Parti Zameen - 5 in Hindi Fiction Stories by Raushan Pathak books and stories PDF | परती जमीन भाग - ५ (Parti Jameen - एपिसोड V)

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परती जमीन भाग - ५ (Parti Jameen - एपिसोड V)

परती जमीन

रौशन पाठक

नमन

सर्वप्रथम मैं नमन करता हूँ बाबा (दादाजी) और दाई (दादी) को फिर नमन करता हूँ पापा (पिता) और मां (माता) को| जिनके संघर्ष से मेरा अस्तित्व रहा है और आशीष से जीवन|

मैं नमन करता हूँ स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद जी को जिनकी रचनाये प्रेरणा भी रहीं और मार्गदर्शक भी|

धन्यवाद

मैं धन्यवाद करता हूँ आनंद पाठक (भाई) का जिसने मुझे उत्साहित किया इस कहानी को लिखने के लिए और उससे कहीं अधिक इसलिए की उसने मुझे प्रोत्साहित किया हिंदी में लिखने के लिए|

मैं धन्यवाद करता हूँ राव्या पाठक (बेटी) का जिसकी खिलखिलाती हंसी ने मुझे व्यस्तता के बावजूद तनाव मुक्त रखा और मैं यह कहानी लिख पाया|

मैं धन्यवाद करता हूँ और राखी पाठक (बहन) का जिसने इस किताब के आवरण पृष्ठ को अंकित किया|

मैं धन्यवाद करता हूँ रूपा पाठक (पत्नी), रूबी पाठक (बहन) और मेरे समस्त परिवार का उनके प्रेम और स्नेह के लिए|

प्रेरणा स्त्रोत

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌|

- गीता

अथार्त,

जीवात्मा का विनाश करने वाले "काम, क्रोध और लोभ" यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को नरक में ले जाने वाले हैं|

संतोषं परम सुखं

इंसान के समस्त दुखों का कारण उसकी अपनी इच्छाएँ है|

लालच बुरी बला है|

लालच इंसान का चरित्र बदल देती है|

भाग

स्थानांतरण

लोभ

शपथ

निर्वासन

साझेदारी

अनावरण ***

(५)

साझेदारी

दोपहर का वक़्त था, रास्ता सुनसान था, भारी भरकम बलराम अपने घर के बाहर दीवार की छांव में खाट पर लेटे हुए था, और दुपहर के आलस्य का आनंद ले रहा था| यह करीब सभी गाँव वालो की दिनचर्या थी, खेतों से लौटकर खा पीकर घर के बहार करीब सभी लोग छांव में खाट पर आराम करते|

तभी धरमु ने आवाज़ दी - क्या हाल है बलराम ? बलराम इस मधुर आवाज़ को अच्छी तरह पहचानता था|

बलराम ने पलट कर देखा और उठ कर बैठते हुए बोला - आओ धरमु कैसे आना हुआ ?

धरमु खाट के किनारे बैठते हुए बोला - आज महीना हो गया, उस फैसले को और देखो कितनी शांति हो गयी है फिर से गाँव में; नहीं तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी जंगल में रहते हों|

बलराम ने पीठ खुजाते हुए कहा, ठीक कहते हो बलेश्वर का निर्णय सचमुच अनोखा था, देखो एक ही फैसले ने सब शांत कर दिया, दोनों के चेहरे पर संतोष देखा जा सकता था|

धरमु ने गहरी सांस लेते हुए कहा - मैं तुमसे कुछ जरूरी बात कहना चाहता हूँ, यह कहकर वो रुक गया|

बलराम ने उत्सुकता के साथ कहा - कहो क्या बात है ?

