Bhasha ka gyaan maa ke garbh se aarambh in Hindi Magazine by S Sinha books and stories PDF | भाषा का ज्ञान माँ के गर्भ से आरम्भ

The Author
Featured Books
Categories
Share

भाषा का ज्ञान माँ के गर्भ से आरम्भ

भाषा का ज्ञान गर्भ से आरम्भ

भले ही यह बात आश्चर्यजनक लगे कि बच्चे भाषा सीखना माँ के गर्भ से ही आरम्भ कर देते हैं, पर यह सत्य है. आपने महाभारत में पढ़ा होगा या सुना होगा अभिमन्यु ने चक्रव्यूह की संरचना के बारे में सुभद्रा के गर्भ में ही सुना था. आज विज्ञानं भी मानता है कि बच्चे गर्भ में ही सुनना और भाषा सीखना शुरू कर देते हैं.

न्यू यॉर्क स्थित एक गर्भवती कॉस्मेटिक एग्जीक्यूटिव का कहना है कि वह अपने बच्चे से बीच बीच में बातें करती रहती है. शायद लोग उसे पागल समझें, पर उसका मानना है कि बच्चा उसकी बात सुनता और समझता है. इस विषय में शोध से भी यह बात सही हुई है.

एक नयी शोध के अनुसार बच्चे प्रसव काल के दस सप्ताह पूर्व से ही भाषा सीखने लगते हैं. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, सिएटल के डॉ कुहल और उनकी टीम ने 40 अमरीकी और 40 स्वीडिश बच्चों का, जिनकी औसत आयु 30 घंटे थी और अभी अस्पताल में थे, का अध्ययन किया. इन बच्चों को हेडफोन से कंप्यूटर द्वारा बनाये 17 अंग्रेजी के स्वर “ fee ” से मिलते जुलते और 17 स्वीडिश स्वर “ fy “ से मिलते जुलते सुनाये गए. इस दौरान सभी बच्चे सेंसर युक्त चूसनी (pacifier) चूस रहे थे. उनकी प्रतिक्रिया देखि गयी. इस दौरान मातृभाषा में बोले गए स्वर ने जल्दी जल्दी उनका ध्यान आकर्षित किया था. अपनी मातृभाषा के स्वर की तुलना में दूसरी भाषा के स्वर सुनते समय ये बच्चे ज्यादा समय तक चूसनी चूसते रहते थे. और देर तक चूसना उनकी यह प्रतिक्रिया दर्शाता है कि वे ऐसे स्वर से वे अनभिज्ञ हैं.

बच्चे सिर्फ माँ की आवाज ही गर्भ में सुन सकते हैं. अपने पेट पर ईयर फोन रखने की जरूरत नहीं है क्योंकि वहां पहले ही शोर रहता है. माँ के बोलने की आवाज और उसके स्वर प्राकृतिक रूप से बच्चे सुनते हैं.

न्यू यॉर्क के स्पीच पैथोलॉजिस्ट वेक्स्लर इस बात से उत्साहित हैं कि बच्चे भाषा सीखना गर्भ के अंतिम कुछ सप्ताहों में शुरू करते हैं और उनका सुझाव है कि माताओं को गर्भस्थ शिशु से और प्रसव के तुरंत बाद से बातें करनी चाहिए. शिशु से बातें शांत और सहज माहौल में करनी चाहिए. उनका कहना है कि हमें पता है कि माँ की आवाज गर्भ में शिशु सुन सकते हैं,और माँ फिर जन्मोपरांत नवजात शिशु को भी आवाज सुनना और समझना सिखा सकती है. ध्यान रहे कि आरम्भ से ही उन्हें अन्य किसी बाह्य टेप किया आवाज या भिन्न भाषाओँ में आवाज सिखाना सही नहीं है. भ्रूण गर्भ में ही संवेदनशील होता है और माँ के प्रोत्साहन का उस पर सार्थक प्रभाव पड़ता है.

21 फ़रवरी 2017 के न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख के अनुसार जो बच्चे जन्म के तत्काल बाद दूसरी भाषा के माता पिता द्वारा गोद लिए जाते हैं, वे गर्भ में माँ की भाषा के अभ्यस्त होते हैं. शोध कर्ताओं ने जन्मोपरांत दूसरी भाषाके संपर्क में आने पर शिशु की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया है. वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता के अनुसार नवजात शिशु अपनी गर्भावस्था में सुनी भाषा को ही सुनना पसंद करता है विशेषतः अपनी माँ के बोल. वे माँ की बोली के समकक्ष रिदम (rhythms) में बोली गयी दूसरी भाषा को भी कुछ हद तक सुन सकते हैं. नवजात शिशु की पसंदीदा भाषा का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि वे चूसनी पर कितनी देर तक किस भाषा को सुनना पसंद करते हैं.

इसी लेख के अनुसार शोधकर्ताओं ने कोरिया में जन्मे और डच परिवार द्वारा गोद लिए बच्चे जब वयस्क हुए,

उनका अध्ययन किया. इनमें कोई भी कोरियन भाषा नहीं बोलता था. उन्होंने देखा कि ये डच परिवार में जन्मे और बड़े हुए बच्चों की तुलना में कोरिया में गोद लिए डच परिवार के बच्चे कोरियन आवाज निकालना ज्यादा आसानी से और जल्द सीख पाते थे. ऐसा ही अध्ययन छः महीने से कम के और यहाँ तक कि सत्रह महीने के बाद के गोद लिए बच्चों पर किया गया. इस आयु तक बच्चों को शब्द और भाषा का कुछ ज्ञान हो जाता है. देखा गया कि जन्म के पूर्व और उसके चंद महीने बाद सुनी भाषा का असर उनके आवाज सुनने और समझने की क्षमता पर होता है.

डॉ मून एक मनोवैज्ञानिक हैं और स्वयं नवजात बच्चों की गोद ली माँ भी हैं. उन्होंने देखा कि अंग्रेज और स्वीडिश दोनों नवजात शिशु की प्रतिक्रिया अपनी भाषा के स्वर और दूसरी भाषा के स्वर सुनने में भिन्न थीं. नवजात शिशु का मष्तिष्क अपनी माँ के स्वर और दूसरे स्वर के अंतर क्षण भर में पहचान सकता है. शुरू से ही शिशु आवाज के नमूने (pattern) को पहचानता है.

4 जनवरी 213 के वाशिंगटन डी सी के लाइफ न्यूज़ के अनुसार भी नवजात शिशु अपनी नेटिव और दूसरी भाषा का अंतर समझता है और जन्म के पूर्व से ही वह भाषा सीखने लगता है. इस रिपोर्ट के अनुसार गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क और श्रवण प्रणाली 30 वें सप्ताह से क्रियाशील हो जाते हैं. स्वर (vowels) की आवाज ज्यादा देर तक सुनाई पड़ने के कारण गर्भ में पल रहा शिशु माँ के स्वर से सहज रूप से परिचित होता है.

मानव जीवन जन्म के पूर्व गर्भ से ही आरम्भ हो जाता है और सीखने की प्रवृति भी गर्भ में ही जन्म लेती है. माँ के स्वर और निकट के वातावरण से ही संकेत (cues) मिलने लगते हैं, जिनमें कुछ तो आजीवन हमारे साथ रह जाते हैं.

- शकुंतला सिन्हा

( बोकारो, झारखण्ड )

Presently in USA

***