गार्गी एवं याज्ञवल्क्य संवाद
आशीष कुमार त्रिवेदी
वैदिक सभ्यता में जहाँ कई ज्ञानी पुरुषों ने जन्म लिया वहीं अनेक विदुषियां भी हुई हैं। इन विदुषियों में ब्रह्मवादिनी गार्गी का नाम अग्रणी है।
गार्गी का जन्म गर्ग ऋषि के वंश मे वचक्नु नामक ऋषि के घर हुआ था। इसी कारण उसका नाम वचक्नवी गार्गी पड़ा। बहुत छोटी उम्र से ही गार्गी का रुझान वैदिक ग्रंथों में था। वह बहुत सा समय इन ग्रंथों के अध्ययन में व्यतीत करती थी। अतः आध्यात्मिक विषय में उसका ज्ञान उच्चकोटि का था। विद्वानों की सभा में उसका विशेष आदर था। इन सभाओं में वह बड़े बड़े विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ कर अपना लोहा मनवाती थी।
राजा जनक जिन्हें राजर्षि कहा जाता है अक्सर ही ऐसी सभाएं आयोजित करते थे। जिनमें बड़े बड़े विद्वान विभिन्न विषयों पर वाद विवाद करते थे। इनमें गार्गी का प्रमुख स्थान होता था।
एक बार राजा जनक ने सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी का चुनाव करने के लिए एक शास्त्रार्थ सभा का आयोजन किया। उन्होंने शास्त्रार्थ विजेता को सोने की मुहरें जड़ित 1000 गायेम को दान में देने की घोषणा की। शर्त के अनुसार जो भी शास्त्रार्थ के लिए पधारे हैं उनमें से जो भी श्रेष्ठ ज्ञानी हो वह इन गायों को ले जा सकता था। ऋषि याज्ञवल्क्य उस सभा में उपस्थित थे। उन्होंने अति आत्मविश्वास से भरकर अपने शिष्यों को आदेश देते हुए कहा "हे शिष्यों इन गायों को हमारे आश्रम की ओर हांक कर ले चलो।" उस सभा में बड़े बड़े ज्ञानी थे। उन्हें याज्ञवल्क्य का यह आचरण अच्छा नहीं लगा। उनमें से पाँच ऋषि आगे ईए और याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर देकर उन्हें परास्त कर दिया। इसके बाद और ज्ञानी सामने आए किंतु याज्ञवल्क्य से पराजित हो गए।
अंत में वाचाक्नवी गार्गी शास्त्रार्थ के लिए आगे आई। गार्गी और याज्ञवल्क्य के बीच हुए शास्त्रार्थ का वर्णन 'बृहदारण्यक उपनिषद' में मिलता है।
गार्गी ने याज्ञवल्क्य से कहा "ऋषिवर गायों को ले जाने के लिए आपको कुछ प्रश्नों का उत्तर देना होगा। क्या मैं आपसे प्रश्न पूंछ सकती हूँ।"
याज्ञवल्क्य ने अनुमति दे दी।
गार्गी ने प्रश्न किया "ऋषिवर जल एक ऐसा तत्व है जिसमें सब कुछ घुल मिल जाता है। यह जल किसमें जाकर मिलता है।"
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया "जल वायु में मिल जाता है।"
गार्गी ने पूंछा "वायु किसमें जाकर मिलती है।"
"वायु अंतरिक्ष में मिलती है।" याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया।
"ऋषिवर अंतरिक्ष किसमें समाहित होता है।"
"हे गार्गी अंतरिक्ष आदित्य लोक में समाहित होता है।"
"ऋषिवर आदित्य लोक किससे ओतप्रोत है।"
"गार्गी, वह चंद्रलोक से ओतप्रोत है।"
इस प्रकार गार्गी ऋषि याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में बदल देती। इस प्रकार प्रश्नों की लड़ी नक्षत्र लोक, इंद्र लोक, देव लोक से होती हुई ब्रह्मलोक तक जा पहुँची। गार्गी ने फिर पूंछा "ऋषिवर ब्रह्मलोक किससे ओतप्रोत है।"
उसके इस प्रश्न पर ऋषि याज्ञवल्क्य ने उत्तेजित होकर कहा "हे गार्गी इतने अधिक प्रश्न पूँछने वाले का मस्तक फट जाता है।"
