Vah bhag raha tha in Hindi Short Stories by S. S. Husain books and stories PDF | वह भाग रहा था

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वह भाग रहा था

वह भाग रहा था

वह भाग रहा था. जान टेक कर भाग रहा था. उसके पीछे एक भीड़ थी, बहुत बड़ी और खतरनाक भीड़, जो उसका पीछा कर रही थी. भागने वाले के लिए वह भीड़ नहीं, उसकी मौत थी, जो इस ग़रज़ से उसके पीछे थी कि उसको धर-दबोचे और हमेशा-हमेशा के लिए उसका काम तमाम कर दे. भीड़ और उसके बीच ज़िन्दगी और मौत का फासला था. इस लिए वह जी-जान से भाग रहा था. उसकी कोशिश थी कि भीड़ के हाथ न आये और भीड़ की कोशिश थी के हाथ से जाने न पाये. यह चूहे-बिल्ली का खेल था, जो काफी देर और पूरे ज़ोर शोर से जारी था. दोनों ही, भागने वाला भी और भीड़ भी, गोकि दम-बेदम हो चुके थे, फिर भी दौड़ जारी थी. वह भाग रहा था और भीड़ उसका पीछा कर रही थी.

गोकि उसको सही से नहीं पता था कि भीड़ उसके पीछे इस तरह क्यों पड़ी है? उसने ऐसा कौन सा जुर्म या गुनाह किया है कि जिसकी ऐसी सजा दी जाए कि लोग हाथ धो कर उसकी जान के पीछे ही पड़ जाएँ. उसने कोई चोरी नहीं की, ठगी नहीं की, किसी का मालो-ज़र नहीं हड़पा, किसी का ख़ून या क़त्ल नहीं किया, किसी क़िस्म का कोई भी घिनौना अपराध भी नहीं किया. फिर यह भीड़ उसके साथ क्यों ऐसा बर्ताव कर रही है. यह उसकी समझ से परे था. यह बात अलग थी कि उसके विचार बहुत से मामलों में लोगों से नहीं मिलते थे.. वह नवीन विचारों का पोषक था और वह सामाजिक रूढ़ियो के विरुद्ध था. बहुत से लोग उसके इस नज़रिये को पसंद नहीं करते थे, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं था कि लोग इसलिए हाथ धो कर उसकी जान के पीछे पड़ जाएँ, लेकिन हुआ यही कि लोग उसकी जान को आ गए और जिसका नतीजा यह बीड थी, जो उसकी जान लेने पर उतारू थी और जिससे वह अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था.

पीछा करते-करते भीड़ ने देखा की अचानक भागने वाला एक से दो हो गया. एक इधर भागने लगा, दूसरा उधर भागने लगा. भीड़ ने अपनी आँखें मली, सोचा कहीं पीछा करते-करते उसकी आँखें पथरा तो नहीं गयीं, उन्हें कोई भ्रम तो नहीं हो गया, कि वह उन्हें एक का दो दिखाई देने लगा हो. अभी भीड़ इस उधेड़-बुन में पड़ी ही थी कि आखिर ये माजरा क्या है, कि भीड़ का नेता ज़ोर से चिल्लाया, "जादू, टोना, देखा जिस बात का डर था वही हुआ. मैं न कहता था कि यह आदमी जादूगर है, बहरूपिया है. यह तरह-तरह के रूप भर सकता है. तुम लोगों को मेरी बातों का यक़ीन नहीं था न. अब अपनी आँखों से खुद देख लो. ऐसा शख्स समाज के लिए कितना खतरनाक हो सकता है. इसका खात्मा बेहद ज़रूरी है. लिहाज़ा इसका पीछा करो, पकड़ो और ख़त्म करो. हाथ से जाने न पाये. " नेता भीड़ का जोश बढ़ा रहा था. साथ ही उसकी यह भी कोशिश थी कि भीड़ उसकी करिश्माई शख्सियत से मुतासिर न होने पाये. वह भीड़ के मिज़ाज से भरपूर वाक़िफ़ था. वह जानता था कि भीड़, भीड़ होती है, न जाने कब बदल जाए, उसका मिज़ाज तोला-माशा-रत्ती जैसा होता है. ज़रा सी चूक हुई नहीं कि पासा पलटा और भीड़ इधर से उधर. इस लिए वह भीड़ को सोचने का मौक़ा ही नहीं देना चाहता था. उसने भीड़ को भी दो हिस्सों में बट कर पीछा करने को कहा. भीड़ दो हिस्सों में बट कर उसका पीछा करने लगी. और फिर से वह भाग रहा था और भीड़ उसका पीछा कर रही थी

