Manmarjiya in Hindi Love Stories by Narendra Pratap Singh books and stories PDF | मनमर्जियां

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मनमर्जियां

मनमार्जियाँ

( कुछ तेरी कुछ मेरी)

NARENDRA PRATAP SINGH"ARAV"

Promo - word (41)

एक अनजान सफर पर निकली वाणी की मुलाकात जब एक सुलझे से बेहद सौम्य व्यक्तित्व के मालिक अविनाश से होती है। क्या अविनाश उसे उसकी सही मंजिल तक पहुँचा पायेगा। आइये सुनते नरेंद्र प्रताप सिंह 'आरव' की लिखी कहानी "मनमर्जियाँ" ।

Segment 1/Words(358)

रात के सन्नाटे को चीरती हुयी तेज़ गति से राजधानी एक्सप्रेस अपने गन्तव्य को चली जा रही थी। जिस रफ़्तार से राजधानी चल रही थी, उसी रफ़्तार से वाणी का दिल जोर जोर से धड़क रहा था।

"आप इतना घबरायी हुई क्यों हैं ?" एक अपरिचित आवाज़ से वाणी चौंक गयी। जैसे उसे किसी ने रंगे हाँथों पकड़ लिया हो। फिर सम्हलते हुए बोली, " नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं है।" "लीजिये, पानी पी लीजिये, आपको थोडा आराम मिलेगा। " वो अपरिचित आवाज़ फिर आई।

वाणी एक सांस में पूरी बोतल खत्म कर गयी।

थोड़ी देर बाद वो अपरिचित आवाज़ फिर आई, " अब आप ठीक लग रहीं है।" वाणी ने धन्यवाद देते हुए बोली, " आपका धन्यवाद।" अपरिचित आवाज़ फिर आई, "मेरा नाम डॉ अविनाश है। " और आप "मैं वाणी "

अविनाश बोला, " क्या मैं एक बात आप से जान सकता हूँ ? " वाणी ने कहा, " क्या जानना चाहते हैं आप ?

"यही, कि आप इतना घबरायी हुई क्यों थी ? " अविनाश ने जिज्ञासावश पूँछा।

"देखिये अविनाश जी, मैं अपरिचतों से बात नहीं करती । आप ने मुझे पानी पिलाया, इसका मैं आपको धन्यवाद दे चुकी हूँ।", वाणी ने थोडा सख्त लहज़े में कहा।

अविनाश बोला, " देखिये वाणी जी ऐसा है, मैं एक डॉ हूँ और आपका बी.पी. काफी हाई था। और अगर मैं आपको पानी ऑफर ना करता तो शायद आप की हालत खराब हो सकती थी। और मैं तो बस ये जानने की कोशिश कर रहा था, कि इतनी घबराहट की क्या वजह है ? वाणी कुछ कह पाती, इससे पहले अविनाश मजाकिया लहज़े में बोला, " इतनी घबराहट की दो वजह हो सकती हैं, एक या आप किसी का खून करके भागी हैं और दूसरी या किसी के प्यार में घर छोड़कर।"

वाणी ने बोली, "अविनाश जी, आप ज्यादा दिमाग ना खर्च करें, वजहें और भी होतीं हैं। किसी की परेशानी का यूँ मजाक ना उड़ाया करें।"

"फिर आप ही वजह बता दें " अविनाश ने पूँछा।

अविनाश की जिज्ञासा को शांत करते हुए वाणी ने जो कहा वो सुनते ही अविनाश का चेहरा पीला पड़ने लगा।

Recap - word 34

राजधानी एक्सप्रेस में वाणी की मुलाकत डॉ अविनाश से होती है। डॉ अविनाश के बार बार पूँछने पर वाणी ने जो कहा उसे सुनते ही डॉ अविनाश का चेहरा पीला पड़ने लगा। अब आगे......

Segment- 2/ word(407)

वाणी ने कहा, "मि0 अविनाश, क्या आप जानते है? एक अकेली स्त्री का जीवन कितना कष्टों से भरा होता है। क्या - क्या सुनना और झेलना पड़ता है? शायद आप कभी नहीं समझ पाओगे। मैं आज भी उस दिन को कोसती हूँ जिस दिन मैं शेखर के साथ शादी करके दिल्ली रहने आयी थी। मैंने शेखर के साथ घरवालो के खिलाफ जाकर प्रेम विवाह किया था। "