गार्गी ने याज्ञवल्क्य के क्रोध पर कोई प्रतिक्रया नहीं दी। वह शांत रही। उसने विनम्रता पूर्वक कहा "ऋषिवर जिस प्रकार काशी या अयोध्या का राजा अपने दो अचूक बाणों को धनुष पर चढ़ाकर अपने दुश्मन पर लक्ष्य साधता है, वैसे ही मैं आपसे दो प्रश्न पूंछने की अनुमति चाहती हूँ।"
याज्ञयवल्क्य ने कहा "पूंछो गार्गी।"
गार्गी ने प्रश्न किया "स्वर्गलोक से ऊपर, धरती के नीचे तथा इन दोनों के मध्य जो कुछ भी है वह किससे ओतप्रोत है। भूतकाल और भविष्यकाल किस से ओतप्रोत हैं।"
गार्गी के दोनों प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण थे। दोनों ही के ब्रह्म की व्याख्या करने में सहायक थे।
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया "एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी। अर्थात सब कुछ उस तत्व में समाया है जो अक्षर यानी कि अविनाशी तत्व है। जिसके प्रशासन में सब कुछ है। यह अति सूक्ष्म है। यह तत्व ही सभी चर अचर में समाहित है। यह स्वप्रकाशित है।समस्त भौतिक जगत इसी के प्रकाश से दृष्टिगोचर है। यह आकार हीन, गंध हीन है, रूप हीन है। सभी आकार, रूप, व गंध अंततः इसी में मिल जाते हैं। यही तत्व सबका आधार है। यह अनादि है अनंत है। समय की गति से परे। इस परम तत्व को ब्रह्म कहते हैं।"
याज्ञवल्क्य का उत्तर सुन कर गार्गी ने सिर झुका कर उनका अभिनंदन किया। गार्गी पराजित हो कर भी जीत गई थी। वह परम विदुषी थी। वह जानती थी कि सभा में उपस्थित विद्वानों में यदि कोई ब्रह्म की सही व्याख्या कर सकता है तो वह ऋषि याज्ञवल्क्य ही हैं। अतः वह याज्ञवल्क्य को अपने प्रश्नों के माध्यम से उस बिंदु पर ले आई जहाँ ब्रह्म की सही व्याख्या हो सके।
गार्गी तथा याज्ञवल्क्य संवाद ब्रह्म को समझने में हमारी सहायता करता है। सभी वस्तुएं ब्रह्म से उत्पन्न होकर उसी में लीन हो जाती हैं। वेदों में इसी परम तत्व ब्रह्म की महिमा का बखान किया गया है। एक साधारण मानव के लिए ब्रह्म को समझ पाना आसान नहीं है। अतः गार्गी ने प्रश्नोत्तर के माध्यम से इसे समझने तथा अन्य उपस्थित जनों को समझाने का प्रयास किया। यह संवाद उसकी बुद्धिमता का प्रमाण है। उसका याज्ञवल्क्य जैसे महाज्ञानी के साथ शास्त्रार्थ करने का उद्देश्य अपनी श्रेष्ठता साबित करना नहीं था। वह इस संवाद के माध्यम से इस विषय की गहराई को समझना चाहती थी।
यह संवाद ना सिर्फ ब्रह्म की सही व्याख्या करता है बल्कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों को प्राप्त सम्मान को भी दर्शाता है। एक स्त्री को आध्यात्मिक विषयों पर तर्क करने का अधिकार था। उन्हें पुरुषों से कम नहीं समझा जाता था। अन्यथा उसे याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी के साथ शास्त्रार्थ करने की अनुमति ना मिलती। लेकिन वहाँ उस्थित किसी ने भी उसके स्त्री होने के कारण कोई आपत्ति नहीं जताई। अर्थात किसी ने भी यह नहीं सोंचा कि स्त्री केवल सांसारिक विषयों को ही समध सकती है गूढ़ आध्यात्मिक विषयों को नहीं।
गार्गी एक ब्रह्मवादिनी थी। अर्थात वह स्त्री जिसे वेदों का ज्ञान हो। अतः स्त्रियों को भी वेद पठन का अधिकार था।
गार्गी भारतीय समाज की उस सोंच को भी झुठलाती है कि स्त्री का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है। उसे जीवन के हर काल में पुरुष के संरक्षण की आवश्यक्ता पड़ती है। गार्गी ब्रह्मचारिणी थी।