जे.एन. मेडिकल कॉलेज स्वर्ण जयंती समारोह,
बेलगाम
19 दिसम्बर, 2013
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जे.एन. मेडिकल कॉलेज स्वर्ण जयंती समारोह, बेलगाम
श्रीमान प्रभाकर जी, श्री शिवानंद जी, मंच पर विराजमान सभी वरिष्ठ महानुभाव, इस शैक्षणिक यात्राा से जुड़े हुए अनेकविध महानुभाव, स्वस्थ हिंदुस्तान, हेल्दी इंडिया के स्वप्न को साकार करने का कार्य जिन नौजवानों के माध्यम से होने वाला है, उन सभी विद्यार्थियों का अभिनंदन ! इस अवसर पर आने का मुझे सौभाग्य मिला, मेरा स्वागत—सम्मान किया गया, मैं इसके लिए सोसायटी के सभी महानुभावों का तहे दिल से धन्यवाद प्रकट करता हूँ !
मित्राो, समाज और जीवन में, अलग—अलग जातियाँ और बिरादरी में, कोई—न—कोई सामाजिक कार्य चलते रहते हैं और ज्यादातर समाज का संगठन राजनीतिक गतिविधियों के लिए किया जाता है। समाज को एकत्रा करके, समाज का विश्वास जुटाकर राजनीतिक जीवन में प्रगति करने के लिए सामाजिक भावनाओं को जोड़ने का प्रयास हिंदुस्तान के हर कोने में होता है। लेकिन कुछ ऐसे महापुरुष पैदा होते हैं जो बहुत दूर का सोच सकते हैं। जब वह कार्य को आरंभ करते हैं तो समकालीन लोगों को अंदाजा तक नहीं लगता है कि ये छोटा—सा प्रयास कितनी बड़ी क्रांति का कारण बन जाएगा ! 98 साल पहले जिन महापुरुषों ने शिक्षा के सामर्थ्य का अनुभव किया होगा, शिक्षा के महत्त्व को समझा होगा, और समाज के सभी लोगों को शिक्षा कैसे उपलब्ध हो, समाज के किसान परिवार तक भी शिक्षा कैसे पहुँचे, ये सपना देखकर के जिन्होंने इस केएलई का बीज बोया होगा, मैं आज उन सभी दीर्घदृष्ट्रा महानुभावों को नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ, उनका वंदन करता हूँ !
चीन में एक कहावत है कि जो एक साल का सोचता है वह अनाज बोता है, जो दस साल का सोचता है वह फलों का पेड़ उगाता है, लेकिन जो पीढ़ियों का सोचता है वह मनुष्यों को बोता है ! ये केएलई जैसी सोसायटी ने मनुष्य बोने का पवित्रा काम किया है ताकि शिक्षा और संस्कार के माध्यम से सशक्त व्यक्ति के द्वारा सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो और पीढ़ियों तक इसके सुफल मिलते रहें ! जब शुरुआती दौर में इसको प्रारंभ किया होगा तो कितनी कठिनाइयाँ आई होंगी ! किसी एक संस्था या संगठन को तकरीबन सौ साल चलाना, ये कोई छोटा काम नहीं है ! कितने उतार—चढ़ाव आते होंगे, कितने आरोप—प्रत्यारोप लगते होंगे, उसके बावजूद सभी ने मिलकर इस कार्य का निरंतर विस्तार और विकास किया है, इसलिए जे. एन. मेडीकल कॉलेज की गोल्डन जुबली पर और इस संस्था की 98 वर्षोें की यात्राा पर, इस पूरे कालखंड में जिस किसी ने भी सहयोग किया है, वह सभी अभिनंदन के अधिकारी हैं !