वाणी ने आगे कहा, "शेखर ने मुझे धोखा दिया। और एक महीनें पहले छोड़कर चला गया।

मैंने उसे तलाशने की बहुत कोशिश की। पर निराशा ही हाँथ लगी। कल मेरी एक फ्रेंड ने बताया कि उसे शेखर के बारें में कुछ जानकारी मिली है और मैं उसी से मिलने जा रही हूँ, पर मन में अज़ीब सी घबराहट हो रही थी कि कहीं शेखर को कुछ हो तो नही गया।"

वाणी धाराप्रवाह बोलती चली जा रही थी। और डॉ अविनाश के चेहरे के भाव प्रतिपल बदलते चले जा रहे थे। क्यों कि वाणी की खूबसूरती कहीं ना कहीं इसमें दोषी थी।

अपने भावों को लगाम देते हुए अविनाश बोला, " आप, घबराइये नहीं, आपके पति को कुछ नहीं हुआ होगा, शायद कुछ और वजह हो।"

वाणी बिफरते हुए बोली, " आप सारे मर्द एक जैसे होते हो। आप मुझे कुछ ना समझाएं तो बेहतर होगा।"

"जब दो कंकड एक जैसे नहीं होते, तो सारे मर्द एक जैसे कैसे हुए, वाणी जी।" डॉ अविनाश ने समझाते हुये कहा। वाणी ने जवाब दिया, "अविनाश जी, दो कंकड़ बिल्कुल भी एक जैसे नहीं होते पर उनकी फितरत एक जैसी ही होती है।"

खामोशियों को तोड़ते हुए वाणी ने डॉ अविनाश से पूँछा,

" अविनाश जी आप किस किस्म के डॉ हैं, ? क्या स्पेशलाइजेशन है आप का?"

"मैं एक कार्डियोलॉजिस्ट हूँ।"

"तो आप लोगों के बिगड़े हुए दिलों को ठीक करते हैं।"

"हाँ कुछ ऐसा ही काम है हमारा "

"तो कभी किसी का दिल तोडा भी है क्या ?"

"मैं तोड़ने में नहीं जोड़ने में एक्सपर्ट हूँ, और ऐसा मैं नहीं मेरे मित्र कहते हैं।"

"अच्छा, वैसे कितने टूटे दिलों को जोड़ चुके हैं, आप "

" ज्यादा तो नहीं, पर जितने भी जोड़े हैं परफेक्ट चल रहे हैं।"

"और आप क्या करती है, वाणी जी"

"मैं एक MNC में मार्केटिंग मैनेजर हूँ।" वाणी ने कम शब्दों में अपनी बात खत्म कर दी। अविनाश आगे कुछ कह पाता उसे अपनी बोगी में कुछ शोर सुनाई दिया।

Recap - word 51

राजधानी एक्सप्रेस से अपनी पति की तलाश में निकली मार्केटिंग मैनेजर वाणी की मुलाकत कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अविनाश से होती है। अपने पति से धोखा मिलने के बाद डॉ अविनाश द्वारा समझाने पर भी वाणी पर कुछ असर नही होता। होता तभी बोगी में कुछ शोर सुनायी देता है। अब आगे ......

Segment 3 / word (443)

"अरे, इन्हें कुछ हो रहा है, शायद अटैक पडा।" बोगी में से चन्द आवाजें डॉ अविनाश और वाणी के कानों में पड़ी।

"लगता है, आप की जरूरत आ गयी, डॉ ", वाणी बोली।

अविनाश तुरन्त दौड़कर उन आवाजों के पास गया।

"हट जाइये आप लोग ऐसे भीड़ ना लगाएं, मैं एक कार्डियोलॉजिस्ट हूँ। इन्हें हार्ट अटैक आया है।"डॉ अविनाश ने बोगी के लोगों को समझाते हुए कहा। और अपना कौशल आजमाते हुए अविनाश ने थोड़ी देर में उस व्यक्ति को नार्मल कर दिया।

"आप तो कमाल के जादूगर हैं डॉ " वाणी ने तारीफ करते हुए कहा।

"जी शुक्रिया वाणी जी,

"कुछ पर्सनल सवाल पूंछ सकती हूँ, डॉ"

"जी, जरूर " अविनाश तो बात करने के मौके ढूंढ रहा था।

" क्या आपकी शादी हो गयी ? " वाणी के इस सवाल ने डॉ अविनाश किसी दुखती रग को छेड़ दिJ से बोले, "आप को माफ़ी मांगने की जरूरत नहीं।" एक लम्बी ख़ामोशी छा गयी।

जैसे जैसे राजधानी एक्सप्रेस अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी। वैसे ही वाणी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। डॉ अविनाश इस बेचैनी को महसूस कर रहा था।