धरमु ने थोड़ा बलराम की तरफ झुकते हुए कहा - तुम्हारी बेटी अब बड़ी हो गयी है, तुम्हें तो लड़के की तलाश होगी ही|

बलराम ने बिना सोचे ही कहा - वो तो तुम जानते हो धरमु, और तुम्हें तो कह भी चुका हूँ की इतने लड़के है गाँव में कोई अच्छे परिवार में उसका रिश्ता चलवा दो और तुम कहोगे तो कोई भी मानेगा|

धरमु ने संकोच भरे स्वर में कहा - मेरी नज़र में एक लड़का तो है|

बलराम ने आग्रह भरे स्वर में कहा - कौन है, किसका लड़का है|

धरमु ने मुस्कुराते हुए कहा शनाई से कर दो|

बलराम का चेहरा आनंद से प्रफुल्लित हो उठा और वो खिलखिलाकर बोला - शनाई मतलब तुम्हारा लड़का|

धरमु ने हां में सर हिलाया और दोनों बच्चों से खिलखिलाकर गले मिल गए|

थोड़ी देर में आनंद का माहौल शांत हुआ दोनों ने गहरी सांस ली और बलराम ने मसकरी करते हुए कहा - लेन-देन की जो भी सोच राखी हो वह बता दो |

धरमु जैसे इसी चीज का इंतज़ार कर रहा हो, उसने बड़ी चतुराई से कहा - तुमसे क्या लूँगा, तुम मेरे मित्र हो लेकिन हाँ, एक चीज है जिसमे मुझे तुम्हारी मदद चाहिए|

बलराम भोला-भाला ज़रूर था लेकिन वो जनता था की धरमु ने यूँही इस रिश्ते का प्रस्ताव नहीं दिया, इसके पीछे जरूर उसका कुछ स्वार्थ है, और अब वो स्वार्थ सामने आ रहा था, बलराम ने पूछा - क्या मदद चाहिए ?

धरमु बोला - देखो भाई मेरे दो लड़के है दोनों अब खेती करने लायक हो गए है और दो बेटियां भी है, इतना बड़ा परिवार चलाना है, बेटियों का ब्याह करना है और ये सुनिश्चित करना है की दोनों बेटों के पास पर्याप्त जमीन हो| बलराम बड़े ध्यान से सुन रहा था|

धरमु ने बोलना जारी रखा - मैं चाहता हूँ की मनहर के घर के आगे की जमीन मेरी हो और इसमें तुम मेरी मदद कर सकते हो|

बलराम के चेहरे के भाव बदलते देर नहीं हुई और वो मायूसमायूस हो गया| काफी देर तक वह स्तब्ध बैठा रहा|

धरमु ने पूछा - क्या मैंने कुछ ज्यादा मांग लिया ?

बलराम ने धीरे से धरमु की तरफ मुँह घुमाकर कहा नहीं, मैंने सोचा था की सब शांत हो जाने पर मैं वो जमीन जोत लूँगा, तुम तो जानते हो अगर गाँव में सब से कम जमीन किसी के पास है तो वह मेरे पास बलराम बोल ही रहा था की धरमु बीच में बोल पड़ा - तो तुम परिवार ही कितने हो|

बलराम ने उसके बात को अनदेखा करते हुए बोला - अगर तुम चाहते हो की ये जमीन तुम्हेंतुम्हें चाहिए तो मैं तुम्हारा समर्थन करूँगा लेकिन मेरी भी एक शर्त है की पहले ब्याह होगा |

धरमु का चेहरा उतर गया, उसने यह कल्पना की थी अगर धरमु, गाँव भर में कई लड़कोंलड़कों के साथ इश्क़ के चक्करों में बदनाम लड़की की ब्याह का चर्च अपने बेटे के साथ करेगा तो बलराम उसकी मुट्ठी में आ जायेगा और उसके लिए कुछ भी करेगा|

लेकिन बलराम धरमु की धूर्तता से अच्छी तरह परिचित था, वो अनाज और बदली के दिनों में लोगो से ठगी करने जैसी अपनी करतूतों के लिए मशहूर था|

बलराम को यह शंका हो चली थी की कहीं जमीन हथिया कर धरमु अपनी ज़ुबान से पलट ना जाये, जो उसके लिए बहुत आम बात थी|

धरमु को अपनी योजना डूबती नज़र आने लगी, उसका अपने भावनाओंभावनाओं से नियंत्रण ख़त्म होने लगा उसने अधीर स्वर में कहा - बलराम मैंने तुम्हारे भले के लिए ये प्रस्ताव रखा था इसमें तुम्हारा ही फायदा है, अगर तुम पहले मेरी मदद करने को तैयार हो तो कहो नहीं तो मैं कोई दूसरा रास्ता देखूँ|

