कर्तव्यनिष्ठा
नए शिक्षाधिकारी वर्मा जी का कार्यालय में आज पहला दिन है। सभी अध्यापक समय से पहुंच चुके हैं। आज केवल जूनियर के अध्यापकों की बैठक बुलाई गई है। मीटिंग हाल में लगभग सभी ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया है। कानाफूसी चल रही है…साहब बड़े कट्टर हैं….बहुत ही स्वच्छ छवि के ईमानदार अफसर हैं…अपने पूर्व के कार्यस्थल पर इन्होंने बिगड़ी व्यवस्था को पटरी पर ला दिया था।
प्रधानाध्यापक श्री रामकुमार ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा “हमारे जनपद में ऐसे ही कर्मठ अधिकारी की आवश्यकता थी। यदि यह सख्ती से पेश आते हैं तो हम जैसे अध्यापकों के लिए अच्छा ही है, हम तो अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से करते ही हैं”। “परेशानी तो इन लोगो को होगी”, खाली पड़ी हुई 2-3 कुर्सियों की इशारा करते हुए वह बोले । साहब के पहुंचने से पहले ही उनकी ख्याति विभाग में पहुंच चुकी थी।
अचानक सभी अध्यापक अपने स्थान पर खड़े होने लगे। अधिकारी महोदय तेज कदमों से मीटिंग हाल में दखिल हुए और इशारों से सबको शांति पूर्वक बैठने को कहा। सर्वप्रथम खाली पड़ी 2-4 कुर्सियों के विषय मे अपने सहायक विनोद से पूछा । विनोद ने फुसफुसा कर अनुपस्थित अध्यापकों के विषय मे कुछ बताया। अपने प्रारंभिक सम्बोधन में ही उन्होंने अपने सहृदय होने का परिचय दे दिया जब “साथियो” शब्द का प्रयोग अध्यापकों के लिए किया । वह बोले “ आज आप सब के साथ मेरा प्रथम अनुभव है अतः एक दूसरे को समझना बहुत आवश्यक है। इससे पूर्व की कार्यसंस्कृति अब नही चलेगी। आप सब शिक्षक है …. अपनी जिम्मेदारियों को समझें। शिक्षकों पर समाज के निर्माण का दायित्व होता है अतः मन लगा कर कार्य करें। ले देकर स्कूल से गायब रहने वाले अध्यापक सुघर जाएं अभी वक्त है। भ्रस्टाचार और कार्य में शिथिलता मुझे बिल्कुल नापसंद है… यदि आप सब मेरी कार्य शैली अपनाएंगे तो किसी को कोई तकलीफ नही होगी और सबको मेरा पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहेगा”।
सड़ी गली व्यवस्था में नवीन शिक्षाधिकारी का आगमन एक ताजी हवा के झोंके के समान था। उनके मुख पर ओज वाणी में तेज और व्यवहार में ईमानदारी झलक रही थी।
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंज उठा। अधिकांश शिक्षक पूर्व अधिकारी के शोषण से पक चुके थे। सभी ने खुले दिल से नए अधिकारी की बातों का स्वागत किया।
अपने सहायक विनोद को अगले हफ्ते प्राथमिक शिक्षकों की बैठक बुलाने का निर्देश देकर वे चले गए।
शिक्षक रामकुमार जी उत्साह से भर गए और साथी शिक्षक राजेंद्र यादव से प्रसन्नता पूर्वक बोले “पूर्व के अधिकारियों ने किस प्रकार विभाग को भ्रष्टाचार का अड्डा बन दिया था… रुपये दो … पावर दिखाओ तो विद्यालय आओ चाहे न आओ … कितनों से पैसा वसूल किया था पर मुझसे तो वह भी दूर ही रहते थे। समय पाबन्दी और कर्त्तव्य निष्ठा में मैने आज तक कोई गलती नहीं की है”। आजके अनुपस्थित दबंग शिक्षक समर प्रताप का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा “समर जी ने कितनी ही बार मुझसे अपने क्षेत्र में पोस्टिंग करवा कर मौज करने को कहा था पर बच्चों को पढा कर जो आनंद मिलता है वह छुट्टियां मनाने में कहां” ? बच्चों का मामला हो तो सम्वेदनशील शिक्षक का भावुक होना स्वाभाविक है।