बेलगाम, शिक्षा के कारण और विशेष रूप से केएलई सोसायटी के कारण, लघु भारत बन गया है। हिंदुस्तान के हर कोने से हर भाषा—भाषी, हर प्रकार के खान—पान वाले विद्यार्थी पिछले 5—6 दशक से बेलगाम आते रहे हैं और इसके कारण बेलगाम का ये शिक्षा धाम, सरस्वती धाम न सिर्फ बेलगाम या कर्नाटक में बल्कि पूरे हिंदुस्तान में अपनी पहचान बना चुका है और एक आस्था का निर्माण कर चुका है। अगर कोई समाज, समयानुकूल परिवर्तन नहीं करता है, शिक्षा को महत्त्व नहीं देता है तो वह कभी भी प्रगति नहीं कर सकता है। शिक्षण ही सबसे पहला क्षेत्रा होता है जो आने वाले युग के बदलाव को भाँप सकता है। जैसेव्यापारी अगले सीजन का अंदाज लगा सकता है, ज्यादा—से—ज्याादा अगले साल का अंदाज लगा सकता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति आने वाली पीढ़ियों की परिस्थितियों को भाँप सकता है। अगर वह उसको अनुमानित करके आज से व्यवस्थाएँ विकसित करता है तो यह परिवर्तन का बहुत बड़ा कारण बन जाता है !
चीन में अँग्रेजी भाषा की कोई शुरुआत ही नहीं हुई थी। जब दुनिया इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी की ओर चल पड़ी, ग्लोबल इकोनॉमी का युग शुरू हुआ तो चाइना को लगा कि हमें प्राइमरी स्कूल से ही बच्चों को अँग्रेजी सिखानी पड़ेगी और उन्हें अगर आईटी प्रोफेशनल बनाना है, क्योंकि अगर दुनिया में टिकना है तो यह जरूरी है। उन लोगों ने बहुत ही कम समय में अपनी परंपराओं को सम्हालते हुए अपने—आपको इस स्थिति में जोड़ दिया। एक समय ऐसा था, आज से 30 साल पहले, चाइना की कोई भी यूनीवर्सिटी विश्व में जानी नहीं जाती थी, लेकिन इन 30 सालों में दुनिया की टॉप यूनीवर्सिटी में उन्होंने अपनी 10 यूनीवर्सिटी को शामिल कर दिया ! सरकार कोई भी हो, उस सरकार के मन में एक जिजीविषा होनी चाहिए, एक महत्त्वाकांक्षा होनी चाहिए कि हमारा देश भी शिक्षा के क्षेत्रा में दुनिया में अपना नाम रोशन करे ! हम वो लोग हैं जो ज्ञान के उपासक रहे हैं। विश्व में यूनीवर्सिटी की कल्पना की उम्र लगभग 2800 हुई है, 2800 साल लंबा इतिहास यूनिवर्सिटी एजुकेशन का है और हमारे ही देश में कभी नालंदा, तक्षशिला और बल्भी जैसी यूनीवर्सिटी ने पूरे विश्व में अपना लोहा जमाया था। 2800 साल में से 1600 साल इस ज्ञान की दुनिया में भारत का रुतबा रहा था। उस जमाने में समुद्री तट पर गुजरात का हिस्सा बल्भी, सदियों पहले वहाँ 80 देशों के स्टूडेंट पढ़ते थे। लेकिन गुलामी के कालखंड में हम हमारी वो विधा खो चुके हैं, अनेक प्रकार से हम आश्रित बन गए। परंतुु आजादी के तुरंत बाद इस विशेष क्षेत्रा पर ध्यान केंद्रित किया गया होता, बल प्रदान किया गया होता, तो हो सकता था कि हम आजादी के बाद के इस 50 साल के कालखंड में पूरे विश्व में ज्ञान के क्षेत्रा में एक बड़ी शक्ति बनकर उभरते !
