Blue Whel in Hindi Moral Stories by Dr Lalit Singh Rajpurohit books and stories PDF | ब्‍लू व्‍हेल

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ब्‍लू व्‍हेल

ब्‍लू व्‍हेल

मॉं... मॉं... मुझे बचा लों… यह मछली मुझे निगल जाएगी… मॉंSSS...। मयंक समुद्र के पानी में हाथ-पॉंव मारता हुआ किनारे की तरफ तैरता हुआ अपनी मॉं को पुकार रहा था। मेनका किनारे पर बेबस खड़ी जोर-जोर से चिल्‍लाते हुए मयंक की तर‍फ आगे बढ़ी “कोई मेरे बच्‍चे को बचाओsss… कोई मदद करोsss… प्‍लीज सेव हिम…!’’ एक बड़ी सी व्‍हेल मछली मयंक की तरफ आगे बढ़ रही थी। दैत्‍याकार ब्‍लू व्‍हेल मछली जैसे-जैसे मयंक के नज़दीक आ रही थी, उसका आकार और बड़ा होता जा रहा था। इतना बड़ा कि छोटी नावें तो उसके सामने खिलोनों की तरह नज़र आ रही थीं। मयंक तेजी से तैरता हुआ लगभग किनारे तक पहुँच चुका था। मेनका उथले पानी में संघर्ष करती हुई अपने बच्‍चे को बचाने लिए जद्दोजहद कर रही थी। मयंक ने पानी में अपनी मॉं को कस कर पकड़ लिया किंतु ब्‍लू व्‍हेल उसको निगलने के लिए जैसे आमादा थी। भयंकर बदबूदार दैत्‍य जैसी ब्‍लू व्‍हेल। जैसे-जैसे ब्‍लू व्‍हेल पास आई, पानी की लहरों में हलचल इतनी तेज हो गई जैसे सुनामी आ रही हो, मौत की सुनामी। भूखी ब्‍लू व्‍हेल मयंक को निगलने के लिए झपटी .....।

बचाओsss… कोई मेरे बच्‍चे को बचाओsss… कोई मदद करोsss… प्‍लीज सेव हिम… प्‍लीज सेव हिम...। मेनका जोर से चिल्‍लाई।

क्‍या हुआ मेनका... कोई बुरा सपना तो नहीं देख रही हो? उठों.. उठों न... तबीयत तो ठीक है? मेनका.. मेनका...। शेखर ने अपनी पत्‍नी को झिंझोड़ते हुए कहा।

वो ब्‍लू व्‍हेल.... मयंक..... मयंक कहाँ है। मेनका हड़बड़ाकर नींद से उठी और शेखर की गिरेबान पकड़कर बदहवासी की हालत में बोली।

कौन... कौनसी ब्‍लू व्‍हेल...? शायद तुम कोई बुरा सपना देख रही थी मेनका। मयंक ठीक है वह तो अपने कमरे में सो रहा है। शांत हो जाओ... सपना था और कुछ नहीं। शेखर ने मेनका को गले से लगाकर उसकी पीठ को हलके-हलके थपथपाते हुए कहा।

भगवान का शुक्र है, सपना ही था। शेखर की बाहों से छूटते हुए मेनका ने कहा। कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा गई। मेनका बिस्‍तर से नीचे उतरी और लाइट का स्विच ऑन किया। घड़ी की तरफ देखा तो रात के तीन बज रहे थे।

लो पानी पियो। शेखर ने मेनका को पानी से भरी हुई गिलास थमाते हुए कहा।

मैं अभी आई..। कहकर मेनका ने कमरे का दरवाजा खोला और तेजी से बाहर निकल गई।

धम… धम… धम.. सीढ़ियों की ओर से आती हुई आवाज़ से शेखर समझ गया कि मेनका शायद मयंक को देखने के लिए उसके कमरे में गई है।

तुम सोये नहीं अभी तक....? मेनका ने मयंक के बैडरूम का दरवाजा खोलते हुए कहा।

नहीं मॉं... नींद नहीं आ रही थी... इसलिए... मोबाइल से टाइम पास कर रहा था। मयंक ने मोबाइल को तकिये के नीचे छुपाते हुए कहा।

