Aaj ki santaan in Hindi Short Stories by Sonia Gupta books and stories PDF | आज की सन्तान

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आज की सन्तान

आज की सन्तान

मैं और मेरा मित्र, “राम कृष्ण” रोज उस ढाबे पर जाते थे, जहाँ वह बालक अपने नन्हें नन्हें हाथों से चाय बनाकर सब को परोसता था और झूठे बर्तन भी मांजता था! हम अक्सर उसको देखते थे, अपनी उम्र के उन बच्चों को निहारते हुए, जो पास ही की पाठशाला में पढने आते थे ! इच्छा उसकी भी बहुत होती थी कि वह भी उन सब की तरह पढ़े लिखे और उन्नति करे ! जब भी वो बच्चों को पानी में किश्ती बहाते देखता, उसकी आँखों से तो अश्रु खुद ही मेघा बन बह जाते ! वह तो शायद बचपन के मायने ही न सीख पाया ! बुढ़ापा क्या होता है, उसको यह एहसास अभी से होने लगा था ! क्या कसूर था इस सब में आखिर उसका ? यही कि वह गरीब था या उसके सिर पर माँ बाप का साया न था ?

मेरा मित्र, राम कृष्ण थोड़ा भावुक किस्म का इन्सान था ! एक दिन उसने मुझसे पूछा कि क्यूँ न मैं इस बच्चे को आश्रय देकर अपना बना लूँ? राम कृष्ण अकेला था, बरसों बीत गये उसकी पत्नी “शारदा” को इस दुनिया से गुजरे ! मैंने उसको समझाया कि शायद अब वो समय नहीं रहा कि किसी की भलाई कर सकें हम, पर मेरा मित्र दिल का बड़ा कमजोर था, किसी के दुःख को देख न सकता था ! एक दिन वह निश्चय कर के घर से निकला कि आज तो उस से बात करके ही रहेगा ! ठिठुरते हुए कोहरे में हम अपने उसी ठिकाने पे पहुंचे ! इंतज़ार करते रहे कि कब आएगा वह नन्हा, चाय का प्याला लिए हुए ! थोड़ी ही देर में मासूम सा चेहरा लिए आया, और बोला, ”बाबूजी ये लीजिये आपकी गर्मा गर्म अदरक, मसाले वाली चाय”!

हमें प्याला हाथ में पकड़ाकर जब वह जाने लगा, तो राम कृष्ण ने उसको अपने पास बुलाया, ढेरों बातें की ! जब उस से उसका नाम पूछा तो बोला “मैं खुद भी नहीं जानता, सब मुन्ना पुकारते हैं” ! राम कृष्ण ने उसका नाम ‘गोपाल’ रख दिया और सीने से लगा लिया, उसका हाथ पकड़कर, बिना कुछ पूछे, कहे अपने साथ ले चला! उसकी खुद की कोई औलाद न थी, मानो इश्वर ने उसे गोपाल वरदान रूप में दे दिया हो ! अगले ही दिन एक उच्च पाठशाला में उसका दाखिला करवाया! एक माँ की भांति, वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था गोपाल को !

दसवीं की परीक्षा पार करने के बाद गोपाल को डाक्टरी पढाई के लिए बाहर किसी कॉलेज में दाखिला मिला ! आज इतने बरस बीत गये, गोपाल एक डाक्टर बन गया, रामकृष्ण रोज उसके आने की राह तकता रहता था !

एक दिन मैं राम कृष्ण के घर बैठा था, अचानक से दरवाजे की घंटी बजी, हम तुरंत बाहर गये! देखा तो गोपाल था, पर अकेला नहीं, साथ में एक लाल जोड़े में सजी लडकी थी ! गोपाल ने बताया कि ये “मीना” है, आपकी बहू.. हमारे पैर छुए उसने और आशीर्वाद माँगा ! अब “शारदा” भाभी तो नहीं थी, और राम कृष्ण को इतने रीति रिवाज कहाँ आते थे ! फिर भी जितना बन पड़ा उसने बहू का स्वागत किया !

कुछ वक्त बाद रामकृष्ण के जीवन में बदलाव आने लगा ! जिस बेटे को अपना समझ कर इतना लाड प्यार दिया, पढ़ाया लिखाया, वही आज इतना परिवर्तित हो गया ! बहू दो वक्त की सूखी रोटी दे देती राम कृष्ण को, बदले में घर का सारा काम करवाती उस से! गोपाल ने भी सारी जायदाद खुद के नाम करवा ली,! बहुत बार उसे घर से निकल जाने को भी बोला दोनों ने, पर शारदा भाभी की यादें बसी थी उस आशियाने में ! कैसे चला जाता भला छोड़कर उस जगह को वह, परन्तु वक्त ऐसा भी अपना रंग दिखायेगा मालूम न था ! बरसात की रात थी, ठंड के मारे उसका बदन बुखार से जकड़ गया था, होश तो थी ही नहीं कोई उसे, जब होश में आया तो देखा अपने जैसे अधेड़ उम्र के लोगों के बीच एक खाट पर लेता था वह! अचानक वहाँ रहने वाले उसके साथी उसको पूछने लगे भाई क्या बात क्यूँ इतना सताता था तू अपने बेटा बहू को ? उन्होंने क्या बिगाड़ा था तेरा जो तुझसे इतने दुखी आ गये कि यहाँ छोड़ गये तुझे! वो हैरान परेशान, क्या जवाब देता उन्हें.....चुप्पी साधे बैठा रहा! अगले दिन जब सच्चाई बताई तो सब दंग रह गये !

कईं वर्ष बीत गये, उसी वृधाश्रम में रहते ! पास से गुजर जाते गोपाल और उसकी बहू, पर एक बार भी खबर को न आये ! अब उसका बूढ़ा शरीर भी थकने लगा था! उस हर क्षण को याद करके आँखे भर आती थी जिसमें उसके बेटे की यादें जुड़ी थी ! आज साँझ को नजाने उसे क्यूँ ऐसा लगा जैसे कि उसका दम टूटने वाला है, जोरों से खांसी सी होने लगी, मन बेचैन था ! अपने एक मित्र से कह कर मुझे संदेश भिजवाया के जाकर के मेरे बच्चों को ले आये, आखिरी बार तो देख लूँ एक बार, पता नहीं कब ये आँखें बंद हों जाएँ ! निगाहें ताकती रही पर कोई आहट नहीं सुनाई दी किसी के आने की ! मैंने थोड़ा सा होंसला दिलाया उसे कि बस अभी आते होंगे वे ! वह मुस्कराने लगा, बोला, तुझे कहाँ आता है झूठ बोलना ! “तू सही बोलता था भाई, जमाना बदल गया है, यहाँ तो अपनी सगी औलाद नहीं पूछती माँ बाप को, मैंने एक पराये से उम्मीद रखी” ! मानो उसके लफ्जों में सारी दुनिया सिमट कर रह गयी हो ! इसके आगे एक लफ्ज़ और न निकला उसकी जुबान से, और मैं राम कृष्ण, राम कृष्ण चिल्लाता रहा ! पता ही न चला कब उसने अपनी आँखें हमेशा के लिए बंद कर ली !

ये आज कल की सन्तान को हुआ क्या है

क्यूँ अपने माँ बाप का हाल ऐसा किया है?

जी जान लगा देते हैं जो दिन रात अपने

उनको बदले में सन्तान से मिला क्या है?

क्यूँ भुलाये जा रहें हैं ये बेदर्द जमाने वाले

कि माँ बाप तो प्रतिबिम्ब उस खुदा का हैं !

डॉ सोनिया गुप्ता

सर्वाधिकार सुरक्षित !