"कुछ पूंछ सकता हूँ, आपसे ।" डॉ अविनाश ने वाणी की बेचैनी को कम करने के लिए पूंछा।

"जी, कहे।" वाणी बोली

"आपकी नज़र में शादी क्या है ?" डॉ अविनाश के इस सवाल के जवाब में वाणी काफी देर सोंचकर बोली -

"निभ जाये तो एक खूबसूरत बंधन

और ना निभे तो सिर्फ बंधन"

और आप अपनी भी नज़रों का प्रकाश डालें इस पर।"

डॉ अविनाश ने कहा,

"शादी एक ऐसा पवित्र रिश्ता है, जो भरोसे की जमीं पर उगता है, प्यार और विश्वास के पानी से फलता फूलता है। और वक़्त के थपेड़ों से मजबूत होता रहता है। और किसी भी रिश्ते को बनाये रखने के लिए उसमें शिकवे की झूठीं गांठ ना पड़ने दें क्योंकि सुई से वही धागा गुज़रता है, जिस धागे में कोई गांठ नहीं होती है।"

डॉ अविनाश के इस खूबसूरत से जवाब को सुनकर वाणी बहुत प्रभावित हुई। साथ ही डॉ अविनाश के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान फैलने लगी।

"क्या छुपाने की कोशिश कर रहे है डॉ साहब। " वाणी ने डॉ अविनाश के चेहरे को पढ़ते हुए बोली।

"आप शेखर को कब से जानती है ? कहाँ मिले आप लोग ?

, मेरा मतलब है कि आप दोनों की प्रेम कहानी कब और कैसे शुरू हुई।" डॉ अविनाश के इस प्रश्न के जवाब में वाणी कुछ सहम सी गयी। "वो मैं ...वो मैं.... " वाणी के शब्द उसका साथ नही दे रहे थे। उसकी लडखडाती हुई आवाज़ ने डॉ अविनाश को हँसने पर मजबूर कर दिया।

Recap - word 45

राजधानी एक्सप्रेस से अपने पति की तलाश पर निकली वाणी की मुलाकात डॉ अविनाश से होती है। बातों के सिलसिले के दौरान डॉ अविनाश के एक सवाल के जवाब में वाणी की लडखडाती आवाज़ ने डॉ अविनाश को हँसने पर मजबूर कर दिया। अब आगे.....

Segment 4 / word (444)

कुछ देर बाद जब डॉ अविनाश हंसी की सैर करके लौटे तो वाणी बिगड़ते हुए बोली, " इसमें हँसने वाली कौन सी बात कह दी मैंने ?" डॉ अविनाश बोला, " आपकी आवाज़ आप का साथ नहीं दे रही थी और आपका चेहरा कुछ और ही बयां कर रहा था।" वाणी हौले से मुस्करा दी।

" एक सच बोलूँ, आपके बारे में " डॉ अविनाश बोला

"जी, अब कह भी दें, देखे आप क्या भविष्यवाणी करने वाले हैं ?" वाणी बोली

" जो आप दिखाने की कोशिश कर रही है, वो आप हो नहीं।"

"क्या मतलब है आपका ? "

"लगता है मुझे ही सब बताना पड़ेगा।"

और डॉ अविनाश ने जो बताया वो सुनकर वाणी के पसीने छूटने लगे

" तो सुनिए वाणी जी ।" डॉ अविनाश ने कहा

"आप ना तो किसी शेखर को जानती और ना ही आपकी कोई शादी हुई है। और लगता है आप मार्केटिंग मेनेजर भी नहीं हैं।"

"आप अच्छे ज्योतिषी है, डॉ साहब"

"By the way, मैं कोई डॉ नहीं हूँ । बस एक आम इंसान हूँ "

वाणी चौंकते हुये बोली, " क्या?, मतलब आप इतनी देर से मुझे बेवकूफ बना रहे थे।"

"और आप मुझे क्या बना रहीं थी ? "अविनाश के इस सवाल से वाणी खामोश हो गयी।

और दोनों काफी देर तक खूब हंसे।

वाणी अब खुलकर बोलने लगी, " आप ने ये सब कैसे जाना ? क्या आप मुझे पहले से जानते है ? "

"नहीं वाणी जी, मैं आपको पहले से नही जानता । और ये तो मैं आपको बिना सुहाग चिन्हों को देखकर ही समझ गया था कि आप शादी शुदा नहीं है पर लगा कि आप आजकल की मार्डन ख्याल की हों, जो शायद इन सब को ना मानती हो। पर जब आप जब आपकी आवाज़ लड़खड़ायी तो यकीन हो गया कि आप अच्छी एक्टर है। "