हम्‍म्‍म्‍म.... शाम के वक्‍त तुम सो गए थे न शायद इसलिए नींद नहीं आ रही। दिखाओ तो जरा, मेरा राजा बेटा मोबाइल में क्‍या देख रहा है..? हूँsss... फेसबुक..... राइट..? मेनका ने तकिये के नीचे से मोबाइल निकालते हुए कहा।

क..क...कुछ नहीं मॉं.. मैं..बस..यूँही... सर्फिंग कर रहा था। मयंक ने थोड़ा हिचकते हुए कहा।

ये क्‍या..? तुम यू ट्यूब पर ये सब देखते हो? यू ट्यूब पर रुकी हुई मूवी को प्‍ले करते हुए मेनका ने पूछा। मेनका के माथे पर सलवटें पड़ने लगीं। चेहरे पर चिंता का भाव स्‍पष्‍ट नज़र आ रहा था।

तुम भी न मॉं... कुछ भी तो नहीं है...। मयंक का चेहरा पीला पड़ गया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।

क्‍या कुछ नहीं...? इतनी रात को कौन डरावनी फिल्‍में देखता है भला? पूरे पागल हो... शक्‍ल से तो पापा पर गए ही हो, लगता है कि तुम्‍हारी रुचियॉं भी पापा जैसी ही हैं। जैसा बाप वैसा बेटा.. हूँह... बंद करो मोबाइल... चलो सो जाओ। मेनका ने मोबाइल ऑफ कर मोबाइल को स्‍टडी टेबल पर रखते हुए कहा।

गुडनाइट मॉम। मयंक ने मुस्‍कुराकर कहा।

गुडनाइट बेटा....। कमरे की लाइट ऑफ कर दरवाजे को धीरे से बंद करते हुए मेनका ने कहा। मेनका जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तो दु:स्वप्न की सारी बातें एक-एककर ऑंखों के सामने फिर से नाचने लगीं। मन ही मन में ईश्‍वर को धन्‍यवाद देती हुई जब वापस अपने कमरे में पहुँची तो देखा शेखर तो घोड़े बेचकर सो रहा है। मेनका भी शेखर की बगल में बिस्‍तर पर लेट गई। ईश्‍वर को धन्‍यवाद देते-देते कब ऑंख लग गई पता ही नहीं चला।

मेनका पिछले पंद्रह वर्षों से बेंगलूरु अपने पति शेखर के साथ रह रही हैं। मायका और ससुराल दोनों ही राजस्‍थान में हैं। शादी के बाद अगले कुछ महीनों बाद वह अपने पति शेखर के साथ बेंगलूरु आ गई। शेखर एक आईटी कंपनी में काम करता है। प्रारंभ के कुछ वर्षों में तो किराए के घर में रहें, लेकिन मयंक अपने साथ अच्‍छा भाग्‍य लेकर पैदा हुआ। उसके जन्‍म के बाद शेखर की पदोन्नति हो गई, सैलरी बढ़ी तो उन्‍होंने अपना खुद का घर भी खरीद लिया। बेंगलूरु जैसे बड़े शहर में अपना खुद का घर खरीदना सपनों को हकीकत में बदलना जैसा है। देखते ही देखते, समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। मयंक अब 14 वर्ष का हो गया है और बेंगलूरु के नामी गिरामी कान्वेंट स्‍कूल की 9वीं कक्षा में पढ़ता है।

पीSSSs…. पीSSSs…… स्‍कूल बस के ड्राइवर ने मयंक के घर के आगे बस रोककर हार्न बजाया। मॉं... स्‍कूल बस आ गई है...... मैं जा रहा हूँ। मयंक ने स्‍कूल-बैग कमर पर लटकाया और मेन-डोर की तरफ भागते हुए बोला।

बेटा तुमने नाश्‍ता भी नहीं किया.... कम से कम दूध तो पीकर जाओ... मेनका दूध की गिलास मयंक की तरफ लेकर आते हुए बोली। सुबह-सुबह टिफिन, नाश्ता बनाने में मेनका हमेशा की तरह आज भी व्‍यस्‍त थी। मयंक के पापा शेखर डाइनिंग टेबल पर सुबह का नाश्‍ता ले रहे थे। आज का अंग्रेजी अखबार उनके सामने खुला पड़ा था, पर शेखर का पूरा ध्‍यान अपने मोबाइल की फेसबुक वॉल पर था।

नहीं मॉं... मैं दूध नहीं पियूँगा... आपने बैग में टिफिन और वाटर बोतल तो रख दिया है न? मयंक ने मेन-डोर खोलकर दहलीज़ से बाहर कदम रखते हुए पूछा।

