नचिकेता
आशीष कुमार त्रिवेदी
नचिकेता की कथा का वर्णन कठोपनिषद में किया गया है। यह कथा एक निर्भीक बालक की है जो सत्य की खोज में यमलोक तक गया।
वाजश्रवा नामक ऋषि ने सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले एक यज्ञ का अनुष्ठान किया। इस यज्ञ के पूर्ण होने पर अनुष्ठान कर्ता को अपनी सबसे प्रिय वस्तुएं दान में देनी पड़ती थीं। नियमानुसार वाजश्रवा ने गायें दान में दीं। इनमें ऐसी गायें भी थीं जो बूढ़ी और दुर्बल थीं एवं अपनी उपियोगिता खो चुकी थीं। ऋषि वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता ने जब यह देखा तो उसे दुख हुआ कि उसके पिता दान में वह गायें दे रहे हैं जिनसे दूध प्राप्त नहीं किया जा सकता था। अपने पिता को उनकी इस त्रुटि का आभास कराने के लिए वह ऋषि के पास जाकर बोला "दान में प्रिय एवं उपयोगी वस्तुएं देने का नियम है। एक पिता के लिए पुत्र से अधिक प्रिय एवं उपयोगी क्या हो सकता है। अतः आप मुझे किसे दान में देंगे।"
ऋषि वाजश्रवा उसके प्रश्न का मर्म समझ गए। लेकिन मौन रहे। नचिकेता ने पुनः प्रश्न किया जिसे ऋषि फिर टाल गए। नचिकेता बार बार प्रश्न करता रहा और वह उसे अनसुना करते रहे। परंतु नचिकेता चुप नहीं बैठा। उसने एक बार और अपना प्रश्न दोहराया। इस बार उसके पिता ऋषि वाजश्रवा को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा "मैं तुम्हें मृत्यु को दान करूँगा।"
वाजश्रवा का कथन सुन कर नचिकेता यम से मिलने के लिए यमलोक जाने को उद्धत हो गया। ऋषि वाजश्रवा ने उसे रोकने का प्रयास किया किंतु नचिकेता अपने निश्चय पर अडिग रहा।
यमलोक पहुँच कर उसने यमराज से मिलने की इच्छा प्रकट की। यमराज उस समय यमलोक में नहीं थे। नचिकेता तीन दिन तक भूखा प्यासा यमराज की प्रतीक्षा करता रहा। जब यमराज लौटे और उन्हें नचिकेता के बारे में पता चला तो वह उससे मिलने गए। यमराज इस बात से दुखी थे कि नचिकेता तीन दिन से भूखा प्यासा उनके द्वार पर प्रतीक्षा करता रहा।उसकी दृढ़ता से वह प्रभावित हुए।
यमराज ने नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा।
नचिकेता ने पहला वरदान मांगा कि उसके पिता के मन में उसके लिए जो क्रोध है वह समाप्त हो जाए।
दूसरे वरदान के रूप में उसने उस यज्ञ का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की जिसे करने के बाद मनुष्य स्वर्ग में जाकर सभी कष्टों से मुक्त होकर सुख भोगता है।
यमराज ने उसकी दोनों इच्छाओं की पूर्ति कर दी। उन्होंने नचिकेता से तीसरा वर मांगने को कहा। नचिकेता ने तीसरे वरदान के रूप में मृत्यु का रहस्य जानने की इच्छा जताई। उसने यमराज से पूंछा "मृत्यु का सत्य क्या है? मृत्यु के बाद जीव का क्या होता है? कुछ लोगों का मानना है कि मृत्यु के बाद भी जीव रहता है। तो कुछ इसके विपरीत बात करते हैं। कृपया मेरी जिज्ञासा को शांत करें।"
नचिकेता के तीसरे वरदान को सुन कर यमराज गंभीर हो गए। उन्होंने कहा "तुम जो ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो वह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। अतः तुम कोई और वरदान मांगा लो। मैं तुम्हें समस्त ब्रह्मांड का ऐश्वर्य देने को तैयार हूँ। तुम यह वरदान मत मांगो।"
