Kaash vo din vapas aa jate in Hindi Short Stories by zeba Praveen books and stories PDF | काश वो दिन वापस आ जाते........

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काश वो दिन वापस आ जाते........

काश वो दिन वापस आ जाते.....

मेन कैरेक्टर

स्नेहा

राहुल

लीज़ा

स्नेहा - राहुल और मैं बचपन के दोस्त थे, जब मैं छोटी थी तभी से हम दोनों एक दूसरे को जानते थे, राहुल और मेरी दोस्ती इतनी गहरी थी कि मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ उसके प्यार का, वो मुझे हर समय अपने दिल की बात बताने की कोशिश करता रहता था लेकिन मैं "मैं अपने वसूलो पर जीने वाली लड़की थी" कभी उसके बारे में जानने की कोशिश ही नहीं किया, बस एक दोस्त की तरह उस रिश्ते को निभा रही थी जिसने हम दोनों को अभी तक अलग नहीं होने दिया था, मेरा सपना था एक्टर बनना, मैं ज्यादा अमीर घर से नहीं थी इसलिए मुझे बहुत मेहनत करनी थी अपनी एक पहचान बनाने के लिए, राहुल भी चाहता था एक सफ़ल बिज़नेस मैन बनना वो आसानी से वहा पहुंच सकता था क्यूंकि वो अपने पापा के बिज़नेस को ही आगे ले जाना चाहता था, मुझे एक्टर बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी थी उस बीच राहुल और मैं एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे वो मेरी बहुत मदद करता रहता था अब मैं ये जान चुकी थी कि राहुल मुझसे प्यार करता है लेकिन मेरे लिए मेरे सपने उससे ज्यादा महत्वपूर्ण थे, मैं उसकी फिल्लिंग्स को एक दोस्त कि तरह मज़ाक़ में लिया करती थी ताकि मैं उससे प्यार करने न लग जाऊँ, मैं उससे तो क्या किसी भी लड़के से प्यार नहीं करती थी क्यूंकि मुझे लगता था कि कही ये सब मेरे सपने के बीच न आ जाये इसलिए मैं प्यार से डरती थी, हम दोनों के इरादे बहुत नेक थे मैं एक एक्टर बन चुकी थी इसके लिए मुझे मुंबई में ही सेटल्ड होना पड़ा था, राहुल ने भी अपने पापा के बिज़नेस को काफ़ी आगे तक बढ़ा दिया था|

अब मैं उससे काफी दूर जा चुकी थी और कुछ सालों से हमारी बाते भी नहीं हो पा रही थी फिर मुझे राहुल कि कमी लगने लगी, उस दिन मुझे ये अहसास हुआ कि मैं भी उससे प्यार करने लगी थीं अब बस मैं यही चाहती थी कि राहुल मेरे पास आ जाये और मैं उससे अपनी दिल कि बात कह दूँ, मेरे पास उसका एक नंबर था मैंने उस पर कई बार कॉल लगाया लेकिन शायद वो नंबर बंद हो चूका था, मुझे बहुत घबराहट होने लगी थी मैं चाहती थी जल्द से जल्द उससे मिलूं, मुझे दिल्ली के एक कॉलेज में अपनी फिल्म के परमोशन का मौका मिला वहाँ हमारे टीम के कई लोग गए थे उस बीच मेरी मुलाक़ात दुबारा राहुल से हुई वो मुझसे ही मिलने आया था, जब मुझे ये पता चला तब मेरे अंदर थोड़ी जान में जान आयी, मुझे पहले लगता था कि शायद मैं उसे खो चुकी हूँ, प्रमोटिंग ख़त्म होने के बाद मैं उसके पास गई हम दोनों ने कुछ देर बाते भी की|राहुल थोड़ा बदला हुआ लग रहा था, हमें दिल्ली में दो दिन और रहना था, राहुल थोड़ा जल्दी में था उसने मुझे अपने होटल का कार्ड दिया और बोलने लगा "मैं कई दिनों तक दिल्ली में ही रहने वाला हूँ तुम कभी भी मुझसे मिलने आ सकती हो", उस कार्ड के पीछे राहुल का नंबर भी लिखा हुआ था मेरे चेहरे पर अपने आप ही एक स्माइल आ गयी, मेरे अंदर एक उम्मीद जाग उठी, होटल जाकर मैंने राहुल को कॉल करने का सोचा, फिर एक पल के लिए लगा कि राहुल में तो अब काफी बदलाव आ चुका है जब मैं उसके सामने अपने प्यार का इज़हार कर दूंगी तभी बात करुँगी उससे, मैंने अगले ही दिन उससे मिलने का निर्णय लिया, मैंने उसके लिए बहुत ही प्यार से एक ग्रीटिंग कार्ड तैयार किया उसमें बहुत प्यारी एक शायरी भी लिखी हुई थी, मैंने उसके ऊपर एक रोज़ भी लगा दिया था, अगले ही दिन मैं और मेरा ड्राइवर उसके पते पर पहुंच गए, मैं बहुत ज्यादा खुश थी क्यूंकि आज मैं उससे अपने प्यार का इज़हार करने वाली थी, हम दोनों उस होटल में पहुंच चुके थे मैंने ड्राइवर को गाड़ी में ही वेट करने के लिए बोल दिया था और फिर मैं उस होटल के अंदर गयी, मैंने रिसेप्शन पर राहुल का कार्ड दिखाया और मैं उनसे पूछने लगी कि वो किस कमरे में ठहरा हुआ है उन लोगो ने फिर मुझसे मेरी आइडेंटी प्रूफ मांगी, मैंने जब उन्हें आइडेंटी प्रूफ दिखाया तब उसमे से एक वेटर ने मुझे राहुल के कमरे तक छोड़ दिया, मैं अब उसके कमरे के बाहर खड़ी थी थोड़ा डर भी लग रहा था मैंने उसके कमरे का बेल भी नहीं बजाया सीधा दरवाज़े पर हाथ रख दिया, कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था मेरे हाथ रखते ही दरवाज़ा पूरा खुल गया फिर मुझे दोनों चौंक कर देखने लगे|

