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Uchh Raktchap Nich Vichar


उच्च रक्तचाप नीच विचार

प्रेम जनमेजय

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उच्च रक्तचाप नीच विचार

श्रीमान राधेलाल सिंह मेरे लिए टू इन वन हैं ——— मेरे मित्र हैं और पडोसी भी हैं । पड़ोसी होने के कारण वे मेरे समीप रहते हैं और कबीर की भाषा में कहूं तो वे मेरे नियरे हैं। निदंक नियरे राखिए वाले निंदक। कहते हैं कबीर अनपढ थे और कबीर ने स्वयं भी कहा है कि मसि कागद छुओ नहीं कलम गही नहीं हाथ। मुझे समझ नहीं आया कि यदि कबीर अनपढ़ थे तो उन्होंने हिंदी के समीप शब्द के स्थान पर अंगेजी के नियर शब्द का प्रयोग क्यों किया। वे बड़ी सरलता से कह सकते थे कि निंदक समीप राखिए, आंगन कुटि छवाय। मैं किससे पूछूं ? कबीर से पूछने के लिए स्वर्ग में जा नहीं सकता हूं और इस विषय पर किसी ने शोध नहीं किया है। मैं भाषा के पचड़े में अधिक न पड़कर अपनी मूल बात पर आता हूं। कबीरदास की बात मानकर ,मैंनें महंगाई इस के जमाने में बिना पानी और बिना साबुन खर्च किए, अपना स्वभाव निर्मल करने हेतु अपनी पत्नी को अपने घर में रखा हुआ है । कबीर ने तो इस काम के लिए आंगन में पत्नी को बांधने की बात नहीं कही है , पर मै क्योंकि नारी जाति कर प्रबल समर्थक हूं , इसलिए अपने घर में उसे छवा रखा है। पत्नी की कुटिया मेरे घर में नहीं छवेगी तो क्या राधेलाल सिंह के यहां छवेगी ? मैं पत्नी और निंदक को पर्याय इसलिए मान रहा हूं क्योंकि जैसे प्रजातंत्र में विरोधी दल से बडा कोई निंदक नहीं हो सकता वैसे परिवार की संसद में पत्नी से महान निंदक नहीं होे सकता है । राधेलाल सिंह चाहे मेरे लिए केवल टू इन वन हो मेरी पत्नी मेरे लिए टू इन वन ही नहीं , कई इन वन है ।

बात हो रही थी राधेलाल जैसे सिंह की और बीच में आ गई पत्नी जैसी ........... य इस रिक्त स्थान की पूर्ती के लिए , अपने साहस बल और औकात को देखते हुए आप ही उपमा की तलाश करें । मैंने कालीदास से अनुरोध किया था पर वह भी टाल गए । कोई कवि कितना ही महान हो, साहसी हो वह अपनी प्रेमिका के लिए कितने ही उपमान ढूंढ लेगा, पर पत्नी के लिए उपमान ढूंढते ही सारी कल्पना हवा हो जाती है । साइब कुछ सूझता ही नहीं है। वैसे किसी मंचित कवि से लिफाफात्मक अनुरोध करता तो वह ऐसी वह ऐसी उपमाएं प्रस्तुत करता कि ..... इसमें न तो कसूर राधेलाल सिंह का है और न पत्नी का , सारा कसूर हम हास्य व्यंग्य के लेखकों का है , पत्नी के बिना हमारी रचनाओं में हास्य आता ही नहीं है । साली और पत्नी की कमाई खाने वाले हास्य सम्राटों के समक्ष मैं दीन—हीन, एक रचना के कभी — कभी सौ दो सौ पा जाने वाला, तुच्छ व्यंग्यकार, अपने को शामिल नहीं मानता हूं तो क्या , पर हास्य व्यंग्य का तमगा लगाए मैं आज तक औरों के साथ दूसरों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान बिखेरता ही आया हूं । सोचा इस सुअवसर पर स्वयं पर भी हंसने का साहस कर लूं ।

