Suman ke lie neel ka pavitra prem in Hindi Love Stories by paresh barai books and stories PDF | सुमन के लिए नील का पवित्र प्रेम

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सुमन के लिए नील का पवित्र प्रेम

सुमन के लिए नील का पवित्र प्रेम

रात को तीन बझे सोने के बाद सुबह सात बझे उठना थोड़ा कठिन काम होता है। पर कॉलेज का पहला दिन था तो समय पर कॉलेज जाना ही था। वह सुबह कुछ खास थी। ज़िंदगी नयी करवट ले रही थी। अब ना तो स्कूल यूनिफ़ोर्म का जंजट था, ना ही ज़बरदस्ती का अनुशासन। नए कॉलेज में कुछ पुराने दोस्तों का साथ छूटा तो कुछ नए दोस्त बने। माहौल नया था। लोग अजनबी थे। पर दिल केह रहा था की कुछ खास होगा।

कुछ तो ऐसा होगा जो ज़िंदगी के मायने बदल देगा। इसी एहसास के साथ हम कॉलेज के ऑडिटोरियम में दाखिल हुए। वहाँ पर कॉलेज प्रिंसिपल नें हम सब का बड़े जोश और उत्साह से स्वागत किया। हम सब अपने अपने क्लास की और बढ़ रहे थे। तभी अचानक मेरे हाथ की घड़ी में किसी के दुपट्टे का धागा फस गया।

अचानक हम उस खूबसूरत लड़की से ऐसे जकड़ गए जैसे हमारा और उनका सदियों का नाता हों। उसनें शायद रोज़ परफ्यूम छिड़क रखा था। वह परी जैसी लड़की हमारी घड़ी से अपने दुपट्टे को छुड़ाने का भरसख प्रयास किए जा रही थी, पर शायद उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी। हम से रहा नहीं गया तो हमने उसे बड़ी सी मुस्कान के साथ कह दिया। “परफ्यूम अच्छा है

हमारी आवाज़ सुन कर उसनें तिरछी आँखों से हमारी और घूर कर देखा। और फिर से अपना दुपट्टा छुड़ाने में मशगूल हो गयी। थोड़ी देर हुई तो उस से रहा नहीं गया, और वह बोल पड़ी, खड़े खड़े तमाशा देख सकते हो, मावली की तरह फ़्लर्ट कर सकते हो, किसी की हेल्प नहीं कर सकते? अपनी घड़ी से हमारा दुपट्टा छुड़वाओ।

हम कुछ भी बोले बिना एक टस उसकी डांट खाये जा रहे थे। और उसे देखे जा रहे थे। तभी उसनें ज़ोर से अपना दुपट्टा जटका। अब भी उसके दुपट्टे की लेस हमारी घड़ी में फसी थी। हमनें घड़ी का बकल खोल कर अपनी कलाई छुड़ा ली। और अपने दोस्त के साथ आगे चल दिये। अब हमारी घड़ी उसके दुपट्टे के साथ थी। और हम आगे बढ़ चले। शायद अब भी वह हमारी घड़ी अपने दुपट्टे से अलग करने की माथापच्ची में उलझी हुई थी।

अब हम बैठे तो क्लास में थे। पर हमारा ध्यान उसी लड़की के ख़यालों में खोया था। शायद पहली नज़र में हमनें अपना दिल उसे दे दिया था। मन ही मन उस से बातें किए जा रहे थे। अकेले में मुस्कुराए जा रहे थे। उस वक्त कुछ ऐसा महसूस हो रहा था की कोई सपना चल रहा है। हमारे साथ जब यह सब हो रहा था तो हमारा दोस्त यह सब नोटिस कर रहा था। वह बोला हंस कर ऐसे ही बोला की, बेटा याद रखना तू जिस लड़की के ख़यालों में खोया है उसे तेरी लाइफ में लाने में मेरा सब से बड़ा हाथ होगा। उसकी बात सुन कर हम भी हंस दिये।

कॉलेज खत्म हुआ। हम गैट पर अपने दोस्त के साथ बाइक के पास खड़े थे। तभी किसी नें हमें पीछे से आवाज़ दी। एक्स क्यूज़ मी,,, हम समझ चुके थे की यह उसी लड़की की आवाज़ है जिसनें सुबह सुबह बिना वजह हमें मीठी मीठी डांट खिला दी थी।

