नींबू पानी
डॉ समीर को यमुना बैंक हस्पताल में पाँच लाख का पैकेज मिला तो सभी घर वाले फूले नहीं समा रहे थे। समीर ने MBBS और MD दोनों में स्वर्ण पदक जीते थे, उसके उन स्वर्ण पदक का ही कमाल था कि शहर के सबसे बड़े एवं प्रतिष्ठित हस्पताल यमुना बैंक में उसका सेलेक्शन हो गया और वह भी पाँच लाख रुपए महीने के पैकेज पर।
हस्पताल के चेयरमैन गुप्ताजी सभी डॉक्टरस की परफॉर्मेंस पर पूरी निगरानी रखते थे, कैमरा खोलकर बैठ जाते और बारी बारी से सभी की कार्य शैली देखते, शाम को सभी की स्टेटमेंट मँगवाते और देखते कि किसने कितने नए मरीज भर्ती किए हैं और कितनों को ज्यादा से ज्यादा टेस्ट लिखे हैं।
डॉ समीर ओ पी डी में एक बच्चे को देख रहे थे, बच्चे को बुखार था, शायद वाइरल होगा, डॉ समीर ने चेक किया और दवाई लिख दी एवं साथ में हिदायत दी कि जब दूसरी बार आओ तो प्लेटलेट्स चेक करा कर रिपोर्ट लेकर आना।
चेयरमैन गुप्ताजी स्वयं ही उठकर डॉ समीर के केबिन में आ गए, तब तक बच्चा और उसके माता पिता भी वहीं केबिन में ही थे। चेयरमैन गुप्ता बोले, “डॉ साहब, क्या हमारे यहाँ कमरे नहीं हैं, या कोई कमरा खाली नहीं है?” डॉ समीर बोले, “सर मैं समझा नहीं।”
गुप्ताजी कहने लगे, “डॉ समीर, इस बच्चे को बुखार है, माँ बाप पूरा इलाज़ कराने को तैयार हैं, अब जब हमारे पास कमरे भी हैं तो आप इसको भर्ती क्यो नहीं करा रहे, अगर बच्चे को कुछ हो गया तो क्या तुम जिम्मेदार होंगे? माँ बाप अपने बच्चे के अच्छे से अच्छे इलाज़ के लिए पैसा खर्च करने के लिए तैयार भी हैं और पैसे का क्या, पैसा तो आनी जानी चीज है आज इनके पास हैं, कल तुम्हारे पास होगा लेकिन ज़िंदगी अगर एक बार गयी तो वापस नहीं आएगी, डॉ समीर इस बच्चे को भर्ती करो और अच्छे से अच्छे टेस्ट लिखो। हमने सबसे आधुनिक एक से एक बढ़िया मशीन मंगाई हुई है, हमारे कमरे पाँच सितारा होटल के कमरों से ज्यादा सुख सुविधा वाले हैं, हमार पूरा स्टाफ इसी प्रतीक्षा में खड़ा रहता है कि कब मरीज आए और उन्हे सेवा का मौका मिले।”
अब पहले तुम इसको भर्ती करो एवं इस बच्चे के सभी ब्लड टेस्ट कराओ और एक्स-रे भी निकलवाओ। कितना प्यारा बच्चा है, इसको हमारे हस्पताल में सही इलाज़ मिलना चाहिए।
बीच में बच्चे की माँ बोल पड़ती है, “डॉ साहब, इसको भूख भी नहीं लगती, कुछ खिलाते हैं तो उल्टी होने को हो जाती है।” डॉ समीर बोले, “हाँ यह सब इस बुखार के कारण है, दवा लेगा तो सब ठीक हो जाएगा।”
चेयरमैन गुप्ताजी फिर बोल पड़े, “हाँ, हाँ, इसकी एंडोस्कोपी कराओ और गेस्ट्रो को रेफ़र करके उससे भी जांच कराओ।”
डॉ समीर का मन तो नहीं मान रहा था लेकिन फिर चेयरमैन गुप्तजी के आदेश को मानते हुए उसने बच्चे को 8100/- रुपए प्रतिदिन वाले बेड पर भर्ती कर लिया, कमरे में चार बेड थे, बाकी तीन अभी खाली थे, बच्चे का सी टी स्कैन, एक्सरे, ब्लड टेस्ट एवं एंडोस्कोपी लिख कर स्टाफ नर्स को समझा दिया और दवाइयाँ देने का चार्ट बना कर चला गया।