बलराम इस बात से आहत हुआ और उसने कहा - इसका मतलब तुम सिर्फ जमीन हथियाने के इरादे से मेरे पास आये थे, विवाह का प्रस्ताव बस एक छलावा था|

धरमु ने स्वर धीमे करते हुए कहा - छलावा कुछ नहीं बलराम, लेकिन अगर तुम अगर मुझे कुछ नहीं दे सकते तो मैं क्यों तुम्हारी बेटी को अपने घर की बहु बनाऊं, क्या मैं नहीं जानता तुम्हारी बेटी के किस्से, जो गॉंव भर में मशहूर है|

धरमु अपने हदो को पारकर चुका था, उसने अनजाने में बलराम के सामने वो कह दिया जो धरमु को बड़ी मुसीबत में डाल सकता था|

बलराम का चेहरा लाल हो उठा, और वो अपने भारी आवाज़ को और तीव्र करके बोल उठा - अपनी हदो से बाहर मत निकलो धरमु, और तुम दुसरो के बारे में बोलने से पहले अपने चरित्र का विश्लेषण कर लो, और हाँ ! भूल जाओ की मेरी बेटी का ब्याह तुम्हारे घर होगा, और तुम कभी उस जमीन पर कब्ज़ा कर पाओगे| वो जमीन मेरी होगी, और उसे मैं ही जोतूँगा और तुम्हें उस जमीन पर पाँव भी रखने की इजाजत नहीं होगी|

धरमु वैसे भी औसत कद काठी वाला व्यक्ति था, और बलराम के सामने बिलकुल भी टिकने वाला नहीं था, और इससे कहीं अधिक धरमु झंझटो और लड़ाइयों से दूर रहने वाला चालाक दिमाग का स्वामी था| उसकी बुद्धि बिलकुल लोमड़ी जैसी थी, जहाँ मौका मिले लूट लो और जहाँ अपने से ताकतवर दिखे खिसक लो| धरमु ने चुपचाप खिसकना बेहतर समझा|

दोनों तरफ आग सुलग चुकी थी, धरमु इस बात से भयभीत था की कहीं बलराम जमीन हथिया ना ले, इसलिए वो इस जमीन हथियाने के लिए युक्ति सोचने लगा|

बलराम आग बबूला हुआ बैठा था और मन ही मन यह ठान चुका था की उस खेत को वो जोत कर रहेगा और भला गाँव में ऐसा कौन था जो उस बलशाली से भिड़ने की साहस भी करता|

बलराम क्रोधित होकर खाट से उठा और घर के अन्दर चला गया|

उसकी पत्नी ने बलराम के चेहरे पर क्रोध देखा और सहमे हुए बोली, क्यों उस जमीन के जंजाल में पड़ते हो लेने दो जिसे लेना हो, मनहूस जमीन है वो और देखो जबसे गाँव बना है वही एक जमीन है जो आज तक पड़ती है| कोई जोतने की सोचता है की अनिष्ट हो जाता है|

बलराम का क्रोध कुछ शांत हुआ लेकिन उसने चेहरे पर गंभीरता रखते हुए बोला - अब ये मेरे नाक की बात है, वो धरमु मुझे दरवाज़े पर आकर बेइज्जत करके गया है, मुझे वो जमीन नहीं चाहिए लेकिन मैं उसकी नहीं होने दूंगा| बलराम की घरवाली सिधी - सादी थे, उसने इस बहस से दूर रहना ही भला समझा और अपने काम में लग गयी| शायद उसे यह भी लगा की जब बलराम का क्रोध शांत हो जायेगा वो खुद ही इस पछड़े से दूर रहेगा|

शाम होते ही धरमु ने पूरी युक्ति बना ली, कैलाशी को सारी बाते समझा कर गणेशिया के पास भेज दिया और कैलाशी आज्ञानुसार गणेशिया के घर पहुँच गया और धरमु की बताई हुई बातें बोल दिया|