हमनें फौरन मूड कर देखा और अब फिर से हमारे चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी। उस लड़की नें फिर हमें घूर कर देखा और अपना हाथ आगे किया। उसके हाथ में हमारी घड़ी थी। शायद वह हमें घड़ी देते हुए गुस्से भरी नज़र से यह इशारा दे रही थी की, ओ लफंगे मुझसे दूर रेह। तेरा कोई चांस नहीं।

खैर जो भी था, हम तो उसे अपना सब कुछ मान चुके थे। अब प्यार में उसका साथ मिला तो जीवन स्वर्ग और अगर उसनें नाकबूल किया तो दिल के मंदिर में उसे बैठा कर भगवान का दरज्जा दे कर उसकी पूजा करनी थी।

हमनें जान बुझ कर अपनी घड़ी वापिस लेने के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया। बस मुस्कुराहट के साथ उसे प्यार भरी नज़रों से देखे जा रहे थे। पास खड़ा मेरा दोस्त यह सब देख कर मंद मंद मुस्कुराए जा रहा था। शायद वह मेरी दिल की हालत समझ चुका था। वह सोच रहा था की दोस्त का विकेट तो पहले दिन ही गया।

मेरा दोस्त मुझे बार बार कोहनी मार कर घड़ी ले लेने के लिए इशारे किए जा रहा था। पर हम तो ठहरे ढिढ़ आदमी। ऐसे कैसे अपनी चाहत को नज़रों से ओझल हो जाने दें। हमने उसे तुरंत पूछा की, आप का नाम क्या है मेडम। यह सवाल सुन कर एक झटके में उस लड़की के कपाल पर गुस्से भरी सिलवटें आ गयी। उसनें आँखें दिखाते हुए हमारा हाथ खींच कर बड़े गुस्से से हमारी घड़ी हाथ में पकड़ाई और बिना कुछ बोले अपने रास्ते जाने लगी।

अब हम घर तो आ गए, पर दिल उस रोज़ परफ्यूम वाली के साथ चला गया था। इंतज़ार था तो बस सुबह होने का, ताकि जल्द से जल्द फिर उसका दीदार हो सके। सुबह छे बझे हम तैयार हो कर घर से निकले तो माँ भी सोच में पड़ गयी। उसे लगा की बेटे को कॉलेज कुछ ज़्यादा ही पसंद आ गया लगता है।

अब फिर हम कॉलेज के गैट के पास थे। तभी दूर से लाल रंग की स्कूटी आती दिखी। और उस पर वही हूर सवार थी जिस के लिए हमारे दिल नें अभी अभी धड़कना सीखा था। किसी महान इन्सान से यह बात सुनी थी की, प्यार और उपचार में देरी नहीं करनी चाहिए।

हम तुरंत अपनी होंडा बाइक ले कर पार्किंग में उसके पास पहुँच गए। एक कागज़ पर अपना नंबर लिखा और जैसे ही उसने स्कूटी की डैकी से अपना पर्स बाहर निकालने के लिए लोक खोला, हमने जट से अपने मोबाइल नंबर वाली परची उसकी स्कूटी की डैकी में डाल दी। और आगे बढ्ने लगे।

हमारी इस छिछोरी हरकत को देख उसका गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुंचा। उसनें फिर एक बार हमें आवाज़ लगाई और हमारी परची हाथ में ले कर हमारे सामने आ खड़ी हुई। फिर उसनें पूछा, क्या है यह सब?

हमने बड़े अदब से कहा, मेरा नंबर है। मुझे आप से फोन पर बात करनी है। यह बात सुन कर पहले तो उसनें मेरे नंबर लिखी परची फाड़ी। फिर चुटकी बझाते हुए मुझे कहा आगे कभी ऐसी हरकत मत करना, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

एक बार फिर हमारी निगाहें उस के सुंदर चेहरे पर आ रुकी थीं। उसकी धम्की भी हमें प्यारी लग रही थी। हम एक टस उसे निहारे जा रहे थे। और वह हमें ऐसे घूरे जा रही थी जैसे वह हमें कच्चा चबा जाएगी।

फिर थोड़ी देर में बाल झटकते हुए वह क्लास की और बढ़ गयी। हम भी अपने क्लास में चले गए। कॉलेज खत्म कर के जब हम फिर से पार्किंग की और लौटे तो वह अपनी दोस्तों के साथ उसी और आ रही थी।