जब तक मंयका मेन-डोर तक पहुँची। मयंक वहॉं नहीं था। मिट्टी पर स्‍कूल बस के पहियों के निशान, हवा में गाड़ियों के बंपर से निकले धुएं की गंध ही शेष थीं। मेनका ने मेन-डोर बंद किया और लौटकर अपने पति के पास डाइनिंग टेबल पर बैठ गई।

सुनो.... कल रात को तीन बजे तक मयंक डरावनी फिल्‍म देख रहा था। आपने उसे जन्‍मदिन पर मोबाइल न दिया होता तो अच्‍छा होता। अपने पल्‍लु से चेहरे का पसीना पौंछते हुए मेनका बोली।

शायद तुम सही कह रही हो। आज का अखबार पढ़ा तुमने? कल पंचकूला में दसवीं कक्षा में पढ़ रहे एक लड़के ने आत्‍महत्‍या कर ली। शक है कि शायद वह अपने मोबाइल में ब्‍लू व्‍हेल गेम खेल रहा था। गेम पूरा करने के लिए ट्रेन के आगे आकर मर गया। शेखर की निगाहें अभी भी मोबाइल में फेसबुक की वॉल पर ही थीं।

हाय राम...। बेचारी मॉं पर क्‍या बीती होगी...! पुलिस ऐसे गेम बनाने वाले दरिंदे एडमिनिस्ट्रेटरों को पकड़ती क्‍यों नहीं? मेनका के चेहरे पर करुणा के भाव थे। एक बालक की आत्‍महत्‍या की बात सुनकर वह बहुत व्‍यथित हो गई थी।

दरसल मेनका... इस गेम को ऑपरेट करने वाले एडमिनिस्ट्रेटर इतने शातिर होते हैं कि वे मोबाइल या टैब में कोई सबूत नहीं छोड़ते। मैंने समाचार में पढ़ा की गेम में अलग-अलग स्‍टेज होती हैं, गेम का एडमिनिस्ट्रेटर इन स्‍टेज को पूरा करने के लिए टास्‍क देते हैं। सभी टास्‍क 50 दिनों में पूरी करनी होती हैं। सुना है... गेम के अंत में वे एक वायरस की मदद से टास्क पूरा होते ही फोन से डाटा डिलीट कर देते हैं, इस कारण वे कभी पकड़ में ही नहीं आते। शेखर ने चाय की चुस्कियॉं लेते हुए कहा।

सुनो... आप थोड़ा मयंक पर ध्‍यान दों... आजकल वो थोड़ा बदला-बदला नज़र आ रहा है। स्‍कूल से आते ही अपने आप को कमरे में बंद कर लेता है। पूरा दिन मोबाइल में घुसा रहता है। मैंने बताया न कल रात को तो तीन बजे तक डरावनी फिल्‍में देख रहा था। कहीं वो भी कोई टास्‍क-वास्‍क के चक्‍कर में तो नहीं पड़ गया? मेनका ने अपनी चिंता प्रकट करते हुए शेखर से कहा। मेनका के माथे पर पड़ रहीं सलवटों को साफ देखा जा सकता था।

तुम औरते भी न.... बात का बतंगड़ बना देती हों। मुझे नहीं लगता हमारा मयंक ऐसे किसी गेम में शामिल होगा। फिर भी तुम्‍हें शक है तो आज शाम मैं उससे बात करता हूँ। अच्‍छा मुझे भी देर हो रही है... मैं ऑफिस के लिए निकलता हूँ। शेखर ने मेनका को आश्‍वस्‍त करते हुए कहा।

हूँ...। मेनका चुप रही उसने शेखर की बात पर हुंकारा भर दिया और जताया कि हॉं मैंने आपकी बात सुन ली । मेनका यही आदत थी जब वह उत्‍तर से संतुष्‍ट नहीं होती तो बस हुंकारा भर कर चुप हो जाती। शेखर को बात के बीच में हुंकारा बिल्कुल नहीं सुहाता। उसे लगता जब तक बात का प्रतिउत्‍तर न मिले तो हुंकारा भरने वाला व्‍यक्ति जैसे किसी कहानी सुनने का मजा लूट रहा है।