गणेशिया रामचरण के घर गया तो मालूम पड़ा की उसके दोनों लड़के नवजीवन और जीवछ खेत पर गए थे| मन ही मन गणेशिया प्रसन्न हुआ, वो वैसे भी उनसे अकेले में बात करना चाहता था| गणेशिया आनन्-फानन में रामचरण के खेत पहुँच गया वहां उन दोनों भाइयों को कैलाशी से प्राप्त खबर बताया - बलराम ने मनहर के घर के आगे की जमीन को कब्जे में करने की ठान ली है, धरमु ने उसे बहुत रोका की उस जमीन पर कब्ज़ा ना किया जाये जिसके लिए रामचरण ने अपनी जान तक दे दी और रामबाबू ने सौगंध खाई थी की वो उस जमीन को किसी की नहीं होने देगा| लेकिन बलराम ने अपनी ताकत का घमंड दिखाया और बोला की वो जमीन वो हांसिल करेगा| धरमु चाहता है की तुम दोनों भाई उस जमीन पर कब्ज़ा करो वो तुम्हारे साथ है और मैं भी तुम लोगो का साथ दूँगा|

गणेशिया ने दोनों भाइयों को यह भी हिदायत दी की वो अपनी माँ को यह बात ना बताये नहीं तो वो कभी उन्हें इस काम के लिए नहीं जाने देंगी, लेकिन यह काम उनके पिता की आत्मा की शांति के लिए है और उसके भाई के बलिदान के लिए है|

अगली सुबह योजना के अनुसार गणेशिया रामचरण के दोनों बेटो के साथ मनहर के घर के सामने की जमीन पर पहुँच गया, मनहर अपने घर के बाहर खाट पर बैठा नीम का दातुन कर रहा था| उसने गणेशिया और रामचरण के लड़कों को जमीन पर देखा बिना किसी प्रतिक्रिया के अपने आप में व्यस्त हो गया जैसे उसने कुछ देखा ही ना हो|

कुछ ही देर में वहां धरमु का आगमन हुआ, गणेशिया के चेहरे पर थोड़ी मुस्कान आयी और रामचरण के लड़के को भी कुछ साहस का अनुभव हुआ| रामचरण के लड़के धरमु के निर्देशानुसार मेड़ बनाने लगे| कैलाशी चमार का घर जमीन से अधिक दूर नहीं था वो बड़े ध्यान से देख रहा था| धरमु ने कैलाशी को हाथ हिलाकर इशारा किया और कैलाशी ने इशारा पाते ही बलराम के घर का रुख किया|

बलराम घर के आँगन में लौकी की लत्तियों को बाँस का सहारा देने में व्यस्त था, उसने कैलाशी की पुकार सुनी और बहार आकर बोले - क्या है रे कैलाशिया ?

कैलाशी ने हाँफते हुए कहानी सुनानी शुरू कर दी - मालिक धरमु ने रामचरण के लड़कों और गणेशिया को मना लिया है और वो धरमु के लिए उस जमीन पर कब्ज़ा कर रहे है|

बलराम का आक्रोश सातवें आसमान पर चढ़ गया| क्रोध ने विवेक का गाला घोंट दिया, बलराम ने पूरे आक्रोश से कहा - क्या बोलता है तूँ ?

कैलाशी ने बड़ा साहस कर के हाँ में सर हिलाया| और बलराम ने ना आव देखा ना ताव और आँगन में लौकी की लत्तियों में जो बाँस गाड़ रखा था उसे उखाड़ा और दौड़ पड़ा मनहर के घर की तरफ|

धरमु ने दूर से आते बलराम को देखा और गणेशिया से कहने लगा - अरे गणेशिया इस तरफ से तुम भी लग जाओ हमें भी तो हाथ बटाना होगा|

गणेशिया ने फावड़ा उठाया और काम पे लग गया, धरमु उसे निर्देश देने लगा|

बलराम वहां पहुंचा और उसने देखा की रामचरण के लड़के काम कर रहे है, गणेशिया भी काम कर रहा है और धरमु उन्हें निर्देश दे रहा है| कैलाशी की सभी बातें बिलकुल सच थी|