राधेलाल नाम का सिंह है परन्तु हकीकत में कन्या है । उम्र छप्पन की है और जैसे हमारे देश का प्रजातंत्र इतनी उम्र का होने के बावजूद देश चलाने की नौटंकी करने वालों के समक्ष, सहमा — सहमा दिखाई देता है, वैसा ही मेरा मित्र राधेलाल सिंह है । सारे जहां कर दर्द लोगों के जिगर में होता है ,राधेलाल के जिगरे में वहम है । किसी ने किसी बीमारी का नाम लिया नहीं, किसी अखबार में बीमारी के लक्षण मुख्तयार ने पढे नहीं, कि हो गया शुरू प्यार का गीत ——— जरा सी आहट होती है तो दिल यह सोचता है , कहीं यह वो तो नहीं ।' भरी सभा में या फिर बिना भरी सभा में किसी बीमारी का नाम आते ही राधेलाल सिंह को वहम हो जाता है कि वो बीमारी उसको है। हकीम लुकमान ने इन्हीं राधेलाल को देखकर वहम की दवा इजाद करने से तौबा की होगी ।

तो हुआ यूं कि हमारे यह सिंह दुनियादारी निभाने के लिए दूर के बीमार चाचा को देखने चले गए । चाचा सीने में दर्द के कारण भरती हुए थे । चाचा तो सीने का दर्द ठीक करवाकर उसी दिन घर चले गए पर हमारे शेरे हिंद को दर्द का वहम दे गए। राधेलाल सिंह नें सीने को पकड — पकड कर दर्द करवा ही लिया। जब तक दर्द हो नहीं गया इन्हें लगा ही नहीं कि वह सीनें में दर्द वाले किसी रोगी को देखकर आए हैं । रात भर पत्नी से जगराता करवाया और सुबह मुझ हितचिंतक को निमंत्रण भिजवा दिया कि पडोस धर्म निभाना हो , सुबह — सुबह एक नेक काम करना हो, तो आ जाओ ।

डाक्टर द्वारा छह सात टैस्ट करवाने और हजार बारह सौ का चूना लगवाने के बाद यह महारथी इस वहम को छोड़ अगला वहम पालने के लिए तैयार हो गया । राधेलाल सिंह ने तो नमाज पढ ली पर रोजे मेरे गले पड गए । लोग बहती गंगा में हाथ धोते हैं , मैंनें बहती गंगा में अपना बल्ड प्रेशर नपवा लिया । बहुत पछताया । डाक्टर ने नापा और बोला कि ब्लड प्रेशर तो हाई है । आज तक अध्यापक बनकर छात्रों का टेस्ट लेता आया हूं , अब डाक्टर की नेक सलाह पर मुझे करवाने थे । राधेलाल सिंह दे चुके परीक्षा अब है मेरी बारी । लिपविक प्रोफाईल , बल्ड शुगर और ना जाने कैसे कैसे भारी भरकम नामों के ही नहीं दामों वाले टेस्ट । उसके उपर से यह खाना है और यह नहीं खाना है कि मुफ्त सलाह ।

घर पहुंचते ही राधेलाल सिंह ने पडोसी धर्म निभाते हुए मेरी पत्नी को सूचना दी। ऐसी सूचनाओं को भाषा ज्ञानी चुगली कहते हैं । खैर मेरे मित्र ने जो भी किया मेरी पत्नी ने उसको गहरी श्रद्धा से गहण किया । वैसे भी कहा जाता है कि चुगली और नारी का संबंध वैसा ही है जैसे आत्मा और परमात्मा का । मैं तो पास हो गया और यह फेल हो गया के अंदाज में राधेलाल सिंह ने मेेरे बल्ड प्रेशर और डाक्टर की सलाहों का ऐसा चित्र खींचा कि पत्नी ने तत्काल मेरा वानप्रस्थ आश्रम घोषित कर दिया । सादा जीवन और उच्च विचार का नारा जिस महान पुरुष ने दिया है वह अवश्य ही उच्च रक्तचाप से पीडित रहा होगा ।

जैसे वन जाते समय सीता ने राम के साथ जाने की जिद की थी वैसी ही जिद मेरी पत्नी टेस्ट रिपोर्ट डाक्टर को दिखाने के जाते समय की । मैं नहीं चाहता था कि वह मेरी कमजोरियों को जाने , पर पत्नी की जिद के सामने राम जैसा पुरुषोत्तम हार गया था तो मेरा हारना निश्चित ही था । यह शुक्र था कि राधेलाल सिंह नामक लक्ष्मण सिंह ने चलने की जिद नहीं की वरना मैं अभिमन्यु ऐसे चक्रव्यूह में फंसता कि ...... ।