ट्रिनsss… ट्रिनsss.....ट्रिनsss...... दूसरी घंटी बजी। स्‍कूल की दूसरी घंटी बजते ही सभी बच्‍चे प्रार्थना मैदान से अपनी अपनी कक्षा मे जाने लगे। मयंक तेजी से चहलकदमी करते हुए अपनी कक्षा की ओर जा रहा था तभी पीछे से उसके कंधे पर सुरेश ने हाथ रखा।

सुन न... कहॉं भागा जा रहा इतना तेज.. पता कल रात क्‍या हुआ? सुरेश ने मयंक के कंधे पर पीछे से हाथ रखते हुए कहा।

क्‍या हुआ जल्‍दी बता पीरियड लगने वाला है। हिटलर मेम आती ही होगी। अपनी कक्षा में दाखिल होते हुए मयंक ने कहा।

कल मैं 28वीं स्‍टेज पर था। एडमिन ने मुझे हाथ की कलाई पर ब्‍ल्‍यू व्‍हेल बनाने को कहा... मैंने मार्कर पेन से बनाकर फोटों खींची और गेम के एडमिन को भेज दी। सुरेश ने अपनी कलाई पर लाल रंग के ब्‍लू व्‍हेल के चित्र को दिखाते हुए कहा।

फिर एडमिन ने अगली टास्‍क दी तुम्‍हें। मयंक ने उत्‍सुकतापूवर्क पूछा ।

नहीं यार... बोला फिर से टास्‍क करों। कलाई पर ब्‍लेड से काट कर ब्‍लू व्‍हेल का चित्र बनाने को कह रहा था। साइको है यार वो। हा… हा… हा... मैंने गेम ही डिलिट मार दिया। सुरेश ने खिलखिलाकर हसंते हुए कहा।

चल फट्टू कहीं के....तुम जैसों के लिए ये गेम बना ही नहीं। कल रात पता है मैंने आधी रात को डरावनी फिल्‍म देखी, वो तो मम्‍मी बीच में आ गई वरना टास्‍क पूरा हो जाता। मयंक ने शेखी बघारते हुए कहा।

हाँ भई फट्टू ही सही। लो हिटलर मेडम आ गई, अब शुरू होगी अंग्रेजी में गिटर-पिटर। सुरेश ने मुँह बनाते हुए कहा। मयंक को हँसी आ गई। वह अपनी हँसी छुपाते हुए बैग से अंग्रेजी की किताब निकालने लगा।

***

पीSSSs…. पीSSSs…… स्‍कूल बस के ड्राइवर ने मयंक के घर के आगे बस रोककर हार्न बजाया। मेनका ने दौड़कर मेन-डोर खोला। देखा तो मयंक थका-हारा घर की तरफ धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा है।

आ गया मेरा राजा बेटा। क्‍या बात है बेटा....आज बहुत थके-थके लग रहो हो। आओं मैं टाई खोलने में तुम्‍हारी मदद कर दूँ। मेनका ने अपने बेटे को गले से लगाया और मयंक की नेकटाई खोलने लगी।

मत पूछो मॉं... आज पूरा दिन पढ़ाई.. पढ़ाई बस पढ़ाई। ये स्‍कूल वाले कुछ ऐसा क्‍यों नहीं करते कि पढ़ाई एक खेल बन जाए। फिर मजा ही मजा। मयंक ने शिकायतों का पिटारा खोलते हुए कहा।

हा.. हा.. हा.. ऐसा गुरुकुलों में होता था मेरे बच्‍चे। मेनका ने हँसते हुए कहा। उसने मयंक की नेकटाई खोल कर उसके हाथ अपने हाथों में भरते हुए कहा।

मयंक... ये हाथ पर चौट कब लगी, दिखाओ तो जरा। मेनका ने मयंक की कलाई पर चोट का निशान देखकर कहा।

कुछ नहीं मॉं स्‍कूल में गिर गया था। मयंक ने मॉं के हाथ से अपना हाथ झटककर चोट छिपाते हुए कहा।

सच बताओ.... यह तो ऐसा लग रहा है जैसे ब्‍लेड से काट कर तुमने बी अक्षर लिखा है? मेनका ने ऊँची आवाज़ में मयंक से पूछा।

अरे नहीं मॉं... बताया न खेलते वक्‍त लग गई। मयंक ने बस्‍ता उठाया और अपने कमरे की तरफ निकल गया। जब मयंक सीढ़ियाँ चढ़ रहा था तो मेनका की नजरे मयंक की पीठ पर गढ़ी हुई थीं।