हम जान बुझ कर उसकी स्कूटी पर बैठे रहे। वह दूर से हमें अपनी स्कूटी पर बैठा देख गुस्से से लाल हुए जा रही थी। उसे पास आते आते हम अपनी बाइक के पास चले गए। और उसकी और देखने लगे। उसनें सेल्फ लगाया तो हमनें भी किक मार कर उसके पीछे जा कर उसका घर देखने का मन बना लिया।

स्कूटी के आईने में वह देख चुकी थी की हम उसके पीछे आ रहे हैं। घर पर पहुँच कर एक बार उसनें मूड कर गुस्से से देख कर झटके से घर का दरवाज़ा बंद किया। जैसे मन ही मन हमें कस कर थप्पड़ मार रही हों।

अगले दिन सुबह कॉलेज के समय हम ठीक उसके घर के आगे वैसे ही निगाहें गढ़ाए खड़े थे जैसे शंकर भगवान के मंदिर के बाहर नंदी बैल बैठा होता है।

अब हमारी सवारी साथ साथ कॉलेज की और जा रही थी। कभी वह हमारे आगे तो कभी हम उसके आगे। कॉलेज के पार्किंग में पहुँचते ही फिर हमनें ठीक उसके पास अपनी बाइक स्टैंड पर लगा दी। तभी उसकी एक दोस्त नें उसे आवाज़ दी। सुमन...

अब हम उसका नाम जान चुके थे। और हम उसका नाम जान चुके हैं यह बात उसे भी पता चल गयी थी। उसनें अपनी दोस्त को वहीं टोका की, नाम ले कर चिल्लाने की क्या ज़रूरत है? मुझे सुमन के पास खड़ा देख कर उसकी दोस्त नें पूछ लिया यह कौन है? तुम्हारा नया दोस्त? मैंने जट से अपना नाम बताया। और कहा हाय, आई एम “नील”

सुमन तुरंत अपनी दोस्त को खींच कर दूर ले गयी। और बोल पड़ी, लफंगा है। मुह मत लगाना इसे। सुमन की यह बात सुन कर मेरी तो हंसी छूट गयी। उसका गुस्सा भी प्यारा लग रहा था। अब जिसे दिल से अपना मान लिया है वह हमारे साथ कुछ भी कर ले, बस प्यारा ही लगता है।

उस दिन मै लेक्चर पढ़ने क्लास नहीं गया। ग्राफिक्स वाले के पास जा कर अपनी बाइक के हूड़ पर सुमन लिखवा लाया। और जब सुमन कॉलेज से छूटी तो उसे इशारा कर के अपने बाइक पर लिखा उसका नाम दिखाया। मेरी यह हरकत देख कर उसनें मुह बनाया। जैसे वह मन ही मन बोल रही हों की, तू क्यूँ पीछे पड़ा है। मुझे तुझ में रत्ती भर इन्टरेस्ट नहीं।

अब हमारा रोज़ का था। दिन में दो बार उसे घर छोड़ने और लाने जाता। शहर में कही भी वह दिख जाती तो उसके सामने उसके दर्शन करने जाना। और बस उसे निहारते रहता। दिल में एक ही तमन्ना थी की, यह लड़की मुझे मिले या ना मिले। इसका दिल ऐसे जीत लेना है जैसे की, यह दुनियाँ में सब से ज़्यादा मुझ पर भरोसा करे।

एक बार जब वह अपने घर के पास अकेली बैठी थी तो हम वहाँ से गुज़रे। शायद सब बाहर गए थे, वह घर वालों का इंतज़ार कर रही थी। मै भी बाइक स्टैंड पर लगा कर ठीक उस से थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसे पता था मै उसी को देखने वहाँ बैठा हूँ।

वह फिर एक बार मुझे गुस्से में घूरे जा रही थी। मै और पास बाइक ले जा कर बैठ गया। अब उसका सब्र जवाब दे रहा था। वह तुरंत उठ खड़ी हुई। और मेरी और आने लगी। उसनें कहा की, तुम से बात करनी है। मैंने भी उस से कहा की ठीक है कहो। अब हमारे बीच जो बात ही वह कुछ इस प्रकार थी।

सुमन : आखिर तुम यह सब क्या कर रहे हो? मेरा नाम अपनी बाइक पर लिखना। हर रोज़ मेरा पीछा करना। मुझे पागलों की तरह देखते रहना? शर्म नहीं आती?