बलराम ने जोरदार दहाड़ लगायी और उस तरफ दौड़ा जहाँ धरमु खड़ा था, रामचरण के दोनों लड़के सहम गए उन्होंने देखा की गणेशिया धरमु की तरफ भाग रहा थ, वो भी धरमु की तरफ भागे| कुछ ही पलो में धरमु, गणेशिया और रामचरण के लड़के एक कतार में खड़े थे, सभी ने धरमु के पास पड़ी हुई मजबूत लाठियां उठा ली, जो धरमु के योजना का हिस्सा थी| बलराम के पहुंचने से पहले सभी ने मोर्चा सम्हाल लिया|

बलराम के पहुँचते ही बिना विलम्ब धरमु ने लाठी से बलराम पर वार करना चाहा, लेकिन बलराम ने अपने बाँस से लाठी के वॉर को रोक लिया उसी बाँस पर तीन और लाठियाँ बरसी, लाठियों ने बाँस को जमीन की तरफ दबाना शुरू किया और बाँस ने सभी को ऊपर की और उठाना| द्वन्द शक्ति की थी और अकेला बलराम चारो पर भारी था| बलराम ने ताकत लगायी और चारों लाठियों को ऊपर की तरफ उछाल दिया, इस झटके से धरमु, गणेशिया, नवजीवन और जीवछ सभी दो दो कदम पीछे चले गए|

अब बलराम ने चारों को बारी-बारी देखा और दुश्मनों का अंदाज़ा लगाया। सभी ने एक बार फिर जोर लगाया और अपनी लाठियाँ सम्हाली|

तुम लोगो से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है, तुम सब धरमु के झांसे में आकर गलती कर रहे हो, अभी भी वक़्त है, पीछे हट जाओ, नहीं सब मेरे हाथों मारे जाओगे - बलराम ने अपने भारी आवाज़ मे कहा|

सभी के अंदर भय घर कर चुका था और यह साफ़ था कोई भी पहले प्रहार करने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था, लेकिन पीछे हटने की कायरता भी कोई दिखाना नहीं चाहता था|

तुम अपने लोभ में दुसरो का हक़ नहीं छीन सकते बलराम, ये जमीन - धरमु बोल ही रहा था की पीछे से जोरदार प्रहार बलराम पर हुआ, बलराम के सर से खून की धरा फुट पड़ी, इसके बाद किसी ने मौका नहीं छोड़ा और सब ने लाठियों की बरसात कर दी|

बलराम जमीन पर गिर पड़ा, उसका विशालकाय शरीर खून से लथपथ था| पांचो ने मिलकर विशाल बलराम के जीवन पर विजय प्राप्त की| धरमु ने मनहर की तरफ देखा, मनहर वहीँ बैठा था जैसे उसे कुछ मतलब ही नहीं हो| धरमु ने सभी को इशारा किया और सभी लोग अपने सामने के साथ भाग खड़े हुए|

धरमु तेजी से दौड़ता हुआ मनहर के पास गया और बोला - मैं समझता हूँ तुम चुप रह सकते हो, हो सकता है तुम्हारा लड़का वापस गाँव में आ सके|

मनहर भयभीत था उसने धरमु की आँखों में देखा, हाँ में सिर हिलाया और घर के अंदर चला गया| तुरंत ही धरमु ने भी अपना रास्ता पकड़ा|

शाम का समय था, बलराम की चिता को अग्नि दी जा चुकी थी, उसका कोई लड़का नहीं था, गाँव के पंडित विस्वा महाराज चाहते थे की उनके हाथों ही अग्नि पड़नी चाहिए| लेकिन नियमों के विरुद्ध पिता के चिता के साथ आयी बलराम की बेटी बिंदी ने वहां जिद ठान ली की अपने पिता की चिता को वही अग्नि देगी| और उसकी जिद के आगे गाँव वालो की एक ना चली, और अंततः उसने अपने पिता को अग्नि दी|

बलराम की घरवाली एक कोने में बैठी थी उसके पास दो तीन औरतों का जमावड़ा लगा था, थोड़ी दूर हटकर बिंदी बैठी थी, उसके पास गाँव के कई लड़कियां और दो चार लड़के बैठे थे|