दुनिया कहती है कि 21वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है। विश्व ने जब—जब ज्ञान युग के अंदर प्रवेश किया, हर बार भारत ने उसका नेतृत्व किया। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है, ज्ञान के क्षेत्रा में अप्रतिम रिव्युलेशन का कालखंड हम सभी अपनी आँखों के सामने देखने वाले हैं। हम सदियों से ऋषि—मुनियों के ज़माने से ज्ञान के उपासक रहे हैं। आधुनिक विज्ञान और टेक्नोलॉजी को स्वीकार करके आने वाली शताब्दी में दुनिया को हम क्या दे सकते हैं, हमें इन सपनों को लेकर हमारे शिक्षा धामों या यूनीवर्सिटी को, हमारी शिक्षा व्यवस्थाओं को एक सीमित दायरे में नहीं बल्कि ग्लोबल विजन के साथ विकसित करना होगा और विश्व के साथ ताल मिलाते हुए शिक्षा के सहारे नई ऊँचाइयों को प्राप्ति करने का प्रयास करना होगा !
मित्राो, आज देश में हेल्थ सेक्टर चिंता का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं, बीमार लोग बढ़ते जा रहे हैं, जितने अनुपात में डाक्टरों की जरूरत है उतने डाक्टर उपलब्ध नहीं हैं। हेल्थ सेक्टर में अनेक प्रकार की सर्विस डेपलप हुई हैं जैसेपैरामेडिकल स्टाफ, लेकिन उसकी भी देश में बहुत बड़ी कमी महसूस हो रही है। आप सोचिए, एक तरफ देश में 65÷ जनसंख्या 35 से कम आयु की है यानी यंगेस्ट कंट्री इन द वर्ल्ड, वहीं दूसरी ओर हमारे पास पैरामेडिकल क्षेत्रा के लिए स्किल्ड मैन पावर नहीं है ! जितनी आवश्यकता डाक्टर्स की है, उतनी ही आवश्यकता पैरामेडिकल स्टाफ की है। और जितनी आवश्यकता पैरामेडिकल स्टाफ की है, उतनी ही हेल्थ टेक्नोलॉजी की है। मित्राो, आज भी बहुत बड़ी मात्राा में मेडीकल इक्विपमेंट्स को हमें विदेशों से लाना पड़ता है। क्या हमारे देश के नौजवानों में वह सामर्थ्य नहीं है कि वह इन्हें तैयार कर पाएँ ? जिस प्रकार से ह्यूमन रिसोर्स डेपलेपमेंट की आवश्यकता है उसी प्रकार से इसकी भी आवश्यकता है। टेक्नोलॉजी ने मेडीकल साइंस को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है, टेक्नोलॉजी के बिना मेडीकल साइंस एक भी कदम आगे नहीं बढ़ सकता है, ऐसी स्थिति आ गई है। कोई ज़माना था कि हाथ की नाड़ी देखकर दवा दे दी जाती थी और आदमी ठीक हो जाता था, लेकिन आज लेबोरेट्री में 100 प्रकार के टेस्ट होते हैं, बिना टेस्ट के दर्द का भी पता नहीं चलता है। इसीलिए, टेक्नोलॉजी बहुत बड़ा रोल प्ले कर रही है। लेकिन इस क्षेत्रा में जितनी मात्राा में रिसर्च होनी चाहिए, इस प्रकार की रिसर्च में हिंदुस्तान बहुत पीछे है !