नील : प्यार करता हूँ। तुम को देख कर ही खुश होता हूँ।

सुमन : अपनी और देखो। तुम काले भद्दे हो। तुम्हारे तो बाल भी कुछ पके हुए हैं। ऊपर से यह तुम्हारी लोफ़र जैसी शकल, अभी तुम कॉलेज पढ़ रहे हो। तुम्हारी कोई पर्स्नालिटी नहीं। कोई आर्थिक हैसियत नहीं। आखिर एक लड़की तुम्हें पसंद करे या इज्ज़त दे तो क्या देख कर तुमसे प्यार या दोस्ती करे? कहो?

नील: आज ज़िंदगी में पहली बार मुझे अपनी सही औकात पता चली है। किसी नें आईना दिखाया है। अब उसी दिन अपनी शक्ल दिखाऊँगा। जब कुछ बन जाऊंगा। अपना ढंग सुधार लूँगा। तुम भले ही मुझे पसंद ना करो। मुझसे प्यार ना करो। पर तुम्हारी नज़रों में अपनी इज्ज़त देखना चाहता हूँ। यही मेरा सपना है।

तुम्हारी एक झलक देखने के लिए रास्ते की धूल फाँकता हुआ तीन तीन घंटे खड़ा रहता हूँ। मेरे प्यार की गहराई का अंदाज़ इसी बात से लगा लेना। अगर तुम मुझे मिली तो तुमको सिर पर बैठा कर रखूँगा। और ना मिली तो तुम्हारी पूजा करूंगा। येही मेरा प्यार। ज़िदगी रही तो सफल होने के बाद फिर मिलने आऊँगा। अलविदा...।

उस दिन के बाद मैंने कॉलेज में कदम नहीं रखा। मन में एक ही जुनून था। पैसा कमाना। खुद की पर्सनालिटी ठीक करना। अपना नाम कमाना। समय बिता, खुद को मेहनत की आग में जौंक दिया। एक एक पैसा जोड़ा, धीरे धीरे नसीब मेरी और झुका, कामयाबी कदम चूमने लगी। और आखिरकार मैंने वह मुकाम पा ही लिया। जिस ऊंचाई को हासिल करने के बाद मै सुमन के सामने जा सकता था। और फिर एक बार अपने सच्चे प्यार की भिख मांग सकता था।

सुमन के घर पर जा कर जैसे ही दरवाज़ा खटखटाया उसके पिता नें दरवाज़ा खोला। और उन्होने वह बात बताई जिसे सुन कर किसी भी आशिक का दिल खून से छल्ली हो सकता है। सुमन किसी और की हो चुकी थी। कुछ देर तो खुद की जान लेने के बारे में भी सोचा। फिर खुद के माँ बाप का ख्याल आया। दिल खून के आँसू रो रहा था। सुमन को हासिल ना कर पाने का गम मुझे पागल किए जा रहा था।

सुमन के पिता से जूठ बोल कर उसके ससुराल का पता लिया। आँसू पोंछ कर उसी वक्त सुमन के घर जा पहुंचा। उस दिन मै सुमन के घर के आगे भिखारी की तरह खड़ा था। एक वक्त था जब प्यार भरा दिल ले कर उसके पिता के घर पर जाता था। आज टूटा हुआ दिल ले कर उसके ससुराल के घर के सामने खड़ा था।

सुबह से शाम हुई तो आसपास के लोग चहल पहल करने लगे। तभी अचानक सुमन घर के बाहर आ कर देखने लगी। उसे पता चल गया की गाड़ी के पास मै बैठा था। वह लोगों की नज़रें बचाते हुए मेरे पास आई।

हम दोनों अब एक दूसरे से तीन फिट की दूरी पर खड़े थे। मेरे मन में गहरा सन्नाटा था। आँखों के आँसू सुख चुके थे। सुमन भी अब एक टस मेरी और देखे जा रही थी। उसकी आँखें भर आई थीं। शायद उसे मेरे लिए बुरा लग रहा था।

सुमन को भले ही मुझसे प्यार नहीं था। पर अब मेरे प्यार की कदर ज़रूर थी। मैंने उसे तुरंत कहा की अपने आँसू पोंछ दो। तुम्हें रोती देख कर मै ज़्यादा देर जीता नहीं रह सकूँगा। मेरी यह बात सुन कर वह और रो पड़ी। शायद उसे मेरी कामयाब बरबादी का एहसास हो चुका था।