"और आपने उस इंसान की मदद कैसी की जिसको हार्ट अटैक आया था।" वाणी ने उत्सुकता से पूंछा

"उसे अटैक नही आया था, उसका बी0 पी 0 बढ़ गया था, जिसे मैंने नार्मल कर दिया था। " अविनाश ने वाणी की व्यग्रता को दूर करते हुए कहा।

अविनाश ने वाणी को समझाते हुए कहा, "वाणी जी आपकी वजह से मुझे डॉ बनना पड़ा। आप इतनी घबरायी हुई थी, मुझे जो सही लगा मैंने किया। अगर आपको लगता है कि मैंने आपको बेवकूफ बनाया तो उसके लिए मैं माफ़ी चाहूँगा।

"अरे नहीं अविनाश जी, हम दोनों ही एक दूसरे को बेवकूफ बना रहे थे, तो इसमें माफ़ी जैसी कोई बात नही।" वाणी बोली

"तो अब आप बता दे कि आप इतनी घबरायी हुई क्यों थीं ? जवाब में वाणी खामोश हो गयी ।

Recap - word 50

राजधानी एक्सप्रेस में वाणी की मुलाकात अविनाश से होती है। वाणी और अविनाश ने एक दूसरे से अपनी व्यक्तिगत पहचान छुपायी और जब अविनाश ने यह खुलासा किया, तो दोनों अपनी अपनी मनमर्जियों पर खूब हँसे । अविनाश के एक सवाल के जवाब में वाणी खामोश हो गयी ।। अब आगे......

Segment 5 / word (439)

वाणी की ख़ामोशी अविनाश को बार बार परेशान कर रही थी। उसने फिर आग्रह किया। तो वाणी बड़ी मासूमियत से बोली, "अविनाश जी, मैं अपना घर छोड़कर जा रही हूँ।"

" क्यों, क्या इसकी वजह जान सकता हूँ।"

"वजह, मेरी शादी है, मैं अभी करना नहीं चाहती और पेरेंट्स चाहते है किसी के भी पल्ले मैं बंध जाऊँ। भला बिना किसी को जाने आप उसके साथ अपनी पूरी जिंदगी कैसे बिता सकते है। ये पेरेंट्स भी बस अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं। तंग आ गयी मैं रोज़ रोज़ की किटकिट से । इसलिए भाग आई।"

"बड़ी मायूस हो गयी है, जिंदगी से । लगता है अभी तक आपको समझने वाला कोई मिला नहीं। "

"मिल चुका होता तो घर ही क्यों छोड़ती?"

"एक बात कहूँ वाणी जी "

"जी कहें"

"जिंदगी में हर चीज़ को पाने के दो रास्ते होते हैं, एक सही और एक गलत । सही रास्ता हमें बड़ा ही कठिन लगता है, बहुत मुश्किलें आती है पर अंत में वही हमारे लिए सही होता है। और गलत रास्ता पहले बहुत सरल होता है पर बाद में मुश्किलों से हमेशा भरा रहता है।

ये हमे तय करना होता है कि हमें कौन सा रास्ता चुनना है।"

वाणी मंत्रमुग्ध सी अविनाश को सुनती चली जा रही थी।

"वाणी जी, लगता है मैं आपको पका रहा हूँ।" अविनाश ने कहा।

"नहीं, नहीं, ऐसा बिलकुल भी नहीं। आपने तो मुझे बहुत बड़ी उलझन से मुक्त कर दिया।"

"तो मेरी बात आप की समझ आ गयी " कहते हुए अविनाश को एक अजीब सा सुकून मिला।

"मैं तो लाइफ को अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती हूँ, पर अगर उसमें अपनों की ख़ुशी ही नहीं होगी तो मैं कैसे खुश रह पाऊँगी।"

"बिल्कुल सही, कहा आपने वाणी जी "

"मुझे सही राह दिखाने के लिए, मैं आपकी दिल से शुक्र गुज़ार हूँ। आपको बहुत बहुत धन्यवाद।"

"एक बात और वाणी जी, मैं धन्यवाद तो बिलकुल भी नहीं लेता, बस ऐसे ही किसी की मुश्किल हल कर देना तो मुझे मेरा धन्यवाद मिल जायेगा।"

"बड़े दिलचस्प इंसान है आप अविनाश जी, कभी मौका मिला तो जरूर करूंगी।" वाणी ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा।

"तो आपकी अगली मंजिल किधर होगी।"

" अगले स्टेशन से सीधा घर "

राजधानी एक्सप्रेस स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। बोगी से निकलते समय वाणी ने अविनाश से कहा, " आप मुझे अपना एड्रेस दीजिये, मैं आपको अपनी शादी का कार्ड भेजूंगी।"

"पर मैं नहीं आऊंगा, " अविनाश से ऐसे जवाब की वाणी को बिल्कुल भी आशा नहीं थी। और वो भारी कदमों से अपने गन्तव्य की ओर बढ़ चली।

Recap - word 30

राजधानी एक्सप्रेस से अपना घर छोड़कर जा रही वाणी को साथ मिलता है एक बेहद सुलझे व्यक्ति अविनाश का। जिसके समझाने पर वाणी अपने घर वापस जा रही है । अब आगे.....