डाक्टर ने बताया कि क्लोस्ट्रोल बढा है इसलिए तला बंद , नमक कम , वजन कम , चिंता कम, और जो भी अधिक है वही कम कम । एक बल्ड प्रेशर ने कमी का जो दौर चलाया उसके सामने बडी से बडी बाजार की तेजी के कारण उपजी मंदी कम है। मुझे लगता है कि पिछले दिनों विश्व में जो मंदी छाई थी, उसमें बल्ड प्रेशर का विशेष हाथ रहा होगा।

आप तो जानते ही हमारा देश सलाहकारो का देश है । यहां सलाह मुफ्त मिलती है और बिन मांगें मिलती है । चाहे खुद को बैट ढंग से पकडना न आता हो वह सचिन तेंदुलकर को सलाह देता है कि उसे कौन सा शॉट कैसे लगाना चाहिए । चाहे घर का बजट न सम्भलता हो पर वित्त मंत्री को बजट पर सलाह देने वालों की कमी नहीं है । चाहे दस लोगों के सामने बोलते हुए अपनी जुबान लडखडा जाए पर चुनाव में अटलबिहारी वाजपेयी को कैसे बोलना चाहिए , सोनिया गांधी की हिंदी कैसी होनी चाहिए पर हर चौराहे पर सलाह देने वालो मिल जाते हैं । ऐसे ही सलाहकारों ने मुझे घेर लिया । सुधीर ने रोज पांच किलोमीटर ब्रिस्क वाकिंग , वाईन और फिश की सलाह दी । चोपडा ने के .पी.सी. की गोली खाने की सलाह दी । यह के.पी.सी. क्या है ! , यह के.पी.सी. क्या है ! ——— के से खाओ , पी से पिओ और सी से चांदनी रात में मजे करो । अखिलेश ने कहा कि लहसन की पांच कलियां रोज खाओ । कुलदीप अहूजा ने होम्योपैथिक रौलफिया सरपनटीना की दस बूंदें लेने की सलाह दी । भाटिया ने कहा कि सूखे आंवले और मिश्री का चूरण चौत्र मास में इक्कीस दिन खा लूं । सो जिसकी जैसी भावना रही उसने बल्ड प्रेशर मूरत देखी वैसी । सबसे बढिया सलाह दी कपूर ने दी —— किसी की सलाह न मानों । मैं चाहता था कि कपूर की सलाह मानकर अपना जीवन अपनी तरह जीउं पर पत्नी मेरा जीवन अपनी तरह जिलाना चाह रही थी।

खाने पीने की इतनी वर्जनाओं और बिन मांगी सलाहों के कारण मुझे लगा जैसे मैं महाभारत का अर्जुन हूं जिसके सामने कुरुक्षेत्र का मैदान मुंह फाडे खडा है । किसी रथ पर राजनेता के त्रिकोणीय व्यक्तित्व — सा समोसा बैठा है , किसी पर, मुव्किल को अपनी ओर न्यायरक्षक — सा ललचाता काला गुलाबजामुन विराजमान है , किसी पर राजनेता और नौकरशाह के चमचे—सा बटर चिकन है । वो देखो उस रथ पर श्वेत वस्त्र धारण किए ट्रैफिक पुलिस — सा रसगुल्ला अपनी छटा बिखेर रहा है । हे सखि , उधर तो देख , निर्मोही हलवाई कैसे जलेबी को किसी नेता के व्यक्तित्व — सा आड़ा — तिरछा करता उसमें चाशनी इंजेक्ट कर रहा है । और मैं , निर्मोही अर्जुन भारतीय जनता— सा क्लीव ,हथियार डाले बैठा हूं ! हे मेरे कृष्ण ,कहां हो तुम ? हे माखनचोर मेरा माखन कहां है ? हे रासबिहारी मेरा रास कहां है ? हे प्रधानमंत्री , मेरा मंत्रालय कहां है ! खान—पान के इस कुरुक्षेत्र में मुझ अबला की रक्षा करने वाला केाई नहीं?