पीछा करते-करते भीड़ ने फिर देखा कि वह दो से चार हो गया. भीड़ एक बार फिर चकरायी, यह हो क्या रहा है. पहले एक से दो, और अब दो से चार. यह आदमी है या कोई बला. आखिर माजरा क्या है. भीड़ अभी इन अजीबो ग़रीब पैदा होने वाले सवालों से जूझ ही रही थी, कि नेता की आवाज़ फिर गूंजी, "इसके चक्कर में मत आना. यह बहुत बड़ा बहरूपिया है, यह सारा करिश्मा हमें फरेब देने के लिए है. इसके फरेब में मत आना, वरना यह हमें चकमा दे कर एक दो तीन हो जाएगा और बाद में हम सिर्फ हाथ ही मलते रह जाएंगे. भाइयों, इसके धोखे में मत आओ. यह चाहे जितने रूप भरे, चाहे जितने छल और परपंच करे, इसको छोड़ना नहीं, वरना जिंदिगी भर पछताओगे. लिहाज़ा इसका पीछा तब तक करते रहो, जब तक यह हाथ न आ जाए, और हम इस फ़ित्ने को हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म न करदें. "नेता ने भीड़ के दिमाग़ को बड़ी होशियारी से पलटा. भीड़ फिर सोचना छोड़, उसके पीछे भागने लगी और एक दूसरे का हौसला बढ़ाते हुए चिल्लाने लगी, "दौड़ो, पकड़ो, जादूगर, फरेबी बच कर न जाने पाए". लेकिन अब भीड़ में वह पहले जैसा जोशो-खरोश नहीं दिख रहा था. फिर भी वह भाग रहा था, जी-जान से भाग रहा था और भीड़ उसका पीछा कर रही थी.

लेकिन अब जो लोगों ने देखा, तो उनके ताज्जुब का ठिकाना नहीं रहा. अब तक उन्होंने देखा था कि वह एक से दो और दो से चार हुआ था, लेकिन अब जो हो रहा था उस पर यक़ीन कर पाना बहुत ही मुश्किल था. लेकिन यह सब चूँकि उनकी आँखों के सामने हो रहा था, इस लिए उसे झूठ भी कैसे कहा जा सकता था. भीड़ ने देखा कि अब वह शख्स बड़ी तेज़ी से अपनी तादाद बढ़ा रहा था और वह हर लम्हा अपनी तादाद दुगनी करता जा रहा था. जहाँ पहले एक से दो, दो से चार हुआ था, अब वह हर पल चार से आठ, आठ से सोलह, सोलह से बत्तीस और बत्तीस से चौसठ. यानि हर अगले पल उसकी तादाद पहले के मुक़ाबले दुगनी होती जा रही थी. और एक वक़्त ऐसा भी आया कि भीड़ ने देखा कि उसकी तादाद, उनके मुक़ाबले में कहीं ज़्यादा हो चुकी थी. लोग-बाग़ अवाक थे. ये कैसा करिश्माई शख्स है. ज़रूर इसमें कोई अंदरूनी ताक़त है. ये कोई मामूली आदमी तो हरगिज़ नहीं हो सकता. अब भीड़ पर नेता कि बातों का भी असर कम होता जा रहा था. बल्कि अब वो उसे ही शक की नज़रों से देख रहे थे. धीरे-धीरे उस आदमी का जादू भीड़ के सर चढ़ता दिखाई देने लगा था. फिर भी दौड़ अभी भी जारी थी. वह भाग रहा था और भीड़ उसका पीछा कर रही थी.

पीछा करते-करते भीड़ के नेता ने ग़ौर किया कि जैसे-जैसे भागने वाले कि तादाद बढ़ रही थी, वैसे-वैसे भीड़ में शामिल लोगों कि तादाद कम होती जा रही थी. नेता के लिए यह फ़िक्र कि बात थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि भीड़ में शामिल लोग कहाँ ग़ायब होते जा रहे थे. लेकिन हकीकत यही थी कि उसकी तादाद लम्हा-ब-लम्हा बढ़ती जा रही थी और इसकी तादाद में पल-दर-पल कमी आती जा रही थी. यह बदलाव नेता के साथ-साथ भीड़ भी महसूस कर रही थी.

फिर अगले ही पल भीड़ ने देखा कि वह आदमी भागते-भागते अचानक रुका. उसके रुकते ही उसके सारे रूप भी ठहर गए. भीड़ भी अपने मुक़ाम पर ठिठक कर रुक गई. फिर भीड़ ने देखा कि वह उनकी तरफ ऐसे अंदाज़ में घूमा, कि मानो जैसे वह भीड़ पर आ पड़ेगा. और हुआ भी यही. वह भीड़ की तरफ मय अपने दल-बल के आने लगा. अब बाज़ी पलट चुकी थी. अब भीड़ भाग रही थी और वह भीड़ के पीछे था. दौड़ जारी थी, मगर अब भीड़ भाग रही थी और वह उसका पीछा कर रहा था. पलटी हुई बाज़ी के तहत भागती और बची खुची हुई भीड़ धीरे-धीरे रूपोश होने लगी और एक वक़्त ऐसा भी आया कि भीड़ एक दम ग़ायब हो चुकी थी. नेता भी लुप्त हो चुका था. मैदान खाली हो चुका था और वह एक विजयी मुस्कान के साथ कमर पर हाथ रक्खे अपने मुक़ाम पर चट्टान कि तरह खड़ा मुस्कुरा रहा था.

शहंशाह हुसैन