मैंने बात बदलते हुए अपनी कामयाबी के किस्से सुनना शुरू कर दिया। अपनी गाड़ी नया घर और कारोबार की बातें बता कर उसका ध्यान बटाने की कोशिश करने लगा। बस किसी तरह मैं उसका रोना बंद कराना चाहता था।

थोड़ी देर बात उसनें अपने आँसू पोंछ कर मुझ से कहा की, काफी हेंडसम लग रहे हो। अब अच्छी सी लड़की ढूंढ कर शादी कर लो। और मुझे दिल से माफ कर दो। वरना मै चैन से जी नहीं पाऊँगी। तुम्हारा प्यार सच्चा था। यह बात तब भी मुझे पता थी और अब भी पता है। बस मुझे तुम्हारे लिए तब कोई फिलिंग्स नहीं थी।

मैंने जट से उसे पूछा अब है? मेरी यह बात सुन कर वह चुप हो कर मेरी और तक ती रही। शायद उसकी शादी के बाद मुझे ऐसा सवाल नहीं पूछना चाहिए था। मैंने तुरंत उस से माफी मांग ली। और उसे कहा की, आज में जो कुछ भी हूँ तुम्हारे प्यार में पड़ने के कारण हूँ।

तुम्हारा प्यार ना मिल सका तो कोई बात नहीं, तुम्हारी पूजा करूंगा। और रही बात तुम्हारे दिल में जगह पाने की, तो इसका सबूत यह तुम्हारी आँखों के आँसू हैं। दिल पर कोई बोज मत रखना। इस ज़िंदगी में हम ना मिले तो क्या हुआ, किसी और जनम में साथ निभा देना।

मेरी यह बात सुन कर फिर उसकी आँखों में आँसू छलक आए। अब उसे रोती देख मेरा दम घुट रहा था। उसे रुलाने तो में वहाँ नहीं गया था। मैंने आखरी बार उसे दिल भर कर देखा और दिल पर पत्थर रख कर वहाँ से अपनी कार लिए हमेशा के लिए चला गया।

सारी कामयाबी अब बैमानी लग रही थीं। भगवान और प्यार पर से विश्वास उठ सा गया था। बलिदान और त्याग की बात करना बड़ा आसन होता है। पर दिल टूटने का गम वह जानता है जिसका दिल टूटा होता है। उस दिन के बाद खुद को मैंने एक अंधेरे कमरे में बंद कर लिया। लोगों से मिलना जुलना छोड़ दिया। बस दिल में एक ही शुल गढ़ा हुआ था। की तमाम कोशिषे करने के बाद भी सुमन को पा नहीं सका।

एक हफ्ते के एकांतवास के बाद मेरे कमरे का दरवाज़ा किसी नें खटखटाया। आवाज़ कुछ जानी पहचानी थी। दरवाज़े पर मेरा कॉलेज का वही पुराना दोस्त था। मैंने दरवाज़ा खोला तो उसनें मुझे कस कर गले लगा लिया। और बोला की, क्या रे मझनु कैसा है? मै बेमन हस दिया। और कहा ठीक ही हूँ

वह मुझसे बोला की, अगर में तुझे तेरी ज़िंदगी की सब से अच्छी खबर सुनाऊ तो क्या तू मुझे अपनी आधी दौलत देगा? मै उसकी यह बचकानी बात सुन कर हंस पड़ा। और उसे कहा की, अगर तू अच्छी खबर ना सुनाये तो भी आधी दौलत तेरी बस। और मेरे मरने के बाद पूरी तेरी बस

मेरे यह निराश शब्द सुन कर उसनें मेरा मुह बंद कर लिया और बोला, भगवान ना करे मेरे जीते जी तुझे मौत आए, मेरे भाई। अब चल तुझे कहीं ले कर जाना है।

मेरे लाख मना करने पर भी वह मुझे किसी अस्पताल ले गया। वहाँ जा कर मैंने देखा तो ओपरेशन थियेटर में सुमन लेटी हुई थी। उसकी तभीयत कुछ ज़्यादा खराब लग रही थी। उसे वहाँ देख कर मेरी जान निकल गयी। मै दौड़ कर सुमन के पास जाने लगा तो मेरे दोस्त नें मुझे रोक लिया।

अब हम सुमन के पिता और ससुराल वालों की बातें छुप कर सुन रहे थे। सुमन का पति बोल रहा था की, आप की बेटी शादी के बाद से लगातार बीमार रेह रही है। हम तो इसे ठीक कराते कराते कंगाल हो चुके हैं। अब मुझे यह रिश्ता खत्म करना है। आप हमें मुक्ति दीजिये।