धम… धम… धम.. सीढ़ियों की ओर से आती हुई आवाज़ के साथ मयंक अपने कमरे में चला गया और मेनका की नजरों से ओझल हो गया। कमरे में जाते ही अपनी स्‍टडी टेबल के रैक से मोबाइल निकालकर स्‍वीचऑन किया और मोबाइल हाथ में लेकर बिस्‍तर पर, पेट के बल लेट गया।

बीप.. बीप.. बीप... मोबाइल ऑन होते ही नोटिफिकेशन की बरसात होने लगीं। इनमें से कुछ नोटिफिकेशन गेम के थे। मयंक ने गेम ऑन किया। गेम की नोटिफिकेशन विंडों पर एडमिन के मैसेज थे। मयंक ने मैसेज खोल कर पढ़ने शुरु किए।

आपने कल रात स्‍टेज पूरी नहीं की, परिणामस्‍वरुप एडमिन आपको सजा देने का मन बना रहे हैं। कल रात आपको जो डरावनी फिल्‍म देखने का टास्‍क दिया गया, उसका क्‍या हुआ? जल्‍द ही प्रतिउत्‍तर दें। लाल अक्षरों में गेम के एडमिन की ओर से मयंक को मैसेज था।

हॉं.. कल टास्‍क किया था... पर बीच में ही मॉम आ गई, इसलिए पूरा नहीं हो पाया। एडमिन तुम्‍हें मेरा परसो के टास्‍क का स्‍क्रीशॉट मिला? मयंक ने मैसेज का रिप्‍लाई दिया

दूसरी ओर से कोई रिप्‍लाई नहीं आया। मयंक ने थोड़ी देर तक इंतजार किया। फिर उठा और अपने कपड़े बदलने लगा।

बीप..बीप..बीप... की आवाज़ के साथ ही मोबाइल में वाइब्रेट हुआ। एडमिन की ओर से मैसेज था। हाँ.. मिला था लेकिन आपने केवल बी शब्‍द ही उकेरा था, जबकि आपका टास्‍क था ब्‍लेड से हाथ पर BLUE शब्‍द लिखने का! यह टास्‍क भी आपने पूरा नहीं किया। क्‍या आप जानते हैं एडमिन आपको इससे भी कठिन टास्‍क दे सकते हैं।

हॉं… मैं लिख नहीं पाया… आज सुबह मम्‍मी ने देखा तो मुझ बहुत डांट पड़ीं। मयंक ने जवाब दिया।

बहाना नहीं चलेगा। गेम में आगे बढ़ना है तो आपको फिर से यह टास्‍क करना होगा। यह टास्‍क पूरा होने के बाद ही आपको नया टास्‍क मिलेगा। कायर मत बनों ... या तो मेरी बात सुनो या फिर मम्‍मी की। इस बार एडमिन ने बोल्‍ड अक्षरों में रिप्‍लाई दिया।

हूँह.. तुम मुझे उकसा रहे हो। मयंक ने झुंझलाहट में मैसेज का रिप्‍लाई कर दिया।

आज रात फिर से डरावनी फिल्‍म पूरी देखों और फिल्‍म देखते समय जब रात की तीन बज जाए तो मोबाइल का स्‍क्रीनशॉट लो, जिसमें टाइम और डेट मेंशन होनी चाहिए। अगली टास्‍क में आपको अपनी छत की मुंडेर पर दस कदम बिना कोई सहारा लिए चलना होगा।

और मैं गिर गया तो ? मयंक ने चिंता प्रकट करते हुए कहा।

तो खेल खत्‍म....। अब जब तक टास्‍क पूरा नहीं हो जाता मैसेज मत करना । गुडबाय। एडमिन की तरफ से यह उस दिन का आखरी मैसेज था। थका हुआ मयंक सो गया, उस दिन वह पूरे दिन कमरे में ही रहा। शाम को शेखर ने कई बार आवाज़ दी पर वह नीचे नही आया। थक हार कर शेखर ने भी नीचे से आवाज़ लगाना बंद कर दिया।

नॉक नॉक नॉक.... मेनका ने मयंक के कमरे का दरवाजा खटखटाया। क्‍या कर रहे हो.. दरवाजा बंद करके? चलो नीचे आ जाओ.. तुम्‍हारा डिनर तैयार है।