डॉ समीर अभी बाहर निकल ही रहे थे कि चेयरमैन गुप्ताजी ने फोन करके अपने ऑफिस में बुला लिया। गुप्ताजी बोले, “डॉ समीर हमने आपको गोल्ड मेडलिस्ट देखकर अपने हस्पताल में रखा था यह सोच कर कि आप मरीज का अच्छे से अच्छा इलाज़ करेंगे लेकिन मुझे लगता है कि आप तो कुछ जानते ही नहीं।”
डॉ समीर कहने लगे, “सर! ऐसी बात नहीं है, मेरे सभी मरीज बहुत खुश हैं और एक दो विजिट में ही वो ठीक भी हो जाते हैं, मैं बाद में फोन पर फीड बेक भी लेता रहता हूँ, अब तक तो किसी ने शिकायत नहीं की।”
“लेकिन मुझे तो शिकायत है।” चेयरमैन गुप्ता ने कहा, “मैं आपको पाँच लाख रुपया महीना देता हूँ और आप पूरे दिन में मेरे हस्पताल का एक भी कमरा नहीं भरते, न ही कोई कीमती टेस्ट लिखते हो, बस नींबू पानी पिला कर मरीजों को ठीक कर देते हो, ऐसे कैसे चलेगा। हमारे हस्पताल में जो भी आता है वह अच्छे से अच्छा इलाज़ कराने के लिए ही आता है और हम उसको वर्ल्ड क्लास सुविधाएं देते हैं तभी तो हमारा हास्पताल इस शहर का नंबर वन हस्पताल है, अब मैं आपको डॉ शर्मा की सी डी दिखाता हूँ, देखो और कुछ सीखो।”
गुप्ताजी सी डी चलाते हैं, सी डी में डॉ शर्मा ओ पी डी में बैठे हैं। एक बच्चे को चेक कर रहे हैं, सामने की कुर्सियों पर बच्चे के मम्मी पापा बैठे हैं। मम्मी बोलती है, “डॉ साहब! जैसे ही यह सुबह उठता है, बिस्तर से निकलते ही इसको बीस पच्चीस छींकें आती हैं।” डॉ शर्मा ने ऐसा मुंह बनाया जैसे बहुत ही सीरिअस बात है और कहा, “हमें इसको भर्ती करना पड़ेगा, सारे टेस्ट करवाने पड़ेंगे, क्योंकि दुर्घटना से सावधानी भली और सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी।”
इस तरह से डॉ शर्मा ने पाँच मरीज भर्ती कर लिए और हस्पताल के पाँच कमरे भर दिया, सभी तरह के टेस्ट लिखे। चेयरमैन साहब ने डॉ समीर को बताया, “देखा आपने! आज की ओ पी डी में ही डॉ शर्मा ने कम से कम दस हजार रुपए का अपना कमीशन पक्का कर लिया, तंख्वाह तो जो मिलेगी वह पक्की है यह सब तो अलग से है। और अब डॉ मनीष को देखो, हमारे यहाँ पर वेंटिलेटर पर रहने वाले मरीज से 45000 रुपए प्रतिदिन लेते हैं और हमारे डॉ मनीष तो मरीज के मरने के बाद भी दो दिन और मरीज को वेंटिलेटर पर लगाए रहतें हैं, इस तरह से उनकी अपने वेतन से अलग लाखों रुपए की आमदनी हैं।”
