एड्स पर फतह
हिमालय की गोद में बसा नेपाल भारत की सीमा से सटा ईश की अलौकिक दिव्य छवि को दर्शाता है. नेपाल की राजधानी काठमांडू में बागमती नदी का अखण्ड प्रवाह लोगों को खुशहाली देता है. नेपाल की ऐतिहासिक धरोहर बौद्ध स्थली को देखने दुनियाभर के लोग यहाँ आते हैं. नेपाल विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ पर अतुलनीय वन संपदा, जड़ी बूटियाँ प्रकृति की धरोहर है.
नेपाल में अशिक्षा, बेरोजगारी होने के कारण गंवई - गंवार नवयुवक प्रकाश थापा काम की तलाश में मुम्बई आया था.कामचोर, आलसी - शराबी पिता और फुर्तीली, कर्मठय, खेतीबाड़ी के कामों में जुटी माँ के साए में प्रकाश का बचपन बीता था.
गिरगांव चौपाटी के समुंदर की वेगवान आती - जाती लहरों को देख के प्रकाश को अपना बचपन यादों के सागर में गोते खाने लगा.
एक दिन पिता ने शराब इतनी अधिक पी ली कि शराब की बोतल ही टूट गयी, बेहोशी में उस टूटी बोतल से बची - खुची शराब सारी पी डाली. जिसके साथ टूटी बोतल का कांच भी पेट में चला गया. लेने के देने पड़ गए. हालत बिगड़ कर पागल - सा हो गए थे.
गाँवों में अंधविश्वास,जादू - टोना, तंत्र - मन्त्र से उपचार को ज्यादा बढिया मानते हैं. तभी उसकी दयनीय दशा को देख एक गाँव वाले ने कहा, " इसके अंदर भूतनी आ गयी है. "
वहीं पास बैठे बुजुर्गों ने कहा - " इसको अघोरी से झांड़ - फूंक करवाओ तो भूतनी भाग जाएगी. "
सब रिश्तेदारों, गांववालों की सलाह से माँ ने अघोरी को घर के पास के खेत में बुलाया. संग में संबंधी बलि चढाने के लिए बकरी भी लाए.
माथे पर भभूत लगाए अघोरी ने वहां पर वेदी बना कर बेहोश पिता को लिटा कर हुमच - हुमच की आवाज में नगाड़ा जोर - जोर से बजाया. फिर उसके कान में कोई मन्त्र बुदबुदाया. उसके सर पर तीन बार झाड़ू घुमाई. वहीं पास में खड़ी बकरी की बलि चढ़ाने के लिए अघोरी जैसे ही तलवार मारने लगा तभी वह तलवार बेहोश पिता के गर्दन को लग गयी.
पिता की भयानक चीख के साथ बहती रक्त की धाराओं से मिट्टी लाल होगयी.
पलक झपकते ही पिता की जीवन लीला ख़त्म हो गयी.
दुःख - मातम के काले बादल छा गये. अंध विश्वास, अशिक्षा से दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ सामाजिक विकास के लिए बाधक बन जाती हैं.
सात साल के इकलौते बेटे प्रकाश का उत्तरदायित्व माँ के कंधों पर आ गया. बेटे के लालन - पालन के खातिर उबड़ - खाबड़ पथरीले रास्तों पर चलके माँ ठेकेदार के यहाँ मिट्टी, पत्थर ढ़ोंने काम करने लगी थी. अपनी कुछ खेती बंटाई पर दे दी.
ठेकेदार की बुरी नजर उस पर बाज की तरह मंडराने लगी. एक दिन माँ मिट्टी तसले में उठाकर जा रही थी. तभी ठेकेदार ने उस का आँचल पकड़ कर रोका. तभी माँ ने फुर्ती से मिट्टी मुट्ठी में भर कर उसकी आँख में मार के मुझ को साथ में ले उधर से नो दो ग्यारह हो गयी.
सदियों से समाज किसी भी देस - परदेस का हो, नारी जाति, विधवाओं पर मर्दों की कुदृष्टि गिद्ध - सी जमी ही रहती है.
दिन के उजाले, रात के अंधेरों के साथ प्रकाश अब दस साल का हो गया था. माँ के साथ नन्हें - नन्हें हाथों से खेतों, घर के कामों में सहयोग करने लगा था. माँ काम से जहाँ भी जाती थी मुझे अपने साथ ले जाती थी. खेतों में काम करते समय माँ अपना वैधव्य का दुःख गानों में गाकर भूल जाती थी.
नेपाली में ये पंक्तियाँ गुनगुनाती थी,
" पान को पात मायाँ तीमीलाई सम्झच्छू,
दिन को रात मरश्यांगी सलल."