किसी को समोसा, कचोरी खाते देखता हूं तो अपना जीवन व्यर्थ बहा —बहा लगने लगता है । लगता है जैसे सारा पौरुष समाप्त हो गया है । अपनी मर्दानगी को हकीमो की भस्म पर बनाए रखने वाले सुंदरलाल को जब बल्ड प्रेशर का रोग हुआ तो उसने भी डाक्टर की सलाह और पत्नी के दबाव में दवा लेनी शुरु कर दी पर जब एक मित्र ने कान में फुसफुसाया कि ब्लड प्रेशर की दवा पौरुष कम करती है ,तो उस पुरुश ने दवा बंद कर दी । अब चाहे सर फूटै या माथा । सुंदरलाल नामक पुरुष ने मुझे भी सलाह दी कि मैं वैद्य जी की भस्म खाउं और घर में सादा जीवन उच्च विचार चाहें रखूं बाहर निकलते ही नीच हो जाउं । खाने पीने और ऐश करने के लिए बाजार भरे हुए हैं। सच्चा पुरुष सुंदरलाल की तरह ही होता है , उसका पौरुष घर के बाहर ही नजर आता है । पत्नी को धोखा देना पति का सबसे बडी पौरुष होता है। वह रवीन्द्र कालिया की तरह ‘ गालिब छुटी शराब ' नामक मंत्र का जाप नहीं करता है ।

कुछ लोगों को अपना पेट छिपाने की बीमारी होती है । ऐसे ही हमारे मित्र घनश्याम जौली हैं । आपको क्या है , उसकी सारी जानकारी आपके कंधें पर अपना हाथ रखकर ले लेंगें , आप से बातों की ऐसी उल्टी कराएंगे कि आपका सबकुछ बाहर आ जाएगा परन्तु खुद का हाजमा ऐसा रखेंगें कि आप लाख सर पीट लें ,कुछ नहीं उगलेंगें । घनश्याम को जब पता चला कि मुझे ब्लॅड प्रेशर हो गया है तो मुझ सहयात्री के सामने रहस्य खोला कि मुझे तो सात साल से है । अपनी उम्र के जिस महा पुरुष को बताता हूं , वही अपनी कोई न कोई ऐसी बीमारी से मेरा परिचय करवा देता है । लगता है जैसे दिल्ली में उच्च रक्तचाप का कोई वॉयरस फैला हुआ है । इसलिए ही शायद संतों ने गा — गाकर कहा है कि सावन के अंधे को हरा नजर आता है तथा राजनीति के अंधे को भ्रष्टाचार।

इस उच्च रक्तचाप ने जितनी आह दी है उतनी ही वाह भी दी है । चलो अपने नीच जीवन में कुछ तो उच्च निकला । अमीरी नही ंतो क्या , अमीरों की बीमारी तो है ।

घर में मैं छुई — मुई का पौधा हो गया हूं। जैसे पत्नी बोन चाईना की क्राकरी का ध्यान रखती वैसे ही मेरा पूरा ध्यान रखती है । मुझे गुस्सा न आए , मेरे सामने घर की समस्या न लाई जाए , समय पर मुझे खाना मिले आदि आदि । बाहर के लिए न सही घर के लिए मैं वी.आई.पी हो गया हूं । मै सोचता हूं कि निराला की ‘ सुन बे गुलाब ' की तर्ज पर सुन बे रक्तचाप कविता लिखकर कवि ही बन जाउं । लोग किसी के प्यार में कवि बनते हैं मैं अपने रक्तचाप में बन जाता हूं। पर उच्च रक्त चाप हो तो कविता नहीं सूझती है तला भुना खाना सूझता है। मिल जाए तो कविता सूझ जाती है। पर अभी तो जो सूझा मैंनें उसका बयान आपके सामने कर दिया है जिससे आप भी उच्च रक्तचाप होते हुए भी अपने विचार उच्च रख सकें।

73 साक्षर अपार्टमेंटस

ए—3 पश्चिम विहार,

नई दिल्ली —110063