Segment 6 / word (513)

आज वाणी को देखने लड़के वाले आ रहे थे। पर वाणी के मन में अज़ीब सी उलझन चल रही थी।

"वो कैसा लगता होगा ? क्या वो मुझे समझ पायेगा ? और ऐसे ना जाने कितने अनगिनत सवाल उसके मन में चलते रहते अगर उसकी माँ की आवाज़ उसके कानों में ना पड़ती । "लड़के वाले आ गए वाणी।"

माँ ने चाय लेकर जाने को कहा। झुकी हुई नज़रों से सबको चाय सर्व करती हुई वाणी जब लड़के के पास पहुंची । तो लड़के ने अभिवादन करते हुए कहा, "वाणी जी नमस्ते ।"

परिचित आवाज़ सुनकर वाणी ने चौंककर नज़रें उठाई तो अपने सामने अविनाश को देखकर हड़बड़ा सी गयी। घबराहट को सम्हालते हुए बोली, "जी नमस्ते।"

"आओ बेटी हमारे पास बैठो।" अविनाश की माँ ने कहा, तो वाणी उनके पास बैठ गयी।

वाणी के पिता ने कहा, " बेटा कुछ पूंछना हो तो बेझिझक पूंछ लो।"

"अगर आप को कोई एतराज़ ना हो तो क्या मैं वाणी जी से अकेले में बात कर सकता हूँ।" अविनाश ने पूंछा

"हाँ - हाँ क्यों नही, इसमें एतराज़ की कोई बात नहीं।"

वाणी के पिता ने दोनों को पास के कमरे में भेज दिया।

"आप को यहाँ का पता किसने दिया और आप तो मेरी शादी में भी नहीं आने वाले थे।" वाणी ने कुछ रूठते हुए कहा। अविनाश वाणी की बात का जवाब देने ही वाला था तभी वाणी के पिता अंदर आ गए और वाणी से बोले,

"बेटी, कुछ बताना था।"

" जी कहें पापा।"

" जब तुम घर छोड़कर चली गयी थीं, अविनाश वही शख्स है, जो तुम्हे उसी दिन देखने आने वाला था। तुम्हारे जाने के बाद मैंने इसके घर पे ना आने के लिए फ़ोन किया । फ़ोन इसी ने उठाया और ना चाहते हुये भी मुझे सारी बात बतानी पड़ी। इसने कहा आप परेशान ना हो अंकल जी, मैं कुछ करता हूँ। पर ये बात आप ना तो मेरे घर में और ना ही किसी और से कहेंगे। मैं नहीं चाहता की वाणी के विषय में कोई भी उल्टा सीधा बोले। मैं काफी ज़ोर देकर पूंछा तो बोला कि मैंने वाणी को फ़ोटो देखकर ही पसन्द कर लिया था। और नहीं चाहूँगा कि उसकी कोई बदनामी हो। और इसने अपना वादा पूरा किया।"

वाणी अविनाश की ओर देखते हुए बोली, " आप इंसान नही देवता है। और मैं आपके लायक नहीं, हो सके तो मुझे मेरी नादानियों के लिए माफ़ कर दें, और जो सजा देना चाहे दे सकते है।" बोलते हुए वाणी का गला भर आया।

"माफ़ी तो नही मिलेगी, पर सजा जरूर मिलेगी। और आपकी सजा ये है कि आप को सारी उम्र मेरी नादानियां सहनी पड़ेगी। सजा मंजूर है आपको।" अविनाश ने माहौल को हल्का करते हुए कहा।

वाणी मुस्कराते हुए बोली, " इस नाचीज़ को ये सजा मंजूर है।"

"तो कब की रखूं शादी की तारीख।" वाणी के पिता ने दोनों से पूँछा।

"जिस दिन ये भागने को तैयार रहे।" अविनाश ज़ोर ज़ोर से हँसते हुए बोला।

वाणी और उसके पिता भी खिलखिलाने लगे

***