अर्थात पान की पत्ती प्रेम का प्रतीक है और मैं तुम्हें यानी अपने प्रियतम को याद करती हूँ, मेरी प्रेम की गाथाएं हर दिन हर रात उदार, निश्छल, पवित्र मरश्यांगी नदी की तरह अटल रूप से अपनी रफ़्तार से बहती है. उसी नदी - सा मेरा सुहाग गतिमान है.
उम्र के साथ प्रकाश बड़ा होने लगा और अक्ल भी आने लगी थी.
खेतों में काम करने वाले लोग वहां पर बीड़ी पी के फेंक देते थे. नशा के बारे में उसे कुछ पता नहीं था. उन के फेंके हुए बीड़ी के टुकड़ों को जेब में रख कर चुपचाप एकांत में जाकर पी लेता था. धीरे - धीरे नशा अच्छा लगने लगा. उन नशाखोरों की संगत में मैंने बुरी आदतें सीख ली. तंबाकू की कडवाहट का चटखारा जीभ को भाने लगा. दारू, चरस का सेवन करने लगा था.
माँ बेटे को देख कर चिन्तित होने लगी थी. उसे नशा करने को मनाह करती थी.
जब यह लत पड जाती है छुटने से भी नहीं छुटती है.
जमीन - जायदाद का इकलौता वारिश होने के कारण शादी के प्रस्ताव आने लगे.
सोलहवां साल लगते ही चाचा के कहने पर माँ ने मेरी शादी कर दी.
गृहस्थी चलाने की लिए रुपयों की जरूरत होने लगी. खेती के सिवाय काम कुछ नहीं था.
समझदार माँ ने उसे काम करने के लिए चाचा के साथ मेरठ, उत्तर प्रदेश में भेज दिया.
होटल में चाचा की पहचान से बर्तन मांजने के काम मिल गया. वहीं पर रह कर ट्रक चलाना सीख लिया.
इधर माँ - पत्नी की याद सताती थी. मेहनत कर के अच्छी जमा पूंजी इकट्ठी कर ली थी.
एक साल में उनसे मिलने जाता था. यहाँ से उनके जरूरतों का समान ले के जाता था. भारत के बने सामानों के देख के उनकी खुशी दूनी हो जाती थी.
इसी बीच एक पुत्र भी हो गया, जिम्मेदारियाँ पाँव पसारने लगी. जैसे कि नदी के प्रतिकूल धाराओं में श्रम के चप्पुओं से अनुकूल बनाया जा सकता है उसी तरह संघर्षों, संकटों को झेलते हुए जीवन जीने, आगे बढ़ने के रास्ते खुद ही बनाए थे.
दो दशक के काल खंड के बाद मित्र के संग महाराष्ट्र के पूने शहर में ट्रक चालाने काम मिल गया. वहां से ट्रक धूलिया और मुंबई के लिए रवाना होते थे.
महानगर मुंबई में कमाई खूब होने लगी, जवानी अपना जोर दिखा रही थी. स्वच्छन्द, स्वतंत्र मस्त, मनमानी हवा की रुख की तरह उसके जीवन का रुख हो गया था.
धूलिया के लिए धूल से भरे रास्तों में सामान से भरे ट्रक रात में निकलते थे, वहीँ अँधेरी रात में थके शरीर को आराम देने के लिए उसका पड़ाव होता था.
इन अँधेरी रातों में गरीब लड़कियां देह का व्यापार करती हैं.
इन बियावान सुनसान जंगलों में ये लडकियाँ माचिस जलाकर अपनी उपस्थिती बताती थीं.
वासना के वशीभूत हो कर प्रकाश इस गन्दी सोहबत का शिकार हो गया. जावानी की आग इन वेश्यावृति की लडकियों से बुझाने लगा.
पच्चीसवें साल की अल्प आयु में यौन रोगों ने उसे घेर लिया. जिससे भूख न लगना, उलटी, दस्त आना, वजन कम होना, बुखार से तपना और प्रतिरोधक क्षमता का क्षीण हो गयी थी.
रात की कालिमा की तरह रोग जीवन को तबाह कर रहा था.
वही मित्र उसे डाक्टर के पास ले कर गया. जहां एक्स - रे, खून की जांच से पता लगा उसे एड्स जैसा घातक रोग हो गया. गर्दन और बगलों में गाँठे बन गयी थी.
डाक्टर ने एंटीवायरल, ताकत की मल्टी विटामिन की गोलियां देते हुए कहा,
" दवाइयों का सेवन और मादक द्रव्यों का व्यसन मुक्त से इस रोग को छुटकारा मिल सकता है. "
हाँ में उसने अपनी स्वीकृति डाक्टर को दी.
डाक्टर की बातों को गाँठ में बाँध कर उनकी नसीहत से बीड़ी, शराब पीना छोड़ दिया..
मित्र की सेवा, सहयोग से डाक्टरी चिकित्सा का पूर्ण लाभ ले के एड्स पर फतह हासिल कर अपने घर नेपाल आ गया.
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