“क्या तुम्हें पैसे नहीं चाहिए, तुमने गोल्ड मेडल लिया है तो क्या पैसे कमाने की इच्छा नहीं है?” गुप्ता जी ने पूछा। डॉ समीर ने बताया, “सर! मैंने उस बच्चे के सभी टेस्ट करवाए हैं जो नॉर्मल हैं और मैंने उसकी छुट्टी कर दी है।” “सोचो अगर कुछ निकल आता उसके टेस्ट में तब तुम क्या खुद को माफ कर सकते थे?” गुप्तजी ने समझाया, “अगर हस्पताल तुम्हें पाँच लाख रुपए देगा तो यह भी आशा करेगा कि तुम हस्पताल में अपना पचास लाख तक का योगदान तो करो, हमारे हस्पताल के कमरे खाली न रहे, इनको मरीजों से भरो, चाहे जरूरत हो या न हो फिर भी भर्ती करो, इसमे तुम्हें भी अच्छा खासा कमीशन मिलेगा।”
डॉ समीर से अब रहा न गया और बोला, “सर! मैंने पूरी मेहनत, लगन और ईमानदारी से चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई की है, जिसमे मुझे गोल्ड मेडल भी मिले हैं और एक चिकत्सक के नाते मुझे मरीजों को अच्छे से अच्छी चिकित्सा देकर स्वस्थ करना है और स्वस्थ रहने के लिए परामर्श देना है, जिसमे नींबू पानी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो मैं उनको अपने खाने का अभिन्न अंग बनाने का परामर्श देता हूँ, मेरे कई मरीजों पर तो इसका चमत्कारिक असर हुआ है, वे जो बार बार बीमार होते थे, बीमार होने बंद हो गए, स्वस्थ रहने लगे, खुश रहने लगे हैं और मेरा एक चिकित्सक के नाते यही धर्म भी है कि मैं बीमार को स्वस्थ करूँ और स्वस्थ को बीमार न होने दूँ।”
डॉ समीर सोचने लगे उस जूस वाले नरेंद्र के बारे में, जब वह उसको खाना खाने के बाद जबर्दस्ती नींबू पानी पिलाया करता था। नरेंद्र का डॉ समीर से खास लगाव था और डॉ समीर भी नरेंद्र को काफी मानते थे क्योंकि नरेंद्र ने दिल्ली विश्वविध्यालय से बी कॉम करने के बाद भी अपना काम करना उत्तम समझा। नरेंद्र हमेशा दो गिलास नींबू पानी बनाता, एक मुझे पिलाता और दूसरा खुद पीता। शुरू शुरू में तो मुझे थोड़ी मुश्किल हुई लेकिन बाद में अच्छा लगने लगा और हाँ, इसका प्रभाव मैंने तब देखा जब पूरे हॉस्टल में वाइरल बुखार का प्रकोप हुआ और कोई भी इससे बच नहीं पाया लेकिन मुझे और नरेंद्र को बुखार छू भी न सका। तब मैंने जाना कि चिकत्सा की पढ़ाई के साथ साथ नरेंद्र ने मुझे स्वस्थ रहने का एक सूत्र दे दिया है जिसको मैं अपने मरीजों पर भी प्रयोग करता हूँ।
चेयरमैन गुप्ताजी बोले, “अरे डॉक्टर, तू तो जहर हैं हमारे हस्पताल के लिए, तेरे जैसे और हो गए तो लोगों को बीमारी होनी बंद हो जाएगी और हम सब इस हस्पताल में बैठकर मख्खी मारेंगे। तू मेरी बात मान ले, ज्यादा से ज्यादा मरीजों को भर्ती कर और हस्पताल के खाली पड़े कमरे भर।”
समीर बोला, “सर! मुझे क्षमा करना, अगर मैंने कमरे ही भरने होते तो, इतनी मेहनत क्यो करता, चिकित्सक क्यों बनता, फिर तो थोड़ा सा पढ़ कर नई दिल्ली स्टेशन के बाहर खड़ा होकर पहाड़ गंज के होटलों के कमरे भरता और कमीशन बनाता।”
“सर! मुझे माफ करना, यह काम मुझसे न हो पाएगा, यह रहा मेरा त्याग पत्र और मैं जा रहा हूँ वहाँ, जहां जाकर मैं बीमारों की बीमारी का इलाज़ कर सकूँ, न कि उनकी लाचारी का फायदा उठाऊँ।”