बिंदी ने कहा - मैं उसका घर बर्बाद कर दूंगी, जिसने मेरे पिता की हत्या की है| बिंदी की आँखों में क्रोध की ज्वाला थी, वह अपने पिता की ही तरह लम्बी और मजबूत कद काठी की थी और ऊपर से उसके अंदर आत्मविश्वास की कोई कमी ना थी| वह अपने पिता के साथ दिन भर खेतों में काम कर लेती और अपने पिता से ज्यादा काम कर लेती थी| उसका रंग गेहुँआ होने के बावजूद उसकी कद काठी उसे रूपवान बनाती और यही कारण था की गाँव के सभी लड़के उसके दीवाने थे, और कई लड़कों के साथ उसका टांका भी लग चुका था, लेकिन उसकी ज़िद्दीपन और क्रोध के कारण उसका बहुत दिनों तक किसी से निबाह नहीं होता था|

रात में ठंडी हवा के झोंको में खुले केशो में घर के चौखट पर बैठी बिंदी अपने पिता को याद करती थी, धरमु का लड़का उसके पास आकर बैठ गया, बिंदी ने देखा लेकिन कुछ बोली नहीं| थोड़ी देर दोनों गुमशुम बैठे रहे|

बिंदी ने बिना शनिया की तरफ देखते हुए कहा - देख तू कहता था की तेरे रहते मुझे कोई दुःख नहीं होगा, तेरे रहते लोगो ने मेरे पिता की हत्या कर दी, अब किसके सहारे जियूँगी मैं |

शनिया ने बिंदी का हाथ पकड़ते हुए कहा - मैं हूँ ना, बिंदी|

बिंदी ने हाथ झटकते हुए कहा - कोई नहीं है अब मेरा, मुझे अपने पिता के मौत का बदला लेना और यही मेरा लक्ष्य है|

शनिया ने बिंदी का हाथ दुबारा पकड़ते हुए कहा - मैं तेरे साथ हूँ, मैंने यह पता लगाया है की रामचरण के दोनों लड़के भी थे|

बिंदी की आँखों में क्रोध उबल पड़ा - तो चल अभी मार देते है उन दोनों को, चल शनिया मुझसे रहा नहीं जाता, मुझे सर काटने है उन दोनों के|

शनिया ने बिंदी को जोर से अपनी ओर खींचा और बोला - ये होश में रह कर फैसले लेने का वक़्त है बिंदी, आज उन्हें मार देंगे कल पंचायत हमें गाँव से बहार निकाल देगी|

बिंदी ने दांत पीश कर कहा - तो क्या मैं हाथ पर हाथ रखकर बैठी रहूँ ?

नहीं बिंदी मेरे पास एक योजना है - शनिया ने आँखें बड़ी करते हुए कहा| बिंदी गौर से सुन रही थी,हम उसके घर को आग लगा देंगे, बिंदी की आँखे चमक उठी, उसे उसकी पिता की चिता की जलती आग नज़र आने लगी|

शनिया ने कहना जारी रखा - आज एक पहर बीतने के बाद सब गहरी नींद में होंगे, मैं मिट्टी का तेल लेकर आऊंगा, हम चुपचाप चलेंगे, और रामचरण के घर को आग के हवाले कर देंगे|

बिंदी अपने घर के आँगन में खाट पर लेटी आसमान को निहार रही थी, जैसे अपने पिता को ढूंढ़ती हो सितारों में| उसकी माँ घर में बैठे रोते रोते जाने कब सो गयी|

कुछ देर के बाद बिंदी को घर के बाहर आहट सुनाई दी, वो दबे पाँव दरवाज़े की तरफ भागी, धीरे से दरवाज़ा खोली और उसने देखा शनिया हाथ में मटका लिये खड़ा था, और उसके पीछे एक बालक खड़ा था उसके हाथ में एक हलकी लौ से जलती मशाल थी|