आया मॉं ... मयंक की आवाज़ कमरे के भीतर गूँजी।

धम… धम… धम.. सीढ़ियों से नीचे उतरा और सीधे डाइनिंग टेबल पर अपने पापा के सामने जाकर बैठ गया।

बेटा जाओ, पहले हाथ धोकर आओ। शेखर ने मयंक से कहा।

जी पापा। कहते हुए मयंक उठा और अपने हाथ धोने चला गया। जब तक वापस लौट कर आया, मम्‍मी ने उसकी प्‍लेट में खाना परोस दिया।

क्‍या बात है आज मेरा राजा बेटा थोड़ा उदास है। पूरे दिन भर कमरे में ही था... बाहर खेलने भी नहीं गया? मेनका ने मयंक की थाली में रोटी परोसते हुए पूछा।

कुछ नहीं मॉं... बस कल रात सो नहीं पाया न, इसलिए नींद आ गई... फिर पढ़ने बैठ गया...और कुछ भी तो नहीं। मयंक ने बनावटी मुस्‍कुराहट के साथ जवाब दिया।

मयंक तुम ब्‍लू व्‍हेल के बारे में जानते हो ? शेखर ने मयंक के सामने प्रश्‍न उछाला।

हाँ पापा... सबसे बड़ी स्‍तनधारी जीव ब्‍लू व्‍हेल ही तो है। मैंने उसके बारे में पढ़ा है, बस कभी देखा नहीं। मयंक ने कहा।

हम्‍म्‍म.. जानते हो आजकल एक गेम चल रहा है जिसका नाम है ब्‍लू व्‍हेल... तुम्‍हें पता है बेटा इस गेम का नाम ब्‍लू व्‍हेल क्‍यों रखा है?

नहीं तो.. मयंक ने अपना सर दायें-बायें हिलाते हुए कहा।

कभी-कभी ब्‍लू व्‍हेल समुद्री किनारों पर आकर अपने प्राण त्‍याग देती है। इसी तरह जब इस गेम की स्‍टेज खत्‍म हो जाती है यानी कि खेलने वाला जब गेम के किनारे पर आ जाता है तो खेलने वाले को अपने प्राण त्‍यागने के लिए कहा जाता है, यह गेम का ही एक भाग होता है और खेलने वाला खेल जीतने की लालसा में बिना आगे-पीछे सोचे आत्‍महत्‍या जैसे कदम उठा लेता है।

औह अच्‍छा.....। मयंक की आँखें आश्‍चर्य से फैल कर चोड़ी हो गईं।

खेल को बनाने वाले का नाम फिलिप था। अब वह रूस की जेल में है, वह सनकी था और उसकी सनक के चलते ही उसने यह ऑनलाइन गेम बनाया... जिसमें खेलने वाले को अंत में अपनी जीवनलीला समाप्‍त करना होता है। बेटा इंटरनेट पर ऐसे कई गुट सक्रीय हैं जो बच्चों को इस खेल में फंसाते हैं।

हूँ... मैं समझ गया पापा। मयंक उठा और खाना खाने के बाद वाशबेसिन में हाथ धोने चला गया।

क्‍या तुम्‍हें लगता है कि वह समझ गया होगा। मेनका ने अपने पति शेखर से पूछा।

नहीं... मुझे नहीं लगता। क्‍योंकि वह मेरी बातों में पूरा ध्‍यान नहीं दे रहा था। जैसे उसे जल्‍दी थी वापस कमरे जाने की। शेखर ने खीजते हुए कहा।

बच्‍चों के मनोविज्ञान को समझना बेहद मुश्किल है। मेनका ने प्‍लेटे उठाते हुए कहा।

हाँ..... सच ही तो है। सभी लोग अपने-अपने जीवन में ठोकरें खाकर ही सीखते हैं। मैं और तुम... हम सभी ने जीवन में ठोकरें खाकर ही सीखा है। आजकल उपदेश देने का जमाना नहीं रहा। स्‍पेशली बच्‍चें तो बिलकुल भी ज्ञान लेना नहीं चाहते उनके लिए यह बोरिंग सबजेक्‍ट है। वह दुनिया के सारे अच्‍छे-बुरे काम स्‍वयं करके सीखना चाहते हैं। वे खुद गिरकर उठना चाहते हैं। वे खुद तय करना चाहते हैं कि क्‍या अच्‍छा है और क्‍या बुरा..! वे अपने बूते पर सब काम करना चाहते हैं।