अपनी बात को आगे बढाते हुए वह बोले “ बच्चे चाहे अपने हों या विद्यालय के अच्छी शिक्षा उनका अधिकार है। आपने वर्मा जी की बात तो सुनी ही होगी, बच्चों की शिक्षा के प्रति वह कितने जागरूक हैं .. कम वेतन के बावजूद भी किस प्रकार अपने बच्चों का दाखिला उन्होंने दिल्ली के महंगे विद्यालय में करा रखा है। हम सब भी तो यथाशक्ति अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजते हैं … यदि ग्रामीण अपनी आर्थिक दशा के कारण अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को विवश हैं तो क्या हम अपने कर्तव्य से विमुख हो जाएं”? राजेंद्र यादव ने भी उनकी हां में हां मिलते हुए कहा “यह हम सबका सौभाग्य है कि वर्मा जी जैसे अधिकारी का ट्रांसफर यहां हुआ है।“
सभा समाप्त हो चुकी थी। रामकुमार जी को आज परम् सन्तोष का अनुभव हो रहा था। मेहनत, ईमानदारी और कर्त्तव्य निष्ठा की प्रशंसा करने वाला कोई अधिकारी आज जनपद में आया था।
प्रातः समय से पूर्व ही नित्य की भांति मास्टर साहब विद्यालय की ओर निकल पड़े। रास्ते में सब्जी की दुकान पर समर प्रताप को देखकर उन्होंने अपनी बाइक रोक दी और मुस्कुराते हुए पूंछा,”क्यों समर जी आज विद्यालय में एम डी एम की तैयारी? सुनते हैं वर्मा जी बड़े सख्त मिजाज हैं”। प्रभावशाली पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले समर ने लापरवाही से जवाब दिया,” क्या मास्टर साहब …आप तो हमेशा ही जल्दी में रहते हैं…अभी तो ये नए हैं जल्द ही इनसे भी जान पहचान कर लेंगे। ये सब्जी तो घर के लिए है…स्कूल भी चले जायेंगे अगर टाइम मिला तो…”। रामकुमार को इस जवाब की आशा नही थी। नए अधिकारी के तेवरों से उन्हें उम्मीद थी कि जल्द ही खलीफा लोग भी समय से विद्यालय में दर्शन देने लगेंगे। खैर उन्हें क्या उन्हें तो समय से पहुँचने की आदत है।
अगले दो चार दिन तक वर्मा जी का तूफानी जांच अभियान व क्षेत्र भ्रमण अध्यापकों में चर्चा का विषय रहा। अध्यापकों में हड़कम्प मचा रहा किंतु रामकुमार जी पर इसका तनिक भी प्रभाव नहीं था। उनकी दिनचर्या निश्चित थी और कर्त्तव्य परायणता जगजाहिर। परन्तु होनी को यदि कुछ और ही मंजूर हो तो केवल कर्म के सहारे ही सदा अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते। दुर्भाग्य से रामकुमार जी की सारी तेजी उस समय धरी रह गयी जब अगली सुबह ही उनकी मोटरसाइकिल पंचर दिखी। रामकुमार जी अत्यंत कर्मठ व्यक्ति थे। संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने धैर्य नही खोया। विलम्ब से बचने के लिए उन्होंने चाय नाश्ता करना भी मुनासिब नहीं समझा और मोटरसाइकिल खींच कर 1 किमी दूर पंचर की दुकान तक पहुँचा दिया। पंचर की दुकान स्कूल के रास्ते में थी। विद्यालय खुलने में अभी काफी समय था वे अपनी इस सफलता पर मन ही मन मुस्कुराने लगे। उन्होंने सोचा चाय का क्या है स्कूल में मंगवा लेंगे।
