इतवार भी शनिच्चर हो सकता है
इतवार की सुबह तो रिटायर्ड बाबू भी देर से जागते हैं, वो तो लड़का, ओह लड़का नहीं दो जवान होते लड़कों का पापा ही तो था ! थोड़ी देर से ही सही, नींद खुलते ही होम मिनिस्ट्री से आदेश मिला - बच्चों को इंस्टिट्यूट जाना है मेट्रो तक छोड़ आइये !
भकुआए मन से उठा बेचारा, बिना ब्रश किये, इतवार की पहली ड्यूटी निभाई फिर लौट कर अपने ख़्वाबों की दुनिया को कब्ज़ा करने की ठानी, सिर्फ दस ही बजे थे कि फिर से हो गया बंटाधार ..
जहाँ चाय मांगने पर भी समय से नहीं मिलती था, इस इतवार को वो भी बिस्तर पर भाप से भरे कप के साथ चिल्लाने लगी! ऐसे लगा जैसे चाय का कप खुद से चल कर बेड तक आ गया हो!
बेचारा लड़का, उनींदी आंखों के साथ कप को होंठ से स्पर्श किया तो सपने वाली हसीना के घालमेल ने ऐसा चुम्मा लिया कि होंठ थरथराते हुए जल उठे, यानी जलवे ही जलवे!
आखिर चाय पी गए लहरते होंठो के साथ, जले भुने, फिर से आँखे मींची, सोचा कहीं पुनः वो ख़्वाबों वाली लाल फ्रॉक में दीदार करने आ जाए कि तभी तकिये के पास सायलेंट मोड पर रखे मोबाइल के वाइब्रेशन ने ऐसे कहा जैसे – बड़ी देर भयो नंदलाला। तेरी राह तके मोबाइल के दूसरी तरफ वाला !!
बुझे मन से मोबाइल को कान से लगाया तो दूसरी तरफ से आवाज थी थोड़ी सीरियस सी – आपका बेटा बीमार था क्या? बेहोश हो गया है, जल्दी आइये, वैसे अब ठीक ठाक है, परेशान होने जैसा भी कुछ नहीं ! फोन इंस्टिट्यूट से था !
लो जी फाइनली सत्यानाश हो ही गया इतवार का, बेटे के बीमार होने की टेंशन अलग आ गयी। बेचारा लड़का दौड़ पड़ा अपने मारुति ऑल्टो में लड़के को लिवाने के लिए !
घुर्रर....इग्निशन ऑन, कॉलोनी से कार बाहर मेन रोड पर निकलने वाली थी, अन्दर से बेशक बेटे का बाप परेशान था, पर ड्राइविंग परफेक्ट थी !
तभी पल भर में एक बड़ी सी कार, जो बाद में पता चला बीएमडब्लू टाईप की थी, मेन रोड से एकदम से घूमी और ऑल्टो की ड्राइविंग सीट पर बैठे लड़के को ऐसे लगा जैसे सामने से एक हाथी आया और धपाक से उसके बोनट पर उसने पैर रख दिया ......ऐसा ही कुछ हुआ, और पल भर में उस बड़ी सी कार ने अदना सी मरियल सी ऑल्टो को सामने से रौंद दिया | स्पीड कम थी पर, बोनट और बम्पर बिखर चुका था |
बेचारा लड़का स्तब्ध और सदमें में समझ ही नहीं पाया कि क्या करे ! स्टेयरिंग पकड़े चुप चाप सामने देख रहा था, ये कौन सा वाला भूकम्प या सुनामी आ गया !
और तो और, जब तक बेचारा लड़का कुछ सोचे, सामने वाली कार को चलाने वाले ड्राइवर पर निकल कर गालियाँ बके या नुक्सान के लिए भुगतान मांगे कि बीएमडब्लू का दरवाजा खुला और बेहद महीन से सुरीले आवाज में उसे बस एक आवाज सुनाई पड़ी – “Sorry”!!
ये एक शब्द, उस लेडी ड्राइवर के अप्सरा से चेहरे के साथ बहुत देर तक इको करती रही !! भोर के ख्वाबों में लाल फ्रॉक में छमकने वाली एक नटखट बाला बेहद शालीन तरीके से जींस-टॉप में, खुले बालों में सामने से आकर सिर्फ सॉरी के शब्द ही कह रही थी| वैसे तो उसने और भी ढेर एक्सक्यूसेस लगातार दिए, पर बेचारा लड़का और उसका मन तो सुन्न और स्थिरप्रन्न हो चुका था |
लड़के के मन में बहुत सी बातें उछल कूद रही थी, एक मन ने कहा, पूछे - इस सॉरी के वजह से उसका जो आर्थिक और मानसिक नुकसान पहुंचा उसका क्या करे पर ये दिल है नादान, बेचारा सहमा हुआ बस निहार रहा था, और वो खूबसूरत बाला अपनी गलतियों को स्वयं ही मानते हुए आँखे मटकाते हुए ऐसे बताती जा रही थी, जैसे लगा – चल बेटा सेल्फी ले ले रे, कह रही हो ! ओह, ऐसे में कौन न मर जाए !