ये कौन है ? बिंदी ने आश्चर्य भाव से पूछा |

ये मेरा चेला है रमहुआ, तुम चिंता ना कर ये हमारी मदद करेगा|

बिंदी ने बिना कुछ कहे धीरे से दरवाज़ा को बाहर से कुण्डी मारी, और बोली - चलो|

तीनों तेज रफ़्तार से रामचरण के घर की तरफ बढ़ चले| रात गहरी हो चुकी थी, गाँव निस्तब्ध था, सिवाए झींगुर की आवाज़ के और कोई ध्वनि प्रतीत नहीं होती थी||

रामचरण के घर पहुँच कर शनिया ने रमहुआ से मशाल लेकर बिंदी को दी, और मटका रमहुआ को पकड़ाया, और उसे कंधे पर चढ़ा लिया, रमहुआ ने बिंदी का इशारा पाकर रामचरण के घर के फूस के छत पर तेल छिड़कना शुरू किया| घर का करीब एक बार परिक्रमा करने के बाद शनिया ने रमहुआ को नीचे उतारा उसके हाथों से मटका लेकर बचा हुआ तेल घर के पीछे वाले दीवाल पर छिड़कने लगा| घर के पीछे दीवाल में एक छोटी सी खिड़की बानी थी, तेल की उड़ती कुछ बुँदे घर के अंदर सो रहे जीवछ के चेहरे पर गिरी, जिससे उसकी आँखे खुल गयी, वो उठा और उसे मिट्टी के तेल की बदबू आयी| उसका चेहरा भय से आतंकित हो उठा, उसे ये भांपते देर ना लगी की घर में आग लगने वाली है| शनिया ने बिंदी को इशारा किया, इधर फुसफुसाहट की आवाज़ सुन जीवछ खिड़की से झाँका, उसे कोई चेहरा तो ना दिखा लेकिन हलकी इजोत देखकर ये समझ गया की कोई उसके घर को आग लगाने वाला है|

वह लंगड़ाते हुए आँगन की ओर भागा, और आँगन में खाट पर सो रहे नवजीवन को जोर से धक्का मार कर उठाया, और भय से आतंकित होकर धीरे से बोला - कोई आग लगा रहा है, जल्दी भागना होगा|

आँगन के एक कीनारे पर सुर्खी चटाई पर अपनी माँ से चिपके सो रहा था, नवजीवन ने झट अपने भाई सुर्खी को गोद में लिया, इससे रगनिया की नींद खुल गयी|

बिंदी ने तब तक घर को आग के हवाले कर दिया था, वो क्रोध से लाल हो रही थी, उसका बदन काँप रहा था| वो वहीँ खड़े रहकर सब को आग में जलते देखना चाहती थी, लेकिन शनिया ने उसकी बाहें पकड़कर खींचा और उसे भगा कर ले गया|

क्षण भर में घर आग की जलती हुई लपटों के हवाले हो गया था| इतनी ऊँची लपटे की पूरा गाँव देख सकता था| नवजीवन सुर्खी को गोद में लिये हुए था, जीवछ अपनी माँ को पकडे हुए था, सब नदी किनारे से अपने घर को जलते हुए देख रहे थे| सबकी आँखों से आंसू की धारा बह रही थी| भागते हुए नवजीवन ने बैलो को खोल दिया था जिससे बैले भी खेतों से होते हुए नदी किनारे आ पहुंची थी, थोड़ी देर में अपने माँ और भाइयों के साथ नवजीवन नदी को तैरकर पार कर गया|

लोग आग लगने के कुछ घंटो के बाद से सुबह तक रामचरण के घर पहुँचते रहे, आग अब भी जल रही थी, लेकिन अब आग की लपटे नहीं थी, सिर्फ जली हुई लकड़ियों का टुकड़ा था राख में परिवर्तित घर और काला धुआं था|

लोग स्तब्ध थे, उनके विचार में गॉंव में किसी ने एक असभ्य और बर्बर कार्य किया था, एक परिवार को सोये हुए में घर के साथ ज़िंदा जला दिया था|

इसके बाद घटना की निंदा तो हुई लेकिन, ना कोई पंचायत बैठी और ना किसी ने आवाज़ उठाई|

आगे पढ़े भाग ६ – अनावरण