिए इन्होंने M/S A.J. Shah & Co. को चुना. यहाँ अपना काम चिराग को बहुत पसंद आ रहा था. सब कुछ बहुत अच्छी चल रहा था.

लेकिन कभी कभी सही रफ्तार से भागती गाड़ी भी पटरी से उतर जाती है. अक्सर हम जो सोंचते हैं परिस्थितियां ठीक उससे उल्टी हो जाती है. चिराग के जीवन में एक बड़ी चुनौती उनकी प्रतीक्षा कर रही थी. अपनी CA की पढ़ाई पूरी कर चिराग जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा होने की बात सोंच रहे थे. लेकिन उनकी मंज़िल छिटक कर और दूर चली गई.

11 July 2006 का दिन इनके जीवन में बड़ा भूचाल लेकर आया. इसकी शुरुआत आम दिनों की तरह ही हुई थी. रोज़ की तरह चिराग अपने काम पर गए. काम जल्दी ख़त्म हो जाने के कारण उन्होंने घर लौटने के लिए रोज़ की तरह लोकल ट्रेन पकड़ी. खार रोड स्टेशन पर लोकल ट्रेन में जबरदस्त बम धमाका हुआ. सारा मुंबई लोकल ट्रेन में हुए धमाकों से दहल गया. इस हमले में तकरीबन 180 लोगों को जान गवानी पड़ी तथा कई घायल हुए.

चिराग भी इन धमाकों में घायल हो गए. उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई. अचानक ही ज़िंदगी जैसे एकाएक थम सी गई. जहाँ वह CA बनकर एक सुखद व शानदार भविष्य पाने की कल्पना कर रहे थे वहीं अब रोज़मर्रा के छोटे छोटे काम भी उनके लिए चुनौती बन गए थे. उन्होंने तथा उनके परिवार ने पहली बार Spinal cord की चोट के बारे में सुना था. अपने लिए प्रयोग किए जाने वाले Medical Term 'paraplegic' ने उन्हें हताशा की गर्त में ढकेल दिया.

चिराग को इलाज के लिए एक लंबा समय अस्पताल में बिताना पड़ा. ऐसी स्थिति में अक्सर जैसा होता है ' मैं ही क्यों ' ' मैंने क्या पाप किया था' जैसे सवाल उनके मष्तिष्क में हलचल मचाने लगे. लेकिन इन सवालों के शोर में भी उन्हें यह समझने में अधिक देर नहीं लगी कि जो है उसे वह बदल नहीं सकते किंतु स्थिति को स्वीकार कर एक नई शुरुआत अवश्य कर सकते हैं. विन्सटन चर्चिल की कही बात उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई.

"ना तो सफलता स्थाई है और ना ही असफलता अंतिम सत्य. आगे बढ़ने की हिम्मत ही मायने रखती है."

चिराग ने तय कर लिया कि वह हार नहीं मानेंगे. आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करेंगे. इस काम में उनकी मदद के लिए उनके डॉ. राजुल वासा जो कि Motor control वैज्ञानिक भी हैं सामने आए. चिराग को पुनः स्वावलंबी बनाने के लिए उन्होंने एक Rehabilitation कार्यक्रम बनाया. इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धैर्य और संयम की आवश्यक्ता थी. चिराग ने डॉ. वासा के मार्गदर्शन में कड़ा परिश्रम किया. अपने जीवन की गाड़ी को फिर से पटरी पर दौड़ाने के लिए उन्होंने दोतरफा लड़ाई लड़ी. स्वावलंबी बनने की तथा अधूरे रह गए CA बनने के सपने को पूरा करने के लिए. परिस्थितियां कठिन थीं लेकिन चिराग भी हार मानने वालों में नहीं थे. उन्होंने परिस्थितिथियों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया.

कठिन परिश्रम से चिराग ने स्वावलंबन पुनः प्राप्त किया. उम्होंने इस बात का अभ्यास किया कि वह लंबे समय तक Wheelchair पर बैठ सकें उसे चला सकें. रोज़मर्रा के काम वह स्वयं करने लगे.

इसके बाद चिराग ने CA बनने के अपने सपने को पूरा करने की ओर प्रयास आरंभ किए. यह चुनौती भी कठिन थी. पर वह अपने को विश्वास दिलाते रहे कि कुछ भी असंभव नहीं. आखिरकार 12 July 2008 का वह दिन आया जब May 2008 में संपन्न हुई CA Final परीक्षा का परिणाम आया. केवल 25% परिक्षार्थी ही उत्तीर्ण हुए जिनमें चिराग भी थे.

लेकिन इस परीक्षा में पास होने के बाद भी समय ने उनकी चुनौतियां समाप्त नहीं की थीं. CA बन जाने के बाद चिराग नौकरी के लिए कई कंपनियों में गए. जहाँ भी वह जाते उनकी योग्यता पर उनकी शारीरिक स्थिति भारी पड़ती. लोग उनकी योग्यता की अनदेखी कर केवल उनके Paralegic होने पर ही ध्यान देते. बहुत कठिन समय था. फिर भी चिराग ने हिम्मत नहीं हारी. पिछली परीक्षाओं की तरह वह इस परीक्षा में भी पूरी तरह सफल हुए.

आज चिराग की Chouhan & Company नामक Charted Accountancy Firm है. इसके अलावा वह एक Online startup company Expertmile.com के cofounder भी हैं.

चिराग स्वयं ही कार चला कर अपने ऑफिस जाते हैं. इसके लिए वह खास तरह से डिज़ाइन की गई कार का प्रयोग करते हैं. इसके संचालन की सारी प्रक्रियाएं हाथों द्वारा की जाती हैं.

चिराग चाहते हैं कि हमारे देश में Wheelchair का प्रयोग करने वालों के लिए Friendly वातावरण बनाया जाए ताकि वह भी सामान्य लोगों की तरह घर से बाहर निकल सकें.

चिराग ने किसी भी स्थिति में हालात के सामने हार नही मानी. जुझारूपन उनके व्यक्तित्व की पहचान बन गया है. बुरे हालातों में भी कभी उनके मन में छोड़ देने की बात नहीं आई. ना ही आतंकवाद का शिकार होने पर उनके मन में कोई कड़वाहट आई. उनका मानना है कि आतंकवाद से निपटना जनता तथा सरकार की मिलीजुली ज़िम्मेदारी है. हमें मिल कर इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी है.