अगल बगल से गुजरने वाले पैदल पथिक क्या दूसरे गाड़ी वाले भी रुक कर समझाने लगे – अरे मैडम की तो गलती हो ही नहीं सकती, आपको थोड़ा और बायीं रखनी थी अपनी खटारा ऑल्टो ! या फिर देखिये तो इस बड़ी गाड़ी का कितना नुक्सान हो गया!
लड़के के पलकों पर पता नहीं कितनी सारी तस्वीरें लगातार सहेजती हुई अनुभव हो रही थी |
पर कहे तो क्या कहे, समझ तो कहने लगा - प्यार कोई होटल का रूम सर्विस नही होता, जो ख़्वाबों में ही आ कर पसर जाए, बसेरा बना ले, देखो तो अब वो सामने आई है, ख़्वाब से कूद कर वास्तविकता में । प्यार कभी मांग पर डिलीवर नही होता, लेकिन फिर भी बस बोनट के अन्दर घुसने के नुक्सान पर वो तुम्हे लगातार निहार रही है । प्यार की कोई कीमत, बिल या टिप नही होता जिसका भुगतान हो, अतः चुप चाप उसके 'सॉरी' को चांदी का वर्क लगाकर पॉकेट में रखना सबसे बेहतर नुस्खा होगा । प्यार का असर तो होटल से चेक आउट करते समय का फाइनल बिल सेटलमेंट जैसा भी नहीं होता .....अगर इससे ठेस पहुँचती है तो पक्का प्यार ही है या इस वजह दिल तीव्र गति से धड़क सकता है और आप बेवजह मुस्कुरा सकते हो .....
तभी उस छोरी ने अपना कार्ड देते हुए पास आकर कहा, मैं जल्दी में हूँ सर, आप अपना नंबर तो देना !
ओह, अगर प्यार दिल दुखाना बंद कर दे तो या तो इसका पटाक्षेप हो गया या लम्बा चलने वाला मामला बन गया और दर्द के आप आदी हो गये हैं| ऐसे में कौन न इस दर्द का आदी हो जाना चाहेगा ! लड़का रोबोट की तरह नंबर बताता चला गया | लड़की की कार बैक करते हुए जब निकली तो उसके ऍफ़एम में गाना आ रहा था – “ये ही उम्र है करले गलती से मिस्टेक .....”
ओह, बेचारा लड़का कहाँ खो गया था, उसे तो अपने बेटे को लाने जाना था न, टूटी फूटी ऑल्टो आगे बढ़ी तो रेडियो मिर्ची में आवाज आने लगी – “दिल उल्लू का पट्ठा है .....”
अभी तो दिन में और भी बहुत से तारे देखने थे, बेचारा, मन मसोसते हुए कभी उस खूबसूरत बाला को याद कर रहा था तो कभी अपने कार के टूटे बम्पर को याद कर रहा था कि बस अगली रेड लाइट को रेड बत्ती में क्रॉस करते ही फिर से सफ़ेद-सफ़ेद वर्दी में आ धमके “आपके साथ, आपके लिए सदैव” कहते हुए ...! दिल्ली ट्राफिक पुलिस के मुस्टंडे ! चैन नहीं हुआ था न, अब पांच सौ की नई चपत लगनी थी, लग गयी |
ये कहाँ आ गए हम, यूँ ही बिना साथ चलते चलते ......कहते हुए इंस्टिट्यूट पहुंचा व फिर बेटे को लेते हुए लौट रहा था लड़का नहीं लड़के का पापा !
दोनों बेटों को घर पर उतार कर गाड़ी ठीक करवाने के लिए गैरेज में लग चुकी थी, पूरा इतवार पसीने पसीने इधर-उधर कर रहा था बेचारा लड़का, जब जब सहेजा हुआ बाला की तस्वीर दिमाग/दिल से हटती वो गाली तक देने के मूड में आ जा रहा था | मैकेनिक ने जैसे ही बताया सिर्फ 9 हजार रूपये लगेंगे, लड़का पुरुष वाली औकात में आते हुए सभी गालियाँ जैसे ही निकालना चाहा, एक अनजान नंबर से काल आ गया और फिर वही सरसराती हुई मीठी आवाज – “सॉरी”
उफ़ ये लड़कियां !! क्यों इतनी प्यारी होती है !
दिल बेचारा नादानियों से कहाँ बाज आता है !! अब लड़के को लगा उस लड़की की कोई गलती नहीं, बल्कि "इतवार भी शनीच्चर हो सकता है न !!"
(कुछ रियल संस्मरण में भी रोमांस का छौंक दिया जा सकता है न )
मुकेश