सुमन के पिता हाथ जोड़ कर अपनी बेटी का घर बचाने की दुहाई दे रहे थे। वह बेटी के ससुराल वालों से रिश्ता जोड़े रखने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे। अंत में वह उन सब के पैर पर अपना माथा रगड़ने लगे। लेकिन सुमन के पति और उसके सुसराल वालों को उनकी कोई दया नहीं आई। वह सब उसी वक्त वहाँ से चलते बने।

तब मेरे दोस्त नें मेरे कंधे पर हाथ रखा। और कहा की, अब जासुमन के पापा से बोल दे की तू सुमन का हाथ थामेगा। उसके सारे दुख दूर करेगा। और सुमन अपनी शादी नहीं तोड़ेगी तो भी तू उसकी देखभाल का सारा खर्चा उठाएगा। और मरते दम तक प्यार का वचन निभाएगा।

मैंने ठीक ठीक वही सब सुमन के पापा से बोल दिया जो मेरे दोस्त नें समझाया था। सुमन के पापा मेरी बातें सुन कर स्तब्ध थे। उन्हे एक तरफ अपनी बेटी की चिंता थी। और दूसरी तरफ मेरी यह दिल की बात। वह कुछ बोल तो नहीं पाये। पर उनकी आँखें साफ साफ बता रही थी की, वह मेरी बात मानने को तैयार हैं।

थोड़ी ही देर में सुमन को हौश आ गया। अब मै, मेरा दोस्त और सुमन के पापा उसके सामने थे। मुझे वहाँ पा कर सुमन के माथे पर पसीना आ गया था। मैंने उसके पास जा कर साफ साफ उसे कहा की, तुम्हारे पापा से मै, अपने मन की बात बता चुका हूँ। तुम्हारा पति तुम्हें छोड़ना चाहता है। तुम अगर अपने पति के साथ जीवन बिताना चाहो तो भी मै, एक दोस्त बन कर तुम्हारे इलाज का पूरा खर्च उठा कर तुम्हारी देखभाल करने के लिए तुम्हारे पिता का साथ दूंगा। और अगर तुम अपने पति से अलग हो कर मेरे जीवन में आना चाहती हो तो मेरे लिए इस से बढ़ कर कोई और खुशी की बात नहीं होगी। तुम्हारा जवाब अपने पापा के साथ भिजवा देना।

इतना बोल कर मै अपने दोस्त के साथ वहाँ से जाने लगा। तभी सुमन के पापा नें मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया। और सुमन से पूछा की, क्या तुम अपने स्वार्थी पति से अलग होना चाहती हो? तब सुमन नें भीगी आँखों से हाँ में जवाब दिया।

सुमन के पापा नें समय गवाए बिना उसके पति को फोन लगाया और कहा की हम आप से हमारी बेटी का रिश्ता तोड़ने के लिए तैयार हैं। आप तलाक के कागज़ भिजवा दीजिये। मेरी बेटी साइन कर देगी।

सुमन की बीमारी का कारण शायद मुझसे दूर होना ही था। उसे प्यार नहीं था पर मेरी गैरमौजूदगी, और मेरे सच्चे प्यार के कारण उसके मन में भी मेरे लिए प्यार की जल उठी थी। परिवार के दबाव में और बीतते समय के डर से उसनें शादी तो कर ली थी, पर मेरे बरबाद होने का दर्द उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था।

अब मेरा प्यार पूरा हो चुका था। तो सुमन का दर्द भी कितनी देर टिकने वाला था। वह दिन पर दिन ठीक होती चली गयी। और कुछ ही समय में हम उसके तलाक के बाद हमनें शादी कर ली। आज फिर एक बार भगवान पर विश्वाश है। प्यार किया तो उसे पाने की खुशी है। जीवन सार्थक लग रहा है।

और रही बात हमारे दोस्त की, तो हमने उसे अपनी आधी दौलत और ऊपर से एक प्रतिशत और मिल्कियत प्यार से गिफ्ट कर दी है। आखिर हमारे जीवन में प्यार की बहार उसी के कारण तो वापिस लौटी थी। और वह कमीना देखो, बिना शरमाये सब कुछ ले भी लिया। और ऊपर से बोल रहा था यह तो मेरा हक़ है। समाप्त । लव इस लाइफ।