हमें हेल्थ सेक्टर में ह्यूमन रिसोर्स चाहिए, चाहे मेडीकल कॉलेज या पैरामेडिकल स्टाफ में शिक्षा की व्यवस्था करनी हो, लाखों की तादाद में देश को इसकी आवश्यकता है। आज गरीब इंसान के लिए बीमार होना सबसे ज्यादा महँगा है। अभी हाल ही में हमारे राष्ट्रपति जी ने उल्लेख किया था कि हमारे देश में औसतन चार करोड़ लोग बीमारी के कारण कर्जदार बन जाते हैं, अगर परिवार में कोई बीमार पड़ जाता है तो उन्हें कहीं—न—कहीं से इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है। एक तरफ दवाई में और एक तरफ कर्ज में उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो जाती है। क्यों न हम इसके लिए नई व्यवस्थाओं को विकसित करें ! मैं पिछले कुछ वर्षों से इंश्योरेंस कंपनियों से हमेशा एक सवाल करता हूँ, हालाँकि मुझे अभी तक जवाब मिला नहीं है, यहाँ भी मैं सार्वजनिक रूप से रखता हूँ, अगर आप लोगों में से कोई कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिलें तो अवश्य पूछें किअगर किसी कार का इंश्योरेंस है और उस कार का एक्सीडेंट हो जाता है तो कार में बैठा हर व्यक्ति इंश्योरेंस का हकदार है, चाहे उसका कार के मालिक के साथ कोई संबंध हो या नहीं। अगर कार में बैठा हर व्यक्ति इंश्योरेंस का हकदार हो सकता है, तो अस्पताल के हर बेड का भी इंश्योरेंस होना चाहिए, जो भी बेड पर लेटे उसका इंश्योरेंस हो जाए, वह भी इंश्योरेंस का हकदार बन जाए ! इंश्योरेंस कंपनियों को लगता है कि इसमें कोई कमाई नहीं है और इसीलिए वह मुझे इसका जवाब नहीं दे रहे हैं ! मित्राो, हेल्थ इंश्योरेंस तो है, लेकिन हमें गांरटी देनी होगी और हेल्थ इंश्योरेंस पर सोचना होगा। सिर्फ हेल्थ इंश्योरेंस काफी नहीं है, हमें हेल्थ एंश्योरेंस पर बल देना पड़ेगा !
हेल्थ इंश्योरेंस के साथ प्रीवेंशन की बातें आती हैं। दुनिया में अगर शुद्ध पानी पहुँचे तो ज्यादातर बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन आज यह देश की कठिनाई है ! मैं आप सभी के साथ गुजरात का एक अनुभव शेयर करता हूँ, आप में से कई लोगों ने अहमदाबाद देखा होगा, वहाँ एक साबरमती नदी है, महात्मा गाँधी के कारण इस नाम का उल्लेख अक्सर आता है। अगर आज से कुछ साल पहले बच्चे को बोला जाता कि साबरमती पर निबंध लिखो तो वह लिखता था कि साबरमती में बालू के ढेर होते हैं, नदी में क्रिकेट खेला जाता है, नदी में सर्कस आता है क्योंकि उसने नदी में पानी देखा ही नहीं था। मित्राो, हमने रिवर ग्रिड किया, नर्मदा का पानी साबरमती में ले आए और नदी को जिंदा कर दिया, अब आप जाएँ तो वहाँ देखने जैसा है ! अब दुनिया की नजरों में तो यही है कि हमने साबरमती में नर्मदा का पानी लाकर शहर की शोभा बढ़ा दी, दोनों ओर नदी बहती है, आनंद आता है ! लेकिन इस छोटे—से प्रयास से सारे वॉटर लेवल ऊपर आए। पहले 2500—3000 टीसीएफ वाला पानी पीते थे, पानी ऊपर आने के कारण शुद्ध पानी मिलने लगा। क्वालिटी ऑफ वॉटर चेंज हो गया, टीसीएफ एकदम से कम हो गया, बिसलरी बॉटल के जैसा पानी नल में बहने लग गया, जिसके परिणामस्वरूप हमारे अहमदाबाद के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का बिजली का बिल प्रतिवर्ष 15 करोड़ कम हो गया ! लेकिन जब वहाँ लगातार 5—7 बारिश होती थी तो अस्पताल भर जाते थे, लोग बीमार हो जाते थे और डाक्टर भी जब बारिश आती थी तो कहते थे कि ये सीजन अच्छा है ! लोग बीमार हो रहे हैं और डाक्टर बोलते हैं कि सीजन अच्छा है ! पर हमारे यहाँ पानी शुद्ध पहुँचने के कारण पिछले 8—9 सालों में कोई महामारी नहीं फैली। इसीलिए, प्रीवेंशन को जितना ज्यादा महत्त्व हमारे देश में दिया जाएगा, पर्सनल हाईजिन का जितना महत्त्व है उतना ही महत्त्व सोशल हाईजिन का बढ़ेगा !