नचिकेता अपनी बात पर अडिग रहा। कोई भी प्रलोभन उसे उसके संकल्प से च्युत नहीं कर सका। उसने यमराज से निवेदन किया "ओ मृत्यु के देवता आप सही कहते हैं। यह बहुत ही गूढ़ और दुर्लभ ज्ञान है। जिसे आप जैसा ज्ञानी ही दे सकता है। जीवन में पुनः ना तो मुझे आप जैसा ज्ञानी मिलेगा और ना ही ऐसा सुअवसर।"
यमराज द्वारा अनेक प्रलोभन दिए जाने के बावजूद भी नचिकेता अपने निश्चय पर अटल रहा। ज्ञान प्राप्त करने की उसकी इस इच्छा को देख कर यमराज ने उसे मृत्यु का रहस्य बता दिया।
इस ज्ञान का सार है कि जीवन में कुछ भी स्थाई नही है। दुनिया के समस्त सुख क्षणिक हैं। केवल परमात्मा ही परम सत्य है। जीव जब तक यह रहस्य नहीं जान लेता तब तक जन्म मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। जो जीव इस सत्य को जान लेता है वह मुक्त हो जाता है।
यमराज से मृत्यु का ज्ञान प्राप्त कर नचिकेता जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो गया।
नचिकेता इस बात का उदाहरण है कि यदि हम अपने आस पास कुछ अनुचित होता देखें तो उसे चुपचाप सहन करने की बजाय उसके विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाएं चाहें ऐसा करते हुए अपनों के खिलाफ ही क्यों ना जाना पड़े। जैसे अपने पिता के अनुचित आचरण के विरुद्ध नचिकेता ने आवाज़ उठाई।
वर्तमान समय में हम कई ऐसी चीज़ें देखते हैं जो सही नहीं हैं लेकिन हम उनका विरोध नहीं कर पाते। हमारा भय या कई बार हमारा कोई स्वार्थ हमें ऐसा करने से रोकता है। अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देना इसका उदाहरण है। अक्सर वस्तुओं की खरीदारी करने के बाद हम पक्की रशीद इस कारण से नहीं मांगते क्योंकी हमें कुछ रुपयों का लाभ होता है। जबकी हम भली भांति जानते हैं कि ऐसा करने से सरकार को राजस्व का नुकसान होता है। यह नुकसान सारे समाज का नुकसान होता है। लेकिन हम केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचते हैं।
सत्य के पथ पर चलना आसान नहीं होता है। कई बार इसके लिए मौत का भी सामना करना पड़ता है। परंतु जो साहसी होते हैं वह सत्य की रक्षा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। सत्य की रक्षा हेतु नचिकेता यमलोक तक पहुँच गया। नचिकेता का यमलोक में प्रवेश दरअसल इसी बात का संकेत है कि सच के लिए मौत को भी अपनाना पड़ता है।
सत्य के अन्वेषण में अनेक बार कई प्रकार के प्रलोभन व्यक्ति को उसके उद्देश्य से भटकाने का प्रयास करते हैं। इन प्रलोभनों से बच पाना आसान नहीं होता है। वही इनसे उबर सकता है जो नचिकेता की भांति दृढ़ हो।
नचिकेता यह समझ चुका था कि सांसारिक सुख स्थाई नहीं हैं। चाहे व्यक्ति स्वर्गलोक में ही क्यों ना हो। वहाँ भी इनकी अवधि कुछ अधिक हो सकती है। लेकिन सुख स्थाई नहीं हो सकते।
वह उस सत्य को जानना चाहता था जो स्थाई हो। वह संसार के लुभावने पर्दे के पीछे छिपी सच्चाई जानना चाहता था। वह सच्चाई जो बड़े बड़े ज्ञानियों के लिए भी जान पाना कठिन था। यमराज द्वारा उसे भटकाने के लिए अनेक लालच दिए गए। लेकिन वह उनके फंदे में नहीं फंसा। सभी लालच ठुकरा कर अपनी बात पर अड़ा रहा। अंततः यमराज को भी हार माननी पड़ी।
नचिकेता की कथा अनन्या के विरुद्ध आवाज़ उठाने तथा सत्य पथ पर चलते हुए अटल रहने की शिक्षा देती है।