अचानक उनकी नजर सड़क पर जा रहे वाहन पर पड़ती है…अरे यह क्या…ये तो शिक्षाधिकारी की गाड़ी है। जो जल्दी ही उनकी नजरों से ओझल हो गयी। रामकुमार जी की धड़कनें तेज चलने लगीं। “भाई…और कितना समय लोगे…पंचर बनाने में?” घबराकर वह बोले। “बस हो गया साहब …केवल हवा भरना है” पंचर बनाने वाले ने कहा।
मास्टर साहब ने पैसे देकर तेज रफ्तार से गाड़ी दौड़ा दी।मन ही मन वे मन वे मना रहे थे कि यदि आज पहला नम्बर उनके विद्यालय का न हुआ तो वह अधिकारी से पहले ही पंहुच जाएंगे। वैसे भी उनका स्कूल तो सड़क से एक किमी अंदर पड़ता है कौन सा ये सबसे पहले वहीं पहुचेंगे। उनकी मोटरसाइकिल आज हवा से बातें कर रही थी। इतनी तेज गाड़ी उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं चलाई थी। जल्दी ही वे अपने स्कूल के मार्ग पर मुड़ गए। गाड़ी चलाना उनके बस में था किंतु भाग्य पर उनका बस नहीं था। सामने से वापस आती गाड़ी को देखकर उनके होश उड़ गए। यह अधिकारी की गाड़ी थी। वे हाथ जोड़कर खड़े हो गए। हाय रे दुर्भाग्य…रोज 15-20 मिनट पहले जब वे पहुंचते थे तो कोई नहीं आता था मगर आज दस मिनट की देरी में ही विद्यालय चेक हो गया। गाड़ी आकर उनके बगल में रुक गयी। उनके हाव भाव से सम्भवतः अधिकारी ने भी उन्हें पहचान लिया था । “क्यों मास्टर साहब …सवा आठ हो रहे हैं…बच्चों को प्रार्थना कर कर आ रहा हूं”,कड़े स्वर में वह बोले। रामकुमार जी का चेहरा पीला पड़ गया लगभग कांपते हुए वह बोले “सर गाड़ी पंचर हो गई थी…”।“सब के सब एक ही बहाने करोगे?” वर्मा जी क्रोध में थे। मास्टर साहब की आंख में आँसू आ गए “साहब पहली बार विलम्ब हुआ है आगे से नही होगा”। मास्टर साहब की हालत देखकर साहब ने नरमी बरतने का संकेत देते हुए कल सुबह 10 बजे कार्यालय में मिलने को कहकर गाड़ी आगे बढ़ा दी।
रामकुमार जी के मन में विगत 12 वर्षों की अनवरत समय बद्ध सेवा का दृश्य घूम गया। कोई सोच भी नहीं सकता है कि अध्यापक रामकुमार को विद्यालय देर से आने के लिए दंडित किया जाएगा। इतने वर्षों की निष्कलंक सेवा का मूल्यांकन 10 मिनट की देरी से किया जाएगा। विद्यालय की ओर बढ़ रहे मास्टर साहब के कदमों की गति मन्द पड़ गयी । उनका उत्साह ठंडा पड़ने लगा। विद्यालय जल्द पहुँचने की अब उन्हें कोई हड़बड़ी नहीं थी।
आज का दिन जैसे तैसे अगले दिन की प्रतीक्षा में गुजरा। रामकुमार जी का मन शिक्षण कार्य मे बिल्कुल भी नही लग रहा था। वे सोच रहे थे कि साहब ईमानदार और भले हैं…स्पष्टीकरण मांगेंगे तो लिखकर दे देंगे.. कल मिलने को बुलाया भी तो है। कोई दण्ड न मिला तो प्रतिष्ठा बनी रहेगी।