अभी बीच में पाकिस्तान की एक रिपोर्ट आई थी कि वहाँ पर जो छोटे बच्चे मरते हैं, उनमें से 40÷ बच्चे सिर्फ बिना हाथ धोए खाना खाने के कारण मर जाते हैं ! ये चीज छोटी है लेकिन हमारी भी कुछ आदतें ऐसी ही हैं, हम लोग एक ही भूमि के रहने वाले थे तो कमियाँ भी वैसी ही होती हैं ! लेकिन परिवार में अगर ये आदत हो तो बच्चों के जीवन को बदला जा सकता है, उनको रक्षा दी जा सकती है। हमारे देश में इंफेंट मॉरटीलिटी रेट यानी शिशु मृत्यु—दर, आईएमआर और एमएमआर की चर्चा बहुत ज्यादा होती है। क्या रास्ते खोजे जा सकते हैं या नहीं ? हमने गुजरात में एक स्कीम चालू की जिसको दुनिया—भर के कई पुरस्कार मिले हैं, चिरंजीव योजना ! पहली बार हमने हेल्थ सेक्टर में पब्लिक—प्राइवेट पार्टनरशिप का मॉडल विकसित किया। इस मॉडल में हमने डाक्टर्स को जोड़ा और कहा कि अगर गरीब परिवार की कोई भी प्रेग्नेंट वूमन आपके यहाँ आती है तो पेमेंट हम देंगे, उसको सही ट्रीटमेंट मिलनी चाहिए। इस स्कीम के कारण माँ की जिंदगी बची, बेटे की जिंदगी बची, बच्चों की जिंदगी बची ! पहले हमारे यहाँ इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी 40—45÷ हुआ करती थी, जो आज लगभग 96÷ तक पहुँचा दी गई है ! हमने हमारे समय की माँग को देखते हुए सरकारों के द्वारा पब्लिकप्राइवेट पार्टनरशिप के मॉडल को किस प्रकार आगे बढ़ाते हैं, गाँवों के अंदर जाने के लिए डाक्टरों को कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं, मोबाइल हॉस्पीटल का नेटवर्क कितना ज्यादा इफेक्टिव बना सकते हैं, इस बारे में ध्यान दें तो हम अपने—आप एक स्वस्थ हिंदुस्तान का सपना देखकर बहुत कुछ योगदान कर सकते हैं !
मित्राो, पाँच साल बाद महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती आएगी, गाँधीजी को 150 साल हो जाएँगे। गाँधीजी जीवन—भर एक बात के प्रति बहुत आग्रही थे, वह बात थीसफाई, स्वच्छता ! गाँधीजी अपने आश्रम में और जहाँ भी जाते थे, सफाई के विषय में अवश्य आग्रह से बोलते थे। क्या हिंदुस्तान इन 5 सालों में ‘गाँधी 150' मिशन लेकर पूरे देश में सफाई व स्वच्छता पर बल दे सकता है ! हेल्थ के लिए सबसे बड़ी यही बात होती है जो परिवर्तन लाती है। 2022 में हमारी आजादी के 75 साल होंगे, अमृत पर्व का अवसर आएगा। क्या हम अभी से 2022 के लिए हेल्दी इंडिया का सपना लेकर योजनाएँ विकसित कर सकते हैं ! इससे बड़ी प्रेरणा कोई नहीं हो सकती है कि एक तरफ गाँधी हों और एक तरफ आजादी के 75 साल हो ! हम इस बात को लेकर चल सकते हैं !