उस कमरे में राहुल था और उसकी गर्लफ्रेंड थी, मैंने अपना हाथ पीछे छुपा लिया, राहुल का हाथ उसकी गर्लफ्रेंड के हाथो में था दोनों आपस में बाते कर रहे थे, मैं ये देख कर कुछ देर के लिए बिलकुल सुन्न रह गयी थी, मैं मुस्कुराते हुए सिर्फ कुछ लाइन ही बोल पायी"आई ऍम सॉरी, शायद मैं गलत टाइम पर आ गयी" मैं वहाँ से जल्दी से भाग गयी और जाकर एक दीवार के पीछे चुप गयी, थोड़ी ही देर बाद राहुल मुझे ढूढ़ता हुआ बाहर आया, मैं अब भी उस दीवार के पीछे छुपी हुई थी और उसे देख रही थी, कुछ देर बाद राहुल अपने कमरे में अंदर चला गया, मैं वहाँ से निकल कर सीधा मेन डोर से बाहर चली गयी, होटल के आगे एक गार्डन था वहाँ बिलकुल सन्नाटा थी मैं गार्डन में जाकर एक बेंच पर बैठ गयी और फिर फूट-फूट कर रोने लगी, मेरे हाथो में अब भी वो ग्रीटिंग कार्ड था जिसका अब कोई वैल्यू नहीं रह गया था मैंने उसे फाड़ कर कर कूड़ेदान में डाल दिया, मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ, कुछ पल के लिए सोच रही थी कि इस दुनिया को छोड़ कर चली जाऊँ लेकिन मुझे मरने से भी डर लग रहा था अब मैं ना मर सकती थी ना जी सकती थी उसके बिना, लगभग आधे घंटे तक मैं खूब रोती रही फिर थोड़ी देर बाद मैंने राहुल और उसकी गर्लफ्रेंड कि आवाज़े सुनी, वह मेरी ओर बढ़ रही थी, मैंने फटाफट अपने आंसू पोंछे और हसने की कोशिश करने लगी, राहुल मेरे नज़दीक आया और मुझसे पूछने लगा की मैं कहाँ पर थी इतनी देर से, मैं हसते हुए उसके सारे सवालों का जवाब देने लगी, राहुल ने मुझे अपनी गर्लफ्रेंड से मिलवाया, उसकी गर्लफ्रेंड का नाम लीज़ा था, मैंने ये महसूस किया कि वो उसके साथ बहुत खुश था उसकी खुशी देख कर मैं भी खुश हो गयी, थोड़ी देर तक बाते करने के बाद वो दोनों अपने गाड़ी में बैठ कर चले गए और फिर मैं भी वहाँ से चली गयी| जब मुझे उससे प्यार हुआ तब तक वो किसी और का हो चूका था, मैंने ये बात सिर्फ अपने तक ही रहने दी, शायद वो कभी जान भी नहीं पाया होगा कि मैं उससे कितना प्यार करती थी|

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