प्रातः 9:45 बजे ही रामकुमार जी कार्यालय पंहुच गए। आज कार्यालय में अध्यापकों की भीड़ कुछ अधिक लग रही थी। कार्यालय के भीतर वर्मा जी नई आरामदायक कुर्सी पर विराजमान हैं। सहायक विनोद कुमार भी उनके बगल में बैठे हैं। मेज पर फाइलों के ढेर लगे हैं। साहब जल्दी जल्दी फाइलों को निपटाने में व्यस्त हैं। किसी तरह हिम्मत जुटाकर रामकुमार जी ने निवेदन किया “ क्या मैं भीतर आ सकता हूं सर” ? वर्मा जी ने इशारे से भीतर आने को कहा। “सर आपने आज मुझे बुलाया था “ , मास्टर साहब ने अभिवादन के साथ कहा। “अच्छा तो कल आप भी विद्यालय से अनुपस्थित थे, आप जैसे लोगों ने ही शिक्षा व्यवस्था को बदनाम कर रखा है….विलम्ब से पहुचना, विद्यालय से गायब रहना आप सबने आदत बना रखी है”, साहब का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा।“ सर मुझसे तो केवल 10 मिनट की ही देरी हुई थी…”, रामकुमार जी ने कहना चाहा। पर वर्मा जी ने उन्हें बीच मे ही टोकते हुए कहा,” तमाशा बना रखा है…10 मिनट की देरी का कुछ मतलब नहीं…मीडिया को पता चले तो बखेड़ा हो जाये…आप फिलहाल बाहर रुकिये …अभी व्यस्त हूं और 10:30 बजे प्राथमिक शिक्षकों को मीटिंग के लिए बुलाया है”।
अपमान का घूँट पीकर मास्टर साहब बाहर निकल आये। बाहर अध्यापकों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। साहब की डांट से क्षुब्ध रामकुमार जी को तमाम शिक्षकों के बीच अपमानित होने का भय सता रहा था। घड़ी में 10:30 बजने लगे। साहब और विनोद कुमार ठीक समय पर मीटिंग हाल की ओर चल पड़ते हैं। सहसा विनोद की नजर बेचैनी से चहलकदमी करते हुए रामकुमार पर पड़ी तो वह उनकी ओर बढ़ गए और बोले “मास्टर साहब आप बड़े भाग्यशाली हैं जो साहब ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है”। यह सुनकर रामकुमार जी के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। उनकी जान में जान आ गयी। कुछ कार्यवाही न होने की बात सुनकर उन्हें अपनी कर्तव्यनिष्ठा पर गर्व होने लगा। ईमानदारी और लगन का सुपरिणाम तो मिलता ही है। अब उन्हें उनके सम्मान व प्रतिष्ठा पर आने वाला खतरा टलता प्रतीत हुआ। वह कृतज्ञता प्रकट करते हुए बोले “ मेरे इतने दिनों की तपस्या को सर ने पहचाना है मैं उनका बहुत आभारी हूं”। “अरे नहीं नहीं मास्टर साहब ….इस सबकी आवश्यकता नहीं है बस आप 5000/- रुपये मुझे दे दीजियेगा, मैं साहब से कहकर मामला खत्म करवा दूंगा”, विनोद कुमार ने बताया। रामकुमार जी सन्न रह गए। “पर साहब तो बड़े ईमानदार हैं और उन्होंने तो सिर्फ मिलने को कहा था… आपको तो मेरे बारे में सब पता ही है विनोजी जी, चार चार बच्चों की जिम्मेदारी है मुझ पर”, वह गिड़गिड़ा कर बोले। “ कौन सी दुनिया में रहते हैं मास्टर साहब … 3 लोगों को सस्पेंड किया है और 12 लोंगो का वेतन रोका है साहब ने… उन्हें भी अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना है …आपसे तो कुछ भी नही ले रहे हैं”, विनोद ने ढिठाई से कहा।
मीटिंग हाल में साहब का प्रवेश हो चुका था। सभी प्राथमिक शिक्षकों के साथ पहली बैठक आरम्भ हो चुकी थी। भीतर कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का पाठ पुनः पढ़ाया जा रहा था। और साहब की आवाज मीटिंग हाल के बाहर खड़े रामकुमार के कानों में गूंज रही थी।
समाप्त।