मगर मुझे मयंक की चिंता है। उसके हाव-भाव कुछ ठीक नहीं लग रहें। मेनका ने कहा। मेनका के माथे पर सलवटें उभरने लगीं।

तुम नाहक ही चिंता कर रही हों। मयंक अब बड़ा हो गया है..... उसे अच्‍छे-बुरे की समझ है और मैंने जो अभी इतना ज्ञान दिया है, मुझे पूरा विश्‍वास है कि उसका कुछ न कुछ तो असर होगा। शेखर ने हाथ धोकर तौलिए से पौंछते हुए कहा।

मम्‍मी में कमरे में जा रहा हूँ .... गुडनाइट । धड़... धड़... धड़... सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मयंक ने कहा।

गुड नाइट बेटा । पापा की आवाज़ नीचे से ऊपर तक पहुँचती उससे पहले मयंक अपने कमरे में पहुँच गया। मयंक ने कमरे का दरवाजा बंद किया और अंग्रेजी की किताब उठाकर पढ़ने लगा। कल हिटलर मेडम टेस्‍ट लेगी वह मन ही मन बुदबुदाने लगा।

बीप..बीप..बीप... की आवाज़ के साथ गेम एडमिन का मैसेज आया “बी रेडी फॉर टास्‍क”। मयंक ने मैसेज पढ़ा पर कोई जबाब नहीं दिया। मयंक ने घड़ी पर निगाह डाली तो रात के एक बज रहे थे। उसने किताब बंद की और बिस्‍तर पर पॉंव पसार कर लेट गया।

नींद नहीं आ रही थी। उधेड़बुन में था कि क्‍या करें क्‍या न करें। पापा की सुने या फिर एडमिन की। वह गाने सुनने लगा। बस लास्‍ट टास्‍क इसके बाद नहीं । उसने मुझे कायर कहा... मैं कायर नहीं यह साबित कर दूँगा... उसके बाद गेम डिलिट कर दूँगा। हॉं...हॉं... डिलिट ही कर दूँगा। बहुत देर तक वह अपने आप से लड़ता रहा।

रात के दो बज रहे थे। मयंक अपनी छत पर गया। डर उस पर हावी था, पर वह अपने आप को कायर नहीं कहलवाना चाहता था। छत के चारों ओर ईंटों की बनी हुई मुंडेर थी। एकदम पतली सी दीवार। उसने मुंडेर से झांककर नीचे देखा। तीस फुट की ऊँचाई से दीवार के सहारे खड़ी उसकी साइकिल बहुत छोटी दिखाई दे रही थी। उसने धीरे से एक पॉंव मुंडेर की दीवार पर रखा फिर धीरे-धीरे सावधानीपूवर्क दीवार पर चढ़ कर उकड़ू होकर बैठ गया। अपने अंदर साहस भरकर खड़े होने की कोशिश करने लगा। जब सीधा खड़ा हो गया तो बैलेंस बनाकर एक-एक पॉंव साधकर चलने लगा। अभी पहला ही कदम चला था कि जोर से आवाज़ आई धड़ाम...।

मयंक बेहोशी की हालत में था। माथे से खून बह रहा था। कुछ देर बाद होश आया। उसने अपने आपको संभाला और मुंडेर की दीवार से एक बार और नीचे की ओर देखा। दरअसल मयंक जब मुंडेर पर धीरे-धीरे चलने की कोशिश कर रहा था उस समय उसका बैलेंस बिगड़ गया और छत की तरफ गिर पड़ा। भगवान का शुक्र था कि वह ज़मीन की तरफ नहीं गिरा।

शुक्रिया भगवान। मयंक ने मन ही ईश्‍वर का शुक्रिया अदा किया।

बीप..बीप..बीप... की आवाज़ के साथ ही उसकी जेब में रखा मोबाइल वाइब्रेट हुआ। गेम एडमिन का नोटिफिकेशन बार में मैसेज था “टास्‍क स्‍टेटस प्‍लीज....।‘’

भाड़ मे जा.... मयंक ने मैसेज का रिप्‍लाई दिया और सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए गेम अनइंस्टॉल का ऑप्शन को ढूंढ़ने लगा।

लेखक

डॉ. ललित सिंह राजपुरोहित