मित्राो, कुछ छोटे—छोटे प्रयास होते हैं जो बहुत बड़ा बदलाव लाते हैं। गुजरात में हमने एनीमल हॉस्टल का प्रयोग किया। यह यूनीक है ! हमारे देश में पढ़ने के लिए बच्चों के हॉस्टल हैं, गुजरात में हमने एनीमल हॉस्टिल का कॉन्सेप्ट शुरू किया। गाँव के बाहर एक हॉस्टल बनाया और उस गाँव के जितने भी लगभग 900 कैटल्स थे, उन सभी को हॉस्टल में रखा और उस हॉस्टल के मैनेजमेंट के लिए कुछ लोगों को रख दिया। हमारे देश में आज भी गाँवों में घरों के सामने तीन—चार पशु होते हैं, जगह कम होती है, पशु के कारण कई बीमारियाँ फैलती हैं, गंदगी फैलती है, लेकिन गाँव के लोग ऐसी ही जिंदगी जीने के आदी हो गए हैं। हम उसमें बदलाव चाहते थे। एनीमल हॉस्टेल बनाने के कारण गाँव साफ—सुथरा रहने लगा। परिवार के लोग दिन में दो घंटे जाकर अपने पशु के साथ रहते हैं, पशु की देखभाल करते हैं, बाकी के समय वहाँ के कर्मचारी देखभाल करते हैं। इससे परिणाम इतना आया कि हॉस्टल में पशु रहने के कारण, डाक्टर उपलब्ध होने के कारण, वैज्ञानिक तरीके से देखभाल होने के कारण, उनके मिल्क प्रोडक्शन में 20÷ की वृद्धि हो गई। इससे यह एक फायदा हुआ और दूसरी तरफ, पूरे दिन पशुओं की देखभाल में जिन बहनों की जिंदगी खप जाती थी, वो इस काम से बाहर आकर अपने बच्चों का ख्याल रखने लगीं, कोई हैंडीक्राफ्ट का काम करने लगी, कोई ईकोनॉमिकल एक्टिविटी में जुड़ गई, पढ़ने—लिखने में रुचि रखने लगी और इस तरह पूरे गाँव के जीवन में बदलाव आ गया और हेल्थ के व्यूम प्वाइंट से भी पूरे गाँव का जीवन बदल गया !
मित्राो, मैं मानता हूँ कि आने वाले समय में हेल्थ को ध्यान में रखते हुए प्रीवेन्शन के लिए कई नए इनिशिएटिव्स लेने पड़ेंगे। इसके लिए अगर मेडीकल क्षेत्रा से जुड़े लोगों, सामाजिक सेवा करने वाले लोग और एजुकेशन सोसाइटी से जुड़े लोग समाज के साथ मिलकर अगर इन चीजों पर बल देते हैं तो हम एक स्वस्थ हिंदुस्तान का सपना पूरा कर सकते हैं ! मैं मानता हूँ कि यहाँ जो विद्यार्थी आने वाले दिनों में समाज के स्वास्थ्य के साथ—साथ हिंदुस्तान के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले हैं इस बारे में ध्यान देंगे ! आज हमारे देश में मेडीकल को सेवा क्षेत्रा के रूप में माना जाता है, सेवा को परमोधर्म के रूप में माना जाता है, दरिद्रनारायण की सेवा के रूप में माना जाता है, इस पवित्रा भाव के साथ यहाँ मेडीकल सेक्टर से निकले हुए लोग, यहाँ के सभी विद्यार्थी, भारत को स्वस्थ बनाने में अपना बहुत योगदान देंगे ! मेरी ओर से आप सभी को बहुत—बहुत शुभकामनाएँ ! मुझे आप सभी के बीच आने का अवसर मिला, इसके लिए मैं आप सभी का बहुत आभारी हूँ। धन्यवाद !